एक जिद ताकि बुनी जा सके जीवन की कविता…एक जिद ताकि सपनों की हरी पत्तियों पर ओस की बूंद सा थिरक सके मन…एक जिद ताकि मन के तार से बज सके वो संगीत जिसमें विश्वास के तानों पर गुलजार होती हो जिंदगी की गजल… जी हां जिंदगी में कुछ कर दिखाने की एक ऐसी ही जिद है मध्यप्रदेश के कटनी से ताल्लुक रखने वाले डॉ. निखलेश तिवारी की। निखलेश आज सागर के एक निजी अस्पताल में बतौर न्यूरोसर्जन पदस्थ हैं, लेकिन एक बेहद साधारण निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर इस खास मुकाम तक पहुंचने का उनका सफर कभी इतना आसान नहीं रहा। डॉ. निखलेश के संघर्ष और सफलता की कहानी आज कईयों की जिंदगी बदलने का माद्दा रखती है।
सच है कि जिद से जिंदगी बदली जा सकती है… जिद से जहां बदला जा सकता है… जिद से सपने बुने जा सकते हैं और साकार भी किए जा सकते हैं…’डॉ. निखलेश तिवारी’ एक ऐसी ही शख्सियत हैं, जिन्होंने जिद ठानी और जुनून के दम पर उसे पूरा कर दिखाया।
सपनों की कीमत और अहमियत क्या होती है, अगर आपको समझना है तो बस एक बार डॉ. निखलेश तिवारी से मिल लीजिए। हालात और किस्मत का रोना भूलकर अपनी मेहनत के बूते सपनों को सच की सूरत में कैसे ढाला जाता है, आप बखूबी समझ जाएंगे। डॉ. निखलेश जैसे चंद लोग भले ही साधारण परिवार में जन्म लेते हैं लेकिन उनमें इतनी काबिलियत होती है कि वो हुनर के दम पर अपने सपनों को हकीकत में तब्दील करने में कामयाब हो जाते हैं और जमाने के सामने एक मिसाल कायम कर जाते हैं।
निखलेश बताते हैं कि बच्चों को अच्छी से अच्छी एजुकेशन मिल सके, इसलिए उनके माता-पिता छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ से मध्यप्रदेश के व्यवसायिक शहर कटनी शिफ्ट हो गए। पिता ने वहां एक मामूली क्लर्क की नौकरी ज्वाइन की। लेकिन बच्चों को अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाने के लिए उनकी कमाई नाकाफी थी। लिहाजा बच्चों की पढ़ाई में पैसों की वजह से कोई कमी ना रह जाए, इसलिए निखलेश की मदर ने घर से बाहर निकलने का फैसला लिया और पास की एक बस्ती में स्कूल खोली, जहां गरीब और निर्धन परिवार के बच्चें पढ़ाई कर सकें। अब दो छोटे भाईयों को संभालने से लेकर उनके खाने तक की जिम्मेदारी निखलेश के कंधों पर थी।
अतीत के पन्नों को पलटते हुए निखलेश पाजिटिव इंडिया से बताते हैं कि जब पापा ने उनका एडमीशन शहर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में कराया तो उन्हें खूब ताने सुनने को मिले। पिता के बड़े भाई ने यहां तक कह दिया कि क्या अपने बच्चे को अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाकर इंग्लिश पान की दुकान खुलवाओगे।
इसी दौरान निखलेश की जिंदगी में एक ऐसा हादसा हुआ जिसने उसकी पूरी जिंदगी और जिंदगी का मकसद बदलकर रख दिया। उस वक्त निखलेश 5th स्टैंडर्ड में थे और उनकी सबसे फेवरेट टीचर (साइंस टीचर) के पति की ब्रेन स्ट्रोक से मौत की खबर आई। इस घटना ने निखलेश की सबसे फेवरेट टीचर को अंदर से तोड़कर रख दिया। 7-8 साल के निखलेश के मन पर भी इस घटना ने गहरा प्रभाव डाला। लेकिन उस वक्त उस मासूम को ये जानकर और हैरानी हुई कि अगर कोई न्यूरो सर्जन डॉक्टर शहर में होता तो शायद उसकी टीचर के पति को बचाया जा सकता था। ये वही पल था जब 7-8 साल के उस बच्चे यानि आज के डॉ. निखलेश ने न्यूरो सर्जन बनने का फैसला किया। यकीन करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन यही सच है कि इस एक घटना ने उस मासूम पर गहरा असर छोड़ा और उस बच्चे ने इतनी छोटी उम्र में अपनी जिंदगी का इतना बड़ा डिसीजन ले लिया।
