80 के दशक की शुरुआत में हिंदुस्तान में हिंदी सिनेमा की चमक-धमक में चार चांद लगाने वाले अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना जैसे बड़े सितारों से भी ज्यादा किसी और भारतीय का नाम लोगों की जुबान पर था। हर भारतवासी को उस पर नाज था। देश ही नहीं दुनियाभर में वो नाम चर्चा के केंद्र में था और हर हिंदुस्तानी के उस हीरो का नाम था…’राकेश शर्मा’, पहले भारतीय जिन्होंने धरती से उड़ान भर अंतरिक्ष में कदम रखा और दुनिया के नक्शे में अपने मुल्क को एक नई पहचान दिलाई।
वैसे तो जिंदगी में एक बार स्पेश यात्रा की ख्वाहिश हर इंसान रखता है। उस वक्त भी अंतरिक्ष में कदम रखने का गौरव हासिल करने के सपने कई भारतीयों ने संजोए थे लेकिन अंत में नियति ने ये मौका राकेश शर्मा को दिया। राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताए थे।
दरअसल देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 80 के दशक की शुरआत से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए प्रयासरत थीं। इसके लिए वो भारत के करीबी मित्र सोवियत संघ से मदद ले रही थीं। इंदिरा गांधी आम चुनाव से पहले एक भारतीय को चांद पर भी भेजना चाहती थीं। लिहाजा साल 1984 में भारत सरकार ने सोवियत रूस के साथ मिलकर अंतरिक्ष अभियान की योजना बनाई, जिसमें तय हुआ कि एक भारतीय को भी इस अभियान के तहत स्पेश में जाने के लिए चुना जाएगा। एक लंबी, जटिल और गहन प्रक्रिया के बाद इसके लिए योग्य उम्मीदवारों को चुना गया। आखिर में दो उम्मीदवार राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा के नाम पर मुहर लगी।
इस तरह 20 सितंबर, 1982 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के माध्यम से इंसरकॉस्मोस अभियान के लिए राकेश शर्मा के नाम पर अंतिम मुहर लगी। इसके बाद अंतरिक्ष में जाने से एक साल पहले राकेश और रवीश दोनों को ट्रेनिंग के लिए रूस के स्टार सिटी भेजा गया। स्टार सिटी मास्को से 70 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण केंद्र था।
जिस्म को जमा देने वाले मौसम के अलावा राकेश शर्मा के सामने एक और बड़ी चुनौती थी, जल्द से जल्द रूसी भाषा सीखने की क्योंकि उनकी ज्यादातर ट्रेनिंग रूसी लैंग्वेज में ही होने वाली थी। वो हर दिन वो 6 से 7 घंटे रूसी भाषा सीखते थे। इसका असर यह हुआ कि उन्होंने महज तीन महीने में ही ठीक-ठाक रूसी सीख ली थी। ट्रेनिंग के दौरान उनके खान-पान पर भी खास ध्यान रखा जाता था। ओलंपिक ट्रेनर उनके स्टेमिना, स्पीड और पॉवर पर नज़र रखे हुए थे और उन्हें प्रशिक्षित कर रहे थे।
जमीन से आसमान तक का राकेश जी का ये सफर इतना आसान नहीं रहा। उन्होंने ये मुकाम कड़ी परिक्षाओं से गुजरने के बाद हासिल किया था। इसमें एक कसौटी तो ऐसी भी थी कि उन्हें 72 घंटे यानि पूरे तीन दिन एक बंद कमरे में एकदम अकेले रहना पड़ा।
आसमान की बुलंदियों पर पहुंचने के लिए राकेश शर्मा को जिंदगी के कई कठोर इम्तिहानों के दौर से गुजरना पड़ा है। मिशन के लिए नाम फाइनल होने के बाद रूस के यूरी गागरिन स्पेस सेंटर में उनकी ट्रेनिंग शुरू ही हुई थी कि, भारत से आई एक दुखद खबर ने उनके पैरो तले जमीन खींच ली। उनकी 6 साल की मासूम बेटी मानसी के निधन की खबर ने उन्हें अंदर से हिला कर रख दिया लेकिन असहनीय दुख की इस मुश्किल घड़ी में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ना ही अपने कदमों को डगमगाने दिया। ये वक्त उनके लिए काफी भारी तो था मगर वो ये भी जानते थे कि पूरे देश की आशाएं उनसे जुड़ी हुई हैं और उन उपर करोड़ों भारतीयों की उम्मीदें टिकी हैं।
