साल 2006 में आई नागेश कुकूनूर की फिल्म डोर के एक गाने “ये हौंसला कैसे झुके” ने आम दर्शकों की तरह मुझे भी काफी प्रभावित किया था। मैं यह तो नहीं कह सकता कि डायरेक्टर नागेश कुकुनूर ने ये गाना IAS अनुराग वर्मा के जीवन संघर्ष से प्रभावित होकर ही लिखा होगा, मगर ये जरूर कह सकता हूं उन्होंने ये गीत अनुराग जैसे असल जिंदगी के नायकों के जीवन संघर्ष से प्रभावित होकर ही गढ़ा होगा।
कठनाईयां हमारी जिंदगी का एक कड़वा सच हैं। कोई इस बात को समझकर दुनिया से लोहा लेता है तो कोई पूरी जिंदगी इस बात का रोना रोता है। जिंदगी के हर मोड़ पर मिलने वाली मुसीबतों को देखने का हर किसी का अपना एक अलग नजरिया होता है। कई लोग जीवन के इस टेढ़े-मेढ़े रास्ते में आनी वाली चुनौतियों की चट्टानों के सामने टूटकर बिखर जाते हैं तो कुछ इन चुनौतियों से भिड़कर दूसरों के लिए एक नया मार्ग खोल जाते हैं। IAS अनुराग वर्मा की कहानी भी संघर्ष से टूटकर बिखरने की बजाय, संघर्ष से लड़कर निखरने की कहानी है। ये कामयाबी की वो कहानी है जिसका ताना-बाना कड़ी मेहनत, बड़ी शिद्दत और लगन से बुना गया है। ये एक छोटे से कस्बे के बेहद साधारण परिवार में जन्मे एक आम शख्स की असाधारण सफलता की असल और अनसुनी कहानी है।
आईएएस बनने के पीछे हर युवा की अपनी कोई ना कोई कहानी होती है, जब कोई लम्हा किसी के भीतर कुछ कर गुजरने की चिंगारी जला देता है। 2012 बैच के आईएएस और वर्तमान में मुरैना कलेक्टर अनुराग वर्मा की कहानी भी इसी की एक बानगी है। पिता का सपना था बेटा बड़ा होकर आईएस बने। सिविल सर्विस जैसी परीक्षा की तैयारी कराने के लिए पिता के पास पर्याप्त पैसे तो नहीं थे लेकिन उनके हौंसलों में कोई कमी नहीं थी, तो बेटे ने भी बेहद खराब आर्थिक हालातों के बीच अथक मेहनत और सतत संघर्ष से अपना रास्ता खुद बनाया और एक बड़ा मुकाम हासिल किया।
ज़िंदगी में कुछ भी बेहतर करने के लिए कभी भाषा रुकावट नहीं बनती, वो तो हमारे समाज ने खुद को भाषाओं की बेड़ियों में बांध रखा है। ये वहीं बेड़ियां हैं, जो कभी-कभी देश को दो हिस्सों में बांटती हैं, एक हिस्सा अंग्रेजी और दूसरा हिस्सा हिंदी। लेकिन अनुराग गर्व से कहते हैं कि उनकी पहली से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई हिंदी मीडियम के सरकारी स्कूल से हुई है।
उत्तरप्रदेश के रायबरेली में जन्मे अनुराग वर्मा लोवर मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। पिता शुगर मिल में बेहद कम सैलरी में काम करते थे, जहां उन्हें सैलरी भी सिर्फ चार महीने ही मिलती थी। लिहाजा अनुराग को हिंदी मीडियम के सरकारी स्कूल और कालेज से ही अपनी पूरी पढ़ाई करनी पड़ी। जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई को लेकर अक्सर सवालिया निशान लगता रहा है, एक बड़ा वर्ग जिन सरकारी स्कूलों को हमेशा हेय की नजर से देखता है, अनुराग उसी हिंदी मीडियम के स्कूल से निकलकर एक आईएएस अफसर बनते हैं और साबित करते हैं कि सरकारी स्कूल में पढ़कर भी जिंदगी में श्रेष्ठ मुकाम पाया जा सकता है। आज उनकी कामयाबी सरकारी स्कूलों को लेकर चली आ रही नकारात्मक परिपाटी को तोड़कर मुश्किलों से जूझते हर एक नौजवान को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही है।
