कोरोना के इस संकट काल में जब चारों तरफ से त्रासदी, त्राहिमाम और अव्यवस्थाओं से सिसकती जिंदगी की तस्वीरें बेचैनियां बढ़ा रही थी, तब छत्तीसगढ़ के बस्तर से सामने आई तस्वीरों ने जिंदगी को जीने को नया जज्बा दिया। एक तरफ जहां महामारी के मुश्किल दौर में कालाबाजारी और बेइमानी की खबरें मानवता पर सवाल खड़े कर रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ तमाम चुनौतियों के बीच कुछ ऐसी कहानियां भी सामने आ रही हैं जो इंसानियत के जिंदा होने का सबूत देने के साथ ही हर हिंदुस्तानी का हौंसला बढ़ा रही हैं और उम्मीदें भी।
सदी की सबसे बड़ी त्रासदी ने इंसानों को घरों में कैद होने को मजबूर कर दिया है। संक्रमण की चैन तोड़ने और लोगों की जान बचाने के लिए शहरों से लेकर गांव तक लॉकडाउन लगाया गया है। लेकिन शहरों की इस तालाबंदी ने खुले आसमान के नीचे रहने वाले गरीब,बेसहारा और सड़क-चौराहों पर भीख मांगकर गुजर-बसर करने वालों के सामने भोजन का विकराल संकट खड़ा कर दिया था। ऐसे मुश्किल वक्त में इन लोगों के लिए बस्तर के युवाओं की एक टीम उम्मीद की किरण बनकर सामने आई। जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान किसी भी जरूरतमंदों को भूखा नहीं सोने देने की प्रतिज्ञा ली है। नौतपे की झुलसा देने वाली गर्मी में भी नौजवानों की ये टीम जरूरतमंदों तक राहत पहुंचाने के लिए पूरी शिद्दत से जुटी रहती है। साथ ही लोगों को कोरोना महामारी से बचाव और रोकथाम के लिए जागरूक भी कर रही है।
जगदलपुर शहर के कुछ युवाओं का समूह महज खेल-खेल में ही एक समूह बनाता है और यह ग्रुप खेल-खेल में ही इतना बड़ा काम कर जाता है कि शहर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में इनकी चर्चा होने लगती है। दरअसल जगदलपुर शहर के मध्य स्थित चौपाटी में हर शाम युवाओं का समूह एकत्रित होकर हंसी ठिठोली करता था। कुछ समय बाद सभी ने मिलकर उस जगह को बैडमिंटन कोर्ट के रूप में तैयार करने की योजना बनाई। इसके लिए वहां साफ़-सफाई की बेहद जरूरत थी। कहीं से कोई मदद ना मिलने पर इन युवाओं ने खुद ही सफाई की जिम्मेदारी उठाई और अपने ग्रुप का नाम रखा ‘बस्तरिया बैक बेंचर्स’। इस टीम में शामिल सभी सदस्य युवा हैं और उन्हें लगता है कि पढ़ाई के दौरान सभी अपनी-अपनी क्लास में पीछे ही बैठा करते थे। इतना ही नहीं चौपाटी में भी उन सभी की हंसी-ठिठोली देखकर शहर वाले उन्हें बिना किसी काम का समझते थे। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर ग्रुप का नाम ‘बस्तरिया बैक बेंचर्स चुना और निकल पड़े पूरे शहर में साफ-सफाई की मुहिम चलाने।
आपदा में अन्नदूत बने बस्तर के युवा: बस्तरिया बैक बेंचर्स नामक संस्था के युवा लॉकडाउन के पहले दिन से ही शहर और आस-पास के इलाके में घूम-घूम कर जरूरतमंद को दोनो टाइम को भोजन निशुल्क पहुंचा रहे हैं।
