इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। तभी तो महामारी के इस मुश्किल दौर में मध्यप्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक और दिल्ली से लेकर राजस्थान तक आज हर वर्ग-समाज के लोग जरूरतमंदों की मदद कर इंसानियत का धर्म निभा रहे हैं। हिंदुस्तानी होने का अपना फर्ज अदा कर रहे हैं। कोई किसी का अंतिम संस्कार कर रहा है, तो कोई किसी की जान बचाने के लिए रोजा तोड़कर खुशी-खुशी प्लाज़्मा दे रहा है। कोई इंसानों की उखड़ती सांसों को सहेजने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर मुफ्त में मुहैया करा रहा है, तो कहीं मस्जिदों को ही कोविड सेंटर बनाया जा रहा है। लिहाजा हिंदुस्तान के कोने-कोने से सामने आ रहीं ऐसी तस्वीरें समाज को नफरत से दूर मोहब्बत और सौहार्द का संदेश दे रही हैं।
कोरोना के कहर के बीच राजधानी दिल्ली ऑक्सीजन के लिए तड़प रही है। सरकारी अस्पतालों से लेकर बड़े से बड़े प्राइवेट अस्पतालों तक आक्सीजन का भयानक अकाल पड़ा हुआ है। सुविधाओं के अभाव और दवाओं की कालाबाजारी से हर जिंदगी सकते में है। हालांकि संकट की इस घड़ी में कुछ ऐसे लोग भी हैं , जो बिना किसी स्वार्थ के इंसानियत की मदद में जी जान से जुटे हुए हैं। दिल्ली के जामिया नगर इलाके में रहने वाले शरीक हुसैन भी ऐसी ही एक शख्सियत हैं। शाकिर जरूरतमंदों को फ्री में प्राणवायु मुहैया करा रहे हैं और अब तक हजार से ज्यादा लोगों की मदद कर चुके हैं।
आलम ये है कि शहर की एक पतली गली में स्थित उनका छोटा सा मकान ऑक्सीजन सप्लाई केंद्र बना हुआ है। जहां दूर-दराज से लोग ऑक्सीजन की आस में आ रहे हैं। शाकिर ऑक्सीजन के बदले किसी से कोई पैसा नहीं लेते हैं। पॉजिटिव इंडिया से बातचीत के दौरान वो कहते हैं कि ‘जो थोड़े बहुत पैसे मेरे पास थे, उनसे मैंने सिलेंडर खरीदे और लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर देना शुरू किया। अब कई लोग मेरे साथ आ गए हैं। मेरे कारोबारी दोस्त भी मदद कर रहे हैं। वॉलंटियर्स भी हैं।’ शरीक दावा करते हैं कि वो अब तक एक हजार से अधिक लोगों की मदद कर चुके हैं।
कोरोना महामारी के दौर में महाराष्ट्र के नागपुर के एक ट्रांसपोर्टर प्यारे खान कोविड मरीजों के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आए हैं। संकट की इस घड़ी में जरूरतमंदों की मदद के लिए उन्होंने एक करोड़ रुपए खर्च के 400 मीट्रिक टन ऑक्सीजन अस्पतालों को मुहैया कराई।
प्यारे खान आज एक बड़े ट्रांसपोर्टर हैं। 400 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। 2000 ट्रकों का नेटवर्क संभालते हैं। आज इनका बिजनेस नेपाल, भूटान और बांग्लादेश तक फैला है। लेकिन प्यारे खान ने अपनी जिंदगी में मुफलिसी के हर रंग देखे हैं। 1995 में नागपुर रेलवे स्टेशन के सामने संतरे बेचने से अपने धंधे की शुरुआत की थी। इसके बाद ऑटो चलाया, ऑर्केस्ट्रा में काम किया और फिर अपनी मेहनत से जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल किया। इनकी सक्सेस स्टोरी IIM अहमदाबाद में भी स्टूडेंट्स को केस स्टडी के तौर पर पढ़ाई जाती है।
राजस्थान के उदयपुर में रहने वाले अकील मंसूरी ने रमजान में इंसानियत की बड़ी मिसाल पेश की है। उन्होंने जरूरतमंदों को प्लाज्मा देने के लिए अपना रोजा तक तोड़ दिया। मंसूरी बताते हैं कि उन्हें पता चला कि कोरोना से संक्रमित दो मरीजों की स्थिति काफी गंभीर है और उन्हें बचाने के लिए तत्काल प्लाज्मा की जरूरत है। मंसूरी ने प्लाज्मा देने के लिए अपना रोजा तोड़ने का फैसला लिया और अस्पताल पहुंच गए। इस दौरान डॉक्टर ने उन्हें समझाते हुए कहा कि प्लाज्मा डोनेट करने से पहले कुछ खाना होगा। जिसके बाद उन्होंने अल्लाह से माफी मांगी और इबादत मानकर फौरन इस नेक काम को अंजाम दे दिया।