जिंदगी एक कहानी है। हर कहानियों में रंग, कहीं फीके तो कहीं गाढ़े रंग, उदासी और उत्साह के रंग। ये हम सबकी जिंदगी में होता है। हम चलते हैं, गिरते हैं, उठते हैं और जिंदगी आगे बढ़ती जाती है। बस फर्क इतना होता है कि कुछ लोग जिंदगी में आई मुश्किलों से टूट जाते हैं तो कुछ मुसीबतों की आंखों में आंखे डाल भिड़ जाते हैं। विपरीत हालातों में भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के जरिए वो जीत जाते हैं और उदाहरण बन जाते हैं हम सभी के लिए। हमारे ही इर्द-गिर्द ही कई ऐसे लोग हैं, जिन पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा, मदद के सारे दरवाजे बंद हो गए लेकिन वो रुके नहीं बल्कि आगे बढ़ते गए। दरअसल दुनिया को ऐसे लोगों ने ही गढ़ा है। ऐसे लोग ही जिंदगी को और ज्यादा मायनेदार बना रहे हैं। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी ही शख्सियत की कहानी है, जो साबित करती है कि कामयाबी के लिए अच्छे हालात नहीं, हौंसले जरूरी होते हैं।
अगर जिंदगी में अव्वल आना है तो बस एक बार मध्यप्रदेश के इस अफसर से मिल लीजिए…विपरीत परस्थितियों में पलने-बढ़ने के बावजूद पढ़ाई-लिखाई से लेकर कर्तव्य और जिम्मेदारियों के निर्वहन तक, हमेशा अव्वल रहे…छात्र जीवन में बौद्धिक-वक्तव्य कला की हर प्रतियोगिता में प्रथम…हाईस्कूल और हायर सेकंडरी की परीक्षा में पूरे नगर में प्रथम…ग्रेजुएशन में महाविद्यालय में प्रथम…पोस्ट ग्रेजुएशन में पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम…भाषण और वाद-विवाद में नरोन्हा प्रशासनिक अकादमी में प्रथम…जनहित से जुड़े मामलों के निराकरण में पूरे संभाग में प्रथम…अव्वल दर्जे का ये स्कोर कार्ड है तहसीलदार नरेश शर्मा का, जो वर्तमान में मुरैना के पोरसा में तहसीलदार के पद पर रहते हुए अपनी कुशल कौर्यशैली से जनता के दिलों पर राज कर रहे हैं…प्रतिभा ना हालात देखती है और ना ही अमीरी-गरीबी का फर्क जानती है। वो तो बस साबित होने का अवसर तलाश करती है और जैसे ही वो अवसर मिलता है, दुनिया के आगे अपना लोहा मनवा लेती है। या फिर यूं कह लीजिए कि जिसे ज़िंदगी में अपने हुनर के दम पर कुछ हासिल करना होता है, उसे सुविधाओं और संसाधनों की जरूरत नहीं होती। बिना किसी सहारे और शिकायत के भी वो आगे बढ़ जाते हैं। यह सिर्फ कहने की बात नहीं है बल्कि एक सच्चाई है। अपने हौंसले और हुनर के दम पर जिंदगी के हर मोड़ पर आने वाली मुश्किलों को मात देकर प्रशासनिक अफसर बने नरेश शर्मा की कहानी भी इसी की एक बानगी है। उन्होंने बिना किसी सुविधा औऱ संसाधन के जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल किया है। यहां तक कि घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उन्हें प्रतियोगी परीक्षा के लिए कोचिंग तक की इजाजत नहीं दी, बावजूद इसके वो रुके नहीं और हर परीक्षा में अपने हुनर और मेहनत के दम पर कामयाबी का परचम लहराया।