पॉजिटिव इंडिया (www.pozitiveindia.com) से बातचीत के दौरान निखलेश कहते हैं कि ‘बचपन से ही मेरा कोई और सपना ही नहीं था, सिवाय डॉक्टर बनने के। बढ़ती उम्र के साथ-साथ जो और परवान चढ़ता गया और मेरी जिंदगी का मकसद बन गया।
कहते हैं एक साथ दो नाव की सवारी आसान नहीं होती। निखलेश के लिए भी पीएमटी की तैयारी के साथ ही बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई का फैसला काफी चुनौतीपूर्ण साबित हुआ। निखलेश साइंस बैकग्राउंड से थे, इसलिए बीबीए उनके लिए एकदम नया सब्जेक्ट था। उनके कई दोस्तों ने भी उनके घरवालों को सलाह दी कि बीबीए के साथ पीएमटी क्लियर करना काफी टफ है और निखलेश के बस की बात नहीं है। वहीं जब कॉलेज से वापस आने के बाद हॉस्टल में निखलेश डॉक्टर बनने की तैयारियों में जुटे होते, तो साथी उनका मजाक उड़ाते। तरह-तरह के तंज कसे जाते। आसपास का माहौल मनोबल को कमजोर और हतोत्साहित करने वाला था लेकिन संकल्प उस जिद को पूरा करने की ताकत देता था कि न्यूरो सर्जन तो जरूर बनना है।
निखलेश ने अपनी मेहनत और कुशाग्र बुद्धि के बूते मेडिकल कॉलेज में दाखिले की योग्यता तो हासिल कर ली, लेकिन मेडिकल कॉलेजों की भारी-भरकम फीस अब भी उनके और उनके सपने के बीच खड़ी थी। जब निखलेश अपने पिता के साथ काउंसलिंग में पहुंचे, तो वहां उनसे मोटी रकम की मांग की गई, जिसे सुनते ही निखलेश और उनके पिता के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। आखिरकार निखलेश और उनके पिता निराश होकर अपनी तकदीर को कोसते हुए वापस जाने लगे।
निखलेश की मुश्किलें अब भी कम नहीं हुई थी। कॉलेज पहुंचने के बाद निखलेश के पिता को पता चला कि कॉलेज की फीस लगभग दो लाख रुपए है। आखिर एक मामूली क्लर्क इतनी बड़ी रकम कहां से जुटाता। लेकिन उस पिता ने हार नहीं मानी। बेटे का भविष्य संवारने के लिए उन्होंने अपने खून-पसीने की कमाई से पाई-पाई बचाकर जो घर बनाया था, उसे तक गिरवी रख दिया और जो भी पैसे आए उसे निखलेश की आगे की पढ़ाई के लिए डिपोजिट कर दिया।
एक तरफ एक पिता ने अपने बेटे के फ्यूचर के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, तो दूसरी तरफ उस बेटे ने अपने माता-पिता के आंखों में पले सपनों में हकीकत के रंग भरने के लिए दिन-रात एक कर दिया। निखलेश को देखकर सीनियर्स भी हैरान थे कि जिस लड़के ने अभी-अभी फर्स्ट ईयर में दाखिला लिया है, वो अभी से 10-10 घंटे पढ़ाई और पीजी की तैयारी कैसे कर सकता है। शायद सीनियर्स और साथी सच से अनजान थे लेकिन निखलेश अच्छे से जानते थे कि उनके पैरेंट्स अब किसी प्राइवेट कॉलेज में पीजी का खर्चा नहीं उठा सकते। लिहाजा उन्हें हर हाल में सरकारी कॉलेज से ही पोस्ट ग्रेजुएशन करना होगा और पीजी के लिए सरकारी कॉलेज में दाखिला पाना अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है।
