जिंदगी एक कहानी है। हर कहानियों में रंग, कहीं फीके तो कहीं गाढ़े रंग, उदासी और उत्साह के रंग। ये हम सबकी जिंदगी में होता है। हम चलते हैं, गिरते हैं, उठते हैं और जिंदगी आगे बढ़ती जाती है। बस फर्क इतना होता है कि कुछ लोग जिंदगी में आई मुश्किलों से टूट जाते हैं तो कुछ मुसीबतों की आंखों में आंखे डाल भिड़ जाते हैं। विपरीत हालातों में भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के जरिए वो जीत जाते हैं और उदाहरण बन जाते हैं हम सभी के लिए। हमारे ही इर्द-गिर्द ही चंद ऐसे लोग हैं, जिन पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा, मदद के सारे दरवाजे बंद हो गए लेकिन वो रुके नहीं बल्कि आगे बढ़ते गए। दरअसल दुनिया को ऐसे लोगों ने ही गढ़ा है। ऐसे लोग ही जिंदगी को ज्यादा मायनेदार बना रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही शख्सियत से मिलाने जा रहे हैं जिन्होंने असल मायने में जिंदगी को एक नई पहचान दी है।
एक जिद ताकि बुनी जा सके जीवन की कविता…एक जिद ताकि सपनों की हरी पत्तियों पर ओस की बूंद सा थिरक सके मन…एक जिद ताकि मन के तार से बज सके वो संगीत जिसमें विश्वास के तानों पर गुलजार होती हो जिंदगी की गजल… जी हां जिंदगी में आने वाली तमाम मुश्किलों को मात देकर जिंदादिली के साथ जीने की एक ऐसी ही जिद्द है नोएडा में रहने वाली प्रिया भार्गव की। प्रिया जब 19 साल की थी तब वो ल्यूपस (Systemic Lupus Erythematosus) नामक एक लाइलाज और जानलेवा बीमारी का शिकार हो गईं। शरीर दिन ब दिन कमजोर होता गया, कई अंगो ने साथ देना छोड़ दिया, सिर के बाल कम हो गए, प्रिया हर दिन टूटने लगी, जिंदगी व्हीलचेयर पर सिमट कर रह गई और सब कुछ खत्म सा लगने लगा। जिंदगी में इतना सब कुछ हो गया लेकिन प्रिया ने हार नहीं मानी और आखिरकार वो कर दिखाया कि आज, जिंदगी उन्हें सलाम करती है।
शायद किसी ने सच ही कहा है मौत से ज्यादा बड़ी चुनौती है अपनी कमजोरियों के साथ जिंदगी जीना…हमारे पास जो है उसे कमतर मानना, उसमें कमियां निकालना आसान होता है। जो नहीं है उसके लिए रोना और जो है उसका मोल न समझना, कभी न कभी ऐसा हम सब करते हैं पर हमारी और आपकी इसी दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो उनके हिस्से है, उसी में दुनिया-जहां की ख़ुशियों को पाने का जरिया ढूंढ निकालते हैं। प्रिया भी ऐसे ही अद्धुत व्यक्तित्व की धनी हैं जो जिंदगी के हर मोड़ पर तमाम चुनौतियों और कमजोरियों के बावजूद न सिर्फ जिंदगी के हर रंग को जी रही हैं बल्कि खुद के बूते कामयाबी का आसमां चूम रही हैं। साल 2015 में मिस व्हीलचेयर इंडिया का खिताब जीतकर प्रिया ने मिस वर्ल्ड व्हीलचेयर 2017 में देश का प्रतिनिधित्व किया। प्रिया भार्गव मिस वर्ल्ड व्हीलचेयर की इंडिया में ब्रांड एंबेसडर होने के साथ ही एक क्रिएटिव फैशन डिजाइनर, मोटिवेशनल स्पीकर, ऑथर और एक बेहद उम्दा पेंटर भी हैं।
संघर्षों से उपजे सपने किसी पैर के मोहताज नहीं होते। संघर्ष तो हर इंसान के जीवन में होता है। इसकी न कोई उम्र होती है और न ही कोई सीमा। कुछ इसके सामने टूट जाते हैं तो कुछ इसकी आंखों में आंखे डाल भिड़ जाते हैं। प्रिया जैसे चंद लोग न सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी जीवन जीना सिखाकर दुनिया जहां के सामने एक नया उदाहरण पेश कर जाते हैं।
