ये जिंदगी एक दौड़ है। कोई शोहरत के लिए दौड़ता है तो कोई दौलत के लिए, दौड़ते सब हैं लेकिन सिर्फ अपने-अपने मतलब के लिए। या फिर यूं कहें कि जिंदगी में हर कोई सिर्फ अपने बारे में सोंचता है और अपनी ही जरूरतों को पूरा करने में पूरी जिंदगी उलझा रहता है। ना तो कोई दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने के बारे में सोचता है और ना ही किसी की मदद के लिए कोई अपनी व्यस्त जिंदगी से थोड़ा समय निकालने की कोशिश करता है। हालांकि स्वार्थ से भरी इसी दुनिया में आज भी चंद लोग हैं जो देश या दूसरों की समस्या के बारे में सिर्फ सोंचते ही नहीं बल्कि इस दिशा में अपने जुनून से कुछ करके भी दिखाते हैं। दूसरों की मदद ही उनकी जिंदगी का मकसद होता है। वो दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझते हैं और अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत के नाम कर देते हैं।
एक जिद ताकि बुनी जा सके जीवन की कविता…एक जिद ताकि सपनों की हरी पत्तियों पर ओस की बूंद सा थिरक सके मन…एक जिद ताकि मन के तार से बज सके वो संगीत जिसमें विश्वास के तानों पर गुलजार होती हो जिंदगी की गजल… जी हां चार दिन की इस जिंदगी को इंसानियत के नाम कर गुजरने की ऐसी ही एक जिद् है विदिशा से ताल्लुक रखने वाले युवा उद्यमी कमलेश सेन की। कमलेश एक सफल उद्यमी और रेलवे अपडाउनर्स प्रोग्रेसिव वेलफेयर एसोशिएसन के अध्यक्ष होने के साथ ही ऑल इंडिया सेनजी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष और एंटी करप्शन फाउंडेशन इंडिया में स्टेट कार्डिनेटर भी हैं। हाल ही में उन्हें मंडल रेलवे उपयोगकर्ता सलाहकार समिति (DRUCC) के सदस्य के रूप में भी नामांकित किया गया है।
तेज रफ्तार से भागती आज की हाईटेक दुनिया में अगर कोई सबसे महंगी चीज है, तो वो है इंसानियत। जो मौजूदा वक्त में लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। इंसान का इंसान से विश्वास उठ रहा है। ऐसे वक्त में कमलेश जैसे विरले लोग अपने इरादों और कारनामों से इंसानियत की बुझती उम्मीद को रोशन कर जाते हैं।
समाज सेवा का क्षेत्र हो, धार्मिक गतिविधि हो या फिर रेलवे के अपडाउनर्स के हितों के लिए संघर्ष, कमलेश किसी भी मोर्चे पर पीछे नहीं रहते। कोरोना महामारी के संकट काल और लॉकडाउन के दौरान देश-प्रदेश के रेलवे यात्रियों और अपडाउनर्स के हक के लिए कमलेश ने लंबा संघर्ष किया। बंद ट्रेनों को फिर से बहाल करने और एमएसटी सुविधा फिर से शुरू करने की मांग को लेकर कमलेश ने एक अभियान छेड़ा और इसे राष्ट्र व्यापी आंदोलन बनाकर जनसमर्थन हासिल किया। इस दौरान उन्होंने भोपाल से लेकर जबलपुर और दिल्ली तक रेलवे के तमाम आला अधिकारियों, केंद्रीय रेल मंत्री, रेल राज्य मंत्री, मप्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों, कई राज्यों के राज्यपालों, सांसदों और विधायकों से मुलाकात कर उन्हें आम यात्रियों को होने वाली परेशानियों से अवगत कराया। जन प्रतिनिधियों को 750 से ज्यादा पत्र लिखे। धरने के साथ ही भोपाल से विदिशा तक पदयात्रा भी निकाली।लंबे संघर्ष के बाद भी जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो रेलवे अप-डाउनर्स एसोसिएशन के सदस्यों ने जल सत्याग्रह के साथ ही एक अनोखा प्रदर्शन किया। मुक्तिधाम जाकर दिवंगत आत्माओं के सामने मदद की गुहार लगाई और ज्ञापन सौंपा। ताकि वो जिम्मेदारों और जमप्रतिनिधियों को सद्बुद्धि दें और अप-डाउनर्स को होने वाली परेशानियों से निजात दिलाएं। आखिरकार रेलवे को भी कमलेश के शांति पूर्वक किए गए आंदोलन के सामने झुकना पड़ा और आम यात्रियों के साथ-साथ अपडाइउनर्स को उनका हक वापस मिला। सबसे खास बात ये रही कि इस अभियान को बिना किसी विरोध और हंगामे के शांतिपूर्वक तरीके से सफल बनाया गया।