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सपनों की कोई सीमा नहीं होती, तमाम तोहमतों के बावजूद हसरत कभी कम नहीं होती। अड़चनों की आंधियां और तकलीफों के तूफान को भी हुनर और हौसलों की बयार के आगे अपना रुख बदलना पड़ता है। हमारे आज के नायक के जीवन संघर्ष की कहानी इन लाइनों को शब्द दर शब्द सच साबित करती है। इस कहानी को सामने लाने का मकसद भी सिर्फ यही है कि आज देश के युवा सीख सकें कि जिंदगी के पथरीले सफर में सपनों का पीछा कैसे किया जाता है।

जिंदगी में यूं ही नहीं कोई ‘विजय’ बन जाता

Vijay DL Dehariya संघर्ष की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को, उनके मुक़द्दर के पन्ने कोरे नहीं होते’….जी हां हमारी आज की कहानी अपने पहाड़ से हौंसले के बूते जिंदगी की हारी बाजी को जीतने वाले डिप्टी कलेक्टर विजय डेहरिया और उनके अदम्य साहस की है। एक बेहद पिछड़े गांव के अभावग्रस्त परिवार में जन्मे विजय ने बचपन से ही तमाम चुनौतियों का सामना किया, मुफलिसी के तमाम रंग देखे लेकिन कुछ भी इन्हें अपने ख्वाबों तक पहुंचने से नहीं रोक सका। जिंदगी ने हर मोड़ पर कठिन परीक्षा ली लेकिन विजय कभी मंजिल से भटके नहीं, हिमालय से अडिग रहे अपने लक्ष्य पर। विपरीत हालातों से हार मानने की बजाए खुद को मुश्किल से मुश्किल हालातों का मुकाबला करने के काबिल बनाया। जिंदगी में कुछ बड़ा करने का जुनून ऐसा कि आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक चुनौतियों का सामना करते हुए संघर्ष से सफलता की नई इबारत लिखी और अभावों के बंधनो को तोड़ते हुए एक प्रशासनिक ऑफिसर बनने का गौरव हासिल किया। आज उनके संघर्ष की कहानी उन तमाम लोगों के लिए अंधकार में रोशनी की किरण की तरह है, जिनके सपने हालातों के आगे हार मानकर दम तोड़ देते हैं।Vijay DL Dehariyaजिंदगी इक इम्तिहां है, इम्तिहां का डर नहीं, हम अंधेरों से गुजर कर रौशनी कहलाएंगे…सरदार अंजुम के इस शेर की तरह जिंदगी की तमाम तकलीफों से जीत कर डिप्टी कलेक्टर बने विजय डेहरिया आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। आज वो जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे किया गया संघर्ष आज भी हर युवा में कुछ कर गुजरने का जोश भर रहा है। वर्तमान में विजय मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के जैतहरी तहसील में अनुविभागीय दंडाधिकारी के पद पर पदस्थ हैं, लेकिन एक छोटे और बेहद पिछड़े गांव के गरीब परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद प्रशासनिक गलियों में अपना खास मुकाम बनाने तक का उनका सफर कभी इतना आसान नहीं रहा। उनकी जिंदगी कई संघर्षों को खुद में समेटे हुए है।

ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर प्रशासनिक महकमे में अपनी अलग पहचान बनाने वाले विजय डेहरिया ने साल 2018 के MPPSC में एससी कैटेगरी में पूरे प्रदेश में टॉप किया था। ओवर ऑल उनकी 36वीं रैंक थी।

