उनकी भी फैमिली है, बच्चे हैं, घर-परिवार की जिम्मेदारी है। फिर भी अपनी जान की परवाह किए बिना वो मरीजों की सेवा में जुटे हैं। एक बार नहीं कई बार ऐसा हुआ कि वो सो तक नहीं पाए, घर नहीं जा पाए लेकिन मानवता और इंसानियत के प्रति ये उनका समर्पण ही है जो अपनी जान को जोखिम में डालकर लगातार अपना फर्ज निभा रहे हैं। ये वो लोग हैं जो सदी की सबसे बड़ी त्रासदी में भी अपनी ड्यूटी पर तैनात हैं और अस्पताल में कोविड के मरीजों के बीच रहकर महामारी से डटकर मुकाबला कर रहे हैं। डॉक्टर, नर्स, एंबुलेंस ड्राइवर,लैब टेक्नीशियन औऱ वार्ड ब्वॉय समेत तमाम फ्रंटलाइन वर्कर अपनी जान को जोखिम में डालकर लगातार अपना फर्ज निभा रहे हैं।
कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से लगातार बिगड़ते हालातों के बीच फ्रंटलाइन वर्कर्स देश की आखिरी उम्मीद बनकर उभरे हैं। बड़ी संख्या में ऐसे फ्रंटलाइन वर्कर्स हैं जो मानवता को बचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं और फर्ज को सबसे ऊपर रख सेवा की ऐसी मिसाल पेश कर रहे हैं, जिसका कर्ज इस जन्म में शायद ही कोई उतार पाए। सेवा और समर्पण की ऐसी ही अद्भुत मिसाल पेश की है बिहार के कटिहार सदर अस्पताल में तैनात दो नर्स/एएनएम सुलेखा और सोनी ने। जब कोरोना के डर से कई अधिकारियों और कर्माचारियों के अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने की खबरें आम हो चली हैं, ऐसे कठिन समय में भी सुलेखा और सोनी प्रेग्नेंट/गर्भवती होने के बावजूद ICU में कोरोना मरीजों की सेवा कर अपना फर्ज बखूबी निभा रही हैं।
कोरोना के जिस निष्ठुर दौर में अपने ही लोग अपनों का साथ छोड़ रहे हैं। ऐसे मुश्किल समय में भी दोनों प्रेग्नेंट महिला स्वास्थ्यकर्मी दोहरी जिंदगी को दांव में लगाकर दूसरों की जिंदगी बचाने में जुटी हुई हैं।
दोनों महिला कर्मचरी गर्भवती हैं, इसके बाद भी कोरोना के संकट काल में अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए ड्यूटी पर तैनात हैं। नर्स सुलेखा इस समय सात महीनों की गर्भवती है। कोरोना के मरीजों की रोजाना सेवा करते हुए अब वो खुद संक्रमित हो गई हैं। लेकिन उन्हें अपने स्वास्थ्य की चिंता की बजाए अफसोस इस बात का है कि वो अब आगे कोरोना संक्रमितों की सेवा नहीं कर पाएंगी। वहीं आईसीयू में तैनात दूसरी नर्स सोनी छह महीनों की गर्भवती है। लेकिन उनका कहना है कि फर्ज के सामने सब कुछ कुर्बान है। पॉजिटिव इंडिया से बात करते हुए वो कहती हैं कि जब तक शरीर साथ देगा, तब तक वो अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागेंगी।
गुजरात के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में तैनात डॉ. आरती को सात जन्मों का बंधन भी फर्ज की राह से नहीं डिगा सका। अभी उऩके हांथों की मेहंदी उतरी भी नहीं थी कि, वो फर्ज के खातिर शादी के तीसरे दिन ही कोरोना से उखड़ती सांसो को सहेजने अस्पताल पहुंच गई। डॉ. आरती कहती हैं महामारी की इस मुश्किल घड़ी में अपनी खुशी से ज्यादा लोगों के चेहरे की मुस्कान अधिक मायने रखती है।
देश में कोरोना की दूसरी लहर इतनी खतरनाक है कि अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी हो रही है। अस्पतालकर्मी लगातार 18-18 घंटे काम करके कोरोना वायरस से हारती जिंदगी को बचाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं।
डॉक्टर को धरती का भगवान ऐसे ही नहीं कहा जाता है। अपने फर्ज के लिए ये अपना हर दुख-दर्द भुला देते हैं। कोरोना महामारी की जंग में ये हमारे सबसे बड़े योद्धा हैं, जो हम लोगों के लिए जीवन की ढाल बनकर खड़े भी हैं और डंटे भी हैं। जिसकी बानगी देखने को मिली महाराष्ट्र के पुणे में। जहां कोरोना से पिता की मौत की दुखद खबर भी एक डॉक्टर बेटे को फर्ज से नहीं डिगा सकी और पिता की मौत के दूसरे दिन ही डॉक्टर बेटे ने फर्ज की खातिर वापस ड्यूटी ज्वाइन की। इतना ही नहीं उनकी मां और भाई भी कोरोना पॉजिटिव हैं और अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं।
दरअसल 45 साल के डॉ. मुकुंद पेनुरकर पुणे के कर्वे रोड स्थित संजीवनी अस्पताल में कोविड वार्ड के डायरेक्टर हैं। डॉ. पेनुरकर कोरोना महामारी की दस्तक के बाद से ही मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं। पिछले 13 महीने में डॉ. पेनुरकर करीब एक हजार कोविड-19 मरीजों का इलाज कर चुके हैं। डॉ. पेनुरकर के मुताबिक मरीजों की सेवा ही उनके 85 साल के पिता के लिए सबसे अच्छी श्रद्धांजलि है।
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