रेलवे अपडाउनर्स प्रोग्रेसिव वेलफेयर एसोशिएसन बनाने और आंदोलन की जरूरत आखिर क्यों पड़ी, इसके जवाब में कमलेश कहते हैं कि कोरोना महामारी के भयावह दौर में एमएसटी समेत रेलवे की तीन मुख्य सुविधाएं बंद होने के कारण हजारों लोगों की नौकरी चली गई और रोजगार छिन गया। मजदूर, किसानों का गांवों से शहर तक पहुंचना बंद हो गया। स्कूल व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कोरोना का कहर थमने के बाद कुछ ट्रेनों का परिचालन फिर से शुरू तो कर दिया गया लेकिन डेली अपडाउनर्स को एमएसटी और जनरल टिकट की सुविधा नहीं दी गई, जिसके चलते उन्हें बसों में सफर करना पड़ रहा था जो ट्रेन की तुलना में काफी महंगी पड़ रही था। लिहाजा आम आदमी, गरीब, मजदूर, किसान और डेली अपडाउनर्स का दर्द मुझसे देखा नहीं गया। वैसे भी ये समस्या सिर्फ विदिशा की ही नहीं बल्कि पूरे देश के लाखों यात्रियों और अपडाउनर्स की थी लिहाजा इस मुहिम को मध्यप्रदेश के साथ-साथ देशभर में भरपूर समर्थन मिला। तो दूसरी तरफ समाज सेवा के क्षेत्र में कमलेश सेन को एक खास पहचान।
‘सेवा को मिला सम्मान’
आम रेल यात्रियों और अपडाउनर्स की सुविधा और सहूलियत के लिए गए शुरू की गई राष्ट्र व्यापी मुहिम को सफलता मिलने के बाद जहां एक तरफ रेलवे अपडाउनर्स एसोशिएसन का पूरे देश में नाम हो रहा हैं वहीं दूसरी तरफ इस अभियान की नींव रखने वाले एसोसिएशन के अध्यक्ष कमलेश सेन की भी हर तरफ प्रशंसा और चर्चा हो रही है। इसी सिलसिले में महाराष्ट्र की एक स्वयंसेवी संस्था ग्लोबाल फाउंडेशन द्वारा कमलेश को ‘भारतीय समाज रत्न’ अवार्ड से सम्मानित किया गया। पुणे की एक निजी पांच सितारा होटल में आयोजित इस भव्य समारोह में पद्मश्री डॉक्टर विजय कुमार शाह ने मेडल पहनाकर कमलेश सेन का सम्मान किया।
ना मशहूर होने की हसरत, ना ही किसी प्रकार का अपना स्वार्थ। स्वार्थ है तो सिर्फ समाज के लिए कुछ करने का, जुनून है तो सिर्फ मानवता का मान बढ़ाने का….कुछ इसी सोच के साथ कमलेश बीते कई सालों से समाज सेवा में जुटे हुए हैं। मानवता की मदद और समाज की बेहतरी के लिए किए जाने वाले नेक काम के लिए कई संस्थाएं कमलेश को सम्मानित करना चाहती हैं लेकिन कमलेश पर्दे के पीछे रहकर खामोशी के साथ अपना काम करने में विश्वास रखते हैं।
समाजसेवी संस्थाओं और स्थानीय लोगों के अलावा कई जनप्रतिनिधियों ने भी आम जनता की इस लड़ाई में कमलेश के कुशल नेतृत्व की जमकर सराहना की। इसी कड़ी में उड़ीसा सांसद अनुभव मोहंती ने समाज सेवा के क्षेत्र में निस्वार्थ भावना से किए गए कमलेश सेन के कार्य से प्रभावित होकर उन्हें प्रशंसा पत्र दिया। वहीं सागर सांसद राजबहादुर सिंह और विदिशा विधायक शशांक भार्गव ने भी कमलेश के घर आकर उनका उत्साह बढ़ाया। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) भी जनहित में की गई इस नेक पहल के लिए कमलेश सेन का सम्मान करने जा रहा है।
धर्म-कर्म के काम में भी अव्वल
