कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे हिंदुस्तान में हाहाकार मचा रखा है। महामारी के चलते देश के हर हिस्से से आने वाली बुरी खबरों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। मगर निराशा से भरे इस माहौल में तमाम चुनौतियों के बीच कुछ ऐसी कहानियां भी सामने आ रही हैं जो इस मुश्किल वक्त में हर हिंदुस्तानी को हौंसला देती हैं और उम्मीदें भी।
मुंबई को सेनेटाइज करने सड़कों पर उतरा स्पाइडर मैन
मुसीबत की घड़ी में हम किसी दूसरे देश से कोई दूसरी मदर टेरेसा के आने की उम्मीद नहीं कर सकते कि वो आएं और हमारे देश के लोगों की सेवा करें…हमें ही उन जैसा बनना होगा और जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद करनी होगी।
कुछ इसी सोच के साथ मुंबई के सोशल वर्कर और सायन फ्रेंड सर्किल फाउंडेशन के अध्यक्ष अशोक कुर्मी कोरोना संकट काल में इंसानियत की सेवा में जी जान से जुटे हुए हैं। अशोक इन दिनों मुंबई की सड़कों पर स्पाइडरमैन के गेटअप में घूमते हुए नजर आ रहे हैं। अपनी पीठ पर एक सेनेटाइजेशन किट बांधकर यह स्पाइडरमैन मुंबई के अलग-अलग इलाकों में घूम कर बस स्टैंड और बसों को सेनेटाइज्ड करता है। इसके पीछे उनकी दलील है कि आमतौर पर बसों और बस स्टॉप पर सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है और संक्रमण का खतरा भी यहां सबसे ज्यादा रहता है।
सेनेटाइजेशन के साथ-साथ अशोक लोगों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए अवेयर करने का भी काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यह काम सामान्य कपड़ों में भी हो सकता था, लेकिन लोग उनकी बात को याद रखें इसलिए वो स्पाइडरमैन के गेटअप में रहते हैं।
मरीजों के नाम की ‘बेटे की एफडी’
ये हैं गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले रसिक मेहता औऱ उनकी पत्नि कल्पना मेहता, जो कोविड की चपेट में आकर जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हर जरूरतमंद मरीजों को हर संभव मदद पहुंचाने के लिए पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं। दरअसल पिछले साल कोरोना महामारी ने उनसे उनका इकलौता जवान बेटा छीन लिया था। रसिक और कल्पना ने अपने जान के टुकड़े के लिए 15 लाख रुपए की एफडी कराई थी। अब जब उनका बेटा नहीं रहा, तो उन्होंने इन एफडी के इन पैसों को जरूरतमंद मरीजों के इलाज में खर्च करने का फैसला लिया। ये दंपति अब तक 200 आइसोलेट मरीजों को कोरोना किट उपलब्ध करा चुके हैं। इतना ही नहीं 350 से ज्यादा लोगों को अपने खर्च पर टीका भी लगवा चुके हैं।
180 KM स्कूटी चलाकर मरीजों को देखने बालाघाट से नागपुर पहुंची ये डॉक्टर
मध्यप्रदेश के बालाघाट की रहने वाली डॉ. प्रज्ञा घरड़े नागपुर के एक कोविड सेंटर में आरएमओ के पोस्ट पर कार्यरत हैं। प्रज्ञा कुछ दिन पहले छुट्टी लेकर नागपुर से अपने घर बालाघाट पहुंची थी। इस बीच कोरोना की दूसरी लहर ने देशभर में दस्तक देना शुरू कर दिया था। नागपुर भी इससे अछूता नहीं रहा और वहां भी संक्रमण के मामलों में अचानक बेतहाशा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। जब इसकी जानकारी प्रज्ञा को मिली, तो उन्होंने अपनी छुट्टी को बीच में ही कैंसिल कर फौरन नागपुर वापस जाने का फैसला लिया। इतना ही नहीं नागपुर जाने के लिए समय पर कोई साधन नहीं मिला तो डॉक्टर प्रिया अपनी स्कूटी से ही अकेले 180 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर नागपुर पहुंची औऱ ड्यूटी ज्वाइन की।
पॉजिटिव इंडिया से बात करते हुए प्रज्ञा बताती हैं कि बालाघाट नक्सल प्रभावित इलाका है। जिसके डर से घर वाले स्कूटी से इतना लंबा सफर करने की इजाजत नहीं दे रहे थे। लेकिन उस वक्त मुझे सिर्फ और सिर्फ हास्पिटल के मरीज दिख रहे थे। मुसीबत की इस घड़ी में डॉक्टर प्रिया पीपीई किट पहनकर दिन में 12 से 14 घंटे मरीजों की सेवा कर रही हैं।