आर्थिक तंगी के चलते अनुराग ने बिना किसी कोचिंग और संसाधन के ही अपने सपनों की कठिन डगर पर चलने का फैसला लिया। अनुराग पूरी शिद्दत के साथ तैयारी में जुटे ही थे तभी यूपीएससी की परीक्षा से ठीक 6 महीने पहले पिता के निधन की खबर ने उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया। लेकिन वो हर हाल में एक आईएएस अधिकारी बनकर अपने पिता का सपना पूरा करना चाहते थे। आखिरकार उनकी मेहनत भी रंग लाई और तीसरे अटेम्प्ट में वो क्वालिफाई करने में कामयाब रहे।
एक तिनके से शुरू करके पूरा का पूरा सपनों का शहर बना लेना इतना आसान नहीं होता। अनुराग के शून्य से शिखर तक पहुंचने का सफर भी कभी इतना आसान नहीं रहा। पहले आर्थिक चुनौती और फिर बीच सफर में ही सिर से पिता का साया हट जाना। दुख और अवसाद की लंबी रात, हर तरफ मुश्किलें और हार का भय। चुनौतियां मुंह बाए अपने विकराल रूप में खड़ी रहीं लेकिन इन सबसे बेखबर वो अपने हुनर और अदम्य साहस के साथ जुटे रहे काली रात को भोर में बदलने के लिए। कई बार ऐसा लगा कि नहीं, शायद अब और नहीं मगर तभी उन्हीं अंधेरों के बीच से जिंदगी ने कहा कि देखो उजास हो रहा है।
दुनिया में ज्यादातर लोग विपरीत परिस्थितियों के सामने टूट जाते हैं, लेकिन अनुराग तो मानो चुनौतियों से लड़ने के लिए ही पैदा हुए थे। जिंदगी के हर मोड़ पर, कदम-कदम पर उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जब यूपीएससी में चयन के बाद अनुराग का एमपी कैडर हुआ तो उनके बड़े भाई घरवालों की देखरेख के लिए दिल्ली से जॉब छोड़कर वापस रायबरेली आ गए। लेकिन 2015 में वो एक हादसे का शिकार हो गए और इस घटना ने एक बार फिर अनुराग को अंदर से हिला कर रख दिया। लेकिन अनुराग ने तमाम संघर्षों-मुसीबतों के बीच कभी अपना हौंसला कम नहीं होने दिया।
किसी आईएएस अफसर का जिक्र होते ही मन में छवि उभरती है सुख-सुविधाओं, रौब-रसूख और तीखे तेवर वाले एक कड़क अफसर की। आज देश के एक औसत युवा के मन में झांकें तो आईएएस अफसर होने का मतलब है, करीब-करीब बादशाह हो जाना। एक ऐसा बादशाह जिसके सामने पूरा प्रशासनिक अमला सिर झुकाए, हाथ बांधे खड़ा दिखाई देता है। कमोबेश ऐसा है भी, लेकिन जरूरी नहीं कि सभी आईएएस अफसर ऐसे ही हों, ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां आईएएस अफसरों ने खुद को सही मायनों में लोकसेवक समझा और अपने काम करने के अंदाज से सबको चौंका दिया। वो सारा तामझाम छोड़कर खुद आम आदमी के बीच पहुंचते हैं। उनके लिए पद कोई ऐशो आराम का साधन नहीं बल्कि समाज सेवा का एक बेहतर माध्यम मात्र है।
हाथों की लकीर बदलकर अपनी तकदीर खुद लिखने वाले अनुराग वर्माजी की आईएएस बनने की कहानी तो प्रेरणादायक है ही लेकिन एक अधिकारी के रूप में सेवा की कहानी और भी प्रेरणादायक और अनुकरणीय है।
