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सोशल मीडिया के जानकार कहते हैं कि आने वाले दिनों में हर कोई औसतन 5 मिनिट के लिए ज़रूर प्रसिद्ध होगा। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि उन प्रसिद्धियों को याद रखने की इंसानी काबिलियत हज़ारों गुना कम हो जाएगी। इसीलिए सफलता की चाह में ईमान का सट्टा और भट्टा लगाने वालों को ज़रा ठहरकर यह भी देख लेना चाहिए कि इस चाह ने कितनों को रुलाया है और जिन लोगों ने दुनियादारी की परवाह किए बिना सिर्फ अपने दिल की सुनी उन्हें किस्मत ने कैसे शौहरत से मालामाल कर दिया? नितीश भारद्वाज भी अगर पशु शल्य चिकित्सक (Veterinary Surgeon) ही रहे आते, तो उन्हें शायद ऐसी प्रसिद्धि कभी नहीं मिल पाती। अब तक कृष्ण की भूमिकाओं में नज़र आ चुके कलाकारों में वे सर्वाधिक यशस्वी रहे हैं। हालांकि, डॉक्टरी का पेशा उन्होंने यह रोल निभाने भर के लिए नहीं छोड़ा था, इस बारे में लेख में आगे आप विस्तार से जानेंगे, फिलहाल सबसे ज़रूरी बात यह कि उन्होंने वही किया जो ‘शनि’ को सबसे ज़्यादा पसंद है – “अगर खुद के प्रति ईमानदार हो गए तो फिर आपकी ईमानदारी दुनिया की किसी अग्नि-परीक्षा की मोहताज नहीं रहेगी।” नितीश भारद्वाज ने भी यही किया और उनके ‘सैटर्न-रिटर्न’ ने नितीश का दामन, जीवन रहते कभी खत्म न होने वाले यश से भर दिया।nitish bharadwaj 2 जून 1963 को नितीश भारद्वाज का जन्म मुंबई में हुआ। उनके पिता जनार्दन उपाध्याय बॉम्बे हाईकोर्ट के नामी वकील रहे हैं और 60 और 70 के दशक में उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ कई मजदूर आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभायी थी। वहीं उनकी मां संध्या उपाध्याय मुंबई के विल्सन कॉलेज में मराठी साहित्य की विभागध्यक्ष रहने के अलावा “श्रीमद्भगवत गीता” और “ज्ञानेश्वरी” की गंभीर अध्येता रहीं। इसीलिए आश्चर्य की बात नहीं कि वे वक्त आने पर ऑन-स्क्रीन गीता को इतनी सहजता से साध पाए। बहरहाल, उनकी पढ़ाई मेडिकल क्षेत्र की रही और उन्होंने अपने करियर की शुरूआत में कुछ समय तक असिस्टेंट पशु चिकित्सक(Assit. Veterinary Doctor) के तौर पर भी सेवाएं दीं। लेकिन काम की एकरसता ने उन्हें जल्दी ही बोर कर दिया और उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र को छोड़ रंगमंच की राह पकड़ ली। निश्चित तौर पर यह उनके लिए एक कठिन निर्णय रहा होगा।

