इस दुनिया में जिंदगी के मायने सभी के लिए अलग-अलग होते हैं। कोई जिंदगी में शोहरत पाना चाहता है, किसी को रुतबा अच्छा लगता है तो कोई दौलत जुटाने में पूरी जिंदगी बिता देता है। कमोबेश यहां हर कोई सिर्फ अपने लिए जीता है, अपनी ही जिंदगी में व्यस्त रहता है। लेकिन आज की इसी स्वार्थी दुनिया में चंद ऐसे भी लोग हैं जो दूसरों के दर्द को अपना समझते हैं, परायों को अपना बनाते हैं और निस्वार्थ भाव से दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने में पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी दमदार शख्सियत की है, जो लाइम लाइट की दुनिया से दूर बड़ी खामोशी के साथ इंसानियत और सामाजिक सरोकारों की नई इबारत लिख रही हैं।
तेज रफ्तार से भागती आज की हाईटेक दुनिया में अगर कोई सबसे महंगी चीज है, तो वो है इंसानियत। जो मौजूदा वक्त में लगभग विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। इंसान का इंसान से विश्वास उठ रहा है। भाई-भाई का दुश्मन बन रहा है। ऐसे में समाज के असहाय और वंचित वर्ग के बारे में सोचने और उनकी सुध लेने का समय ही किसी के पास नहीं है। लेकिन मैं एक ऐसी शख्सियत को जरूर जानता हूं जो आज भी हजारों सूनी आखों का सपना साकार कर रही हैं।
पॉजिटिव इंडिया से बात करते हुए डेज़ी कहती हैं कि उनके मन में हमेशा यह बात चलती रहती थी कि देश की महिलाओं, खासकर ग्रामीण अंचलों और पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाली महिलाओं को कैसे खुद के पैर पर खड़ा किया जाए ताकि महिलाएं किसी के आगे हाथ न फैलाएं। उनके पास कोई न कोई हुनर जरूर हो ताकि जरूरत पडऩे पर वो इसके जरिए पैसे कमा सकें। लेकिन ये भी एक सच है कि भारत में ज्यादातर महिलाएं अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं जिसके कारण वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी नहीं हैं। डेज़ी का मानना है कि एक महिला का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना उसके परिवार को तो फायदा पहुंचाता ही है साथ ही यह उस महिला में आत्मविश्वास को भी भर देता है। कहीं न कहीं यह परिवार के साथ-साथ समाज और देश के लिए भी अच्छा संकेत है।
शून्य से शिखर तक पहुंचने के अपने सफर को लेकर डेज़ी कहती हैं कि शादी के बाद जब वो अपने ससुराल अलीगढ़ पहुंची तो उन्हें महसूस हुआ कि जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी महिलाओं को उतनी मजदूरी नहीं मिलती,जिससे वो सम्मान जनक जीवन व्यतीत कर सकें। लिहाजा उन्होंने तय किया कि कुछ ऐसा काम किया जाए जिससे समाज की मुख्य धारा से कट चुकी इन महिलाओं की जिंदगी में बदलाव आए और वो बुरे वक्त में आर्थिक तौर पर भी अपने परिवार को संबल दे पाएं। अपनी इसी सोच को हकीकत की जमीन पर सच साबित करने के लिए डेज़ी ने आज से ठीक 12 साल पहले अलीगढ़ में ‘कबीर इंटरनेशनल’ नाम से गारमेंट्स का काम शुरू किया और सिर्फ गरीब, विधवा, बुजुर्ग,तलाकशुदा और उपेक्षित महिलाओं को काम पर रखा।
डेज़ी कहती हैं एजुकेशन देखकर तो सभी नौकरी देते हैं लेकिन हालात के मारे असहाय और अशिक्षित लोगों के बारे में कौन सोचेगा? कौन उनका जीवन स्तर सुधारेगा और कौन उनको गरीबी और लाचारी के दलदल से बाहर निकाल अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएगा? ऐसे कई सवाल थे जो डेजी को परेशान करते थे। जिसके बाद डेज़ी ने फैसला लिया कि वो अपने कपड़े की फैक्ट्री में डिग्रियों की बजाए बिना पढ़े-लिखे और जरूरतमंदों को ही रोजगार देंगी ताकि ऐसे लोग भी आर्थिक रूप से मजबूत होकर सम्मान की जिंंदगी जी सकें।