निखलेख सपनों के शहर में अपने नए सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद में कुछ इस कदर मशगूल हो गए कि उन्हें अपनी जिंदगी का असली गोल और पैरेंट्स का संघर्ष तक याद नहीं रहा। तभी एक दिन निखलेश के फोन की घंटी बजती है। फोन की दूसरी तरफ से आवाज आती है, बेटा मैंने आपके लिए अपना पूरा घर तक गिरवी रख दिया, सब कुछ दांव पर लगा दिया…क्या आप इसका यही सिला दोगे? पिता के इन शब्दों ने निखलेश को झंकझोर कर रख दिया। निखलेश के आंखों के सामने उनके माता-पिता का संघर्ष और स्कूल टीचर का गमगीन चेहरा घूमने लगा।
इस घटना के बाद निखलेश ने खुद को समझाया कि उनका कोई भी ड्रीम, कोई भी पैशन उनके माता पिता के सपनों, संघर्ष और टीचर की जिंदगी से बड़ा नहीं हो सकता। अंतर्आत्मा की आवाज सुनते ही निखलेश ने बिना कोई वक्त जाया किए मुंबई छोड़ने का निर्णय लिया और दिल्ली का रूख किया, जहां उनके एक सीनियर पीजी की तैयारी कर रहे थे। निखलेश के सीनियर ने न सिर्फ उन्हें अपने घर में जगह दी बल्कि पढ़ाई करने तरीका भी सिखाया। हालांकि निखलेश के पास पीजी की तैयारी के लिए समय बहुत कम बचा था। वो 23 अगस्त को दिल्ली पहुंचे थे जबकि नवंबर में एग्जाम थे। फिर भी उन्होंने अपना हौंसला कमजोर नहीं होने दिया और दिन मेंं 20-20 घंटे पढ़ाई कर खुद को तैयार किया। आखिरकार निखलेश की मेहनत और पैरेंट्स की दुआ रंग लाई। निखलेश ने महज ढाई महीने की तैयारी में DNB (Diplomate of National Board Examination) क्रैक कर लिया जो अच्छे खासे लोग सालों की तैयारी के बाद भी नहीं कर पाते।
निखलेश आज मध्यप्रदेश के सागर के एक बड़े निजी अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अपने अब तक के करियर (डॉक्टरी जीवन) में उन्होंने कई जटिल और क्रिटिकल ऑपरेशन के जरिए लोगों को नई जिंदगी दी है। निखलेश के मुताबिक उनके पास जिंदगी की उम्मीद छोड़ चुके कई मरीज व्हील चेयर पर आए, जो सर्जरी के हफ्ते भर बाद ही एक सामान्य इंसान की तरह खुद के पैरों के सहारे चलकर वापस गए।
निखलेश कहते हैं कि बहुत कम समय में जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया है। इसलिए जितना मुमकिन हो सके मैं लोगों की सेवा करना चाहता हूं। बतौर इंसान निखलेश के जीवन के कई पहलू बेहद रोचक और इंस्पायरिंग हैं, तो वहीं एक डॉक्टर और सर्जन के तौर पर भी उनकी कई सारी उपलब्धियां और कामयाबियां हैं।
वैसे तो निखलेश के व्यक्तित्व की कई सारी खूबियां हैं लेकिन उनकी एक बड़ी खूबी ये भी है कि कामयाब होने के बाद भी वो ज़मीन से अपना रिश्ता मज़बूत बनाये हुए हैं। उनमें न कामयाबियों का गुरूर हैं, और न ही धन-दौलत उनके आदर्शों और जीवन-शैली को बदल पाई है। आज भी मेहनत के दम पर जिंदगी में आगे बढ़ने की वही ललक है। अपने लक्ष्य को पूरा करने की वही जिद आज भी बरकरार है। यही वजह कि वो आज के युवाओं को संदेश देते हैं कि, अगर मंजिल को पाना है तो अड़ियल होना जरूरी है।
निखलेश का मानना है कि हर वो आवाज जो आपको कुछ अच्छा करने से रोके, उसे आप अपनी जीत के बाद तालियों की तरह सुनें और जिंदगी में आगे बढ़ते रहें।
