सोशल मीडिया के जानकार कहते हैं कि आने वाले दिनों में हर कोई औसतन 5 मिनिट के लिए ज़रूर प्रसिद्ध होगा। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि उन प्रसिद्धियों को याद रखने की इंसानी काबिलियत हज़ारों गुना कम हो जाएगी। इसीलिए सफलता की चाह में ईमान का सट्टा और भट्टा लगाने वालों को ज़रा ठहरकर यह भी देख लेना चाहिए कि इस चाह ने कितनों को रुलाया है और जिन लोगों ने दुनियादारी की परवाह किए बिना सिर्फ अपने दिल की सुनी उन्हें किस्मत ने कैसे शौहरत से मालामाल कर दिया? नितीश भारद्वाज भी अगर पशु शल्य चिकित्सक (Veterinary Surgeon) ही रहे आते, तो उन्हें शायद ऐसी प्रसिद्धि कभी नहीं मिल पाती। अब तक कृष्ण की भूमिकाओं में नज़र आ चुके कलाकारों में वे सर्वाधिक यशस्वी रहे हैं। हालांकि, डॉक्टरी का पेशा उन्होंने यह रोल निभाने भर के लिए नहीं छोड़ा था, इस बारे में लेख में आगे आप विस्तार से जानेंगे, फिलहाल सबसे ज़रूरी बात यह कि उन्होंने वही किया जो ‘शनि’ को सबसे ज़्यादा पसंद है – “अगर खुद के प्रति ईमानदार हो गए तो फिर आपकी ईमानदारी दुनिया की किसी अग्नि-परीक्षा की मोहताज नहीं रहेगी।” नितीश भारद्वाज ने भी यही किया और उनके ‘सैटर्न-रिटर्न’ ने नितीश का दामन, जीवन रहते कभी खत्म न होने वाले यश से भर दिया।
लेकिन उनका निर्णय सही है या नहीं यह साबित होने में अभी भी वक्त था। महज 25 साल की उम्र में नाना पाटेकर और पल्लवी जोशी जैसे कलाकारों के बीच उन्हें ‘तृषाग्नि’(1988) में अभिनय का मौका मिला। हालांकि, यह एनएफडीसी की छोटे बजट की एक छोटी फिल्म थी लेकिन फिल्म के निर्देशक नबेन्दु घोष इस फिल्म के दम पर बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने में कामयाब रहे। पर नितीश भारद्वाज की सफलता का सफर अभी भी शुरू नहीं हुआ था।
अपने जीवन के 26वें साल में नितीश महाभारत सीरियल में कृष्ण की भूमिका के साथ जुड़े, लेकिन 27वें साल में जब महाभारत की कथा कुरूक्षेत्र में पहुंची तो कृष्ण की भूमिका में नितीश भारद्वाज के प्रभावशाली अभिनय ने उन्हें रातों-रात लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। कृष्ण की भूमिका में नितीश भारद्वाज और भीष्म पितामह की भूमिका में मुकेश खन्ना इस धारावाहिक से सर्वाधिक यश कमाने वाले कलाकार रहे हैं।
हालांकि बाद में वे अपना यश भुनाने राजनीति में भी आए। बीजेपी के टिकट से उन्होंने 1996 में जमशेदपुर से लोकसभा चुनाव जीता लेकिन 1999 के लोकसभा चुनावों में उन्हें राजगढ़, मध्यप्रदेश की लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह से हार का सामना करना पड़ा। कुछ वर्षों तक वे बीजेपी के प्रवक्ता भी रहे लेकिन बाद में उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया।
फिलहाल नितीश मनोरंजन जगत में अभिनय के साथ लेखन और निर्देशन में सक्रिय हैं और इस वक्त वे अपने दूसरे सैटर्न रिटर्न से भी होकर गुजर रहे हैं। क्या पता शनि उन पर दोबारा मेहरबान हो जाएं और वे एक बार फिर अपनी रचनात्मक ऊर्जा के उफान के साथ दर्शकों के सामने किसी नए रूप में आ जाएं।
सैटर्न रिटर्न दरअसल पाश्चात्य ज्योतिष का एक सिद्धांत है। सैटर्न रिटर्न की मान्यता के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 27वें से लेकर 32वें वर्ष के बीच बेहद महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं। जीवन में जटिलता ऐसे घुल जाती है जैसे पानी में नमक और चीनी। एक भयंकर छटपटाहट और बेचैनी पैदा होती है। इस परिस्थिति से पार पाने का एक ही तरीका है, उस X-Factor की खोज जो आपका होना तय करे… जो यह साहस जुटा लेते हैं वे पार लग जाते हैं बाकी एक किस्म के अफसोस की परछायी से जीवनभर बचने की कोशिश करते रहते हैं।