जिंदगी की हर कहानी एक सी नहीं होती लेकिन किसी मोड़ पर कुछ ऐसा होता है जिससे जिंदगी की पूरी कहानी ही बदल जाती है। कामयाबी की ज्यादातर कहानियां अपने में संघर्ष और जुनून का एक लंबा सफर समेटे होती हैं लेकिन चंद लोग ऐसे होते हैं जो अपने पहले प्रयास और बेहद कम उम्र में ही कामयाबी की नई कहानी लिख जाते हैं। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी ही शख्सियत की है, जिन्होंने बेहद कम उम्र में बड़ी कामयाबी तो हासिल की ही साथ ही अपने तेवर और काम करने के तरीके से जनता के दिल में जगह बनाने में भी सफल रहीं।
कुछ लोग भले ही साधारण परिवार में जन्म लेते हैं लेकिन उनमें इतनी काबिलियत होती है कि वो अपने दम पर अपने सपनों को सच की सूरत में ढालने का माद्दा रखते हैं या फिर यूं कह लीजिए कि जिसे ज़िंदगी में अपने हुनर के दम पर कुछ हासिल करना होता है, उसे सुविधाओं और संसाधनों की जरूरत नहीं होती। बिना किसी सहारे और शिकायत के भी वो आगे बढ़ जाते हैं और कुछ ऐसा कर दिखाते हैं जो उनके आसपास के माहौल के हिसाब से नामुमकिन होता है। यह सिर्फ कहने की बात नहीं है बल्कि एक सच्चाई है। शिवानी की कहानी भी इसी की एक बानगी है। जो साबित करती है कि कामयाबी के लिए अच्छे हालात नहीं, हौंसले जरूरी होते हैं।
MPPSC में 9वां स्थान हासिल करने वाली सागर की शिवानी अपने पिता की तरह एक ईमानदार अधिकारी बनना चाहती हैं। शिवानी का मानना है कि नई सोच वाली नई पीढ़ी भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा नहीं बनेगी, उनकी कोशिश एक ऐसा सिस्टम तैयार करने की रहेगी जिस पर आम आदमी भरोसा कर सके और उन्हें उनका हक आसानी से मिल सके। पाजिटिव इंडिया से बात करते हुए शिवानी कहती हैं कि बड़े ओहदे पर आने के बाद खुद पर नियंत्रण बनाए रखना एक चैलेंजिंग टास्क है। फिर दूसरी चुनौती परिवार और काम के बीच समन्वय बनाने की होती है। हालांकि शिवानी का मानना है कि पति के भरपूर सहयोग के चलते वो घर और फर्ज दोनों के प्रति बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा पा रही हैं।
देश की बागडोर असल मायनों में अफसरों के हाथों में होती है और अगर नौकरशाही दुरुस्त हो तो कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद रहती है। नौकरशाही के रवैये को लेकर लगातार उठते सवालों के बीच देश-प्रदेश में कुछ ऐसे भी अफसर हैं, जो देश सेवा का जुनून लिए नौकरशाही की साख बचाए हुए हैं। और जब हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं ऐसा कारनामा करती हैं तो उनके कारनामे खास चर्चा पाते हैं। शिवानी गर्ग भी एक ऐसी महिला ऑफिसर हैं जिनकी दिलेरी के किस्से मिसाल के तौर पर पेश किए जाते हैं। शिवानी जैसी महिला ऑफिसर्स असल मायनों में देश की आधी आबादी के लिए जीता-जागता आदर्श हैं। अपने बेबाक और तेजतर्रार तेवर के चलते कई बार सिस्टम से लोहा ले चुकी शिवानी की बहादुरी और बेवाक छवि से हर कोई वाकिफ है। वहीं प्रशासनिक महकमे की कुशल कप्तान और महिलाओं की आवाज को बुलंद करने वाली एसडीएम शिवानी भी अपनी संवेदनशीलता, कर्मठता और काम करने के अलग अंदाज को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहती हैं।
गुना में पदस्थ युवा उपजिलाधिकारी शिवानी गर्ग आम लोगों के लिए जितनी सहज और संवेदनशील हैं, गलत करने वालों के लिए उतनी ही सख्त भी। आलम यह है कि खतरनाक माफिया, गुंडे और बदमाश भी इनसेेे खौफ खाते हैं। मिलावटखोरों के खिलाफ शिवानी ने ‘शुद्ध के लिए युद्ध’ और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ ‘एंटी माफिया’ अभियान छेड़ा हुआ है। लिहाजा, गुना की जनता बेहद खुश है और लोकप्रिय हो चली इस महिला अधिकारी को कोई भवानी तो कोई मर्दानी कह रहा है।
शिवानी ने अपनी दबंग कार्यशैली से माफिया जगत में खलबली मचा दी है। एक तरफ वो सरकारी जमीन को दबंगों के कब्जे से मुक्त करा रही हैं, तो दूसरी ओर शहर को अतिक्रमणमुक्त बनाकर उसकी सूरत भी संवार रही है। वहीं मिलावटखोरों पर नकेल कसने के लिए भी उन्होंने अभियान छेड़ रखा है।
प्रशासनिक कार्रवाई से बौखलाए और तिलमिलाए माफियाओं की तरफ से शिवानी को कई बार धमकी भी मिली लेकिन शिवानी इन धमकियों से डरे बिना सत्य के मार्ग पर चलते हुए बेखौफ कार्रवाई को अंजाम देती रहीं। माफियाओं से मिल रही धमकी और डर के सवाल पर शिवानी कहती हैं कि सीनियर्स का मार्गदर्शन, लक्ष्यपूर्ति का दायित्वबोध और जनसेवा का भाव उनके लिए हमेशा प्रेरणा का काम करता है, ऐसे में भय का सवाल ही नहीं उठता।
