गरीबी में गुजरा बचपन, आज नाप रहे दुनिया
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‘दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है’…इन शब्दों को जिंदगी का मूल मंत्र बनाकर सफलता का शिखर छूने वाले राकेश पटेल आज साल करोड़ों रुपये कमाते हैं और दुनिया के कई देश अभी तक घूम चुके हैं। लेकिन राकेश की जिंदगी हमेशा ऐसी नहीं थी। एक वक्त ऐसा भी था जब राकेश सात दिनों तक भूखे फुटपाथ पर सोए। राकेश अपने माता-पिता और परिवार के लिए गुदड़ी के लाल हैं। जिन्होंने अपनी मेहनत लगन और अथक परिश्रम से परिवार को न सिर्फ आर्थिक रूप से सक्षम बनाया बल्कि जीने का सलीका और तरीका भी सिखाया।
पॉजिटिव इंडिया से बात करते हुए राकेश ने अपनी जिंदगी के दर्द, परेशानियां और अनुभव खुलकर साझा किए। मध्यप्रदेश के सिंगरौली में पले-बढ़े राकेश का जन्म रीवा जिले के छोटे से गांव में हुआ। शुरुआती पढ़ाई सिंगरौली में करने के बाद राकेश ने जिंदगी की दशा और ददिशा बदलने के लिए पुणे जाकर पढ़ाई करने का फैसला किया। राकेश के पिताजी कोल इंडिया में कर्मचारी थे। वो राकेश को पढ़ाई और रहने के लिए महज तीन हजार रुपए ही भेज पाते थे। कुछ महीनों में ही राकेश ये समझ चुके थे कि इतने से उनका खर्च चलने वाला नहीं है। माइक्रो बॉयलॉजी में एमएससी कर रहे राकेश ने अपनी इस परेशानी का हल ढूंढने के लिए पार्ट टाइम नौकरी शुरू की।
राकेश ने रियल स्टेट सेक्टर में काम शुरू किया लेकिन वहां बात नहीं बनी। इसके बाद उन्होंने कॉल सेंटर में भी किस्मत आजमाई पर वहां उन्हें रिजेक्शन झेलना पड़ा। पहले से ही अभाव और गरीबी में जिंदगी जी रहे राकेश ने रिजेक्शन के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि अपनी जिजीविषा और संघर्ष क्षमता का परिचय दिया। इतनी कम उम्र में उन्होंने वेलनेस इंडस्ट्री में खुद का बिजनेस शुरू करने का लाइफ चेंज करने वाला फैसला लिया। कुछ वक्त बाद उनका यही फैसला उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
पुणे में सेटल हो चुके राकेश को वेलनेस इंडस्ट्री में भी सफलता का शिखर अपनी मेहनत और स्वाभिमान से जिंदगी जीने की उनकी जिद के दम पर हासिल हुआ। एक वक्त वो भी था जब पुणे से ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाने और रहने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं होते थे। एक बार तो ऐसा हुआ कि किसी तरह वो मुंबई पहुंच तो गए लेकिन होटल में रुकने और खाने के लिए पैसे न होने के चलते उनको रेलवे स्टेशन के बाहर भिखारियों के बीच सात दिन तक भूखे सोना पड़ा। जिंदगी के 20 साल तक दो कमरे के छोटे से घर में रहने वाले राकेश के पास आज अपना खुद का शानदार घर है। घूमने के शौकीन राकेश अभी तक कई देश घूम चुके हैं, उनका ख्वाब पूरी दुनिया घूमने का है।
अपने सपनों को लेकर पॉजिटिव इंडिया से बातचीत के दौरान राकेश बताते हैं कि वो बचपन से ही बड़े सपने देखते थे और सोचते थे कि जिंदा तो सभी हैं, पर क्या जी रहे हैं। इसी के चलते उन्होंने अपने बड़े सपनों को पूरा करने के लिए खूब काम किया। 20 साल तक सिंगरौली के बाहर न जाने वाले राकेश आज देश के अलग-अलग कोने में जाते हैं। पूरे देश के साथ ही दुनिया के करीब 12 देशों में उनका बिजनेस चल रहा है। अपने जुनून को जिद की हद तक लेकर जाकर राकेश ने अपना और अपने परिवार का जीवन स्तर सुधारा, दो भाई बहनों को पढ़ाया और काबिल बनाया।
असफलता डराती है या नहीं इस सवाल के जवाब में राकेश ने साफ शब्दों में कहा कि गरीबी से बड़ा डर कुछ नहीं होता। अकेलेपन से डर के सवाल पर उन्होंने कहा कि अकेलपान एक ताकत है, ये आपको खुद से बात करने का मौका देता है। राकेश ने अकेलेपन में खुद से बातें कीं, जिंदगी के लक्ष्य निर्धारित किए और सकारात्मक सोच के साथ कूद गए जिंदगी के समर में। वेलनेस इंडस्ट्री के जरिए नाम और शोहरत कमाने वाले राकेश पटेल का कहना है कि लोगों की मदद करने के बाद जो संतुष्टि का भाव आता है वो और किसी चीज से नहीं आता। उनका कहना है कि मदद वही करता है जो काबिल होता है। राकेश कहते हैं मदद तो सभी करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते। लोग जब मदद के बदले थैंक्यू कहते हैं तो उस वक्त उनके चेहरे के भाव देखकर जो खुशी हासिल होती है उनका मोल कोई चुका नहीं सकता।
35 साल के हो चुके राकेश ने अभी तक शादी नहीं की है। पिता का सपना पूरा करने के लिए वो जल्द ही दूल्हा बनने की तैयारी कर रहे हैं। शादी में हुई देर के सवाल पर उनका कहना है कि परिवार को स्टेबल करने में काफी वक्त लग गया, जिसके चलते देर हुई। जिंदगी में मोहब्बत हुई या नहीं इस सवाल का बेबाकी से जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि प्यार तो हुआ लेकिन उसकी परिणति शादी के रूप में नहीं हो पाई। क्योंकि हिंदुस्तान का जातिगत सामाजिक ढांचा आज भी इंटरकास्ट शादी को स्वीकार नहीं करता। राकेश पटेल का कहना है कि प्यार किसी भी इंसान को जिम्मेदार बनाता है।
राकेश का कहना है कि इंसान को अपने फैसले खुद करने चाहिए। किसी के दबाव में आकर फैसले लेने से जिंदगी नहीं बदलती। समाज क्या कहेगा जिस दिन ये डर अंदर से निकल जाता है, उस दिन जिंदगी का आकाश आपकी बाहों की चौड़ाई से बड़ा नहीं होता। राकेश का कहना है कि समाज की सोच तो आप की सफलता और असफलता के हिसाब से बनती बिगड़ती है। आप सफल तो सब अच्छा और असफल तो सब खराब। इसलिए समाज से मत डरो साथ ही मेहनत से भी मत डरो। मेहनत का कोई विकल्प और सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता।
महज 28 साल की उम्र में करीब 1 करोड़ रुपये के कर्ज के बोझ तले दबने के बाद राकेश ने आर्थिक मैनेजमेंट की अहमियत को बखूबी समझा। ये वो वक्त था जब उनके प्रतिद्वंदी ये कहने लगे थे कि राकेश पटेल खत्म, इसको भी उन्होंने संग्राम की तरह लिया और इस संग्राम में जीत हासिल की। महज 2 साल के अंदर न सिर्फ कर्ज का बोझ उतारा बल्कि दोबारा से खुद को इंडस्ट्री में स्थापित भी किया।
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