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कभी गली-गली जाकर मांगते थे भीख, आज हैं 50 करोड़ की कंपनी के मालिक

mayank_admin 2 years ago
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कौन कहता है कि कामयाबी मोहताज है अमीरों के महफिल की ! जरा सर पे कफन जुनून का तो बांध, वो भी सजदा करेगी तेरे सर जमीं पे। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी अद्भुत शख्सियत की कहानी है, जिसने अपनी मेहनत, शिद्दत और लगन के बूते कामयाबी की तमाम पुरानी परिभाषाएं बदलकर एक नई मिसाल कायम की और असल जिंदगी में भिखारी से करोड़पति बनकर अपनी नियति खुद लिखी।

एक इंसान जो कभी घर-घर जाकर भीख मांगता था, आज वो पचास करोड़ की कंपनी का मालिक है। जो इंसान कभी खुद दाने-दाने को मोहताज था, आज उसकी कंपनी की वजह से 200 से ज्यादा घरों का चूल्हा जल रहा है। जी हां फिल्मी सी लगने वाली असल जिंदगी की ये अनसुनी कहानी है बेंगलुरू से सटे गोपासन्द्र गांव से ताल्लुक रखने वाले रेणुका अराध्य की। रेणुका का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता गांव के ही एक छोटे से मंदिर में पुजारी थे, जो दान-पुण्य से मिले पैसों से अपने परिवार का पेट भरते थे। घर की हालात इतनी खराब थी कि रेणुका भी गांव की गलियों में घर-घर जाकर भीख मांगते थे, यहां तक कि उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए भी दूसरों के घर नौकर तक का काम करना पड़ा।

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धीरे-धीरे हालात बद से बद्तर होने लगे और रेणुका के पिता ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए चिकपेट के एक आश्रम में भेज दिया। जहां उन्हें वेद और संस्कृत की पढ़ाई करनी पड़ती थी। आश्रम में रेणुका को सिर्फ दो वक्त का ही भोजन मिलता था एक सुबह 8 बजे और एक रात को 8 बजे। जिसके चलते वो अक्सर भूखे रह जाते और भूखे रहने के कारण पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दे पाते। इन सबका नतीजा ये हुआ कि वो दसवीं की परीक्षा में फेल हो गए और उन्हें वापस घर लौटना पड़ा। घर वापस लौटते ही रेणुका पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पहले पिता का देहांत और फिर बड़े भाई के घर छोड़ देने से मां-बहन समेत पूरे घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। लिहाजा कम्र उम्र में ही आजीविका के लिए उनका संघर्ष शुरू हो गया। जहां उन्हें कई मुश्किलों-चुनातियों का सामना करना पड़ा, गहरे अवसाद के दौर से गुजरना पड़ा। संघर्ष के इस कटीले रास्ते पर तरह-तरह के काम करने पड़े। कभी कारखाने में दिहाड़ी मजदूरी, कभी चौकीदार तो कभी नारियल के पेड़ पर चढ़ने वाले माली का काम करना पड़ा। बावजूद इसके रेणुका कभी हौंसला नहीं हारे और जुटे रहे काली रात को भोर में बदलने के लिए।रेणुका को जिंदगी में आगे बढ़ना चाहते थे इसलिए उन्होनें दूसरों की चाकरी करने की बजाए खुद का कुछ काम करने का निश्चय किया। सबसे पहले उन्होंने घर-घर जाकर बैग और सूटकेस के कवर सिलने का काम शुरू किया, जिसमें उन्हें हजारों का घाटा सहना पड़ा। इसके बाद सब कुछ छोड़कर उन्होंने ड्राइवर बनने का डिसीजन लिया लेकिन खाली जेब यहां भी राह में रोड़ा बन गई। यहां तक कि रेणुका को ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने के लिए अपनी शादी की अंगूठी को गिरवी रखना पड़ा। 

