अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने को बेताब देशवासियों ने एक बहुत बड़ी कीमत चुकाकर लंबे इंतजार के बाद स्वतंत्रता की पहली सुबह देखी थी, क्योंकि ब्रिटिश शासनकाल में जिंदगी तो थी लेकिन आजादी नहीं ...
जी हां…ये जमाना उन्हीं का है जिनके अंदर कुछ नया करने की आग है, अपना अलग रास्ता बनाने की तड़प है, अकेले लड़ने का साहस है, खुद को नए सिरे से साबित करने की भूख है, ...
उड़ रहीं आंगन से एक-एक कर सारी चिड़िया, मेरा घर-आंगन भी अब अकेला हो गया… ये कैसी विडंबना है जो सौ साल जीने की दुआ देने वाले संस्कारी समाज में ही आज मौत को अपनाने का चलन ...
हर बार टूटने के बाद मैं फिर सजाती हूं उम्मीदों के रंग विश्वास के कैनवास पर…हर बार हारकर सोचती हूं कुछ नया अपने लिए, चाहती हूं कुछ अच्छा अपने अपनों के लिए…लेकिन पाती हूं ...
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