विजय डेहरिया का जन्म 10 अक्टूबर 1989 में सिवनी जिले के लखनादौन के जमुआ गांव में हुआ। 1500 की आबादी वाला ये इलाका आज भी बेहद पिछड़ा हुआ है। आजादी के इतने बरसों बाद भी बुनियादी सुविधाएं यहां के बाशिंदों को मयस्सर नहीं है। इतना बैकवर्ड की दो सौ घरों में महज पांच लोग ग्रेजुएट हैं, जिनमें से एक विजय और एक उनके छोटे भाई हैं। पूरे गांव में महज दो या तीन लोग सरकारी नौकरी में हैं बाकी सब मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाते हैं। गांव के लोगों को बस पकड़ने के लिए भी मीलों पैदल चलकर दूसरे गांव तक जाना पड़ता है।Parents of Vijay DL Dehariyaअपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर विजय बताते हैं कि उनके पिता खेती किसानी करते थे लेकिन खेती के लिए भी पर्याप्त जमीन नहीं थी। फिर साल 2003 में उनकी शिक्षा विभाग में नौकरी लगी। पिता पहले शिक्षा कर्मी थे, अब सहायक अध्यापक हैं। शिक्षाकर्मी रहते हुए उन्हें नाम मात्र का वेतन मिलता था। 2007 तक उनकी पगार महज 2200 रुपए थी। लिहाजा घर का खर्चा चलाना तक मुश्किल था। मां चौथी क्लास तक पढ़ी हैं और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। उन्हें मात्र 250 रुपए सैलरी मिलती थी और पूरा घर उसी पर चलता था। एक तरफ परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी तो दूसरी तरफ गांव के शासकीय स्कूल में पढ़ने का माहौल भी खराब था।

विजय बचपन से ही मेधावी छात्र थे। उनकी पहली से पांचवी तक की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल में हुई। गांव के सरकारी स्कूल में उस वक्त एक ही शिक्षक हुआ करते थे। लिहाजा स्कूल खोलने से लेकर साफ-सफाई करने और टाट पट्टी बिछाने से लेकर घंटी बजाने तक का काम उन्हें करना पड़ता था। 

विजय की शुरूआती पढ़ाई गांव के ही शासकीय प्राथमिक स्कूल से हुई। वो हर रोज 8 किमी का लंबा सफर तय करके स्कूल जाते थे। विजय बताते हैं कि 6वीं कक्षा में लखनादौन के सरकारी स्कूल में दाखिला लेने के बाद उन्होंने पहली बार एबीसीडी सीखी या फिर यूं कह लीजिए कि पहली बार उन्हें पता चला कि अंग्रेजी भी कोई विषय है। फिर 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई सिवनी के गवर्मेंट एक्सीलेंस स्कूल से हॉस्टल में रहते हुए की। हॉस्टल से स्कूल की दूरी चार किलोमीटर से भी ज्यादा थी। जिसे विजय पैदल ही तय किया करते थे क्योंकि उनके पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो एक साइकिल तक खरीद सकें।Vijay DL Dehariyaविजय ने संसाधनों के अभाव के बावजूद अपनी मेहनत के दम पर 12वीं तो पास कर ली लेकिन अब आगे की चिंता उन्हें सताने लगी थी। क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो किसी प्रतियोगी परीक्षा की कोचिंग या फिर किसी अच्छे कॉलेज में एडमीशन ले सकें। लिहाजा उन्होंने पीईटी की तैयारी के साथ-साथ एक फोटो कापी की दुकान में काम करना भी शुरू कर दिया ताकि वो अपना खर्चा निकालने के साथ ही आगे की भी तैयारी कर सकें।

बेहद बैकवर्ड गांव से ताल्लुक रखने कारण विजय को बचपन में पढ़ाई की अच्छी सुविधा नहीं मिल सकी। घर में बड़े होने के कारण शुरू से जिम्मेदारियों का बोझ, ग्रामाीण परिवेश में संसाधनों की कमी, आर्थिक चुनौतियों समेत कई दुश्वारियां… लेकिन विजय ने तमाम संघर्षों के बीच कभी अपना हौंसला कम नहीं होने दिया और अफसर बनने के अपने सपने को भी जिंदा रखा। उन्होंने कभी भी गरीबी और आर्थिक तंगी को अपनी मेहनत के ऊपर भारी नहीं पड़ने दिया।  

