जिंदगी एक कहानी है। हर कहानियों में रंग, कहीं फीके तो कहीं गाढ़े रंग, उदासी और उत्साह के रंग। ये हम सबकी जिंदगी में होता है। हम चलते हैं, गिरते हैं, उठते हैं और जिंदगी आगे बढ़ती जाती है। बस फर्क इतना होता है कि कुछ लोग जिंदगी में आई मुश्किलों से टूट जाते हैं तो कुछ मुसीबतों की आंखों में आंखे डाल भिड़ जाते हैं। विपरीत हालातों में भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के जरिए वो जीत जाते हैं और उदाहरण बन जाते हैं हम सभी के लिए। हमारे ही इर्द-गिर्द न जाने कितने ही ऐसे लोग हैं, जिन पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा, मदद के सारे दरवाजे बंद हो गए लेकिन वो रुके नहीं बल्कि आगे बढ़ते गए। दरअसल दुनिया को ऐसे लोगों ने ही गढ़ा है। ऐसे लोग ही जिंदगी को ज्यादा मायनेदार बना रहे हैं। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी ही शख्सियत की है जिन्होंने असल मायने में जिंदगी को एक नई पहचान देने के साथ ही महिला सशक्तिकरण की एक नई मिसाल पेश की है।
हालांकि कुछ साल पहले तक पल्लवी की जिंदगी भी घर-गृहस्थी संभालने तक ही सिमटी थी, लेकिन घर में हुई एक घटना ने उनकी पूरी जिंदगी बदलकर रख दी और उन्हें उस मुकाम पर पहुंचाया जहां पहुंचना लोगों का ख्वाब होता है। पल्लवी व्यास आज एक बेहद सफल एंटरप्रेन्योर के तौर पर पहचानी जाती हैं, जिनकी मिसाल आज जमाने भर में दी जाती है।
कहते हैं महिलाओं की जिंदगी उस कच्ची मिट्टी की तरह होती है जो अलग-अलग सांचों में ढलकर अपने अलग-अलग रूप बदलती है। एक मां, एक बेटी, एक बहन, एक बहू, एक सास, एक सखी और एक साथी। ना जाने कितने ही किरदार निभाने पड़ते हैं एक महिला को अपनी जिंदगी में। अपनी पहचान के लिए जिंदगी भर जद्दोजहद करनी पड़ती है। बावजूद इसके कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जिन्होंने ना सिर्फ अपनी पहचान खुद बनाई है बल्कि अपने वजूद को नाम भी दिया है। पल्लवी व्यास भी एक ऐसी ही शख्सियत हैं, जो समाज की बेहतरी और बदलाव के लिए एक साथ कई क्षेत्रों में प्रभावी भूमिका निभा रही हैं।
पल्लवी व्यास का एक घरेलू महिला से सफल उद्यमी बनने का सफर काफी प्रेरणादायी है। दरअसल पल्लवीजी की सास को ब्लड कैंसर हो गया था, लाख प्रयास के बावजूद डॉक्टर उन्हें बचा नहीं पाए। ये घटना पल्लवी के परिवार के लिए आघात पहुंचाने वाली थी। अध्ययन के दौरान पता चला कि उनके सास को हुए कैंसर की बड़ी वजह दूध-सब्जी जैसे खाने-पीने के सामान में इस्तेमाल होने वाले घातक केमिकल और पेस्टीसाइड हैं। अंदर से तोड़कर रख देने वाली इस घटना के बाद पल्लवी व्यास ने तय किया कि वो समाज को हानिकारक और जानलेवा केमिकल्स से बचाने के लिए केमिकल रहित शुद्ध और ऑर्गेनिक फूड्स मुहैया कराएंगी।
पल्लवी पुराने दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि साल 2007-2009 के बीच का वक्त था। मेरे छोटे बेटे की डिलेवरी के वक्त सास इंदौर आई हुई थीं। इस दौरान उन्हें कैंसर डिटेक्ट हुआ, तब तक मेरा बेटा एक साल का हो चुका था। मेरे ऊपर कई जिम्मेदारियां आ पड़ीं। छोटे-छोटे बच्चों की देखभाल के साथ ही सास को संभालना। उन्हें बचाने के लिए हमने हर संभव प्रयास किए लेकिन सारी कोशिशें नाकाम रही। घर में अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा और मैं भी डिप्रेशन में आ गई। निराशा और अवसाद की काली रात, हर तरफ मुश्किलें और हार का भय। चुनौतियां मुंह बाए अपने विकराल रूप में खड़ी रहीं, लेकिन इन सबके बावजूद समाज को कुछ देने के मसकद से मैं अपने साहस के साथ जुटी रही, काली रात को भोर में बदलने के लिए। कई बार ऐसा लगा कि नहीं, शायद अब और नहीं मगर तभी उन्हीं अंधेरों के बीच से जिंदगी ने कहा कि देखो उजास हो रहा है।
