मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के अंगरोठा गांव में जल संरक्षण का काम कर रही बबिता राजपूत का जिक्र करते हुए उनकी तारीफ करी और कहा कि अंगरौठा गांव की 19 वर्षीया बबीता ने करीब 200 महिलाओं की अगुआई कर एक पहाड़ी को काट सूखी झील को नदी से जोड़ने का अद्भुत काम किया है।उनके इस कार्य से हम सभी को प्रेरणा मिलती है कि अगर कुछ करना चाहे इंसान कुछ भी कर सकता है।जिसके बाद से ही देशभर में बबीता राजपूत की चर्चा हो रही है।
छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा तहसील के अगरोठा गांव की बबिता को इक्कीसवीं सदी की भागीरथ कहें तो गलत नहीं होगा। कलयुग की इस भागीरथ ने गांव की महिलाओं के सहयोग से वो कारनामा कर दिखाया है जिसे करने में सरकारें सालों लगा देती हैं। 19 साल की बबिता महिला सशक्तीकरण की जीती जागती मिसाल हैं, जिन्होंने बूंद-बूंद पानी को तरस रहे प्यासे बुंदेलखंड में जल सहेली बनकर एक अलख जगाई है। बबिता राजपूत की कोशिशों का ही नतीजा है कि अगरोठा गांव में करीब 70 एकड़ क्षेत्र में फैला तालाब अब पूरे साल पानी से लबालब भरा रहता है।
बारिश के पानी को सहजने के लिए जब बबिता ने पहाड़ का सीना चीरने का दुष्कर और दुरूह काम करने की मन में ठानी तो उनको कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। शुरुआत में तो गांव की महिलाएं भी बबिता के साथ जुड़ने में संकोच करती थीं। लेकिन बबिता ने हार नहीं मानी और समाजसेवी संस्था परमार्थ के साथ मिलकर 2019 में इस मिशन को करने का बीड़ा उठाया। वक्त के साथ एक-एक करके गांव की महिलाओं का सहयोग बबिता को मिलने लगा। कारवां बनने लगा और बढ़ते कारवां के साथ बबिता का हौसला भी चट्टान की तरह अडिग होता गया। चट्टान जैसे हौसले के साथ बबिता आगे बढ़ती रहीं लेकिन गांव के पुरुषों को साथ लाने के लिए उनको कई इम्तिहानों से गुजरना पड़ा।
चार भाई बहनों में सबसे छोटी बबिता अपनी सफलता का श्रेय गांववालों के साथ ही अपने माता-पिता को भी देती हैं। माता-पिता की बात करते हुए भावुक बबिता कहती हैं कि वो अपने मां-बाप के हौसले को सलाम करती हैं, जिन्होंने शुरुआती विरोधों के बाद भी अपनी बेटी पर भरोसा बनाए रखा और हर कदम पर उनके साथ खड़े रहे।
बबिता कहती हैं कि अगर लोग इरादा कर लें तो समाज, गांव, शहर, देश और प्रदेश की सूरत बदल सकते हैं…बबिता का कहना है कि वो आने वाली पीढ़ियों के लिए तालाब और पानी सहेजने का काम पूरे जीवन करना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने सोचा है कि वो ऐसा जीवन साथी चुनेंगी जो उनके इस काम में उनका हाथ बटाए और उनके साथ कदम से कदम मिलाकर समाजसेवा करेगा।
बबिता राजपूत का सपना है कि वो पूरी जिंदगी देश और समाज के लिए काम करती रहें। वो कहती हैं कि सभी को आत्मनिर्भर बनने के बारे में सोचना चाहिए। बबिता कहती हैं कि अगर महिलाएं आत्मनिर्भर हो जाएंगी तो समाज और देश की तासीर और तकदीर दोनों बदल सकती हैं। बबिता समाज के साथ ही उन महिलाओं के लिए भी किसी ऑइकन से कम नहीं हैं जो सामाजिक और घरेलू बंधनों के फेर में फंसकर अपने सपनों और हौसलों को उड़ान नहीं दे पातीं। पॉजिटिव इंडिया बबिता के हौसले को सलाम करता है।
पॉजिटिव इंडिया की कोशिश हमेशा आपको हिंदुस्तान की उन गुमनाम हस्तियों से मिलाने की रही है जिन्होंने अपने फितूर से बदलाव को एक नई दिशा दी हो और समाज के सामने संभावनाओं की नई राह खोली हो।
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