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बाहर अंधेरा गहरा होता जा रहा है। अंधेरा, अवसाद का…अंधेरा उदासी का। भारत ही क्यों दुनियाभर में डिप्रेशन की समस्या गंभीर रूप अख्तियार कर चुकी है। आम आदमी से लेकर खास आदमी और हर आयुवर्ग से लेकर हर आर्थिक वर्ग के लोग इसकी जद में हैं। आंकड़े डराते हैं। भारत में हर घंटे करीब 8 बच्चे डिप्रेशन की वजह से मौत को गले लगा लेते हैं। लगभग 8 हजार 400 बच्चे स्ट्रेस की वजह से हर साल अपनी जान गंवाते हैं। WHO की मानें तो दुनियाभर में भारतीय सबसे ज्यादा अवसागग्रस्त हैं यानि भारत में डिप्रेशन की जड़ें सबसे गहरी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 6वां नागरिक गंभीर मानसिक विकार से ग्रस्त है। डिप्रेशन से उबरना कठिन नहीं है लेकिन इलाज की सही राह पर जाना बहुत ही जरूरी है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने कम उम्र में ना सिर्फ डिप्रेशन से जंग जीती बल्कि अपनी कामयाबी से अवसाद की अंधेरी दुनिया में गुम लोगों के लिए भी उम्मीद की एक नई राह खोली।

घनघोर अंधेरे के बाद एक रंगीन सुबह भी आएगी, जो बहुत चमक से भरी होगी….जी हां हमारी आज की कहानी भी एक ऐसे लेखक की है, जो कभी जिंदगी को ही अलविदा कहना चाहता था। मन में बार-बार मौत को गले लगाने के विचार बवंडर मचाते थे लेकिन उसने अपनी इच्छाशक्ति के सहारे खुद को इससे बाहर निकाला और महज 24 साल की उम्र में ही बैक-टू-बैक तीन किताबें लिखकर अपने ही जैसे डिप्रेशन के साए में जी रहे लाखों लोगों की जिंदगी को एक नई दिशा दी। जिंदगी की हारी बाजी को अपने हौंसले के दम पर जीतने वाले इस लेखक का नाम है अनुराग मिश्रा, जो आज अपनी कहानी के जरिए दूसरों को जिंदगी के असल मायने सिखा रहे हैं।

कई गंभीर बीमारियों से संघर्ष के साथ ही अनुराग ने डिप्रेशन और तनाव को लंबे वक्त तक झेला लेकिन उन्होंने फिर भी कभी हार नहीं मानी। कई डिसीज के साथ ही डिप्रेशन से लंबी लड़ाई में अनुराग ने न केवल जीत दर्ज की बल्कि आज एक बेहद सफल लेखक भी हैं। अब तक उनकी तीन किताबें आ चुकी हैं, जिन्हें देश के बड़े प्रकाशकों ने पब्लिश की और पाठकों का भी खासा प्यार मिला। इसी के साथ अनुराग भारतीय व्यंजनों को बड़े स्तर पर लोगों तक पहुंचाने के लिए यू ट्यूब पर ऋषि की रसोई नाम से एक  चैनल भी संचालित कर रहे हैं। जिंदगी में पहाड़ सी परेशानियों का सामना करने वाले अनुराग के लिए इतना कुछ हासिल करना कभी आसान नहीं रहा लेकिन अपने अदम्य साहस और मजबूत इरादों के बूते उन्होंने जीवन के हर मोड़ पर मिलने वाली चुनौतियों से जंग जीतकर खुद को साबित किया।मध्यप्रदेश के एक छोटे से कस्बे टीकमगढ़ से ताल्लुक रखने वाले अनुराग मिश्रा को बहुत छोटी उम्र में वीक इम्यून सिस्टम डायग्नोज हुआ। उनके लगातार बीमार रहने से पैरेंट्स भी हार मान चुके थे। स्कूल खत्म होने के बाद अनुराग छोटे से कस्बे से निकलकर क्लैट की तैयारी करने प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचे। यहांं की तेज रफ्तार से भागती जिंदगी और हाई फाई लाइफ स्टाइल के बीच अनुराग खुद को असहज महसूस करने लगे। ऊपर से इंग्लिश में पूरी तरह से अनाड़ीपन ने उन्हें अवसाद की तरफ धकेलना शुरू कर दिया। घुटन, घबराहट और खुद को कमजोर समझने की भावना अनुराग के मन में बुरी तरह घर कर गई। इस बीच क्लैट के एग्जाम में मिली नाकामयाबी के चलते अनुराग को नर्वस ब्रेकडाउन और ब्रेन स्ट्रोक का भी सामना करना पड़ा।