11 अक्टूबर 1985 को मध्यप्रदेश के डबरा में जन्मे नरेश शर्मा एक बेहद साधारण और निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पिता पुलिस विभाग में कांस्टेबल थे, पूरा परिवार उनकी मामूली पगार पर ही निर्भर था। लिहाजा किराए के छोटे से घर में ही पूरी जिंदगी गुजरी। नरेश जी तीन भाई और एक बहन के परिवार में सबसे छोटे थे। छोटे से ही पढ़ाई में अव्वल रहे। डबरा में ही हिंदी माध्यम में प्रारंभिक शिक्षा हुई। हाई स्कूल और हायर सेकंडरी में पूरे नगर में टॉप कर घरवालों का नाम रोशन किया। ग्रेजुएशन (बीएससी) में महाविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया जबकि पोस्ट ग्रेजुएशन (एमएससी गणित) में पूरे विश्विद्यालय में टॉप कर गोल्ड मैडल हासिल किया।धूप-छांव से भरी अपनी जिंदगी में नरेश जी ने मुफलिसी के तमाम रंग देखे। कम उम्र में ही सिर से अपनों का साया छिन गया। महज तीन महीने के भीतर माता-पिता के देहांत ने उन्हें अंदर से तोड़कर रख दिया। अभी अपने भविष्य को लेकर सुनहरे ख्वाब बुनना शुरू ही किया था कि एक पल में सब कुछ बिखर सा गया और देखते ही देखते उम्मीदों से भरा एक युवा अवसाद के अंधेरे में समा गया। शायद ये नरेश जी की जिंदगी का सबसे मुश्किल वक्त था।
अतीत के पन्नों को पलटते हुए नरेश जी बताते हैं कि वो दिल्ली में फैकल्टी ऑफ लॉ में विधि स्नातक की पढ़ाई के साथ ही दिसंबर 2011 में होने वाली मध्यप्रदेश राज्य सेवा परीक्षा 2010 की तैयारी में जुटे हुए थे। लेकिन दर्शनशास्त्र की परीक्षा के ठीक 3 दिन पहले उन्हें मां के निधन की खबर मिलती है और वो परीक्षा में शामिल होने की बजाए पुत्र धर्म निर्वहन करते हुए मां के अस्थि विसर्जन के लिए इलाहाबाद पहुंचते हैं। नरेश जी कहते हैं कि उनकी मां का सपना था कि एक दिन मैं बड़ा आफिसर बनकर देश और समाज की सेवा करूं। लेकिन इस घटना के बाद मानो उनके सारे सपने और खुशियां भी गंगा में विसर्जित हो गईं।नरेश जी के स्व. माता-पिता
माता-पिता के देहांत ने छोटी उम्र में ही नरेश जी को बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया। घर की खराब आर्थिक स्थिति के चलते उन्होंने घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाने का फैसला लिया ताकि घर का खर्चा चल सके और वो आगे की पढ़ाई कर सकें। इस बुरे वक्त में उन्होंने किताबों को अपना दोस्त बनाया और जब भी माता-पिता की याद सताती, वो किताबों के पन्नों में खोकर खुद को तलाशने की कोशिश करते।
माता-पिता के गुजरने के बाद जिंदगी के पथरीले रास्ते पर चलते हुए नरेश जी ने तमाम संघर्षों-मुसीबतों के बावजूद कभी अपना हौंसला कम नहीं होने दिया। खुद की पढ़ाई के खर्चे के लिए घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाया और किताबों के सहारे अपने आंसुओं को संभाला।