गुना की जनता उस वक्त हैरान रह गई जब उन्होंने भू-माफियाओं से सरकारी जमीन खाली कराने की मुहिम के दौरान एसडीएम शिवानी को जेसीबी मशीन और ट्रैक्टर चलाते देखा। दरअसल आमोद पार्क की 50 बीघा जमीन पर पिछले 30 सालों से एक दबंग ने कब्जा किया हुआ था, जिसकी कीमत करीब 15 करोड़ के आसपास है। लिहाजा एसडीएम शिवानी ने कार्रवाई को अंजाम देने के लिए खुद टीम का नेतृत्व किया और सुबह पांच बजे मौके पर पहुंचकर ट्रैक्टर-जेसीबी चलाकर फसल को रौंदते हुए जमीन को कब्जे से मुक्त कराया। नगर को स्वच्छ और अतिक्रमणमुक्त बनाने के लिए शिवानी द्वारा की गई साहसी पहल को सूबे की सरकार ने भी जमकर सराहा और एसडीएम शिवानी को भवानी की उपाधि देकर सम्मानित किया।
वैसे तो जब किसी अफसर जिक्र होता है तो दिमाग में एक कड़क और रौबदार अफसर की छवि उभर आती है, सरकारी गाड़ी, तामझाम और जी हुजूरी करते मुलाजिम। लेकिन कुछ अधिकारी ऐसे भी होते हैं जिनका अलहद अंदाज जनता का दिल जीत लेता है। वो सारा तामझाम छोड़कर खुद आम आदमी के बीच पहुंचते हैं, अपनी जिम्मेदारियों से ज्यादा इंसानियत को तवज्जो देते हैं और काम के प्रति भी बखूबी अपना दायित्व निभाते हैं। उनके लिए पद कोई ऐशो आराम का साधन नहीं बल्कि समाज सेवा का एक बेहतर माध्यम मात्र होता है और वो सिस्टम में मौजूद विसंगतियों से विचलित होने की बजाए हालात और समाज को बदलने के लिए जी-जान से जुट जाते हैं। युवा अफसर शिवानी ने भी अपने नेक मंसबूों और कार्यशैली से ना सिर्फ नौकरशाही को लेकर लोगों की सोच बदली, बल्कि सिस्टम और प्रशासन के प्रति जनता में विश्वास भी पैदा किया। कहना गलत नहीं होगा कि शिवानी जैसे युवा और तेज तर्रार अधिकारियों की वजह से ही आज हमारा देश-प्रदेश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है।
कहते हैं कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता, उसके कर्म उसका कद ऊंचा करते हैं। ये बात एसडीएम शिवानी गर्ग पर बिल्कुल सटीक बैठती है। उनकी कार्यशैली हर किसी को अपना मुरीद बना लेती है। ऐसा ही वाक्या उस वक्त देखने को मिला जब 98 साल की बुजुर्ग लक्ष्मी बाई आंखों में आंसू और न्याय की आस लिए अपने पोते के साथ एसडीएम शिवानी गर्ग के पास पहुंची। दरअसल ये बुजुर्ग भूमि अधिग्रहण के मामले में मुआवजे के लिए बीते 11 सालों से अधिकारियों के चक्कर काट-काट कर थक चुकी थी, क्योंकि लालफीताशाही वाले इस सिस्टम में हर बार उसके प्रकरण में कोई न कोई कमी बताकर उसे बैरंग लौटा दिया जाता था।लेकिन जैसे ही ये मामला एसडीएम शिवानी के पास पहुंचा, उन्होंने तुरंत जो दस्तावेजों की कमी थी, उसे खुद पूरा कराकर जल्द सुनवाई की और बुजुर्ग महिला को उसके हक का मुआवजा दिया। वहीं बुजुर्ग के हाथ में जैसे ही शिवानी ने 2.50 लाख का चेक थमाया तो उसने कहा बेटी तूने मुझे न्याय दिला दिया। महिला भावुक हो गई, एसडीएम ने भी उसे दादी कहकर पुकारा और कहा कि इसे बैंक में जाकर जमा करें।
बेशक नौकरशाही इस देश का सबसे शक्तिशाली तंत्र है, जो समाज में बदलाव का माद्दा रखती है। अफसर अपने काम से प्रेरित कर न सिर्फ खराब सिस्टम को दुरुस्त कर सकते हैं, बल्कि लोगों की जीवनशैली को भी बेहतर बना सकते हैं। शिवानी गर्ग की कार्यशैली इस बात को और पुख्ता करती है। जिन्होंने अपनी सादगी और सहजता से आम जनता और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की खाई को खत्म कर दिया है। सच कहें तो उन्होंने खुद को सही मायने में लोकसेवक समझा है। मचा दी है
बिना किसी शान-ओ-शौकत में पली, एक मध्यमवर्गीय परिवार से अपनी जीवन यात्रा शुरू कर सशक्त आफिसर बनीं शिवानी आज अगर अपने दौर के नौजवानों के लिए रोल मॉडल बन गई हैं, तो उनकी कामयाबी की मिसाल सिर्फ उनके जीवन का उजाला नहीं, बल्कि उनके हिस्से के जीवन का सबक पूरी युवा पीढ़ी की भी राह को रोशन कर रहा है। इसीलिए वो आज के नौजवानों को कभी हिम्मत न हारने की सीख देना भी अपनी जिम्मेदारी मानती हैं। आखिर में शिवानी देश की यंग जनरेशन को संदेश देते हुए कहती हैं कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। जिनके इरादे मजबूत होते हैं, जिनमें कुछ अलग करने का जज्बा होता है, वही लोग अपने दृढ़संकल्प से अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
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