अनुराग अपने मुश्किल वक्त को याद करते हुए बताते हैं कि बचपन से ही मेरा इम्यून सिस्टम काफी वीक रहता था। जिसके कारण मेरा हर दिन किसी ना किसी परेशानी से भरा होता था। जब मैंने क्लास 12th पास की तो मेरे पास दो ही ऑप्शन थे या तो इंजिनीरिंग या मेडिकल लेकिन मैं दोनो ही नहीं करना चाहता था। इसके साथ ही लगातार बढ़ती मेरी बीमारी मुझे अवसाद की ओर धकेल रही थी। वहीं समाज और परिवार के प्रेशर के कारण मुझे मजबूरन क्लैट की कोचिंग के लिए भोपाल जाना पड़ा। वहां जाकर मैंने देखा कि बच्चे भी कम्प्यूटर से तेज थे। लिहाजा मैं हर रोज उम्मीद हारने लगा और काफी मेहनत के बाद भी प्रतियोगी परीक्षा में पूरी तरह असफल रहा। इस घटना के बाद मैं मैं बुरी तरह से टूट गया, और ज्यादा बीमार रहने लगा, मुझे पढाई छोड़कर घर वापस जाना पड़ा और बिस्तर पर पड़ा रहने लगा। दो सालों तक मैं अवसाद के अंधेरे में समाया रहा।मेरा डिप्रेशन इतना सीवियर हो गया कि मैं पूरे तरीके से हार चुका था।

दो साल की लंबी जद्दोजहद के बाद अनुराग ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और ग्रेजुएशन करने दिल्ली पहुंचे। लेकिन दिल्ली के बढ़ते पॉल्यूशन के कारण अनुराग Allergetic Bronchaitis, Asthematic Allergy और Lungs Infection जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ गए। वहीं इन सब बीमारियों के चलते वो एक बार फिर डिप्रेशन के गहरे दलदल में समा गए। यहां तक कि उन्होंने कई बार जिंदगी को ही अलविदा कहने का मन बना लिया।अनुराग की स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी। अनुराग अवसाद के गहरे अंधेरे में समाते जा रहे थे। इस दौरान उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें मनोचिकित्सक की सलाह लेने के लिए कहा। इसका अनुराग पर अच्छा असर हुआ और उनकी मानसिक स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। उनकी तबीयत भी पहले से ठीक रहने लगी। अनुराग कहते हैं कि बीमारियों को मात देने के बाद जैसे मुझे नया जन्म मिल गया। मैंने सोच रखा था कि मैं अन्तिम साँस तक हार नहीं मानूंगा और अंत में, मैं जैसे जीत गया। अनुराग ने अपनी जिंदगी से प्रेरणा लेकर अंग्रेजी में एक किताब भी लिखी  ‘Struggle of a Star and a Beautiful Love Story’। एक वक्त था जब दोस्त और साथी इंग्लिश को लेकर उनका मजाक उड़ाते थे। यहां तक कि उन्हें गंवार कहते थे। ‘Struggle of a Star and a Beautiful Love Story’ किताब के लिए इंडियन आवाज फाउंडेशन ने अनुराग का चयन टॉप टेन ऑथर में किया।

अनुराग का मानना है कि भारत में अभी डिप्रेशन को शायद उतनी गंभीरता से नहीं देखा रहा है जितनी गंभीरता से इसे देखने की जरूरत है।आंकड़ों के मुताबिक भारत में 90 प्रतिशत मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग अब भी उपचार की सुविधा के पहुंच से बाहर हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश में मानसिक बीमारी को एक कलंक की तरह देखा जाता है। ‘मैं पागल नहीं हूं,’ तो फिर मैं मनोरोग विशेषज्ञ के पास क्यों जाऊं? रोगी की इस सोच को बदलने की जरूरत है। भारत में हर तीन मिनट में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। इससे भी ज्यादा अफसोस इस बात का है कि डिप्रेशन की बीमारी का इलाज होते हुए भी ऐसा होता हैं। यदि आप डिप्रेशन के साथ जी रहे हैं तो याद रखिए की इसमें आपकी कोई गलती नही है। मदद लेना बहादुरी का काम है। आप डिप्रेशन के खिलाफ जंग जीत सकते हैं।

मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ अनुराग को डिप्रेशन से बाहर निकालने में  ही सबसे अहम रोल उनकी हिम्मत और दृढ़ इच्छाशक्ति का रहा है। अनुराग ने अवसाद के दौर में अपने पसंदीद काम या फिर यूं कहें कि शौक को पूरा करने का साहस जुटाया और लिखने के साथ ही और खाना बनाना शुरू किया। “स्ट्रगल ऑफ ए स्टार एंड ए ब्यूटीफुल लव स्टोरी” नामक किताब के रूप में अनुराग का राइटिंग टैलेंट बाहर आया। इस किताब ने युवाओं के बीच मस्ट रीड का दर्जा हासिल किया। अनुराग अगर अपने वीक इम्यून सिस्टम और कमजोर अंग्रेजी की वजह से हार मान लेता तो शायद युवाओं का पसंदीदा लेखक बनने की खुशी कभी महसूस नहीं कर पाता।

अपने अनुभवों और समाज में फैली निगेटिविटी को खत्म करने के लिए अनुराग ने ‘सफलता तय’ है नाम से एक और मोटिवेशनल किताब लिखी, जिसका प्रकाशन हिंदी युग्म प्रकाशन ने किया है। सफलता तय है ऐसे विचारों का संग्रह है जो अनुराग ने उस दौर में लिखे हैं, जब वो डिप्रेशन समेत कई बीमारियों के कारण जिंदगी और मौत के बीच जारी संघर्ष में खुद को उबारने का साहस जुटा रहे थे। अनुराग की ये किताब जिंदगी के प्रति आपका नजरिए बदल जीने की कला सिखाती है।डिप्रेशन से जंग जीतने वाले अनुराग कहते हैं कि अब मुझे नया जीवन मिल गया है। मैं अब खुल कर अवसाद और मेरे संघर्ष के बारे मे बात करता हूं ताकि लोगों को मेरी कहानी से साहस मिल सके। अनुराग आगे बोलते हैं कि मेरे जीवन में भी कई बदलाव आए हैं।  पहला तो मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से प्रथम श्रेणी में ग्रेजुएशन पूरा किया, जो कभी मुझे नामुमकिन लगता था। इतना ही नहीं अनुराग ने अपनी तीसरी किताब “हरदोल एक महान शासक” भी पूरी कर ली है, जो बुंदेलखंड के हरदोल शासक के जीवन के अनछुए पहलू को सामने लाती है। इतिहास और साहित्य के प्रति लगाव ने अनुराग को युवा लेखक बना उस मुकाम पर पहुंचा दिया है, जहां पहुंचने में लोगों को काफी वक्त लग जाता है। डिप्रेशन के दौरान खुद को जीवित रखने के लिए अनुराग ने कुकिंग का सहारा लेते हुए ऋषि की रसोई नाम से अपना एक यू ट्यूब चैनल भी शुरू किया था। हाल ही में ऋषि की रसोई ने दो सौ एपिसोड/वीडियोस पूरे कर लिए हैं। जिसे लेकर उत्साहित अनुराग कहते हैं कि हमारी शुरूआत तंदूरी चाय के एक छोटे से वीडियो से हुई थी और अब हम 200 वीडियो पार कर चुके हैं। 

अनुराग सफलता और असफलता के बीच के अंतर को पॉजिटिव अंदाज में बयां करते हुए कहते हैं कि, सफल ना होने की खुशी बहुत मजेदार होती है क्योंकि फिर आपके जीवन में और भी लक्ष्य होते हैं। वर्ना आप अवसर तलाशना छोड़ देते हैं और ज़िन्दगी का मज़ा ही हर पल संघर्ष करने में है।

अवसाद जैसी गंभीर और भयंकर बीमारी से उबरकर अनुराग ने न केवल खुद को काबिल बनाया बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी एक प्रेरणा बनें जो कहीं न कहीं अवसादग्रस्त हैं और जीने की उम्मीद छोड़ चुके हैं। अनुराग की कहानी साबित करती है कि इच्छाशक्ति के आगे दुनिया की हर ताकत फीकी है। वहीं अनुराग अवसाद से ग्रस्त निराश और जिंदगी से हताश हो चुके लोगों को संदेश देते हैं कि…

आपके अंदर एक रोशनी है और मेरे अंदर भी। हम सब के अंदर रोशनी  है और इस रोशनी को कभी बुझने मत दीजिएगा।


 

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