इस कहानी में सपनें हैं, संघर्ष हैं, दुनियादारी के तंज हैं, जमाने से लड़ने का जज्बा है, माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए की गई जी-तोड़ मेहनत है, तो सुविधाओं के अभाव में भी मंजिल हासिल करने की जद्दोजहद है। एक बेहद साधारण परिवार में जन्मे निखलेश ने डॉक्टर बनकर न सिर्फ अपने पैरेंट्स का सपना पूरा बल्कि अपनी काबिलियत औऱ मेहनत के दम पर महज इकतीस साल की उम्र में मध्यप्रदेश के चुनिंदा और मशहूर न्यूरोसर्जन डॉक्टरों की श्रेणी में अपनी जगह बनाई। विपरीत हालातों में आगे बढ़ते हुए निखलेश ने न सिर्फ खुद के जीवन को रोशन किया बल्कि अपने प्रभावी इलाज के जरिए सैकड़ों लोगों के जीवन को भी फिर से रोशन किया।
पॉजिटिव इंडिया की कोशिश हमेशा आपको हिंदुस्तान की उन गुमनाम हस्तियों से मिलाने की रही है जिन्होंने अपने फितूर से बदलाव को एक नई दिशा दी हो और समाज के सामने संभावनाओं की नई राह खोली हो।
हर रोज आपके आसपास सोशल मीडिया पर नकारात्मक खबरें और उत्तेजना फैलाने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच हम आप तक समाज के ऐसे ही असल नायक/नायिकाओं की Positive, Inspiring और दिलचस्प कहानियां पहुंचाएंगे, जो बेफिजूल के शोर-शराबे के बीच आपको थोड़ा सुकून और जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे सके।
We are happy that our family member -Nikhilesh has achieved a mile stone of success in his life and also appreciate it. I thing would like to correct in this article that Nikhilesh Father’s elder brother had never objected for better education and carrier growth of Nikhilesh or his father. He had devoted his life to take care of all his five younger brothers and mother when the grandfather of Nikhilesh passed away in early age age of his parents, the eldest brother of his father was in class 11th and youngest brother of his father was born. He (eldest brother of his father) worked hard for taking care of entire family and devoted his entire life to educate all his younger brothers, He never cared for his carrier but always worked hard for growth and better life of his younger brothers. I am the elder cousin brother of Nikhilesh and had seen my parents struggle also.
Yes bhiya you are right 👌
मै निखिलेश का चचेरा बडा भाई हूं। हम सभी को गर्व है कि निखिलेश आज इस मुकाम पर हैं लेकिन इस आर्टिकल मे जो ये लाइन लिखी गयी है: ”
अतीत के पन्नों को पलटते हुए निखलेश पाजिटिव इंडिया से बताते हैं कि जब पापा ने उनका एडमीशन शहर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में कराया तो उन्हें खूब ताने सुनने को मिले। पिता के बड़े भाई ने यहां तक कह दिया कि क्या अपने बच्चे को अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाकर इंग्लिश पान की दुकान खुलवाओगे।”
इस से मुझे आपत्ति है क्यों कि निखिलेश के पिता के बड़े भाई ने हमारे दादाजी के स्वर्गवास के बाद अपनें पांचो छोटे भाईयो को आगे बढाने केलिए हर संभव प्रयास किए और शायद उसी वजह से हमारे चाचाजी निखिलेश को यहा तक पहुंचा सके और इसके बाद उनके बारे में ये बात लिख कर उनके द्वारा किये गये संघर्ष को अपमानित कर रहे हैं। ।
धन्यवाद।।