साल 2007 में विजय का AIEEE और पीईटी दोनों में चयन हो गया और उन्हें जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला भी मिल गया। लेकिन घर की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो पढ़ाई की फीस भर सकें। जिसके चलते उन्होंने 2008 से घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और अगले तीन साल तक 6वीं से लेकर 12वीं क्लास के कई स्टूडेंट्स को ट्यूशन दिया। विजय के मुताबिक ट्यूशन पढाने का उन्हें काफी फायदा हुआ। फीस के पैसों के इंतजाम के साथ-साथ उनका जनरल नॉलेज और आत्मविश्वास भी बढ़ गया।Vijay DL Dehariya साल 2011 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने के बाद विजय इंदौर चले गए। वहां एक पेट्रोल पंप में 6 हजार रुपए की सैलरी में सुपर वाइजर का काम किया साथ ही स्कूली छात्रों को पढ़ाने का सिलसिला भी जारी रखा। एक साल तक वहां काम किया और कांट्रेक्ट खत्म होने के बाद साल 2012 में फिर से जबलपुर वापस आकर होम ट्यूशन शुरू किया।

पढ़ाई पूरी करने के बाद विजय ने छोटी-मोटी नौकरी तो ज्वाइन कर ली लेकिन उन्हें अपने काम से सन्तोष नहीं था। कुछ अलग पाने की चाहत लगातार उनके मन में चलती रहती थी।

साल 2013 में मध्यप्रदेश में फारेस्ट गॉर्ड की नौकरी निकली और बेरोजगार से पीछा छुड़ाने के लिए विजय ने भी इस नौकरी के लिए आवेदन दिया। संयोगवश उनका चयन भी हो गया और सिवनी जिले के शिकारा में ज्वाइनिंग मिली। उस वक्त शिकारा में ना तो किसी मोबाइल का नेटवर्क था और ना ही कोई ग्रुप या उनके जान-पहचान के लोग। इन दस महीनों के दौरान विजय ने जमकर पढ़ाई की जबकि अभी तक ये भी तय नहीं किया था कि उन्हें पीएससी निकालना है। हालांकि इस बात का यकीन जरूर था कि एजुकेशन और पढ़ाई कभी बर्बाद नहीं जाएगी और जिंदगी में कुछ ना कुछ जरूर मिलेगा।Vijay DL Dehariya

संकल्पों को अंजाम तक पहुंचाना आसान नहीं होता। लेकिन विजय ने कभी अपनी ख़्वाहिश धुंधली नहीं पड़ने दी। जैसे-तैसे खुद के बूते तैयारी करके फारेस्ट गार्ड तो बन गए लेकिन एक बड़ा अधिकारी बनने का सपना उनके जेहन में तैरता रहा। फारेस्ट की नौकरी के दौरान जंगलों में भटकते हुए वो आगे की तैयारियां करते रहे। कई बार मन कमजोर पड़ा लेकिन संकल्प उस जिद को पूरा करने का हौसला देता था कि एक दिन प्रशासनिक अफसर बनकर घर और गांव का नाम रोशन जरूर करना है।


साल 2014 में विजय जबलपुर में सेंट्रल गवर्मेंट के आर्डिनेंस डिपो का एग्जाम देते हैं और जूनियर मटेरियल असिस्टेंट के पद पर उनका चयन भी हो जाता है। वो फॉरेस्ट की नौकरी छोड़कर एक बार फिर जबलपुर का रूख करते हैं। इसी दौरान एक दोस्त उन्हें पीएससी की तैयारी करने की सलाह देता है और विजय आर्डिनेंस फैक्ट्री की जॉब के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी शुरु कर देते हैं।

5 बार की नाकामी के बाद मिली बड़ी कामयाबी

Vijay DL Dehariyaजिंदगी में सफलता और असफलता दोनों मिलती हैं, लेकिन असफलता मिलने का मतलब जिंदगी में रुक जाना नहीं बल्कि एक सबक होता है। असफलता के बाद भी मेहनत करने पर एक दिन लक्ष्य जरूर मिलता है। हारते तो वहीं है जो अपने मन में हार मान लेते हैं और जीतते वहीं है जो कुछ कर गुजरने की ठान लेते हैं। साफ शब्दों में कहें तो ये इंसान पर निर्भर करता है कि हार मिलने पर थक कर बैठ जाना है या फिर दोबारा कड़ी मेहनत करनी है। हार को जीत में बदलना है या जिंदगी भर रोना है। विजय की कहानी भी हार में जीत तलाशने के हौंसले की कहानी है। विजय ने पांच बार फेल होने के बाद भी MPPSC क्लियर करने का सपना नहीं छोड़ा और आखिरकार अपने सपनों में हकीकत के रंग भरने में कामयाब रहे।

