रंगों ने उसकी ज़िंदगी को कुछ इस तरह रंगा कि उसे सारी दुनिया रंगीन नज़र आने लगी और फिर वो दुनिया को रंगती चली गई। जिसने भी उसके रंग देखे, वो दंग रह गया। रंगों की इस यात्रा ने कामयाबी के नए-नए आयाम भी देखे लेकिन अपने हुनर से एक विलुप्त होती कला को जीवंत बनाए रखने का उसका फितूर आज भी उसी शिद्दत से जारी है।
कहते हैं मजबूत इरादों पर उम्र की दीमक नहीं लगती। अगर ठान लें तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है फिर उम्र तो महज एक आंकड़ा भर है। दीपाली सिन्हा भी एक ऐसी ही शख्सियत हैं, जिन्होंने उम्र की परवाह किए बगैर जमाने से हटकर सोचा, एक नई सोच को अंजाम देकर कामयाबी की बुलंदियों तक खुद को पहुंचाया और लीक से हटकर अपनी पहचान बनाई।
दीपाली सिन्हा ने अपने पैशन को प्रोफेसन बनाने का जब फैसला लिया, उस वक्त उनकी उम्र 40 साल थी। उम्र के इस पड़ाव पर लीक से हटकर अपने करियर के साथ इतना जोखिम लेने का जज्बा कम ही देखने को मिलता है। लेकिन खुद की पहचान बनाने और बच्चों को एक बेहतर कल देने के लिए दीपालीजी ने अपने जुनून को कभी कम नहीं होने दिया।
रंगों की समझ और कला से लगाव ने दिल्ली के इंदिरापुरम में रहने वाली एक हाउस वाइफ दीपाली सिन्हा को ना सिर्फ नई पहचान दी बल्कि आर्थिक तौर पर भी सशक्त बनाया। अपनी मेहनत और लगन के बूते दीपाली ने उत्तर भारत की पहली कथकली मेकअप आर्टिस्ट (‘चुट्टीकारन’) होने का गौरव हासिल किया। दीपाली सिन्हा ने एक ऐसी कला से अपनी खास पहचान बनाई है जो अधिक लोकप्रिय नहीं है। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने ऐसे समय में इसे सीखना शुरु किया, जिस उम्र में लोग अपने कामकाज और तमाम जिम्मेदारी से फ्री होकर आराम की जिंदगी जीने की चाहत रखते हैं। आज दीपाली सिन्हा कथकली मेकअप के क्षेत्र का जाना-माना नाम हैं। इसके लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है लेकिन शून्य में अपने अस्तित्व को स्थापित करने का उनका ये सफर कभी इतना आसान भी नहीं रहा।
मध्यप्रदेश के छोटे से कस्बे हटा से तालुक रखने वाली दीपाली का शुरू से ही कला और संस्कृति से खास लगाव रहा। छोटी जगह में रहने के बावजूद उन्होंने ख्वाब हमेशा बड़े बुने और इसके लिए उनका हौंसला बने उनके वकील पिता। दीपाली ने फिजिक्स में एमएससी और एमसीए करने के बाद कुछ समय एनआईटी में बतौर कम्प्यूटर इंजीनियर काम किया। फिर शादी के बाद बच्चों की परवरिश के लिए नौकरी छोड़ने का फैसला लिया।
दुनियाभर में मशहूर केरल का कथकली नृत्य 300 साल पुराना है। कथकली में कलाकार के आंखों के हाव-भाव जितनी अहम भूमिका निभाते हैं, उतना ही अहम रोल मेकअप का भी होता है। इसके लिए ख़ास मेकअप आर्टिस्ट होते हैं, जिन्हें ‘चुट्टीकारन’ कहा जाता है। इस कला में मेकअप चेहरे और चरित्र को बदलने में अपना जादुई असर डालता है। दूसरे शब्दों में कहें तो कथकली में कलाकार का मेकअप उसे पौराणिक चरित्र बना देता है। मेकअप आर्टिस्ट दीपाली सिन्हा बताती हैं कि कथकली मेकअप करना एक खास किस्म का हुनर है। मेकअप में वो जादू है, जो चरित्र के हिसाब से कलाकार का पूरा व्यक्तित्व बदल सकता है। नृत्य के हर एक किरदार को तैयार करने में 3 से 4 घंटे का समय लगता है। दीपाली कथकली मेकअप के लिए रंग भी खुद ही अपने घर में बनाती हैं।