पॉजिटिव इंडिया से बातचीत करते हुए नरेश जी बताते हैं कि माता-पिता की मौत के बाद उन्होंने किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में शामिल ना होने का प्रण लिया और अकेलेपन के अहसास से बचने के लिए खुद को दिनभर अध्यापन के काम में व्यस्त कर दिया। इस दौरान उनकी 10वीं क्लास में पढ़ने वाले एक छात्र राघव से मुलाकात हुई, जो गणित विषय में काफी कमजोर था। लिहाजा नरेश जी ने उसे गणित पढ़ाना शुरू किया और इसका नतीजा ये रहा कि उस छात्र ने गणित में पूरे स्कूल में टॉप किया। नरेश जी कहते हैं कि वो सिर्फ एक छात्र ही नहीं बल्कि मुश्किल वक्त में उनका एक अच्छा दोस्त भी था, जिसने उन्हें सिविल सर्विस में शामिल होकर मां के सपने को पूरा करने के लिए फिर से प्रेरित किया।कवि रामधारी सिंह दिनकर ने सही ही कहा है कि “मनुष्य जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है”…नरेश जी भी एक बार फिर पूरी शिद्दत से अपनी मां को दिया हुआ वचन पूरा करने में जुट गए। उनकी मेहनत रंग लाई और उनकी जिंदगी में भी कामयाबी के सूरज का उदय हुआ। तमाम सुविधाओं और सालों की कोचिंग के बाद भी ज्यादातर प्रतिभागी सिविल सर्विस की जिस परीक्षा को पास नहीं कर पाते, नरेश जी ने सेल्फ स्टडी के दम पर ही उसे क्रैक कर दिखाया। साल 2013-2014 में उन्होंने MPPSC क्लियर कर अपने सपने को सच की सूरत में ढालने का का कारनामा कर दिखाया।
आईएएस भरत यादव को बनाया आदर्श
प्रशासनिक अधिकारी बनने के पीछे हर युवा की अपनी कोई ना कोई कहानी होती है, जब कोई लम्हा किसी के भीतर कुछ कर गुजरने की चिंगारी जला देता है। नरेशजी ने ट्रेन में टीसी की नौकरी से आईएएस तक का सफर तय करने वाले मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस अफसर भरत यादव से प्रभावित होकर प्रशासनिक अधिकारी बनकर जनता और समाज की सेवा करने का निश्चय किया।
नरेश जी बताते हैं कि दिल्ली के पतंजलि संस्थान में नए छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल सिविल सर्विस में चयनित होने वाले विद्यार्थियों को बुलाकर सेमिनार का आयोजन किया जाता था। साल 2011 में आयोजित सेमिनार बेहद खास था क्योंकि इस बार सिविल सेवा में चयनित होने वाले विद्यार्थी मध्यप्रदेश के थे और छोटे से गांव से निकलकर अपनी मेहनत के दम पर रेलवे में टीसी के पद से आईएएस के ओहदे तक पहुंचे थे। भरत यादव के ओजपूर्ण संबोधन को सुनने वाली छात्रों की भीड़ में नरेश शर्मा भी शामिल थे। ये वही पल था जब उन्होंने भी भरत यादव जैसे बड़ा अधिकारी बनने का संकल्प लिया। इसी दिन से उनकी हसरत थी कि कभी वो भी अपनी बात अपने रोल मॉडल यानि आईएएस भरत यादव के सामने रख सकें और उनकी तारीफ पा सकें।
नरेश जी बताते हैं कि आखिरकार दस साल बाद उनका ये सपना भी पूरा हुआ। दरअसल मुरैना जिले की कैलारस तहसील में शासकीय महाविद्यालय में उद्घाटन समारोह था। संचालक की गैर मौजूदगी में तहसीलदार को ही कार्यक्रम का संचालन करना पड़ा। खास बात ये रही कि दस साल पहले सेमिनार को संबोधित करने वाले वो युवा आईएएस ही अब मुरैना कलेक्टर कलेक्टर बन चुके थे औऱ दस साल पहले भीड़ में खड़े होकर उनका संबोधन सुनकर ताली बजाने वाला वो लड़का ही अब कैलारस तहसीलदार था, जिसके लिए अपने आदर्श के सामने मंच का संचालन करना किसी सपने के सच होने जैसा था।
जितने सहज, उतने सख्त