कमलेश समाज सेवा के साथ-साथ धार्मिक गतिविधियों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। अयोध्या में बन रहे विशाल राम मंदिर के निर्माण कार्य में कमलेश ने एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपए की सहयोग राशि देकर धर्म का मान बढ़ाया। साथ ही धार्मिक क्षेत्र में निजी भूमि खरीद कर बिना किसी जन सहयोग के एक विशाल शिव मंदिर का निर्माण 2018 में कराया। सिरोंज के बरखेड़ा में भी साल 2020 में महामाया मंदिर का निर्माण करवाया। इसके अलावा गरीब कन्याओं का विवाह कराकर समाज के सामने एक नई मिसाल पेश की। कमलेश ने पवित्र बेतवा नदी को निर्मल एवं स्वच्छ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और उसके घाटों के सफाई अभियान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
पॉजिटिव इंडिया से बातचीत के दौरान कमलेश सेन कहते हैं कि समाज सेवा और जरूरतमंदों की मदद के कार्य से उन्हें जितनी खुशी और सुकूं मिलता है, उसे मैं किसी दूसरे काम से हासिल नहीं कर सकता। मैं हमेशा से ही समाज सेवा करना चाहता था, अब मैं इस लायक हो गया हूं तो समाज और इंसानियत के प्रति पूरी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहा हूं।
कमलेश ने कोरोना के दौरान अपने नेक इरादों और मंसूबों के जरिए सामाजिक सद्भभावना की मिसाल और गंगा-जमुना तहजीब का एक नायाब उदाहरण पेश किया। उन्होंने रमजान के दौरान रोजा खोलने की साम्रगी अपने मुस्लिम मित्रों के घर-घर पहुंचाई ताकि लाकडाउन की तमाम पाबंदियों के बीच वो अच्छे से अपने धर्म का निर्वाह कर सकें। इसे लेकर कमलेश कहते हैं कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं और दुख बांटने से घटता है। कमलेश कहते हैं कि उनके मुस्लिम मित्र हर त्यौहार में उनके घर आकर मिठाई खिलाकर त्यौहार की मिठास बढ़ा जाते हैं, ऐसे में उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वो भी उनके सुख-दुख में शामिल हों।
महामारी के मुश्किल दौर में बने मसीहा
कमलेश लॉकडाउन के दौरान समाजसेवा का पर्याय बनकर सामने आए। उन्होंने शांति वाहन खरीदने में सहयोग राशि देने के साथ ही पत्रकारों और जरूरतमंदो को सेनेटाइजर औऱ मास्क समेत कोरोना से बचाव के जरूरी सामान वितरित किए। गरीब परिवारों को सूखा राशन वितरित करने के साथ ही 10-15 टॉल फ्री नंबर भी जारी किए ताकि शहर में कोई भी भूखा नहीं सोए और फोन के जरिए सूचना मिलने पर वो जरूरतमंद के घर तक भोजन पहुंचा सके।
कमलेश कहते हैं कि हम किसी दूसरे देश से कोई दूसरी मदर टेरेसा के आने की उम्मीद नहीं कर सकते कि वो आएं और हमारे देश के लोगों की सेवा करें। हमें उन जैसा बनना होगा और जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद करनी होगी।
कमलेश ने कोरोना काल में लगातार 22 दिनों तक बाहर से आए मेडिकल स्टाफ और अप्रवासी मजदूरों के भोजन की व्यवस्था भी की। कमलेश खुद सुबह और शाम का चाय-नाश्ता पहुंचाने जाते। इतना ही नहीं कोरोना महामारी के मुश्किल दौर में ट्रेनों का संचालन बंद होने से भोपाल में काम और व्यापार करने वाले लोगों के सामने रोजगार गंवाने का संकट खड़ा हो गया था। संकट की इस घड़ी में भी कमलेश सबसे बड़े मददगार के रूप में सामने आए और चार महीनों तक अपने निजी वाहन से निशुल्क लोगों को भोपाल लाने ले जाने का भी काम किया ताकि उनका रोजगार बचा रहे।
सादगी संजीदगी की मिसाल, संघर्ष से पाया मुकाम
