‘जरा सी देर को रुकता तो है सफर लेकिन किसी के जाने से कब जिंदगी ठहरती है’…सुनने में फिल्मी लगने वाली ये लाइन इस निष्ठुर जीवन की एक कड़वी सच्चाई है, जिसका सामना कभी न कभी सबको करना पड़ता है। लेकिन मध्यप्रदेश के राजगढ़ के ब्यावरा की रहने वाली तान्या डागा ने महज 25 साल की उम्र में इस हकीकत को जीकर देखा। एक हादसे में अपना पैर गंवाने और फिर बीच सफर में पिता को खोने के बाद तान्या को ‘Life must go on’ का फलसफा याद आया और उन्होंने एक पैर से 3800 KM साइकिल चलाकर एक नया इतिहास रच दिया।
अदम्य साहस और हैरत अंगेज कारनामे की ये कहानी है मध्यप्रदेश की बेटी तान्या डागा की। जिसने अपने जुनून, फितूर और कुछ कर दिखाने का जज्बा लिए नया कीर्तिमान रचा और एक पैर से साइकिल चलाकर 43 दिनों में जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी का लंबा सफर तय किया। तान्या ने 19 नवंबर 2020 को अपनी यात्रा शुरू की थी और 31 दिसंबर 2020 को यानी 43 दिन में इस यात्रा को पूरा किया। ऐसा कारनामा करने वाली तान्या देश की पहली महिला पैरा-साइकिलिस्ट बन गई हैं।
तान्या, अभियान इन्फिनिटी राइड K2K 2020 का एक हिस्सा थीं। 30 सदस्यीय टीम में तान्या अकेली महिला पैरा साइकलिस्ट थीं। पूरे देश में पैरा स्पोर्ट्स के बारे में जागरुकता फैलाने और फंड जुटाने के मकसद से इस मिशन का आयोजन आदित्य मेहता फाउंडेशन और बीएसएफ ने किया था।
जिद्द, जुनून और जज्बा…अब यही पहचान है तान्या की। बिना रुके इतनी लंबी यात्रा करने वाली तान्या एक हादसे में अपना एक पैर गंवा चुकी हैं लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और ना ही कभी अपना हौंसला कम होने दिया। तान्या ने अपने एक बचे हुए पैर से साइकिल चलाई और कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर तय कर खुद को साबित किया।
सड़क हादसे में अपना पैर गंवाने के बाद तान्या तकरीबन 6 महीने तक बिस्तर पर ही थी। तान्या के मुताबिक ये उनकी जिंदगी का सबसे मुश्किल वक्त था। वो अपनी जिंदगी से निराश-हताश होकर पूरी तरह हार मान चुकी थीं। इस दौरान उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाया और खुद को साबित करने के लिए प्रोत्साहित किया। पॉजिटिव इंडिया (www.pozitiveindia.com) से बातचीत के दौरान तान्या कहती हैं कि उन्होंने अपने पिता की एक बात को अच्छे से याद कर लिया था कि शरीर का एक हिस्सा खो देने भर से जिंदगी कभी नहीं रुक सकती और हम अपना लक्ष्य अधूरा नहीं छोड़ सकते।
वक्त के साथ तान्या भी अपने साथ हुए बेदर्द हादसे से धीरे-धीरे रिकवर होने लगीं। अब तक वो असलियत से अच्छे से वाकिफ हो खुद को भी समझा चुकीं थी कि उन्हें अब एक पैर से ही इस दुनिया में खड़े होना है। लिहाजा तान्या ने आदित्य मेहता फाउंडेशन से जुड़ने का फैसला लिया और एक पैर से साइक्लिंग शुरु की।
गुजरे वक्त के कड़वों अनुभवों को याद करते हुए तान्या कहती हैं कि उनकी जिंदगी में चुनौतियां कम होने की बजाए लगातार बढ़ती जा रही थी। साईकिल चलाते-चलाते कई बार पैर से खून बहने लगता। सबसे पहले तान्या ने 100 KM साइक्लिंग की, जिसमें वो टॉप टेन में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहीं। इसी दौरान बीएसएफ द्वारा कश्मीर से कन्याकुमारी तक इन्फिनिटी राइट साइक्लिंग का आयोजन किया गया। 30 साइक्लिस्ट में से 9 पैरा साइक्लिस्ट थे। वहीं, एक पैर से इतनी लंबी यात्रा करने पर तान्या को बीएसएफ की तरफ से सम्मानित भी किया गया।
तान्या ने 19 नवंबर 2020 को अपने अभियान की शुरूआत की थी। लेकिन महीने भर बाद ही उन्हें एक नए इम्तिहान से गुजरना पड़ा। दरअसल यात्रा के दौरान तान्या बेंगलुरू पहुंची ही थी तभी 18 दिसंबर को उनके पिता के निधन की खबर ने उन्हें एक बार फिर पूरी तरह तोड़ दिया और अभियान को बीच में ही छोड़कर वो 19 दिसंबर को अपने घर ब्यावरा पहुंची।
इस घटना ने तान्या को गहरा सदमा तो पहुंचाया लेकिन उनके हौंसले को नहीं हरा सकी। तान्या, पिता की मौत के 3 दिन बाद 22 दिसंबर को एक बार फिर अपने सफर को मंजिल तक पहुंचाने के लिए साइक्लिंग पर निकल गईं। साइकिल चलाते-चलाते वो उल्टियां करने लगती, कई बार गिर भी जाती लेकिन अपनी यात्रा अधूरी नहीं छोड़ी और मंजिल पर पहुंचकर ही दम लिया।
अपनी इस कामयाबी को लेकर तान्या कहती हैं उनके पिता का सपना था कि मैं इस मिशन को पूरा करूं। मैं उनके सपने को पूरा करना चाहती थीं। मैं उनके गुजरने के बाद पूरी तरह से बिखर गई थी लेकिन उनके सपने को जीने के लिए वापस अभियान में शामिल हुई। तान्या कहती हैं कि वो आगे भी अपने जैसे पैरा साइक्लिस्ट के लिए काम करती रहेंगी और लोगों को यकीन दिलाएंगी कि हर इंसान जिंदगी में कुछ भी हासिल कर सकता है।
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