कहते हैं मजबूत इरादों और बुलंद हौंसलों के आगे दुनिया की हर मुश्किल छोटी पड़ जाती है। महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाली 27 साल की रेणु वासवे की कहानी भी कुछ यही साबित करती है। दुबली पतली सी दिखने वाली रेणु कोरोना महामारी के मुश्किल वक्त में भी नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मदद के लिए हर रोज खुद नाव चलाकर 18 किलोमीटर लंबा कठिन सफर तय करती है।
ये हैं महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के आदिवासी गांव चिमलखाड़ी में रहने वाली 27 साल की रेलू वासवे। दो बच्चों की मां रेलू आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। फर्ज की खातिर वो खुद रोजाना 18 किलोमीटर नाव चलाकर एक लंबा और मुश्किल सफर तय करती हैं ताकि इस सुदूर आदिवासी इलाके के नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं को समय पर पौष्टिक आहार मिल सके।
कोरोना वायरस के खिलाफ सिर्फ डॉक्टर्स, नर्स, मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी और पुलिसकर्मी जैसे फ्रंटलाइन वारियर्स ही नहीं बल्कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी कंधे से कंधा मिलाकर इस जंग में आहूति दे रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं महाराष्ट्र की रेलू वासवे जो परेशानियों के पहाड़ के बावजूद लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटीं।
दरअसल रेलू जिस गांव में पदस्थ हैं वहां सड़क नहीं है। ऐसे में गांव तक पहुंचने के लिए लोगों को नाव का सहारा लेना पड़ता है और विशाल नदी पार करनी पड़ती है। लिहाजा रेलू ने नाव के जरिए आदिवासी बच्चों और गर्भवती महिलाओं तक पहुंचने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने एक मछुआरे से नाव उधार ली और निकल पड़ीं फर्ज की राह पर। तमाम बाधाएं-अड़चनों के बाद भी रेलू के कदम नहीं डगमगाए।
पॉजिटिव इंडिया से बात करते हुए रेलू बताती हैं कि आमतौर पर गर्भवती महिलाएं अपने बच्चों के साथ आंगनवाड़ी केंद्र पर आती थी, जहां से उन्हे पौष्टिक आहार वितरित किया जाता था। लेकिन कोरोना के डर से सबने आंगनवाड़ी आना बंद कर दिया। लिहाजा रेलू ने खुद नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं तक पोषण आहार पहुंचाने का फैसला लिया।
हालांकि रेलू का ये सफर कभी इतना आसान नहीं रहा। रेलू बताती हैं कि 18 किलोमीटर नाव चलाते-चलाते उनके हाथ दुखने लगते तो कभी हाथों में सूजन आ जाती। कई बार हिम्मत भी जवाब दे जाती लेकिन फिर भी फर्ज और जरूरतमंदों की मदद की खातिर वो रुकी नहीं।
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नदी में विकराल बाढ़ भी ना तो रेलू का रास्ता रोक सकी और ना ही उसका हौसला डिगा सकी। वो लगातार बीते 5 महीनों से नदी पार करके अपनी ड्यूटी निभा रही हैं। यहां तक कि देश की सबसे बड़ी नदियों में से एक नर्मदा नदी में आई बाढ़ के बावजूद रेलू नहीं रुकीं और अकेले नाव के सहारे उफनती नर्मदा नदी को पार कर आदिवासियों तक भोजन और जरूरी सामग्री पहुंचाती रही।
रेलू की कहानी साबित करती है कि अगर आपमें कुछ करने का इरादा और जुनून है तो दुनिया की कोई ताकत आपको मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती है। पॉजिटिव इंडिया सलाम करता है रेलू के जज्बे और सेवा भाव को। हालांकि इस नेक काम के लिए रेलू का जितना शुक्रिया किया जाए वो कम है। आज के मुश्किल दौर में इस देश और समाज को जरूरत है रेलू जैसे लोगों की, जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं और विपरीत परिस्थितियों में उम्मीद की एक नई रोशनी बनकर हिंदुस्तान का हौंसला बढ़ाते हैं।
Story by: Mayank Shukla