यंग, पाजिटिव और इनोवेटिव अफसर अनुराग वर्मा की सादगी ने भी लोगों की इस सोच को बदल दिया है। ऊंचा ओहदा मिलने के बाद भी उनके मिजाज में गजब की सादगी है। वो जितने समय के पाबंद, उतनी ही कर्तव्य के प्रति निष्ठा भी, लेकिन सादगी ऐसी की हर कोई कह देता है कलेक्टर हो तो ऐसा। कलेक्टर के पद पर रहते हुए इन्होंने आम जनता और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की दूरी को भी खत्म कर दिया है। आम जनता बेझिझक इनके पास आकर अपनी समस्याएं बताती है। कई बार इनकी सादगी और सामान्य रहन-सहन को देखकर ऐसे नजारे भी देखने को मिले, जब लोगों को यकीन नहीं हुआ कि हमारे बीच भीड़ में मौजूद इंसान कोई आम इंसान नही, बल्कि जिले के कप्तान हैं। अनुरागजी एक अच्छे अधिकारी के साथ-साथ मिलनसार इंसान भी हैं और ऐसे अधिकारी कम मिलते हैं। शायद यही वजह है कि वो आम जनता के बीच खासा लोकप्रिय भी हैं।
मुरैना कलेक्टर से पहले आईएएस अनुराग हरदा कलेक्टर, सागर नगर निगम कमिश्नर, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में उप सचिव, मुरैना जिला पंचायत के सीईओ, छतरपुर एसडीएम और सिंगरौली में कलेक्टर के पद पर तैनात रह चुके हैं। फील्ड पोस्टिंग के दौरान अपने काम में पारदर्शिता और सख्ती को लेकर चर्चा में रहे हैं।
हरदा में कलेक्टर रहते हुए अनुराग वर्माजी ने प्रकृति को सहेजने और संवारने के मकसद से पर्यावरण दिवस के मौके पर ‘वृक्ष बैंक’ की अनूठी पहल की। जिसके तहत जिले की सभी पंचायतों और गांवों में ‘वृक्ष बैंक’ की स्थापना सुनिश्चित की गई। वृक्ष बैंक के जरिए जहां वातावरण तो शुद्ध होगा ही वहीं वृक्षारोपण के लिए पौधे भी सस्ते मिलेंगे और पंचायत को पौधों के लिए किसी अन्य एजेंसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इतना हीं कोरोना महामारी के मुश्किल वक्त में भी हरदा कलेक्टर रहते हुए अनुरागजी ने जिले की कमान बखूबी संभाली। उनके कुशल नेतृत्व में प्रशासनिक टीम की तत्परता और दूरदर्शिता के चलते ये महामारी जिले में अपने पैर नहीं पसार पाई। इस दौरान आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए अनुरागजी 60 दिनों तक अपने घर-परिवार से दूर होकर मैदान में डंटे रहे और 18-18 घंटे काम किया।
सागर में नगर निगम कमिश्नर रहते हुए अनुराग वर्माजी ने स्वच्छता को लेकर कई सराहनीय कार्य किए। उनके कार्यकाल में सागर दो दफा स्वच्छता सर्वेक्षण में राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर रैंकिंग लाने में कामयाब रहा। वहीं स्मार्ट सिटी, सीवर प्रोजेक्ट, अमृत प्रोजेक्ट, एडीबी प्रोजेक्ट, पीएम आवास प्रोजेक्ट, राजघाट मरम्मत और एप्रिन निर्माण सहित कई बड़े-बड़े प्रोजेक्ट अनुरागजी के कार्यकाल में शुरू हुए। अनुराग प्रदेश में लगातार दो साल तक सबसे लंबे समय तक बतौर आयुक्त पदस्थ रहने वाले पहले आईएएस अधिकारी हैं।