तहसीलदार नरेश शर्मा आम लोगों के लिए जितने सहज और संवेदनशील हैं, गलत करने वालों के लिए उतने ही सख्त भी। आलम यह है कि खतरनाक माफिया, गुंडे और बदमाश भी इनसेेे खौफ खाते हैं। अतिक्रमणकारियों और भूमाफियाओं के खिलाफ उन्होंने अभियान छेड़ रखा है। उन्होंने अपनी दबंग कार्यशैली से माफिया जगत में खलबली मचा दी है। एक तरफ वो सरकारी जमीन को दबंगों के कब्जे से मुक्त करा रहे हैं, तो दूसरी तरफ गरीबों को इंसाफ और जरूरतमंदों को मदद पहुंचा रहे हैं।
जिस पद पर तहसीलदार नरेश शर्मा बैठे हुए हैं उस पद की गरिमा और प्रतिष्ठा को लगातार अपने कर्तव्यों से परिणाम में तब्दील कर रहे हैं। नरेश शर्मा सहज, मृदुभाषी, मिलनसार, कर्तव्यनिष्ठ औऱ बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वो कभी भी अपने कर्तव्य पद से डगमगाते नहीं हैं । मंजिल चाहे कितनी भी मुश्किल हो लेकिन कभी हार नहीं मानते। जनता से सीधा संवाद कर उनकी समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान उनकी कार्यशैली की सबसे बड़ी खूबी है।
बुजुर्ग दंपत्ति की मदद के लिए छोड़ा मां का श्राद्ध
कहते हैं कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता, उसके कर्म उसका कद ऊंचा करते हैं। ये बात तहसीलदार नरेश शर्मा पर बिल्कुल सटीक बैठती है। उनकी कार्यशैली हर किसी को अपना मुरीद बना लेती है। ऐसा ही वाक्या उस वक्त देखने को मिला जब विजयगढ़ में रहनी वाली बुजुर्ग दंपत्ति आंखों में आंसू और न्याय की आस लिए नरेश शर्मा के पास पहुंची। अपनों की बेरहमी का शिकार दंपत्ति ने बताया कि उनके चार बेटे और बहुए हैं, जिन्होंने सारी संपत्ति हड़पने के साथ ही गांव का घर भी धोखे से अपने नाम करा लिया और अब उन्हें घर से भी भगा दिया। लिहाजा वो बीते कई दिनों से खुले आसमान के नीचे दर-दर भटकने को मजबूर हैं। जिस वक्त वृद्ध दंपत्ति अपनी व्यथा लेकर तहसीलदार नरेश शर्मा के घर पहुंची, उस वक्त वो अपनी मां के श्राद्ध की पूजा कर रहे थे। बावजूद इसके उन्होंने मानवता की मिसाल पेश करते हुए बुजुर्ग दंपत्ति की मदद की खातिर मां के श्राद्ध की पूजा तक अधूरी छोड़ दी। इतना ही नहीं बुजुर्ग रामभरोसे शर्मा और उनकी पत्नि सुमित्रा देवी के आंसू पोछते हुए उचित मुआवजा दिलाया और पुलिस के साथ घर वापस भिजवाया।
नरेश शर्मा कहते हैं कि अगर मैं इस वृद्ध मां के आंखों के आंसू नहीं पोंछता तो शायद मेरी स्वर्गवासी मां भी मेरी पूजा स्वीकार नहीं करती। लिहाजा उन्होंने भरण पोषण एक्ट के तहत केस दर्ज करते हुए खुद बुजुर्ग दंपत्ति के बेटे-बहुओं को सख्त हिदायत भी दी कि,अगर अब उन्हें घर से निकाला या किसी तरह की प्रताड़ना दी तो खैर नहीं।
कामयाबी के बाद अपने लिए बेहतर ज़िंदगी तो सभी चुनते हैं लेकिन ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो खुद सुकून से रहने के बाद भी दूसरों की ज़िंदगी बेहतर बनाने की सोचते हैं। नरेश शर्मा भी जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और उनके छोटे-छोटे यही काम लोगों के दिलों में उतर जाते हैं। उनकी संवेदना और दरियादिली उस वक्त भी देखने को मिली जब 95 वर्ष के एक रिटायर्ड फौजी उनसे मिलने पहुंचे। सीमा पर देश के दुश्मनों से लड़ने वाले बुजुर्ग आज अपनी संतानों से ही हार चुके थे। दो बेटे होने के बावजूद वो अपनी लकवाग्रस्त