कहते हैं जब कोई जब कोई आदमी तरक्की की राह पकड़ता है, तो अपनी जमीन और जड़ को भूल जाता है लेकिन कामयाबी का आसमां अपने नाम करने के बावजूद कमलेश ने इससे इतर संवेदनशीलता और दरियादिली की ऐसी मिसाल पेश की है जिसे न सिर्फ लंबे समय तक याद रखा जाएगा बल्कि दूसरों को भी इससी प्रेरणा मिलेगी। उनके व्यक्तित्व ने साबित किया है कि कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता उसके कर्म उसका कद ऊंचा करते हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि कमलेश ने अपनी ज़िंदगी में बस कामयाबियां ही कामयाबियां देखी हैं। उनकी इन बड़ी कामयाबियों के पीछे संघर्ष, मेहनत और दृढ़ संकल्प की एक बेजोड़ कहानी है। एक ऐसी कहानी जिसमें ग्रामीण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले एक गरीब परिवार के तमाम संघर्षों के बावजूद आसमां को अपने नाम कर लेने की जिद्द है। सपने हैं, संघर्ष है, कश्मकश् है, रोज-रोज के धक्के हैं तो जमाने से लड़ने का जज्बा भी। जिंदगी ने हर मोड़ पर कठिन परीक्षा ली लेकिन कमलेश कभी मंजिल से भटके नहीं, हिमालय से अडिग रहे अपने लक्ष्य पर। विपरीत हालातों से हार मानने की बजाए खुद को मुश्किल से मुश्किल हालातों का मुकाबला करने के काबिल बनाया। आज उनके संघर्ष की कहानी उन तमाम लोगों के लिए अंधकार में रोशनी की किरण की तरह है, जिनके सपने हालातों के आगे हार मानकर दम तोड़ देते हैं।
जब जिंदगी ने लिया यू-टर्न
कमलेश बचपन से ही विदेश जाने के सपने देखते थे और अपने इस सपने को पूरा करने की चाहत लिए वो राजधानी भोपाल पहुंच गए। यहां उन्होंने सिंगापुर बेस्ड एक साफ्टवेयर कंपनी में चपरासी की नौकरी कर ली सिर्फ इस लालच में कि कंपनी उन्हें विदेश जाने का मौका देगी। उन्हें कंपनी से विदेश जाने का मौका तो नहीं मिली लेकिन यहां से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ जरूर ले लिया और एक ऐसे सफर की शुरूआत हुई जिसकी कल्पना खुद कमलेश ने भी नहीं की थी। कमलेश ने कंपनी में चपरासी की नौकरी करते-करते कम्प्यूटर और साफ्टवेयर का काम सीख लिया। कुछ समय बाद कंपनी पर छापा पड़ा और कंपनी हमेशा के लिए बंद हो गई और इसका फायदा कमलेश को मिला। दरअसल ऑफिस में काम-काम करते कमलेश को साफ्टवेयर का नॉलेज तो हो ही गया था साथ ही कंपनी के ज्यादातर क्लाइंट भी उनके संपर्क में थे, जो छापा पड़ने के बाद कंपनी की जानकारी लेने के लिए कमलेश को ही फोन करते थे। कुछ समय बाद क्लाइंट की डिमांड और साथियों की सलाह पर कमलेश ने अपनी खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू की।
पहले खुद को बनाया काबिल, अब ‘हुनर को दिला रहे मुकाम’
वो लौ बार बार जलती थी और हर बार हवा का झोंका उसे बुझा देता था। बावजूद उस लौ ने जलना नहीं छोड़ा और आज ये एक बड़े बदलाव की लौ बन चुकी है। कभी एक परिचित से 750 सौ रुपए उधार लेकर शुरू की गई कमलेश की कंपनी आज मध्यप्रदेश समेत चार राज्यों में कंपनी विस्तार कर चुकी है। आज उनकी कंपनी में ढाई हजार से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं और प्रदेश के सभी जिलों में कंपनी के कर्मचारी मौजूद हैं।
खास बात यह है कि कमलेश ऐसे युवाओं को मौका दे रहे हैं जिनके पास डिग्री तो नहीं है लेकिन योग्यत और हुनर भरपूर है। पॉजिटिव इंडिया से बातचीत के दौरान कमलेश बताते हैं कि उनके खुद के पास कोई टेक्निकल डिग्री नहीं थी। वो अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर जिंदगी में इस मुकाम तक पहुंचे हैं। कमलेश कहते हैं कि अपने संघर्ष के दौरान मैंने देखा कि कई ऐसे युवा हैं जिनके पास योग्यता और काबिलियत तो है लेकिन तकनीकि डिग्री के अभाव में वो सही जगह नहीं पहुंच पा रहे हैं। यही वो पल था जब मैंने फैसला किया कि ऐसे युवाओं को ही रोजगार देना है और एक आज का दिन है जब मेरी कंपनी में ढाई हजार से ज्यादा युवा काम कर रहे हैं।