जिस वक्त शांता फार्म की नींव पड़ी उस वक्त पल्लवी की उम्र चालीस के आसपास हो चली थी। उम्र के इस पड़ाव पर लीक से हटकर इतना जोखिम लेने का जज्बा कम ही देखने को मिलता है। लेकिन समाज को शुद्ध खाद्य सामग्री देने के साथ ही केमिकल से होने वाले नुकसान को लेकर जागरुकता फैलाने के अपने जुनून को पल्लवी व्यास ने कभी कम नहीं होने दिया।
पल्लवी 2016 के उस दौर को याद करते हुए कहती हैं, “हमारे पास ना जमीन थी, ना ज्यादा जानकारी थी बस एक आइडिया था कि डेयरी फार्म खोलना है, लोगों को शुद्ध दूध उपलब्ध कराना है।“ पति, रिश्तेदारों और बैंक की मदद से इंदौर से 60 किलोमीटर दूर बड़वाह-महेश्वर के बीच करही गांव में जमीन खरीदी क्योंकि इंदौर के आसपास की जमीन पेस्टीसाइट वाली थी और काफी महंगी भी। इसलिए पहाड़ी क्षेत्र पर जमीन लेकर उसे तालाब की मिट्टी से लेवल किया ताकि उसका रासायनिक असर खत्म हो जाए। यहां गायों के लिए ऑर्गेनिक चारा भी उगाया। इस तरह मुंबई की तर्ज पर प्रदेश का पहला मैकेनाइज्ड शांता डेयरी फार्म स्टार्टअप शुरू हुआ।
पल्लवी का शांता फार्म मैकेनाइज्ड और आधुनिक सुविधाओं से लैस है। यहां बिदाउट ह्यूमन टच आटोमेटेड तरीके से दूध निकाला जाता है। फार्म में चौबीस घंटे वेटनरी डॉक्टर रहते हैं। बीमारी गाय का दूध नहीं निकाला जाता। एक-एक गाय का ख्याल रखा जाता है। हर गाय में सेंसर लगा है, जिससे उसके मिल्किंग, बीमारी आदि सभी का रिकॉर्ड रहता है। कुल मिलाकर गायों की इतनी देखभाल की जाती है कि वो बीमार ही नहीं पड़ती हैं। मिल्किंग के पहले और बाद में गायों को नहलाया जाता है। फॉर्म पर उगाया गया ऑर्गेनिक चारा ही गायों को खिलाया जाता है।
पल्लवी व्यास ने समाज को शुद्ध खाद्य पदार्थ देने की जिम्मेदारी के साथ ही गायों की नस्ल सुधारने का बीड़ा भी उठा रखा है। इसके लिए उन्होंने अपने 50 एकड़ के फार्म पर हर नस्ल के उन्नत बुल पाले हैं और ब्रीडिंग पर काफी ध्यान दिया जा रहा है।
पल्लवी का मानना है कि गाय को मां कहा जाता है और मां की अगर सही देखभाल होगी तो वो भी अपने बच्चों का अच्छे से ख्याल रख पाएगी यानि अच्छी क्वालिटी का दूध देगी। पल्लवी बताती हैं कि हमने 6 गिर नस्ल की गायों से डेयरी फार्म शुरू किया था और आज उनके फार्म में 200 सेे ज्यादा गाय हैं। जिनमें गिर, कांकरेज, साहीवाल, राठी, निमाड़ी और हॉलिस्टियन फ्रीशियन नस्ल की गाय शामिल हैं। डेयरी फार्म पर रोजाना 1000 लीटर दूध का उत्पादन होता है। इस दूध को कांच की बोतलों में पैक कर सप्लाई किया जाता है।
खुद आत्मनिर्भर बनने के बाद पल्लवी व्यास ने देश की बाकी महिलाओं को भी खुद के पैरों पर खड़े होने का साहस दिया। पल्लवीजी ने 300 महिलाओं के समूह को वाकाायदा फार्मिंग की ट्रेनिंग देने के साथ ही 5-5 पशु भी दिए ताकि वो भी खुद की डेयरी खोलकर अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। इसके अलावा पल्लवीजी देशभर के किसानों के बीच जागरुकता फैलाकर आर्गेनिक खेती से जोड़ने के लिए मोटिवेट भी करती हैं। साथ ही किसानों के प्रोडक्ट को एक ब्रांड का रूप देकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की उनकी कोशिश भी जारी है।
एक साधारण गृहणी से असाधारण डेयरी फार्मर बनने का पल्लवी व्यास का सफर कभी इतना आसान नहीं रहा लेकिन जिंदगी में आने वाली तमाम चुनौतियों का उन्होंने हमेशा डटकर मुकाबला किया और मुसीबतों को मात देकर कामयाबी का एक नया इतिहास लिखा। यही वजह है कि ना सिर्फ देश-प्रदेश बल्कि विदेशों में डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें सम्मानित किया गया।
आज के नए भारत में नारी शक्ति की मिसाल बनकर उभरीं पल्लवी व्यास कहती हैं कि भले ही डेयरी फार्मिंग महिलाओं का बिजनेस नहीं माना जाता लेकिन ये उतना भी मुश्किल काम नहीं है। डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में बहुत संभावनाएं हैं, लेकिन इस सेक्टर में सफलता पाने के लिए जरूरत है तो जज्बे और जुनून की। प
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