हमेशा से पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहीं और डॉक्टर बनने का ख्बाव सजोने वाली प्रिया जन्म से दिव्यांग नहीं हैं। 2009 में फिजियोथैरेपी के फर्स्ट ईयर की पढ़ाई के दौरान उनकी बॉडी पर अचानक रेशेज बनने लगे। कई जांच के बाद पता चला कि उन्हें सिस्टेमिक ल्यूपस इरिथेमेटोस’ (Systemic Lupus Erythematosus) नामक बीमारी है। यह इम्यून सिस्टम से जुड़ी घातक बीमारी है, जो बॉडी के वाइटल ऑर्गन्स पर अटैक करती है। प्रिया धीरे-धीरे अंदर से कमजोर हो रही थीं। एक तरफ उनका लगातार ट्रीटमेंट चल रहा था, दूसरी तरफ इन सबके चलते पढ़ाई-लिखाई में दिक्कत होने लगी थी। एक दिन अचानक उनके पैरों ने काम करना बंद कर दिया। वो व्हीलचेयर पर आ गईं। प्रिया का आर्मी हॉस्पिटल में इलाज चला क्योंकि उनके पिता इंडियन आर्मी में पोस्टेड थे। तब उनकी पोस्टिंग नागालैंड में थी। बेटी की मदद करने के लिए उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग दी गई। शुरू में डॉक्टरों को लगा यह डेंगू या मलेरिया के लक्षण है और वही समझकर प्रिया का इलाज किया गया जो गलत इलाज था। इससे प्रिया की समस्या और बढ़ने लगी, उन्हें हर वक्त थकान महसूस होती और वो चार दीवारी के भीतर सिमट गईं। इसी दौरान एक दूसरे डॉक्टर ने प्रिया की बीमारी को ध्यान से समझकर उनके घरवालों से बात की। प्रिया के माता-पिता का साहस भी उस वक्त जवाब दे गया जब डॉक्टर ने इसे लाइलाज बीमारी बताया।
बढ़ती बीमारी और तकलीफों के साथ प्रिया के सारे सपने भी एक-एक कर टूटने लगे। बीते दिनों को याद करते हुए प्रिया कहती हैं कि ‘आइने में खुदको देखना मुश्किल होता था, अपने सर का गंजापन छुपाने के लिए ब्लैक मार्कर का इस्तेमाल करती और सर पर दुपट्टा ओढ़ लेती ताकि कोई मेरा मज़ाक न बनाये लेकिन फिर भी कॉलेज के छात्र मेरा मज़ाक उड़ाते थे’। घर पर हुई एक घटना को याद करते हुए प्रिया बताती हैं कि एक बार 3 घंटे से ज़्यादा मैं टायलेट में बंद रही, मुझे बहुत ठण्ड भी लग रही थी। जब तक मां वापस घर आईं तब तक मेरी हालत काफी ख़राब हो चुकी थी। शायद उस दिन मैने पहली बार मौत को इतनी करीब से देखा था।
बीमारी के बावजूद बढ़ते रहे कदम
हर यंगस्टर्स की तरह कभी प्रिया की आंखों ने भी भविष्य को लेकर सुनहरे सपने संजोए थे। प्रिया की ख्वाहिश बचपन से ही डॉक्टर बनने की थी। इसके लिए प्रिया ने एंट्रेस एग्जाम दिया और क्लियर भी किया। वाकायदा फीजियोथैरेपी कोर्स में एडिमशन लिया। जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा था तभी एक रोज़ जिंदगी में ऐसा तूफान आया, जिसने प्रिया की हंसती-खेलती जिंदगी को जड़ से हिलाकर रख दिया। अचानक प्रिया की तबियत बिगड़ने लगी। बीमारी की वजह से रीढ़ की हड्डी खराब हो गई, ब्लैडर कंट्रोल चला गया, फिज़ियोथैरेपी की पढ़ाई छूट गई। बीमारी लगातार विकराल रूप लेती जा रही थी, शरीर भी धीरे-धीरे साथ छोड़ रहा था। बावजूद इसके पढ़ाई के प्रति प्रिया का जुनून कम नहीं हुआ। कई सर्जरी के बाद भी प्रिया हर हाल में अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थीं। लिहाजा उन्होंने नोएडा के इग्नू सेंटर में एडमिशन लिया और 2014 में MCA की डिग्री हासिल की।
‘व्हीलचेयर’….यहां से मेरी कहानी खत्म नहीं, शुरू होती है