हार में जीत तलाशने के हौसले ने बनाया ‘हीरो’
एक तिनके से शुरू करके पूरा का पूरा सपनों का शहर बना लेना इतना आसान नहीं होता लेकिन जुनून एक ऐसी चीज है जिसके आगे कुछ नामुमकिन भी नहीं होता। कमलेश के लिए भी अपने संकल्पों को अंजाम तक पहुंचाने का सफर कभी इतना आसान नहीं रहा मगर इन सबके बीच उन्होंने कभी अपनी ख़्वाहिश धुंधली नहीं पड़ने दी।
जिंदगी में सफलता और असफलता दोनों मिलती हैं, लेकिन असफलता मिलने का मतलब जिंदगी में रुक जाना नहीं बल्कि एक सबक होता है। असफलता के बाद भी मेहनत करने पर एक दिन लक्ष्य जरूर मिलता है। हारते तो वहीं है जो अपने मन में हार मान लेते हैं और जीतते वहीं है जो कुछ कर गुजरने की ठान लेते हैं। साफ शब्दों में कहें तो ये इंसान पर निर्भर करता है कि हार मिलने पर थक कर बैठ जाना है या फिर दोबारा कड़ी मेहनत करनी है। हार को जीत में बदलना है या जिंदगी भर रोना है।
संघर्ष की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को, उनके मुक़द्दर के पन्ने कोरे नहीं होते’….कमलेश की कहानी भी अदम्य साहस और पहाड़ से हौंसले के बूते जिंदगी की हारी बाजी को जीतने की कहानी है।एक वक्त था जब कमलेश पूरी तरह बर्बाद हो चुके थे, बिजनेस में सब कुछ गंवा चुके थे, उनके सिर पर 40 लाख का कर्ज चढ़ चुका था। यहां तक कि उन्हें अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी, अपनी गाड़ी और सारा सामान तक बेंचना पड़ा। बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और जुटे रहे अंधियारी रात को कामयाबी के भोर में बदलने के लिए।
कहते हैं सपनों को पाने के लिए ज़िद ज़रूरी है। सपनें छोटे हो या बड़े अगर आप उन्हें हासिल करने की ज़िद पाल लेते हैं, तो हर राह आसान हो जाती है। हर चुनौती से लड़ने की हिम्मत आ जाती है। कमलेश भी पिछली तमाम नाकामियों से सबक लेकर एक बार फिर मेहनत की राह पर चलते हुए अपने सपनों को सच की सूरत में ढालने की कोशिश में पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं। इस बार उनकी मेहनत भी रंग लाती है और उनकी जिंदगी में सफलता के सूरज का उदय होता है।
कभी-कभी हम सोचते है कि इतनी नफरत, इतनी बुराईयां, इतना झगड़ा, इतनी मारा-मारी के बीच भी ये दुनिया कैसे चल रही है? लेकिन आज भी कई लोगों के अंदर इंसानियत जिंदा है। यही इंसानियत इस दुनिया को चला रही है, जिसका जीता जागता उदाहरण हैं विदिशा के कमलेश सेन। जिनकी कहानी साबित करती है कि इस मशीनरी दौर में भी ऐसे लोग मौजूद हैं, जो अपना सुख-दुख भूल निस्वार्थ भाव से दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने में पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं। इंसान को इंसान से जोड़ने की ओर मिसाल बन रही कमलेश की इस पहल को पाजिटिव इंडिया तहेदिल से सलाम करता है।
पॉजिटिव इंडिया की कोशिश हमेशा आपको हिंदुस्तान की उन गुमनाम हस्तियों से मिलाने की रही है, जिन्होंने अपने फितूर से बदलाव को एक नई दिशा दी हो और समाज के सामने संभावनाओं की नई राह खोली हो। हर रोज आपके आसपास सोशल मीडिया पर नकारात्मक खबरें और उत्तेजना फैलाने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच हम आप तक समाज के ऐसे ही असल नायक/नायिकाओं की Positive, Inspiring और दिलचस्प कहानियां पहुंचाएंगे, जो बेफिजूल के शोर-शराबे के बीच आपको थोड़ा सुकून और जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे सके।