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ड्राइवर का काम शुरू करने के बाद रेणुका को लगा कि शायद अब उनकी जिंदगी की गाड़ी भी पटरी पर आ जाएगी लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि चुनौतियों और उनके बीच चोली-दामन का रिश्ता था। तभी तो किस्मत ने उन्हें एक और जोर का झटका दिया और गाड़ी में ठोकर लग जाने की वजह से उन्हें कुछ ही घंटों में अपनी पहली नौकरी से हाथ धोना पड़ा। हालांकि उन्हें एक दूसरे टैक्सी ऑपरेटर ने अपने यहां काम करने का एक और मौका दे दिया। फिर क्या था रेणुका ने ठान लिया कि अब चाहे जो हो जाए वो फिर से चौकीदार की नौकरी नहीं करेंगे औऱ एक अच्छे ड्राइवर बनकर रहेंगे।रेणुका हमेशा अपने सवारी और यात्रियों का ध्यान रखते जिसके चलते उन पर लोगों का भरोसा बढ़ता गया और एक टैक्सी चालक के रूप में उनकी डिमांड बढ़ती गई।

रेणुका सवारी गाड़ी चलाने के साथ ही अस्पताल से मरीजों के शव को उनके घरों तक भी पहुंचाने का काम करते थे। एक इंटरव्यू के दौरान रेणुका कहते हैं कि शवों को घर तक पहुंचाने और यात्रियों को तीर्थ ले जाने के काम से उन्हें एक बहुत बड़ी सीख मिली कि जीवन और मृत्यू एक लंबी यात्रा के ही दो छोर हैं और अगर आपको जिंदगी में कामयाब होना है तो छोटे-छोटे से मौके को भी जाने नहीं दें।

चार साल तक एक ही कंपनी में काम करने के बाद रेणुका ने दूसरी ट्रेवल कंपनी ज्वाइन की जहां उन्हें विदेशी सैलानियों को घुमाने का मौका मिलता और उन यात्रियों से अच्छी टिप भी मिलती। टिप पर मिले पैसे, कुछ सालों की बचत और लोन की मदद से रेणुका ने अपनी पहली  कार ली और इसके डेढ़ साल बाद दूसरी कार भी खरीद ली। दो सालों तक अपनी कार को एक लोकल टैक्सी कंपनी में अटैच करने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि ये उनकी मंजिल नहीं है, उन्हें तो खुद की एक ट्रैवल/ट्रांसपोर्ट कंपनी बनानी है।इसी दौरान रेणुका को पता चला कि इंडियन सिटी टैक्सी नाम की एक कंपनी बिकने वाली है। साल 2006 में उन्होंने इस कंपनी को साढ़े 6 लाख रूपए में खरीद लिया हालांकि इसके लिए उन्हें अपनी सभी गाड़ियों को बेंचना पड़ा। रेणुका ने कंपनी का नाम बदलकर प्रवासी कैब रखा और इसके साथ ही वो निकल पड़े मेहनत से मिली सफलता के एक अंतहीन सफर पर।

सबसे पहले अमेजन इंडिया ने प्रमोशन के लिए रेणुका की कंपनी को चुना। इसके बाद रेणुका कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए जी-जान से जुट गए। धीरे-धीरे कई नामचीन और बड़े ब्रांड उनके ग्राहक बनते चले गए जैसे वालमार्ट, अकामाई, जनरल मोटर्स आदि। रेणुका ने इसके बाद जिंदगी में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफलता की नई-नई परिभाषा गढ़ते गए। बावजूद इसके  कुछ नया सीखने और जी तोड़ मेहनत की उनकी प्रवृत्ति कभी कम नहीं हुई। यही वजह है कि उनकी कंपनी उस वक्त भी लगातार मजबूत होती गई जब ओला और उबेर के आ जाने से कई टैक्सी कंपनियां बंद हो गईं। आज उनकी कंपनी की 1100 से ज्यादा कारें चलती हैं।रेणुका आज तीन स्टार्टअप के डायरेक्टर हैं और अगले तीन सालों में कंपनी का टर्नओवर बढ़ाकर सौ करोड़ करने की तैयारी में हैं ताकि आईपीओ की ओऱ कदम बढ़ा सकें। कौन सोच सकता था कि छोटे में गली-गली जाकर भीख मांगने वाला बच्चा जो 10वीं क्लास भी पास नहीं कर सका, आज वो 50 करोड़ की कंपनी का मालिक है।

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