जिंदगी के जिस पड़ाव पर आकर लोग अक्सर हार मान जाते हैं, जीने की उम्मीद तक छोड़ देते हैं, प्रिया ने उस अंतिम छोर से एक नई शुरूआत करने का साहस जुटाया। हालांकि जिंदगी के उबड़ खाबड़ रास्तों पर चलना और फिर से उम्मीद के नए निशां तलाशने तक का उनका ये सफर कभी इतना आसां नहीं रहा। प्रिया बताती हैं कि एक वक्त ऐसा आ गया था कि वो क्लीनिकल डिप्रेशन में चली गई थी। सब पर शक करती। मम्मी- पापा पर अटैक करती, खुद से ही डरने लगी थी। खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने लगी। उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे पूरी दुनिया उनके खिलाफ साजिश कर रही है। हालात बद से बदतर होते जा रहे थे। व्हील चेयर पर रहकर ऐसी मानसिक स्थिति के साथ जीना बेहद मुश्किल होता जा रहा था। उधर बढ़ते वक्त के साथ दर्द भी बढ़ता जा रहा था। इस दौरान पांच बार सर्जरी भी की गई। डॉक्टरों ने यहां तक बोल दिया कि अब मैं नहीं बचूंगी। पापा- मम्मी से कहा कि सभी रिश्तेदारों को बुला लो।
जिंदगी का एक ऐसा भयानक मोड़… जहां निराशा और अवसाद की काली रात, हर तरफ मुश्किलें और हार का भय। चुनौतियां मुंह बाए अपने विकराल रूप में खड़ी रहीं, लेकिन इन सबसे बेखबर प्रिया अपने अदम्य साहस के साथ जुटी रहीं काली रात को भोर में बदलने के लिए। कई बार ऐसा लगा कि नहीं, शायद अब और नहीं मगर तभी उन्हीं अंधेरों के बीच से जिंदगी ने कहा कि देखो उजास हो रहा है और आज यही उजास वो दूसरों की जिंदगी में भी भर रही हैं।
प्रिया की मौजूदा हालात के आगे मेडिकल साइंस भी बेबस नजर आ रहा था। यहां तक कि डॉक्टरों ने भी प्रिया के बचने की उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन प्रिया की किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। शायद दवाओं के बेअसर होने के बाद दुआओं ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। तभी तो अगले दिन प्रिया की स्थिति में मामूली सुधार हुआ, वो धीरे-धीरे रिकवर करने लगीं। पहले से कुछ बेहतर महसूस करने लगीं। प्रिया उस पल को याद करते हुए कहती हैं कि शायद मैंने अंदर ही अंदर ये स्वीकार कर लिया था कि अब पूरी जिंदगी व्हीलचेयर पर ही गुजरेगी। इस सच को स्वीकार करने के बाद मैंने ठान लिया था कि अब बस बहुत हुआ। मुझे इन हालातों में नहीं रहना है। कुछ ना कुछ तो करना ही होगा, तो क्या हुआ कि मेरी पढ़ाई छूट गई, मैं कुछ ऐसा करूंगी जो घर पर रहकर कर सकूं। बस इसीलिए मैंने घर पर ही आस-पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया। इसके साथ-साथ दिन में यूपीएससी की किताबें पढ़ती थी। दोपहर को बच्चों को पढ़ाती थी। अब मैं धीरे-धीरे आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होने लगी थी।
मुसीबतें हमारी जिंदगी का एक हिस्सा या फिर यूं कहें कि एक कड़वा सच है। कोई इस बात को समझकर दुनिया से लोहा लेता है तो कोई पूरी जिंदगी इस बात का रोना रोता है। जिंदगी के हर मोड़ पर मिलने वाली इन मुश्किलों को देखने का हर किसी का अपना एक अलग नजरिया होता है, ये बात अब प्रिया भी अच्छी तरह समझ चुकी थीं। लिहाजा उन्होंने जिंदगी की राह में आने वाले इन मुसीबतों के पहाड़ के सामने टूटकर बिखरने की बजाए इन चुनौतियों से डटकर भिड़ने का फैसला लिया और एक बार फिर हिम्मत बांधी। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ प्रिया ने पेंटिंग, कविता, फोटोग्राफी और गाने के शौक को पूरा करना शुरू किया।
वाकई ये जिंदगी बड़ी विचित्र है। कभी काली है तो कभी सफेद। एक पल की खुशी है तो अगले पल गम भी। प्रिया भी अपनी जिंदगी में बहुत खुश थीं। उन्होंने जीना सीख लिया था तभी एक बुरी खबर मिली। डॉक्टर ने बताया कि वो अब दोबारा नहीं चल सकेंगी। इस तरह एक बार फिर प्रिया की जिंदगी शिखर से शून्य पर आकर ठहर गई। यह सदमा बदार्श्त करना प्रिया के लिए आसान नहीं था।