पत्नि के साथ पोरसा में एक कमरे के छोटे से घर में रहते हैं। यहां तक कि उन्हें खाने-पीने के लिए भी मोहल्ले-पड़ोस के लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है। रिटायर्ड फौजी और उनकी बीमार पत्नि का दर्द तहसीलदार नरेश शर्मा से देखा नहीं गया और उन्होंने माता पिता भरण-पोषण कल्याण अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने के साथ ही बुजुर्ग दंपत्ति के खाने-पीने और देखरेख के पुख्ता इंतजाम किए।
कोरोना काल में बने ढाल
कोरोना महामारी के दौरान भी कैलारस तहसीलदार नरेश शर्मा ने अपने कुशल नेतृत्व का परिचय देते हुए क्षेत्र की जनता का दिल जीत लिया। लगातार 18-18 घंटे काम कर वायरस की संक्रमण चैन को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने से नाकाम कर दिया। जरूरतमंदों की मदद से लेकर नगर की व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। खुद घर-घर जाकर लोगों को राशन और खाद्य सामग्री बांटी, लॉकडाउन के दौरान गरीबों के भोजन की व्यवस्था के लिए रसोई की शुरूआत की, यहां तक कि अपने एक महीने की पूरी वेतन की राशि 35 हजार रुपए जरूरतमंदो की मदद के लिए दान कर दी।
यंग, पाजिटिव और इनोवेटिव सोच वाले नरेश शर्मा की सादगी और कार्यशैली ने ना सिर्फ अफसरशाही को लेकर लोगों की सोच को बदली, बल्कि सिस्टम और प्रशासन के प्रति भी जनता में विश्वास पैदा किया। ऊंचा ओहदा मिलने के बाद भी उनके मिजाज में गजब की सादगी है। वो जितने समय के पाबंद, उतनी ही उनमें कर्तव्य के प्रति निष्ठा भी है। तहसीलदार के पद पर रहते हुए इन्होंने आम जनता और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की दूरी को भी खत्म कर दिया है। सच कहें तो उन्होंने खुद को सही मायने में लोकसेवक समझा है।
नरेश शर्मा आधुनिक भारत के उन जोशीले युवाओं का नेतृत्व करते हैं, जिनके लिए मुश्किलों का सामना करके जीत हासिल करना जुनून से बढ़कर फितूर होता है। नरेश जी आज प्रेरणा हैं उन लोगों के लिए, जिनके सपने तो बड़े हैं लेकिन उनके हिस्से का आकाश उन्हें विरासत में नहीं मिलता बल्कि खुद अपनी मेहनत से गढ़ना होता है। यही वजह है कि वो आज की यंग जनरेशन को संदेश देते हुए कहते हैं कि जोश, जज्बा और जुनून बनाए रखिए, मेहनत जारी रखिए। बाहर की परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, लेकिन अंदर की आग जब तक जल रही है तब तक दुनिया की कोई ताकत आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।
पॉजिटिव इंडिया की कोशिश हमेशा आपको हिंदुस्तान की उन गुमनाम हस्तियों से मिलाने की रही है, जिन्होंने अपने फितूर से बदलाव को एक नई दिशा दी हो और समाज के सामने संभावनाओं की नई राह खोली हो।हर रोज आपके आसपास सोशल मीडिया पर नकारात्मक खबरें और उत्तेजना फैलाने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच हम आप तक समाज के ऐसे ही असल नायक/नायिकाओं की Positive, Inspiring और दिलचस्प कहानियां पहुंचाएंगे, जो बेफिजूल के शोर-शराबे के बीच आपको थोड़ा सुकून और जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे सके।