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मिलिए वर्ल्ड की पहली ट्री-एम्बुलेंस शुरू करने वाले इंडिया के ग्रीन मैन से

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आज के शहरीकरण और स्मार्ट सिटी के दौर में इंसान अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं की खातिर बेरहमी से पेड़ों को काटने और हरियाली को उजाड़ने में पूरी शिद्दत के साथ जुटा हुआ है। अपने ऐशो-आराम की चाह में हम ये भी भूल जाते हैं कि आज हम जिन पेड़ों की सांसे उनसे छीन रहे हैं, कल उनका ना होना हमारी भी सांसो को हमेशा के लिए रोक सकता है। लिहाजा आने वाले कल के इसी खतरे को भांपते हुए पंजाब के एक पर्यावरण प्रेमी और आईआरएस ऑफिसर ने पेड़ों को नई जिंदगी देने के लिए दुनिया के पहले ‘ट्री हॉस्पिटल’ और ‘ट्री एंबुलेंस’ की शुरूआत की है।

ट्री एम्बुलेंस: एक कदम सुरक्षित कल की तरफ

अभी तक आपने इंसानों और जानवरों के लिए अस्पताल और एंबुलेंस सुविधा के बारे में सुना और देखा होगा। लेकिन क्या कभी पेड़-पौधों के लिए ऐसी किसी सुविधा और इलाज के लिए बारे में सुना है? यकीनन नहीं, मगर पॉजिटिव इंडिया (Pozitive India) आपको आज देश के एक ऐसे अनोखे अस्पताल और एंबुलेंस के बारे में बताने जा रहा है जो अपने आप में नायाब तो है ही, साथ ही प्रकृति को सहेजने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रहा है। 

दरअसल, यह अनोखा अस्पताल पंजाब के अमृतसर जिले में शुरू हुआ है। लोग इस अस्पताल की जमकर तारीफ कर रहे हैं। अमृतसर के इस अस्पताल में बीमार पेड़-पौधों का इलाज किया जा रहा है। खास बात यह है कि इसमें लगभग 32 तरह की बीमारियों का इलाज किया जाएगा। यह अनूठी शुरुआत आईआरएस ऑफिसर रोहित मेहरा ने की है। उनका कहना है कि पेड़-पौधे जब बीमार पड़ें, सूख या मुरझा जाएं तो उन्हें उखाड़कर न फेंके, क्योंकि इंसानों की तरह उनका भी इलाज हो सकता है। आयुर्वेद को आधार बनाकर पौधों का इलाज किया जाएगा।ट्री- एम्बुलेंस एक तरह का ई-व्हीकल है और एक कॉल पर आपकी मदद के लिए तैयार रहता है। जो भी लोग अपने पेड़-पौधों का इलाज चाहते हैं, उनके पास टीम जाकर पेड़-पौधों की जांच करेगी। ये सेवा पूरे अमृतसर में उपलब्‍ध है। खास बात यह है कि सभी पेड़-पौधों का इलाज एकदम फ्री में किया जाएगा. रोहित ने अपनी ट्री एंबुलेंस को ‘पुष्पा ट्री एंड प्लांट हॉस्पिटल एंड डिस्पेंसरी’ का नाम दिया गया है। इसके लिए रोहित ने एक नंबर (8968339411) भी जारी किया है, जिसके ज़रिए शहर के लोग संपर्क कर सकते हैं और अपने पेड़ों के इलाज के लिए ट्री एंबुलेंस की मदद ले सकते हैं। 

एक रिसर्च के मुताबिक भारत में वन क्षेत्र 21 प्रतिशत है जबकि, वैश्विक मानक 33.3 प्रतिशत का है। विश्व संसाधन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में साल 2001 से 2018 के बीच 1.6 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ो की कमी हुई है यानि की देश में पेड़ों की संख्या बढ़ने की बजाय लगातार कम होती चली जा रही है। लिहाजा बढ़ता प्रदूषण सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। खासतौर पर पंजाब जैसे राज्य में पराली जलाने और इंडस्ट्री से उठने वाले धुएं की वजह से हालात बहुत ज्यादा खराब हैं। ऐसे में पंजाब के आयकर विभाग में अतिरिक्त आयुक्त रोहित मेहरा और उनकी पत्नी गीतांजलि, आशा की एक किरण बनकर समाज में शुद्ध हवा और साफ वातावरण के लिए सार्थक पहल कर रहे हैं।