दीपाली इस अनोखी और विलुप्त होती कला को जीवंत बनाने के लिए जी-जान से जुटी हुई हैं और अन्य लोगों को भी इससे जोड़ रही हैं। इस कला को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए दीपाली अलग-अलग राज्यों में इसका आयोजन भी करती हैं। उत्तर भारत में इस कला को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कुछ साल पहले ‘शुभदीप’ नाम से एक स्कॉलरशिप भी शुरू की है।
कला और संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय रहने वाली दीपाली प्रकृति से भी खासा लगाव रखती हैं। पिछले कई सालों से उन्होंने पर्यावरण को बचाने और लोगों को जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए उन्होंने वाकायदा एक संस्था वेस्ट मैनेजमैंट रीसायक्लिंग सोसाइटी (डब्लूमार्स) बनाई है, जिसका मकसद देश में प्लास्टिक वेस्ट के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना और उससे निजात पाने के तरीकों को लोगों तक पहुंचाना है। डब्लूमार्स सरकार की प्लास्टिक की पाबंदी पर सख्ती से लिए गए निर्णय का साथ देने के लिए प्रतिबद्ध है।
दीपालीजी का मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है। पर्यावरण को बचाने के लिये रखा गया हर कदम, आगे आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ और खुशहाल जीवन दे सकता है। सामाजिक क्षेत्र में सराहनीय काम और व्यापी ‘कचरा प्रबंधन’ के कार्य के लिए दीपाली सिन्हा को कालिन्दी अवार्ड से सम्मानित भी किया गया है।
डब्लूमार्स संस्था देश में काफी समय से प्लास्टिक प्रबंधन पर कार्य कर रही है। इसके लिए संस्था समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम, युवाओं के लिए स्पर्धायें, स्कूलों में वर्कशापस आदि करवाती रहती है। गांधी जयंती के मौके पर डब्लूमार्स की तरफ से मध्यप्रदेश के 10 स्कूल में एक साथ अवेयरनेस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान बच्चों का बच्चों का मनोबल बढाने के लिए ईनाम के रूप में सर्टिफ़िकेट और कपड़े के बैग बांटे गए। फिलहाल डब्लूमार्स मध्यप्रदेश के साथ-साथ देश के पांच राज्यों में काम कर भारत को प्लाष्टिक मुक्त बनाने की मुहिम में अपना कीमती योगदान दे रहा है।
दीपाली सिन्हा एक ऐसी शख्सियत हैं जो समाज की बेहतरी और बदलाव के लिए एक साथ कई क्षेत्रों में प्रभावी भूमिका निभा रही हैं। अपनी कला के हुनर से जहां वो समय के साथ धुंधली पड़ती कथकली की चमक को लोगों के बीच ले जाकर फिर से बिखेरने का प्रयास कर रही हैं, डब्लूमार्स संस्था के जरिए प्रदूषण के खिलाफ जंग छेड़ रही हैं वहीं ‘नारी शक्ति को प्रणाम’ संस्था की मध्यप्रदेश अध्यक्ष के तौर पर समाज की गुमनाम मगर असल नायिकाओं को सामने लाकर पहचान और सम्मान दिलाने के साथ ही उनका हौंसला अफजाई कर रही हैं।
“ये जीवन एक उत्सव है मनाकर तो देखो, धरती का कण-कण उर्वर है तुम फूल खिलाकर तो देखो” इन शब्दों को सही मायने में चरितार्थ किया है दीपाली सिन्हा ने। जिनकी कहानी साबित करती है कि अगर इरादा पक्का हो तो बड़ी से बड़ी दीवार भी गिर जाती है। उम्र चाहे कितनी भी हो अगर मन में कुछ करने की चाह हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता।
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