कहते हैं महिलाएं जब ठान लेती हैं तो वो नामुमकिन को भी मुमकिन कर देती हैं। फिर चाहे वो घर की जिम्मेदारी उठाना हो या बाहर जाकर काम करना। आज हम आपको नए भारत में नारी शक्ति की मिसाल पेश करने वाली एक ऐसी ही शख्सियत से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने खाना बनाने की कला से अपना मुकाम तो हासिल किया ही साथ ही अपने दौर की हर भारतीय महिला के लिए इंस्पिरेशन भी बनकर उभरीं।
दुनिया में इंसान की सबसे पहली जरूरत है भूख, जन्म लेते ही उसे सबसे पहले भूख लगती है। इसलिए कहते हैं कि दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है। अगर आपको लोगों के दिलों में जगह बनानी है तो लजीज खाना बनाने से अच्छा हुनर और कुछ नहीं हो सकता। पारुल भी अपने इसी हुनर के जरिए स्वाद का जादू बिखेर रही हैं। पारुल ने फूड मेकिंग कला को अपना हथियार बनाकर आज काफी ऊंचा मुकाम हासिल कर लिया है।
इंदौर में इन दिनों एक रेस्तरां व्हाट्सएप और फेसबुक पर संचालित हो रहा है। सिर्फ राजस्थान के पारंपरिक लजीज व्यंजन ही यहां घर से घर तक परोसे जा रहे हैं और लोग घर पर बैठे-बैठे ठेठ राजस्थानी जायकों का लुत्फ उठा रहे हैं। खाने का स्वाद भी ऐसा कि कहीं और मिलना मुश्किल। अपने घर से ही रेस्तरां शुरू कर अपने पैशन को सींचने वाली पारुल स्वाद का तड़का लगाकर लोगों के दिलों पर राज कर रही हैं। पारुल बताती हैं कि उन्होंने राजस्थानी थाली का काम्बीनेशन तैयार किया है, जिसका टेस्ट पूरे इंदौर में कहीं नहीं मिलेगा।
जब कोई इंसान अपने शौक और जुनून को अपना पेशा बना लेता है तो फिर उसकी बनाई हर चीज़ यक़ीनन लाजवाब होती है। ऐसी ही पाक कला की एक हुनरमंद शख्सियत हैं पारुल। पारुल बताती हैं कि खाना बनाना उनका पैशन है। बचपन से ही कुकिंग का शौक रहा है। मैंने कभी इसे बोझ या जिम्मेदारी की तरह नहीं देखा। मुझे इस काम में खुशी मिलती है। हॉबी कब बिजनेस में बदल गई, मुझे पता ही नहीं चला। पारुल आगे कहती हैं कि शादी के बाद वो पति के साथ अलग-अलग जगहों पर रहीं। साल 2017 में पति के ट्रांसफर के बाद वो लुधियाना शिफ्ट हुईं। जहां उन्होंने अपने पंजाबी दोस्तों को दावत पर घर बुलाया और अपने हाथ से बना राजस्थानी फूड सर्व किया, जो उन्हें खूब पसंद आया और वो पारुल के स्वाद के दीवाने हो गए। इस दौरान पारुल ने भी महसूस किया लुधियाना में लजीज राजस्थानी फूड कहीं नहीं मिलता जबकि राजस्थानी फूड बेहद रिच और फ्लेवरफुल है। दोस्तों की तारीफ के बाद पारुल को भी लगा इस शौक को आगे बढ़ाना चाहिए। लिहाजा उन्होंने पारुल पधारो सा के नाम से होम डिलेवरी का वेंचर शुरू किया। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए इसकी मार्केटिंग शुरू की और व्हाट्सएप पर ब्राडकास्ट के कई ग्रुप बनाकर अपने द्वारा बनाई गई डिश की जानकारी लोगों को देना शुरू किया। देखते ही देखते पारुल के जायके ने जादू कर दिया और उन्हें बल्क आर्डर मिलने लगे।