पर्यावरण के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर चुके रोहित मेहरा पॉजिटिव इंडिया (Pozitive India) से बातचीत के दौरान बताते हैं कि पेड़ों को पुनर्जीवित करने के लिए ट्री एंबुलेंस में ऐसे विशेषज्ञों की टीम बनाई गई है, जो पौधों की बीमारियों के इलाज में सक्षम है। ट्री एंबुलेंस में आठ बोटनिस्ट और पांच साइंटिस्ट शामिल हैं। इसमें 32 तरह की अलग-अलग बीमारियों को ठीक करने की व्यवस्था है। जिन लोगों ने अपने घरों या पार्कों में बड़े-बड़े पेड़ लगाए हैं, उन्हें पेड़ों की देखभाल के लिए आगे आना होगा। दीमक के इलाज से लेकर पौधों के रीप्लांटेशन तक टीम के पास काम करने का अनुभव है। कई लोगों के घरों में पीपल का पेड़ निकल आता है, अगर उसे हटाना है तो बिना खराब किए रिप्लांट किया जाएगा। 

मियावाकी तकनीक और वृक्षायुर्वेद

रोहित जी कहते हैं कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है, इसे वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु पहले ही साबित कर चुके हैं। वहीं अपनी रिसर्च के दौरान उन्हें जापान की मशहूर ‘मियावाकी तकनीक’ के बारे में पता चला। जल्दी पेड़-पौधे उगाने की तकनीकों के बारे में अपने ज्ञान को और बढ़ाने के लिए उन्होंने प्राचीन भारतीय लेख भी पढ़े जैसे वृक्षायुर्वेद, जिसमें पेड़-पौधों और जंगलों को उगाने की तकनीकों बारे में बताया गया है। राकेश कहते हैं कि दिलचस्प बात यह है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मियावाकी तकनीक की प्रक्रियाओं के बारे में लिखा गया है। जमीन को 2.5 फीट की गहराई तक खोदा जाता है और फिर इसमें पत्तियों, गोबर और अन्य तरह की खाद से तैयार मिश्रण को मिलाया जाता है। यहां तक कि कृषि में बचे भूसी और पराली को भी ज़मीन की उर्वरकता बढ़ाने के लिए मिलाया जाता है।अब तक रोहित 500 वर्ग फ़ीट से लेकर 4 एकड़ तक के 25 से अधिक छोटे-बड़े जंगल तैयार कर चुके हैं। पर्यावरण के प्रति अपने लगाव के चलते उन्होंने सबसे पहले लुधियाना रेलवे स्टेशन पर एक वर्टिकल गार्डन तैयार किया। ये फला-फूला, तो उन्होंने प्रेरित होकर कुछ और खाली पड़ी जगहों को चुना और वहां खूब पेड़ लगाए। वक्त के साथ पेड़ बड़े हुए, तो उन्होंने जंगल का रूप ले लिया। इसकी जानकारी लोगों को हुई, तो उन्होंने रोहित से संपर्क करना शुरू कर दिया। साथ ही गुज़ारिश की कि वो उनकी खाली पड़ी ज़मीनों को भी हरा-भरा करने में मदद करें।

रोहित मेहरा पर्यावरण के लिए हमेशा से काम करते रहे हैं। उन्होंने 75 मानव निर्मित जंगल बनाए हैं। देशभर में उन्होंने पिछले तीन सालों में 66,000 वर्ग फीट के एरिया को मिनी जंगल में बदलने में सफ़लता हासिल की है। यही वजह है कि उन्हें ‘ग्रीन मैन’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा रोहित प्लास्टिक की करीब 70 टन बेकार बोतलों की मदद से लुधियाना के सार्वजनिक स्थलों पर 500 वर्टिकल गार्डन भी बना चुके हैं। वो वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास के साथ ही सिंगल यूज़ प्लास्टिक को रिसाइकल करने की भी कोशिश में जुटे हुए हैं।

रोहित बताते हैं कि लुधियाना से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित जगराओं के एक उद्योगपति ने उन्हें 6,000 वर्ग फुट के भूखंड को जंगल में तब्दील करने का अनुरोध किया था। दरअसल उद्योगपति एक कारखाना चला रहा था जिसके कारण उसके आस-पास के क्षेत्र का वातावरण काफी प्रदूषित हो गया था। लिहाज़ा उसने अपनी खाली पड़ी जगह में पेड़ लगाकर प्रदूषण से मुकाबला करने की सोची और इसके लिए रोहित से संपर्क किया। रोहित की कोशिश रंग लाई औऱ वो इसमें सफ़ल रहे। रोहित के लिए ये एक बड़ा चैंलेंज था क्योंकि इससे पहले उन्होंने इतना बड़ा जंगल तैयार नहीं किया था।