डेज़ी सिर्फ महिलाओं की ही नहीं बल्कि जिंदगी से निराश हर उस शख्स की जिंदगी को संवारने का काम कर रही हैं, जो एक हादसे या शारीरिक कमी के चलते जीने की आस छोड़ देते हैं। डेज़ी पहले ऐसे लोगों को मोटिवेट करती हैं और फिर ट्रेनिंग देने के बाद उन्हें अच्छी सैलरी देकर काम पर रखती हैं ताकि ऐसे लोगों का आत्मविश्वास बढ़ सके और वापस से मुख्यधारा से जुड़ सकें।
ऐसे लोगों को काम पर रखने से पहले वाकायदा एक हफ्ते का प्रशिक्षण दिया जाता है और काम करने के तौर-तरीके सिखाए जाते हैं। इतना ही नहीं भोपाल के कानूगांव की हजारों महिलाओं को डेज़ी घर बैठे काम कर पैसे कमाने का मौका भी देती हैं। इसके लिए उन महिलाओं को कपड़े सिलने की मशीन से लेकर सभी जरूरी सामग्री भी डेज़ी ही मुहैया कराती हैं।
डेज़ी कारोबार में मिली सफलता का सारा श्रेय अपने शौहर सैय्यद हसन कबीर को देते हुए कहती हैं कि उनके बिना इस सफर में एक कदम बढ़ाना भी आसान नहीं था। कारोबार की शुरूआत में कई बार ऐसा वक्त आया जब समय पर शिपमेंट न होने से लेकर तमाम तरीकों की चुनौतियों से उन्हें दो चार होना पड़ा। ऐसे मुश्किल समय में भी पति हर पल मेरे साथ मजबूती से खड़े रहे, मेरा हौंसला बढ़ाया और आगे बढ़ने का साहस देते हुए कहा कि जिंदगी में हल, हर समस्या का है।
ये डेज़ी की पॉजिटिव सोच और मेहनत का ही नतीजा है कि बारह साल पहले मात्र बीस हजार रुपए के निवेश से छोटे स्तर पर शुरू किया कपड़े बनाने का कारोबार आज पूरे देश में फैल चुका है। अलीगढ़ के अलावा भोपाल में 25, दिल्ली में 5, बुलंद शहर, अमरौली और हरदोई में भी कबीरा इंटरनेशनल और कबीरा गारमेंट्स की ब्रांच (कारखाने) हैं। इतना ही नहीं आज वी मार्ट और विशाल मेगा मार्ट जैसी देश की नामी-गिरामी कंपनिया डेज़ी की क्लाइंट है। डेज़ी अपने कारखाने में बच्चों से लेकर महिलाओं और पुरुषों के अलग-अलग सेगमेंट के कपड़े तैयार की इन कंपनियों में सप्लाई करती हैं। सिर्फ अलीगढ़ में हीं डेज़ी ने हजार से ज्यादा जरूरतमंदों को रोजगार और जिंदगी का सहारा दे रखा है।
दर्द से भरी और हताशा से घिरी जिंदगी में मुस्कान घोलना कोई आसान काम नहीं है लेकिन मजबूत इरादों वाली डेज़ी कबीर इस कठिन काम को भी बेहद आसानी से कर रही हैं। असहाय और आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा उठाकर डेज़ी ने समाज को एक नया रास्ता दिखाया है। डेज़ी ने आत्म-निर्भरता के जो बीज बोए हैं, उनसे आज दूसरों के हिस्से में रोशनी आ रही है। डेज़ी कहती हैं उन्हें यह देखकर बेहद खुशी मिलती है जब एक कमजोर वर्ग की अशिक्षित महिला अपने प्रयास और मेहनत के बलबूते न सिर्फ खुद को बल्कि अपने परिवार को भी मजबूती दे रही है। आज उन महिलाओं के बच्चे अच्छी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं।
डेज़ी की यात्रा यहीं नहीं थमी, वो लगातार महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होकर स्वाभिमान और सम्मान के साथ जीना सिखाने के अभियान को जारी रखे हुए हैं। डेज़ी का कहना है कि नारी अपने सम्मान के साथ वह सब कुछ कर सकती है जो उसे समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए जरूरी है। बस जरूरत है उनके हुनर को तराशने और सही रास्ता दिखाने की।
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