लुधियाना में पारुल के वेंचर को शुरू किए अभी पांच-छह महीने ही हुए थे कि उनके पति का ट्रांसफर एक बार फिर लुधियाना से इंदौर हो गया और पारुल को एक बार फिर जीरो से शुरूआत करनी पड़ी। लेकिन इरादे की पक्की पारुल ने हिम्मत नहीं हारी और खाने-पीने के शौकीनों का शहर कहे जाने वाले इंदौर में अपने हाथ से बने लजीज खाने की खुशबू बिखेरने की तैयारी में जुट गईं। पारुल ने लुधियाना की तरह ही इंदौर में भी मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया और होम डिलेवरी के जरिए घर-घर तक राजस्थानी खाने की सुगंध पहुंचाना शुरू किया।
पेशे से शेफ पारुल वीकेंड पर काफी मसरूफ रहती हैं। दरअसल राजस्थानी कुजीन में महारत हासिल रखने वाली पारुल की वीकेंड्स की पॉपुलेरिटी इतनी ज्यादा है कि इन्हें वीकेंड पर बल्क ऑर्डर मिलते हैं। इसके बावजूद पारुल का पूरा फोकस इस बात पर रहता है कि उनके कस्टमर्स पूरी तरह से सेटिसफाइड रहें और उन्हें बेहतरीन राजस्थानी फूड सर्व किया जाए।
पाजिटिव इंडिया से बात करते हुए पारुल कहती हैं कि मैंने पैसा कमाने के लिए बिजनेस शुरू नहीं किया, मुझे अपनी एक पहचान बनानी थी और कुकिंग से मुझे खुशी मिलती है। यही वजह है कि लुधियाना से लेकर इंदौर तक फ्रेंचाइजी माडल के कई ऑफर आए, लेकिन मैने उन्हें ठुकरा दिया। इसके पीछे पारुल का तर्क है कि, “मैं राजस्थान से हूं इसलिए वहां का जायका और स्वाद जानती हूं। यहां तक कि डिश में इस्तेमाल किए जाने वाले मसाले भी मैं राजस्थान से मंगाती हूं लेकिन जरूरी नहीं है कि फ्रेंचाइजी लेने वाले दूसरे लोग भी इतनी शिद्दत और इमानदारी के साथ काम करें।
पारुल का मानना है कि काम कैसा भी हो उसमें परफेक्शन बहुत जरूरी है। बात जब खाना बनाने की हो तो उसके लिए पैशन होना बेहद जरूरी है। अच्छा बनाने की चाह ही आपको अपना काम बेहतर करने के लिए प्रेरित करती है। पारुल के मुताबिक लजीज खाना दोस्तों और परिवारों को करीब तो लाता ही है साथ ही आपको खुशी देने के साथ-साथ अंदर से सकारात्मक महसूस कराने की शक्ति रखता है। वाकई आत्मविश्वास से लबरेज पारुल ने पुरानी मानसिकता को पीछे छोड़कर एक नई सोच के साथ आगे बढ़ने का जो रास्ता चुना है, वो आज दूसरों के लिए बड़ा उदाहरण है। क्योंकि आज भी हमारे समाज में खाना पकाने की कला को बहुत कम लोग ही करियर के रूप में चुनते हैं।
राजस्थानी फूड को पहचान दिलाने और बिजनेस के क्षेत्र में नए प्रयोग करने के लिए पारुल को लास्ट ईयर प्रतिष्ठित इंडो ग्लोबल एसएमई चेंबर की तरफ से वुमन इन बिजनेस का अवार्ड मिला था। इससे पहले इंस्पायरिंग शी मैगजीन की तरफ से मुंबई में आयोजित वुमन अचीवर्स अवार्ड समारोह में उन्हें फूड प्रेन्योर ऑफ द इयर अवार्ड से नवाजा गया था। ये सम्मान उन्हें होम किचन कान्सेप्ट को लेकर मिला, जिसमें उन्होंने सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म का इस्तेमाल करते हुए बिजनेस में एक मुकाम हासिल किया। इलके अलावा रंगोली वर्ल्ड ऑफ वुमन द्वारा भी पारुल को बिजनेस लीडर के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
जैसी सूरत, वैसी सीरत: पारुल अपनी सूरत की तरह ही सीरत की भी धनी हैं। वो पिछले कई सालों से बेजुबानों की सुरक्षा के लिए बड़ी खामोशी से काम कर रही हैं।
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