विजय ने पहली बार साल 2013 में एमपीपीएससी का फार्म भरा और प्रीलिम्स क्लियर किया लेकिन मेंस में चूक जाते हैं। साल 2014 के एग्जाम में असफलता मिलने के बाद वो साल 2015 में फाइनल इंटरव्यू तक पहुंचने के बाद भी एक या दो नंबर से रुक जाते हैं। 2016 में तीसरे प्रयास में वो प्रीलिम्स तक क्लियर नहीं कर पाते। वहीं साल 2017 में एक बार फिर फाइनल इंटरव्यू तक पहुंचने के बाद वो चयन से चूक जाते हैं। 

लगातार पांच प्रयास में मिली असफलता के बाद विजय की जिंदगी में भी हताशा का दौर शुरू हो जाता है। निराशा और अवसाद की काली रात, हर तरफ मुश्किलें और हार का भय। चुनौतियां मुंह बाए अपने विकराल रूप में खड़ी रहीं, लेकिन इन सबसे बेखबर विजय अपनी मेहनत और अदम्य साहस के साथ जुटे रहे काली रात को भोर में बदलने के लिए। कई बार ऐसा लगा कि नहीं, शायद अब और नहीं मगर तभी उन्हीं अंधेरों के बीच से जिंदगी ने कहा कि देखो उजास हो रहा है। लिहाजा पिछली तमाम असफलताओं को भूलकर और पुरानी कमियों को दूर कर विजय एक बार फिर नई उम्मीद के साथ तैयारी में जुट जाते हैं। Vijay DL Dehariyaकहते हैं सपनों को पाने के लिए ज़िद ज़रूरी है। सपनें छोटे हो या बड़े अगर आप उन्हें हासिल करने की ज़िद पाल लेते हैं, तो हर राह आसान हो जाती है। हर चुनौती से लड़ने की हिम्मत आ जाती है। विजय के सपनों की कहानी भी कुछ ऐसी है। पिछली तमाम नाकामियों से सबक लेकर विजय एक बार फिर मेहनत की राह पर चलते हुए अपने सपनों को सच की सूरत में ढालने की कोशिश में पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं। इस बार उनकी मेहनत भी रंग लाती है और उनकी जिंदगी में सफलता के सूरज का उदय होता है। विजय अपने 6वें अटेंप्ट यानि साल 2018 एमपी पीएससी की परीक्षा में कामयाबी के नए कीर्तिमान गढ़ते हैं। एससी कैटेगरी में पूरे प्रदेश में 1st जबकि ओवर ऑल 36वीं रैंक हासिल कर अपने गांव और अपने परिवार का नाम रोशन करते हैं। ये जिद और जुनून का ही नतीजा था कि गांव के सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़कर भी विजय आखिरकार डिप्टी कलेक्टर बने। 

अतीत के पन्नों को पलटते हुए विजय कहते हैं कि संघर्ष जीवन को निखारता है। मेरे पास न रहने के लिए घर था और न पढ़ने के लिए पैसे, था तो सिर्फ हौसला, जो सपनों को पूरा करने के लिए काफी था।


जिंदगी का सबसे यादगार लम्हाVijay DL Dehariya

पॉजिटिव इंडिया से बात करते हुए विजय डेहरिया बताते हैं कि डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन होने के बाद जब वो पहली बार अपने गांव जमुआ पहुंचते हैं, तो उनका जोरदार स्वागत होता है। आख़िर होता भी क्यों नही? वो अब मिसाल बन चुके थे। उन्होंने अपने हौसले के बलबूते यह साबित करके दिखाया था कि अगर करना चाहो तो इस दुनिया में कुछ भी मुश्किल नहीं है।Vijay DL Dehariya