आखिरकार दो साल की कड़ी मेहनत के बाद वो ऐतिहासिक पल आ ही गया जब 3 अप्रैल 1984 को सोवियत यान सुयोज टी-11 राकेश शर्मा और दो रूसी अंतरिक्ष यात्रियों यूरी माल्यशेव और गेनाडी सट्रेकालोव को साथ लेकर बादलों को चीरता हुआ अंतरिक्ष की तरफ बढ़ चला और पूरा देश खुशी से झूम उठा।
अंतरिक्ष में भी राकेश शर्मा का अंदाज विशुद्ध भारतीय था। वो मैसूर में स्थित डिफेंस फूड रिसर्च लैब (Defense Food Research Lab) की मदद से भारतीय भोजन अपने साथ अंतरिक्ष लेकर गए थे। उन्होंने सूजी का हलवा, आलू छोले और सब्जी-पुलाव पैक किया था, जिसे राकेश शर्मा अपने अंतरिक्ष यात्रियों के साथ खाया था।
राकेश शर्मा वो पहले इंसान थे जिन्होंने अंतरिक्ष में योग का अभ्यास किया। उन्होंने योगाभ्यास करके यह जानने की कोशिश की क्या इससे गुरुत्व के असर को कम करने में मदद मिल सकती है या नहीं। अंतरिक्ष में space sickness से निपटने के लिए भी उन्होंने ‘शून्य गुरुत्वाकर्षण योग’ (zero gravity yoga) का सहारा लिया था। कहा जाता है कि स्पेस स्टेशन में भी वो सारे काम खत्म होने के बाद हर रोज कम से कम दस मिनट योग किया करते थे। राकेश ने अंतरिक्ष से उत्तर भारत के इलाकों की कई खूबसूरत तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद की।
अंतरिक्ष में उनकी प्रयोगधर्मिता खासी परवान चढ़ी और अपनी इस अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उन्होंने कुल 33 प्रयोग किए। इनमें भारहीनता से उत्पन्न होने वाले प्रभाव से निपटने के लिए किया गया प्रयोग भी शामिल था।
राकेश शर्मा और उनके रूसी साथियों ने स्पेस स्टेशन से ही मॉस्को और नई दिल्ली के लिए एक साझा संवाददाता सम्मेलन को भी संबोधित किया था। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उत्सुकता वश राकेश से शर्मा से पूछा था कि अंतरिक्ष से हमारा भारत कैसा दिखता है, जिसके जबाव में राकेश शर्मा ने कहा था “सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा”। दरअसल यह मोहम्मद इकबाल का एक कलाम है जो वो स्कूल के दिनों में हर रोज राष्ट्रीय गान के बाद गाया करते थे।
अपनी अंतरिक्ष यात्रा से वापस आने के बाद राकेश शर्मा उस दौर के एक बड़े नायक बन गए। घर-घर में वो मशहूर हो गए। युवाओं में उनकी लोकप्रियता कायम हो गई और उन्होंने एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया। उनकी इस उपलब्धि से प्रेरित होकर भारत सरकार ने उन्हें ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। सोवियत सरकार ने भी उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ सम्मान से नवाजा।
पुराने दिनों को याद करते हुए राकेश जी कहते हैं कि उस वक्त प्रशंसको का इतना ज्यादा दीवानपन उनके लिए एक बिल्कुल ही अलग अहसास था। महिलाएं अपने बच्चों से यह कह कर मेरा परिचय कराती कि ये अंकल चांद पर गए थे।
उनकी लोकप्रियता का आलम ये था कि वो हर वक्त प्रशंसकों से घिरे रहते। हर रोज किसी ना किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उन्हें दूर-दूर से आमंत्रण आता। बुजुर्ग दुआएं देते तो प्रशंसक उनके कपड़े तक फाड़ देते। उनके एक दीदार के लिए लोग बेताब रहते और घंटो तक इंतजार करते। ऑटोग्राफ लेने के लिए लोग चीखा करते वहीं वोट बटोरने के लिए नेता उन्हें अपने क्षेत्र में होने वाले जुलूसों में लेकर जाते।