आईएएस अनुराग वर्मा जैसे लोग प्रेरणा हैं उन लोगों के लिए जिनके सपने तो बड़े हैं, लेकिन उनके हिस्से का आकाश उन्हें विरासत में नहीं मिलता बल्कि खुद गढ़ना होता है। यही वजह है कि उनका यूपीएससी में चयनित होना और आईएएस बनना आज भी हिंदी अभ्यर्थियों में आत्मविश्वास भर रहा है। अनुरागजी आज जब अपने संघर्ष की इन सुनहरी यादों की तरफ मुड़कर देखते हैं तो उन्हें लगता है कि काफी कुछ बदल गया है…बहुत कुछ ऐसा भी है जो बिल्कुल नहीं बदला…और इच्छा है कि कभी बदले भी न, ‘निरंतर आगे बढ़ने और कुछ अच्छा करते रहने की इच्छा और नई चुनौतियों से जूझने का जज्बा।’
बिना किसी शान-ओ-शौकत में पले, बिना कोचिंग लिए एक मामूली परिवार से अपनी जीवन यात्रा शुरू कर आईएएस बन चुके अनुराग आज अगर अपने दौर के नौजवानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं, तो उनकी कामयाबी की मिसाल सिर्फ उनके जीवन का उजाला नहीं, बल्कि उनके हिस्से के जीवन का सबक पूरी युवा पीढ़ी की भी राह को रोशन कर रहा है। इसीलिए वह आज के नौजवानों को ये सीख देना भी अपनी जिम्मेदारी मान रहे हैं कि ‘वे हिम्मत न हारें क्योंकि उनकी मंज़िल उनका इंतज़ार कर रही है।
पॉजिटिव इंडिया के इतने सालों के सफर में मैने संघर्ष और सफलता की ना जाने कितनी कहानियां लिखीं, लेकिन शायद कामयाबी की हर कहानी अमिट और अमर नहीं होती। कई कहानियों की प्रासंगिकता और सार्थकता समय के साथ खत्म हो जाती है। ऐसी कहानियां कम ही होती हैं जिनकी उम्र बेहद लंबी होती हैं और आईएएस अनुराग जी कहानी भी ऐसी ही एक कहानी है जो लंबे समय तक बुरे वक्त में हर नौजवान को आगे बढ़ने का हौंसला देती रहेगी। संघर्षों से भरी ये जीवनगाथा हर उस युवा को प्रेरित करेगी, जो अपनी मेहनत और हुनर के दम पर जिंदगी में कुछ करना और पाना चाहता है। इसलिए ये जरूरी है कि जिंदगी के हर मोड़ पर पड़ने वाली मुश्किलों को अपने जुनून के पराक्रम से परास्त करने वाले अनुराग के जीवन-संघर्ष की कहानी आज देश के कोने-कोने तक फैलाई जानी चाहिए, हर एक बच्चे को पढ़ाना चाहिए, हर नौजवान को समझाना चाहिए, ताकि मुसीबतों से डरकर कभी कोई जिंदगी का साथ न छोड़े, बल्कि चुनौतियों से लड़ना सीखे और समय के आगे घुटने टेकने की बजाए डटना सीखे।
पॉजिटिव इंडिया की कोशिश हमेशा आपको हिंदुस्तान की उन गुमनाम हस्तियों से मिलाने की रही है जिन्होंने अपने नए तरीके से बदलाव को एक नई दिशा दी हो और समाज के सामने संभावनाओं की नई राह खोली हो।
हर रोज आपके आसपास सोशल मीडिया पर नकारात्मक खबरें और उत्तेजना फैलाने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच हम आप तक समाज के ऐसे ही असल नायक/नायिकाओं की Positive, Inspiring और दिलचस्प कहानियां पहुंचाएंगे, जो बेफिजूल के शोर-शराबे के बीच आपको थोड़ा सुकून और जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे सकें।
प्रेरणादायक कहानी।सलाम है ऐसी शख्सियत को हमारा
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