अपनी जिंदगी के सबसे यादगार लम्हे को याद करते हुए विजय कहते हैं कि सिविल सर्विस में सिलेक्ट होने के बाद जब वो अपने गांव-अपने घर पहुंचते हैं, तो उन्हें देखने पूरा गांव उमड़ जाता है। उनके स्वागत और सम्मान के लिए 1500 लोग खड़े रहते हैं। इतना ही नहीं जबलपुर से अपने गांव जाने के दौरान रास्ते में धूमा से लेकर लखनादौन तक जगह-जगह स्कूलों में उनका सम्मान होता है। घर पहुंचने पर पिता जी पहली बार गले मिलकर रोते हैं, लेकिन उनकी आंखों में ये आंसू खुशी के होते हैं, गर्व के होते हैं। पिता का सीना फक्र से चौड़ा हो जाता है।

जब कोई युवा अपने अभावग्रस्त परिवार के हालात को पछाड़ते हुए देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में काबिज हो जाता है, तो पूरे समाज के लिए हीरो बन जाता है। विजय भी आज पूरे गांव के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। वो जमुआ गांव में डिप्टी कलेक्टर बनने वाले पहले शख्स हैं। अब गांव के बाकी युवक भी विजय की तरह बड़ा अधिकारी बनने का सपना लिए स्कूल जाते हैं। विजय जब भी गांव जाते हैं तो दूसरे युवाओं और युवतियों को भी पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं। विजय का मानना है कि सिर्फ एजुकेशन के जरिए ही समाज में बदलाव और लोगों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है। 

विजय अपनी सफलता का श्रेय अनुशासन, कड़ी मेहनत और चुनौतियों के बीच लगातार कोशिश करते रहने की ललक को देते हैं। उनका मानना है कि जिंदगी में कोई भी टारगेट एचीव करने के लिए डेडिकेशन बेहद जरूरी है। आपको अगर अपनी जिंदगी में कामयाब होना है तो एक लक्ष्य निर्धारित कर ईमानदार कोशिश के साथ स्टेप बाई स्टेप आगे बढ़ना होगा। विजय आज सिविल सर्विस में जाने की तैयारी करने वाले छात्रों को प्रेरित करते हुए कहते हैं PSC का मतलब P से पेशेंश, S से सेक्रिफाइज और C से कमिटमेंट होता है।

ऐसे मिली प्रेरणाVijay DL Dehariya

सिविल सर्विस में जाने या फिर प्रशासनिक अधिकारी बनने के पीछे हर युवा की अपनी कोई ना कोई कहानी होती है, जब कोई लम्हा किसी के भीतर कुछ कर गुजरने की चिंगारी जला देता है। विजय ने भी 9वीं क्लास में ही तय कर लिया था कि उन्हें कोई क्लर्क या पटवारी नहीं बनना, बल्कि एक बड़ा प्रशासनिक अधिकारी बनना है और वैसा रुतबा हासिल करना है। अफसर बनने की प्रेरणा को लेकर विजय कहते हैं कि हॉस्टल में रहते हुए जाति प्रमाण पत्र बनवाने के दौरान उन्हें पता चला कि कास्ट सर्टिफिकेट बनाने से लेकर व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी और अधिकार एसडीएम के पास होता है। किसी भी काम के लिए एसडीएम की मंजूरी जरूरी होती है। अपनी नीति-योजनाओं के जरिए एक लोकसेवक आम आदमी की जिंदगी में बदलाव औऱ समाज के उत्थान का माद्दा रखता है। यही वो पल था जब उन्होंने तय कि बड़े होकर वो एक लोकसेवक बनकर अपने गांव-अपने समाज के विकास का कार्य करेंगे। 

वंचित वर्ग के बच्चों का संवार रहे भविष्यVijay DL Dehariya

आज की भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में हम अक्सर भूल जाते हैं कि समाज के प्रति भी हमारा कुछ कर्तव्य है। हमारे आसपास कई ऐसे बच्चे हैं जो पैसों के अभाव में बड़े सपने नहीं देख पाते। ऐसी अनगिनत प्रतिभाएं हैं जो संसाधनों और सुविधाओं के अभाव में मंजिल तक नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में इनकी मदद का बीड़ा उठाया है एक युवा अफसर विजय डेहरिया ने, जिन्होंने विपरीत परिस्थितयों के बीच सभी अभावों को पीछे छोड़ते हुए पहले खुद को एक खास मुकाम पर पहुंचाया और अब अपने जैसे जरूरतमंद युवाओं के भविष्य को संवारने और सही दिशा दिखाने का काम भी बखूबी कर रहे हैं।