राकेश शर्मा बताते हैं कि उस वक्त लोगों में अंतरिक्ष और दूसरे ग्रहों के बारे में जानने की काफी उत्सुकता थी। चूंकि मैं अतरिक्ष पर जाने वाला पहला भारतीय था, लिहाजा इस अविस्मरणीय यात्रा से लौटने के बाद मुझसे मिलने वाले तरह-तरह के सवाल करते। यहां तक कि अक्सर लोग मुझसे पूछा करते कि क्या अंतरिक्ष में उनकी भगवान से मुलाकात हुई है। इस पर उनका जवाब होता था, नहीं मुझे वहां भगवान नहीं मिले।
राकेश शर्मा एक ऐसे देश से ताल्लुक रखते थे, जिसका कोई अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं था। उन्होंने कभी अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना नहीं देखा था। लेकिन उन्होंने विषम भौगोलिक परिस्थितियों में एक दूसरे देश जाकर कठिन प्रशिक्षण हासिल किया और नई भाषा सीखी। वो वाकई में देश के एक असल हीरो हैं।
राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष से लौटने के बाद फिर से एक जेट पायलट के तौर पर अपनी जिंदगी शुरू की। उन्होंने जगुआर और तेजस जैसे फाइटर प्लेन उड़ाए। बोस्टन की एक कंपनी में चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर के तौर पर भी सेवा दी, ये कंपनी जहाज, टैंक और पनडुब्बियों के लिए सॉफ्टवेयर तैयार करती थी। राकेश शर्मा समय के साथ भारतीय वायुसेना में भी पदानुक्रम की सीढ़ियां चढ़ते गए और विंग कमांडर के पद तक पहुंचे और इसी पोस्ट पर रिटायर हुए।
रिटायरमेंट के बाद राकेश शर्मा ने अपनी जिंदगी की नई पारी शुरू की। वो नासिक में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में चीफ टेस्ट पायलट बनाए गए। इसके बाद 1992 में बेंगलुरु में एचएएल में इसी रोल में चले गए। आज हम जिस तेजस लडाकू विमान की सफलता की कहानियां सुनते हैं, राकेशजी उसकी टेस्ट उड़ानों के साथ काफी सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे।
राकेश जी ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि वायुसेना से एक पायलट के तौर पर नौकरी करते हुए उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका सफर अंतरिक्ष तक पहुंच जाएगा और वो भारत के घर-घर में मशहूर हो जाएंगे।
साल 1971 में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में देश ने पहली बार राकेश शर्मा की प्रतिभा और कौशल से परिचित हुआ। इसके बाद उन्होंने जिंदगी में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
राकेश शर्मा 21 साल की उम्र में भारतीय वायु सेना से जुड़े और सुपरसोनिक जेट लड़ाकू विमान उड़ाया। पाकिस्तान के साथ 1971 की लड़ाई में उन्होंने 21 बार उड़ान भरी थी। उस वक्त वो 23 साल के भी नहीं हुए थे। 25 साल की उम्र में वायु सेना के सबसे बेहतरीन पॉयलट बने। राकेश शर्मा अंतरिक्ष में ऐसा करने वाले भारत के पहले और दुनिया के 128 वें इंसान थे।
राकेशजी की उपलब्धियों ने तमाम भारतीय युवाओं में अंतरिक्ष के क्षेत्र में दिलचस्पी जगाने का काम किया। बाद में कल्पना चावला से लेकर सुनीता विलियम्स जैसे भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्रियों के नाम उभरे, जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अभियानों का हिस्सा बने। भविष्य में भी ऐसे तमाम नाम उभरेंगे, लेकिन अंतरिक्ष को लेकर भारतीयों के जेहन में हमेशा जो पहला नाम उभरेगा, वह राकेश शर्मा का ही होगा। शायद यही वजह है कि राकेश शर्मा का नाम आज तक किसी भी भारतीय के जेहन से नहीं गया है। आज भी वो हर किसी के दिल में अपनी जगह बनाए हुए हैं। राकेशजी की उस यात्रा को 37 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन अभी तक वो पहले भारतीय हैं, जिनका रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका है।