लेकिन उनका निर्णय सही है या नहीं यह साबित होने में अभी भी वक्त था। महज 25 साल की उम्र में नाना पाटेकर और पल्लवी जोशी जैसे कलाकारों के बीच उन्हें ‘तृषाग्नि’(1988) में अभिनय का मौका मिला। हालांकि, यह एनएफडीसी की छोटे बजट की एक छोटी फिल्म थी लेकिन फिल्म के निर्देशक नबेन्दु घोष इस फिल्म के दम पर बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने में कामयाब रहे। पर नितीश भारद्वाज की सफलता का सफर अभी भी शुरू नहीं हुआ था।nitish-bharadwajइसी साल 26वें साल की शुरूआत में उन्हें बी आर चोपड़ा के ‘महाभारत’ में कृष्ण की भूमिका ऑफर हुई लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसकी दो वजहें थीं पहली तो यह कि पहले इसी धारावाहिक के प्री-प्रोडक्शन के दौरान उन्हें विदुर के रोल के लिए चुना गया था। हालांकि, नितिश भारद्वाज महाभारत में अभिमन्यु का किरदार निभाने की इच्छा रखते थे लेकिन फिर खुद को समझाकर उन्होंने विदुर के रोल के लिए मानसिक तौर पर तैयार कर लिया था। लेकिन यहां एक पेच था, कथा जैसे-जैसे आगे बढ़ती उन्हें स्क्रीन पर बूढ़ा दिखना था, जिसके बाद बीआर चोपड़ा और उनकी क्रिएटिव टीम ने विदुर की जगह किसी और कलाकार को कास्ट कर लिया। रवि चोपड़ा से निजी परिचय के बावजूद नितीश महाभारत में अपने लिए जगह नहीं बचा पाए। लेकिन समय के गर्भ में कुछ और था। बहुत सारे ऑडिशन लेने के बाद भी महाभारत के लिए कृष्ण की खोज पूरी नहीं हो सकी। आखिरकार नितीश भारद्वाज को वापस कृष्ण के रोल के साथ महाभारत से जुड़ने का प्रस्ताव भेजा गया। इस बार नितीश ने साफ इंकार कर दिया। इसके पीछे महाभारत से उन्हें ऑउट किए जाने का दुख तो वजह रहा ही होगा, साथ ही वे उस वक्त खुद को कृष्ण का किरदार निभाने में अयोग्य पा रहे थे। खैर हुआ वही जो होना था।

अपने जीवन के 26वें साल में नितीश महाभारत सीरियल में कृष्ण की भूमिका के साथ जुड़े, लेकिन 27वें साल में जब महाभारत की कथा कुरूक्षेत्र में पहुंची तो कृष्ण की भूमिका में नितीश भारद्वाज के प्रभावशाली अभिनय ने उन्हें रातों-रात लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। कृष्ण की भूमिका में नितीश भारद्वाज और भीष्म पितामह की भूमिका में मुकेश खन्ना इस धारावाहिक से सर्वाधिक यश कमाने वाले कलाकार रहे हैं।

हालांकि बाद में वे अपना यश भुनाने राजनीति में भी आए। बीजेपी के टिकट से उन्होंने 1996 में जमशेदपुर से लोकसभा चुनाव जीता लेकिन 1999 के लोकसभा चुनावों में उन्हें राजगढ़, मध्यप्रदेश की लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह से हार का सामना करना पड़ा। कुछ वर्षों तक वे बीजेपी के प्रवक्ता भी रहे लेकिन बाद में उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया।nitish-bharadwaj

फिलहाल नितीश मनोरंजन जगत में अभिनय के साथ लेखन और निर्देशन में सक्रिय हैं और इस वक्त वे अपने दूसरे सैटर्न रिटर्न से भी होकर गुजर रहे हैं। क्या पता शनि उन पर दोबारा मेहरबान हो जाएं और वे एक बार फिर अपनी रचनात्मक ऊर्जा के उफान के साथ दर्शकों के सामने किसी नए रूप में आ जाएं।

सैटर्न रिटर्न दरअसल पाश्चात्य ज्योतिष का एक सिद्धांत है। सैटर्न रिटर्न की मान्यता के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 27वें से लेकर 32वें वर्ष के बीच बेहद महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं। जीवन में जटिलता ऐसे घुल जाती है जैसे पानी में नमक और चीनी। एक भयंकर छटपटाहट और बेचैनी पैदा होती है। इस परिस्थिति से पार पाने का एक ही तरीका है, उस X-Factor की खोज जो आपका होना तय करे… जो यह साहस जुटा लेते हैं वे पार लग जाते हैं बाकी एक किस्म के अफसोस की परछायी से जीवनभर बचने की कोशिश करते रहते हैं।

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