अपनी इस मुहिम को लेकर विजय कहते हैं कि हमारे पास जो भी काबिलियत है, हमें उसे दूसरे लोगों को भी सिखाना चाहिए। इससे हमारी काबिलियत की सार्थकता और भी बढ़ जाती है।

विजय कहते हैं कि सिविल सर्विस में जाने के बाद उन्होंने तय किया कि अब वो अपने जैसे ग्रामीण गरीब युवाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे जिनके पास टैलेंट तो है, मगर हौसलों की कमी और मार्गदर्शन के अभाव में वो अफसर बनने का सपना भी नहीं देख पाते।विजय गरीब बस्तियों में शिक्षा की अलख जगाने और जरूरतमंदों की आर्थिक मदद करने के साथ ही अपनी व्यस्त जिंदगी से समय निकालकर खुद आदिवासियों विद्यार्थियों को पढ़ाने जाते हैं। विजय उन बच्चों को सिविल सर्विस की तैयारी कराते हैं, जो महंगी कोचिंग का सामर्थ नहीं रखते लेकिन पढाई का जज़्बा और लगन रखते हैं। Vijay DL Dehariya

बिना किसी शान-ओ-शौकत में पले, बिना कोचिंग लिए एक मामूली परिवार से अपनी जीवन यात्रा शुरू कर प्रशासनिक अफसर बने विजय आज अगर अपने दौर के नौजवानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं, तो उनकी कामयाबी की मिसाल सिर्फ उनके जीवन का उजाला नहीं, बल्कि उनके हिस्से के जीवन का सबक पूरी युवा पीढ़ी की भी राह को रोशन कर रहा है। इसीलिए वह आज के नौजवानों को ये सीख देना भी अपनी जिम्मेदारी मान रहे हैं कि ‘वे हिम्मत न हारें क्योंकि उनकी मंज़िल उनका इंतज़ार कर रही है।

Vijay DL Dehariyaज्यादातर लोग अपने सपनों को सिर्फ इसलिए टूट जाने देते हैं क्योंकि वो मान लेते हैं कि उनके पास संसाधनों की कमी है लेकिन जो अपनी परिस्थितियों से लड़ कर आगे निकलते हैं, विजय उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। विजय की कहानी आज हिंदुस्तान के लाखों लोगों की जिंदगी को एक नई दिशा दे रही है। आप इसे एक साधारण बच्चे की असाधारण सफलता की दास्तां मान सकते हैं मगर मेरे लिए विजय डेहरिया के असल जिंदगी की कहानी का एक-एक पन्ना उस लाइफ चेंजिंग किताब की तरह है,जिसे पढ़कर विपरीत परिस्थितियों में मेरे अंदर भी एक विश्वास सा जागता है और मुश्किल समय में खुद पर यकीन करने का साहस मिलता है।

अपने जिद और जुनून के पराक्रम से जिंदगी के हर पड़ाव पर आने वाली परेशानियों को परास्त करने वाले विजय की धूप-छांव भरी जिंदगी की कहानी आज देश के कोने-कोने तक फैलाई जानी चाहिए, हर एक बच्चे को पढ़ाना चाहिए, हर नौजवान को समझाना चाहिए, ताकि वो मुसीबतों से डरकर भागने की बजाए चुनौतियों से लड़ना सीखें और डटकर मुकाबला करना सीखें।Vijay DL Dehariya

पॉजिटिव इंडिया की कोशिश हमेशा आपको हिंदुस्तान की उन गुमनाम हस्तियों से मिलाने की रही है, जिन्होंने अपने फितूर से बदलाव को एक नई दिशा दी हो और समाज के सामने संभावनाओं की नई राह खोली हो।

हर रोज आपके आसपास सोशल मीडिया पर नकारात्मक खबरें और उत्तेजना फैलाने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच हम आप तक समाज के ऐसे ही असल नायक/नायिकाओं की Positive, Inspiring और दिलचस्प कहानियां पहुंचाएंगे, जो बेफिजूल के शोर-शराबे के बीच आपको थोड़ा सुकून और जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे सके।

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