प्रिया की जिंदगी यू-टर्न लेते हुए वापस उसी मोड़ पर आ चुकी थी जहां से आगे बढ़ने का रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था। लेकिन प्रिया ने फिर से खुद अपनी राह बनाने का फैसला लिया। प्रिया किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं। उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन किया। क्रॉफ्ट की प्रदर्शनी लगाई, डिजाइनर के रूप में काम शुरू किया। इस दौरान उनकी मुलाकात प्रोफेसर प्रभात रंजन से हुई जो TIFAC में कार्यकारी निर्देशक थे। उन्होंने प्रिया को मिस इंडिया व्हीलचेयर में भाग लेने के लिए काफी प्रोत्साहित किया।
प्रिया बताती हैं कि एमएमडब्ल्यूआई नाम की संस्था की तरफ से डिफरेंट्लीएबल्ड लड़के/लडकियों के लिए नेशनल लेवल पर ब्यूटी कॉन्टेस्ट (मिस्टर एंड मिस व्हील चेयर) आयोजित किया जा रहा था। प्रोफेसर प्रभात रंजन ने मिस व्हील चेयर इंडिया पेजेंट 2013 के लिए मुझे काफी हिम्मत दी लेकिन MCA की पढ़ाई के कारण मैंने इसमें पार्टिसिपेट करने से इनकार कर दिया। 2014 में भी इसके लिए मैं रजिस्ट्रेशन नहीं करा पाई और आखिरकार काफी झिझक के बाद 2015 में मैंने अपनी दो साधारण फोटो और बायोडेटा आयोजकों को भेजा। प्रिया ने बिना किसी तैयारी के सिर्फ दोस्तों और परिचितों का मन रखने के लिए अपना बायोडेटा आयोजकों को भेजा था। इसलिए जब उन्हें पर सलेक्शन की जानकारी दी गई तो उन्हें यकीन नहींं हुआ कि इतने कम समय में उनका चयन टॉप 7 लड़कियों में हो गया है। यह प्रतियोगिता बेंगलुरू में होने वाली थी और जब प्रिया ने ये बात अपने पेरेंट्स को बताई, तो उनके खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और वो खुद प्रिया को लेकर बेंगलुरू पहुंचे।
प्रिया के लिए यहां तक पहुंचना एक बड़ी उपलब्धि थी लेकिन आगे का मुकाबला इतना आसान नहीं था क्योंकि मिस व्हील चेयर इंडिया कॉन्टेस्ट में देशभर की 250 लड़कियां प्रिया के सामने थीं। लेकिन जिंदगी के तमाम उतार चढ़ाव देख चुकी प्रिया भी अब सारी चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार थीं। लंबी मेहनत के बाद आखिरकार उनकी मेहनत भी रंग लाई और फाइनल इवेंट में प्रिया ने सभी लड़कियों को पीछे छोड़कर ये कॉन्टेस्ट जीत लिया।
इस उपलब्धि के बाद प्रिया ने अपनी जिंदगी में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक युवा लड़की के लिए जिसका ग्लैमर की दुनिया से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था और ना ही कोई औपचारिक प्रशिक्षण, फिर भी प्रिया ने अपने आत्मविश्वास के सहारे खुद को इस काबिल बनाया। प्रिया आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जो शारीरिक कमजोरी के चलते जिंदगी से हार मान लेते हैं।
जिंदगी में कुछ करने की ललक हो तो अपंगता की अड़चन भी प्रगति में आड़े नहीं आ पाती। इस क्रम में अवरोध तब पैदा होता है, जब निजी अक्षमता को लेकर इंसान अपनी सामर्थ्य को कम करके आंकना शुरू करता है, पर सच्चाई यह है कि उसकी असमर्थता शारीरिक कम, मानसिक ज्यादा होती है और इसे साबित करती ब्यूटी क्वीन और मिस व्हील चेयर 2015 प्रिया भार्गव की अद्भुत कहानी
कहते हैं प्रतिकूल परिस्थितियों से निकलकर सफलता तक जाने वाली हर यात्रा अनोखी और अद्वितीय होती है। सवाल इस बात का नहीं होता कि आप आज क्या हैं, क्या कर रहे हैं, क्या उम्र और समय है। बस एक हौंसला चाहिए। जीवन की लहरों में तरंग तभी पैदा होगी, जब आप वैसा कुछ करेंगे।
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