जब एक डर बन गया पर्यावरण बचाने का आंदोलन…

रोहित के इस सकारात्मक सफर की शुरुआत में एक छोटे से बच्चे का दर्द छिपा है, उसकी परेशानी छिपी है, ये ऐसी परेशानी थी जिससे हर मां-बाप डर जाते। रोहित मेहरा के ग्रीन मैन बनने की कहानी का किरदार ये बच्चा कोई और नहीं बल्कि खुद उनका बेटा ही है। बात करीब तीन चार साल पुरानी है। रोहित लुधियाना के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में एडिश्नल कमिश्नर के तौर पर तैनात थे। उनके बेटे के स्कूल ने अचानक 3-4 दिन की छुट्टी का ऐलान किया। स्कूल में अचानक हुई छुट्टियां परिवार के लिए हैरानी की बात थी क्योंकि गर्मियां थी नहीं, ये सर्दी की छुट्टियां भी नहीं थी, त्यौहार भी नहीं थे। जब परिवार को स्कूल की छुट्टी की वजह का पता चला तो पहली बार एक ऐसे डर का एहसास हुआ जिसके बारे में शायद कभी सोचा ना था। उन दिनों हवा जहरीली हो चली थी। प्रदूषण भयानक स्तर तक पहुंच चुका था। ये छुट्टियां उसी वजह से थी। ताकि बच्चे घर पर रहें और प्रदूषण से कुछ हद तक उनका बचाव हो सके। इस छुट्टी ने रोहित को अंदर तक झंकझोर दिया। पहली बार रोहित की चिंता में पर्यावरण बहुत गंभीर तौर पर शामिल था। आगे जाकर परिवार की चिंता से शुरू हुआ ये मंथन एक बड़ा आंदोलन बनने वाला था।शुरुआत हवा की दशा सुधारने के लिए पेड़-पौधे लगाने के फैसले से हुई। लेकिन समस्या ये थी कि कंक्रीट के जंगल बन चुके शहरों में पेड़-पौधे लगाए कहां जाएं। रोहित की इस समस्या का समाधान वर्टिकल गार्डन से निकला। वर्टिकल गार्डन यानी छोटे-छोटे सैकड़ों गमलों में पौधे लगाकर किसी भी बिल्डिंग की दीवारों,चारदीवारी से लटका दिया जाए। लेकिन इसमें समस्या ये थी गमले महंगे थे। लेकिन रोहित को जो इसका समाधान मिला वो भी पर्यावरण हितैषी निकला। उन्होंने गमलों की जगह प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल करने का फैसला किया।

रोहित ने इसकी शुरूआत लुधियाना में इनकम टैक्स विभाग के अपने दफ्तर से की। यहां पहला वर्टिकल गार्डन बना। पहल बहुत छोटी सी थी। लेकिन इसके नतीजे आंख खोलने वाले थे। वर्टिकल गार्डन लगाने के बाद रोहित के दफ्तर की हवा की गुणवत्ता में हैरान कर देने वाला सुधार हुआ। जब पहली बार हवा की गुणवत्ता की जांच की गई तो लुधियाना शहर की हवा की गुणवत्ता का स्केल 274 था। जबकि रोहित के दफ्तर की हवा की गुणवत्ता का स्केल 78 था। इस नतीजे ने रोहित के साथ-साथ उनकी टीम का भी उत्साह बढ़ाया।

अब रोहित ने वर्टिकल गार्डन के फायदे को शहर के दूसरे हिस्सों में भी पहुंचाने की प्लानिंग की लेकिन उनके सामने एक बड़ा सवाल आ खड़ा हुआ, आखिर इतनी बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कैसे जुटाया जाए? अब इसकी कवायद शुरू हुई। इसके लिए आस-पास के शैक्षणिक संस्थानों से संपर्क किया गया। स्कूल ने बच्चों से घर में बेकार पड़ी प्लास्टिक की बोतलें मंगवाई। सबसे पहले स्कूल की दीवारों पर ही प्लास्टिक बोतलों में वर्टिकल गार्डन तैयार किया गया।देखते ही देखते ये अभियान लोकप्रिय हो गया। इसके बाद तो शहर के मंदिरों, गुरुद्वारों, फ्लाईओवर की दीवारों पर वर्टिकल गार्डन बनाए जाने लगे। इस छोटी सी पहल ने लुधियाना शहर में हवा की सेहत सुधारने का काम तो किया ही साथ ही टनों के हिसाब से बेकार प्लास्टिक का भी सही इस्तेमाल हुआ। रोहित मेहरा कहते हैं कि अगर इन प्लास्टिक का इस्तेमाल वर्टिकल गार्डन में ना होता तो ये कचरे के तौर पर पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रही होतीं। लेकिन अब इसी प्लास्टिक के कचरे में लगे छोटे-छोटे पौधे से हवा की सेहत सुधर रही है। इस अभियान से रोहित मेहरा ने सिर्फ लुधियाना बल्कि पूरे पंजाब में ग्रीन मैन के तौर पर पहचाने जाने लगे।

