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न मशहूर होने की हसरत, न ही किसी प्रकार का अपना स्वार्थ। स्वार्थ है तो सिर्फ समाज के लिए कुछ कर गुजरने का, जुनून है तो सिर्फ तालीम के जरिए उन मासूमों का मुस्तकबिल बदलकर उनकी जिंदगी संवारने का, जो बिना किसी गुनाह के जेल की ऊंची-ऊंची दीवारों के भीतर रहने को मजबूर हैं। कुछ इसी नेक सोच के साथ बिलासपुर कमिशनर और पूर्व कलेक्टर डॉ संजय अलंग ने सजायाफ्ता कैदियों के बच्चों को शिक्षित कर उनका भविष्य उज्जवल करने का बीड़ा उठाया है।

Bilaspur commissnor dr sanjay alang अपने सपनों को लिए तो हर कोई जीता है लेकिन वो लोग बेहद खास होते हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं और उनके सपने साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं। एक ऐसी ही शख्सियत का नाम है आईएएस डॉ संजय अलंग। जो अपने फर्ज के साथ-साथ अपना सामाजिक दायित्व भी बखूबी निभा रहे हैं। डॉ अलंग ने एक बार फिर संवेदनशीलता और इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए जेल में बंद कैदियों के बच्चों का दाखिला प्राइवेट और प्रतिष्ठित स्कूलों में कराया है ताकि इन मासूमों के आने वाले कल पर इनके अतीत का अंधेरा न हो।

साहब बड़े दिलवाले

इंसानियत को जिन पर नाज है: डॉ. संजय अलंगBilaspur commissnor dr sanjay alang

बिलासपुर कमिश्नर डॉ संजय अलंग ने सेंट्रल जेल में बंद कैदियों के बदनसीब बच्चों को नव वर्ष का बेशकीमती तोहफा देकर उनके नसीब में भी खुशियों के रंग भर दिए हैं। बेहद संवेदवशील कमिश्नर डॉ संजय अलंग की पहल पर जेल परिसर में रहने वाले 8 बच्चों को शहर के अच्छे और प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिला दिलाया गया है। जिसमें चार बालक और चार बालिकाएं शामिल हैं, जिनकी उम्र 6 से 13 वर्ष है।

दरअसल सजायाफ्ता कैदियों के बच्चे जिनकी उम्र 6 साल से अधिक हो जाती है, उनका पालन-पोषण जेल परिसर में स्थापित मुक्ताकाश में किया जाता है। साथ ही इन बच्चों का आसपास के सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया जाता है लेकिन डॉ. अलंग के प्रयास से इन बच्चों को अब उत्कृष्ट विद्यालयों में प्रवेश मिला है। कमिश्नर की इस नेक पहल ने उन मासूमों को फिर से सपने देखने और आसमां में उड़ने की आजादी दी है।

कमिश्नर डॉ. संजय अलंग की पहल पर छत्तीसगढ़ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाले 13 साल के एक बालक का एडमीशन स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूल में कराया गया है। वहीं शिवाजी राव प्राथमिक शाला इमलीपारा में कक्षा 5वीं, तीसरी और पहली में पढ़ने वाले तीन छात्रों के साथ ही चौथी और पांचवी क्लास में पढ़ने वाली दो छात्राओं का दाखिला भी स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल में कराया गया है। इसके अलावा मुक्ताकाश में रहकर देवकीनंदन उच्चतर माध्यमिक शाला में पढ़ाई कर रहीं 13 और 14 साल की दो बालिकाओं को भी अब बर्जेश हिंदी मीडियम स्कूल में प्रवेश दिलाया गया है। कमिश्नर के इस कदम से इन बच्चों के माता-पिता भी बेहद खुश हैं और उन्हें यकीन है कि उनके बच्चे समाज की मुख्य धारा से जुड़कर अपने सपने पूरे कर सकेंगे।

Bilaspur central jailबड़े स्कूल में पढ़ने के अपने अरमानों को पूरा होता देख इन बच्चों की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा क्योंकि जेल की अंधेरी दुनिया में रहने के बावजूद वो हमेशा एक ऐसी बाहरी दुनिया का ख्वाब देखते थे जहां वो पढ़ लिख कर कामयाबी की बुलंदियां छू सके। लेकिन परिस्थितियों ने उनसे उनकी मुस्कान छीन ली थी और उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनके सपनों को फिर उड़ान मिल जाएगी। लेकिन संभागायुक्त डॉ संजय अलंग ने उसके उन सपनों को वो पंख दे दिया, जिसके सहारे वो अब आकाश को छू सकेंगे। 

इंसानियत से है गहरा नाताBilaspur commissnor dr sanjay alang

आईएएस डॉ संजय अलंग का इंसानियत से गहरा नाता रहा है। ये कोई पहला मौका नहीं है जब उनकी एक पहल ने कईयों को नई जिंदगी दी तो कईयों को बुढ़ापे का सहारा दिया। इंसानियत के नाम डॉ अलंग की ये छोटी-छोटी कोशिशें जनता का भी दिल जीत लेती हैं। इससे पहले बिलासपुर कलेक्टर रहते हुए उन्होंने जेल परिसर में रहने वाले कैदियों के बच्चों को बड़े प्राइवेट स्कूल में भेजने की मुहिम चलाई थी। इस नेक मुहिम के पीछे उनका मकसद भी बिल्कुल साफ है कि, अपने मां-बाप के गुनाहों का दंश झेल रहे इन बच्चों को शिक्षित कर समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके और इन बच्चों को भी खुले आसमां में उड़ने की आजादी मिल सके।

बिलासपुर कमिश्नर और आईएएस डॉ संजय अलंग ने अपनी पहल के जरिए उम्मीद की जो एक छोटी सी किरण अपने आस-पास के लोगों में जगाई है, यकीनन उसकी रोशनी बहुत दूर तक फैलेगी। शायद यही वजह है कि वो संदेश भी देना चाहते हैं कि, ऐसे बच्चों के लिए समाज में सब मिलकर आगे आएं। इस तरह के सकारात्मक बदलाव आम नागरिकों के साथ से ही संभव हो सकते हैं। अगर और भी लोग या सामाजिक संस्थाएं इन बच्चों के बैकग्राउंड को न देखते हुए, इनकी ज़िंदगी संवारने के लिए आगे आएं, तो यक़ीनन हम इन बच्चों को एक बेहतर कल दे सकते हैं।”

Editor’s word: इन 8 बच्चों की तरह ऐसी कितनी ही मासूम जिंदगियां होंगी जो बिना किसी अपराध के जेल में अपने हिस्से की सजा काट रहीं हैं। उन्हें भी इंतजार है ऐसे ही किसी नेक दिल कमिश्नर का, जो आकर उनसे उनकी इच्छा पूछे और उनका दाखिला भी किसी बड़े स्कूल में करवा दे।


 

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