समय बीतता गया और कोरोना एक बार फिर कहर बरपाने लगा। जिसके चलते लॉकडाउन की स्थिति बन गई। जब पूरा शहर वीरान हो गया तब इन युवाओं ने पिछले लॉक डाउन को याद करते हुए फैसला लिया कि इस लॉकडाउन में शहर में कोई भी गरीब, असहाय और मजबूर व्यक्ति भूखा नहीं सोएगा। लॉकडाउन में मिले खाली समय का सदुपयोग करते हुए इसे एक मिशन बनाया और सभी मेंबर्स ने अपने पास से कुछ पैसे एकत्रित कर राशन का सामान ख़रीदा।
लॉकडाउन ने गढ़-कलेवा में काम करने वाली महामाया महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं का रोजगार तो छीन लिया, लेकिन उनका दिल और बड़ा कर दिया। कोरोना के मुश्किल वक्त में ये महिलाएं बस्तरिया बैक बेंचर्स ग्रुप से जुड़कर बिना पैसे लिए जरूरतमंद लोगों के लिए दोनों वक्त का खाना बना रही हैं। ये महिलाएं खाना बनाकर, पैक करके देती हैं और टीम के सदस्य अलग-अलग हिस्सों में जरूरमंदों तक पहुंचाते हैं।
धीरे-धीरे ग्रुप के सदस्यों के मोबाइल नंबर शहर के साथ-साथ अस-पास के क्षेत्रों में भी फैल गए। आलम ये है कि लॉकडाउन के दौरान जिसे जो भी समस्या होती है, उसके लिए अब वो सिर्फ बस्तरिया बैक बेंचर्स का नाम ही लेता है।
अब तो भोजन के आलावा लोग डॉक्टर , एम्बुलेंस और दवाइयों के लिए भी फोन करने लगे। वहीं मदद के लिए लगातार आ रहे फोन को देखते हुए इन युवाओं ने अपने अभियान को दो कदम और आगे बढ़ाते हुए एक वाहन की व्यवस्था कर उसे एम्बुलेंस में तब्दील कर दिया। जो मुफ्त में दिन-रात मरीजों को अस्पताल लाने और छोड़ने का काम कर रही है।
बस्तरिया बैक बेंचर्स के काम से प्रभावित होकर शहर के दो डॉक्टर धीरज साहनी और डॉ. राम्या ने भी मदद के हाथ आगे बढ़ाए और ग्रुप से जुड़कर मरीजों को निशुल्क परामर्श देना शुरू किया।
मुट्ठी भर युवाओं का समूह छोटी सी मुहिम लेकर निकला था, धीरे-धीरे कारवां जुड़ता गया और अभियान एक जन आंदोलन बन गया। अब शहरवासी खुद ही बढ़चढ़ कर बस्तरिया बैक बेंचर्स के साथ जुड़ रहे हैं।
पॉजिटिव इंडिया से बात करते हुए समूह के सदस्य संजय ठाकुर बताते हैं कि उन्होंने कुछ दिन पहले नौकरी छोड़ एक लाख अस्सी रुपए का लोन लेकर अपना खुद का काम शुरू किया था। जिसमें से अब उनके पास महज तीन हजार रुपए ही बचे हैं। ग्रुप के एक सदस्य ने तो अपने जेब खर्च के साथ-साथ अपनी गर्लफ्रेंड से भी इस नेक काम के लिए मदद ली। बस्तरिया बैक बेंचर्स ने इस मुहिम में अब तक ना कोई सरकारी मदद ली है और ना ही किसी जनप्रतिनिधि के आगे हांथ फैलाया।
जगदलपुर में रहने वाला अहमद अभी सिर्फ 19 साल का है। उसके माता-पिता दोनों नहीं हैं। वो अपनी बुआ के साथ रहता है। अहमद कम उम्र में ही बड़ी लड़ाई लड़ रहा है। उसे कैंसर है, हर महीने कीमोथेरेपी होती है। कीमोथेरेपी का ही खर्च हर महीने 7000 रुपये से ज्यादा आता है। जाने-आने का खर्च अलग। वैसे ये लड़ाई तो अहमद को ही लड़नी है लेकिन अब जिंदगी की इस जंग में उसे बस्तरिया बैक बेंचर्स का साथ मिला है। हर महीने अहमद कीमोथेरेपी की कराने का जिम्मा अब बस्तरिया बैक बेंचर्स के सदस्यों ने उठाया है। उन्हें उम्मीद है अहमद जल्द ये लड़ाई जीतेगा और तब तक हम उसके साथ हर समय खड़े हैं।
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Story by Vikash Tiwari ‘रानू’