सोशल मीडिया के जरिए अभियान की कामयाबी की कहानी लोगों तक पहुंची। इसका असर ये हुआ कि देश के अलग-अलग शहरों में हवा की सेहत सुधारने के लिए वर्टिकल गार्डन लगाने का ट्रेंड चल पड़ा। पंजाब से बाहर भी कई शहरों में अब ऐसे वर्टिकल गार्डन खूब दिखने लगे हैं। रोहित मेहरा के फेसबुक और ट्विटर अकाउंट के जरिए देश भर में हजारों लोग इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं।IRS Rohit mehra with wifeप्रकृति को वापस लौटाने का रोहित मेहरा का काम सिर्फ वर्टिकल गार्डन्स तक ही सीमित नहीं है। वर्टिकल गार्डन के साथ अब वे पंचवटी लगाने के काम में भी जुटे हैं। पंचवटी में पांच पौधे बेल, आंवला, बरगद, पीपल और अशोक एक ही जगह पर आस पास लगाए जाते हैं। जब ये पौधे बड़े होकर पेड़ बनते हैं तो आसपास के इलाकों की हवा की सेहत को जबरदस्त सुधार कर देते हैं। रोहित अब तक सैकड़ों पंचवटी लगवा चुके हैं। पंचवटी का महत्व हमारे शास्त्रों में भी बताया गया है।

रोहित हर वक्त पर्यावरण को सहेजने के रचनात्मक उपायों की तलाश में लगे रहते हैं। इसी के तहत अब तक वे करीब 2 लाख सीड बॉल बंटवा चुके हैं। दरअसल ये सीड बॉल मिट्टी के गोले होते हैं जिनमें बीज रहते हैं। इन्हें टोल प्लाजा, धार्मिक स्थलों और स्कूलों में बंटवाया गया। ये सीड बॉल कहीं भी फेंक दिए जाए तो अनुकूल दशा मिलने पर ये अंकुरित होकर पौधे बन जाते हैं।IRS Rohit Mehraरोहित पौधारोपण के अभियान को मुहिम में बदलने का कोई मौका नहीं छोड़ते। वे बताते हैं कि उनके पास हर रोज सैकड़ों गुड मॉर्निंग या फिर धन्यवाद देने के व्हाट्स अप पर मैसेज आते थे। इन संदेशों के जवाब में उन्हें एक मैसेज बनाया और कि अगर आप मेरे काम से प्रभावित हैं तो संदेश में बताई गई दिशाओं में 5 पौधे लगाएं और उनके साथ एक सेल्फी लेकर मुझे भेजें। रोहित बताते हैं कि इसका बहुत ही सकारात्मक जवाब मिला। लगभग 92 फीसदी लोगों ने उनके संदेश पर सकारात्मक जवाब दिया। करीब 92 फीसदी लोग उनकी इस मुहिम का हिस्सा बने।

रोहित कहते हैं कि हम प्रकृति से सिर्फ लेते जा रहे हैं। जब दुनिया को अलविदा कहेंगे तब भी अपने साथ कम से कम दो पेड़ लेकर जाएंगे। ऐसे में अगर मुमकिन हो तो कम से कम अपने हिस्से के दो पेड़ तो प्रकृति को लौटा ही सकते हैं।

IRS Rohit mehra wifeतो देखा आपने एक डर से शुरू हुआ पर्यावरण को सहेजने का रोहित का ये सफर अब एक ऐसा सुहाना सफर बन गया है, जो प्रकृति और समाज के हित में हैं। जैसे रोहित ने ट्री-एंबुलेंस के जरिए हमारे सुरक्षित कल के लिए एक पहल की है, वैसे ही हम भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अपने घरों में पौधे लगाकर सुरक्षित कल के लिए एक कदम बढ़ा सकते हैं।

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हर रोज आपके आसपास सोशल मीडिया पर नकारात्मक खबरें और उत्तेजना फैलाने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच हम आप तक समाज के ऐसे ही असल नायक/नायिकाओं की Positive, Inspiring और दिलचस्प कहानियां पहुंचाएंगे, जो बेफिजूल के शोर-शराबे के बीच आपको थोड़ा सुकून और जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे सकें।

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