‘मैं कड़ी धूप में चलता हूं इस यकीन के साथ कि मैं जलूंगा तो मेरे घर में उजाले होंगे’…जी हां हमारी आज की कहानी भी एक छोटे से गांव में बेहद साधारण परिवार में जन्मे एक ऐसी शख्सियत के साहस, संघर्ष और सफलता के सफर की है, जिसने नियति को बदलते हुए अपना भाग्य खुद लिखा। तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए खुद अपना भविष्य गढ़ा और हौंसलों के बूते अपने अरमानों का आसमां हासिल किया। आज उनके संघर्ष की कहानी उन तमाम लोगों के लिए अंधकार में रोशनी की किरण की तरह है, जिनके सपने हालातों के आगे हार मानकर दम तोड़ देते हैं।
कहते हैं प्रतिभा ना हालात देखती है और ना ही अमीरी-गरीबी का फर्क जानती है। वो तो बस साबित होने का अवसर तलाश करती है। और जैसे ही वो अवसर मिलता है, दुनिया के आगे अपना लोहा मनवा लेती है या फिर यूं कह लीजिए कि कुछ लोग भले ही साधारण परिवार में जन्म लेते हैं, लेकिन उनमें इतनी काबिलियत होती है कि वो अपने मजबूत इरादों के दम पर सपनों को सच की सूरत में ढालने में कामयाब हो जाते हैं। विदिशा कलेक्टर आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह की कहानी भी इसी की एक बानगी है। जो साबित करती है कि कामयाबी के लिए अच्छे हालात नहीं, हौंसले जरूरी होते हैं।
2009 कैडर के आईएएस अफसर कौशलेंद्र विक्रम सिंह मूल रूप से उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले के महेशपुर गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता बिंद्रा सिंह सिंचाई विभाग (इरीगेशन) में नलकूप चालक रहे और अपने हिस्से की पूरी खुशियां बेटों के भविष्य को संवारने में न्यौछावर कर दी। कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने गांव के ही सरकारी स्कूल में हिन्दी माध्यम से अपनी पूरी पढ़ाई की। जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई को लेकर अक्सर सवालिया निशान लगता रहा है, एक बड़ा वर्ग जिन सरकारी स्कूलों को हमेशा हेय की नजर से देखता है, कौशलेंद्रजी उसी स्कूल से निकलकर एक आईएएस अफसर बनते हैं और साबित करते हैं कि सरकारी स्कूल में पढ़कर भी जिंदगी में श्रेष्ठ मुकाम पाया जा सकता है।
कौशलेंद्र जी अतीत के पन्नों को पलटते हुए बताते हैं कि कक्षा दूसरी की पढ़ाई के दौरान लिखने पढ़ने में वो काफी कमजोर थे लिहाजा उन्हें अक्सर टीचर की मार पड़ती थी। एक बार कुछ गलत लिखने पर टीचर ने उनकी कापी फाड़कर फेंक दी थी। इस घटना ने झकझोर दिया। इसके बाद मन में ठान लिया था कि इसी कक्षा में सबसे अव्वल आऊंगा। जमकर मेहनत करने के बाद कक्षा दूसरी में पहले नंबर पर आया। इसके बाद पढ़ाई की ऐसी धुन लगी कि नंबर 1 पर आने का सिलसिला आखरी तक जारी रहा। इंटरमीडिएट के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे इलाहाबाद चले गए और आगे की तैयारी में जुट गए।
एक छोटे से गांव में रहने के बावजूद कौशलेंद्रजी ने कभी छोटे सपने नहीं देखे। ग्रामीण परिवेश में परवरिश और बेहतर संसाधनों की कमि भी कौशलेंद्र जी को अपने ख्वाबों तक पहुंचने से नहीं रोक सकी।
कहते हैं हर सक्सेस के पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी होती है। ऊपर से जब कोई युवा अपने हालात को पछाड़ते हुए देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में काबिज होता है, तो पूरे समाज के लिए हीरो बन जाता है। साधारण परिवार से होने के बावजूद असाधारण सफलता हासिल करने वाले कौशलेंद्र विक्रम सिंह भी ऐसी ही शख्सियत हैं, जिनकी मेहनत पत्थर की लकीर बन कर उभरी है।
जिंदगी में सफलता और असफलता दोनों मिलती हैं, लेकिन असफलता मिलने का मतलब जिंदगी में रुक जाना नहीं बल्कि एक सबक होता है। हारते तो वहीं है जो चुनौतियों से लड़ते नहीं और जीतते वहीं है जो कुछ कर गुजरने की ठान लेते हैं। कौशलेंद्र विक्रम सिंह के जीवन संघर्ष की कहानी कुछ यही कहती है। इलाहाबाद से ग्रेजुएशन (एमए) करने के बाद कौशलेंद्रजी जेएनयू और डीयू जैसे देश के अच्छे और चुनिंदा इंस्टीट्यूट में दाखिला लेना चाहते थे। उनके दोस्तों से लेकर शिक्षकों तक को उन पर पूरा भी भरोसा था लेकिन अनिश्चितता से भरी जिंदगी का खेल देखिए कौशलेंद्रजी को उनकी पसंद की कॉलेज नहीं मिली जबकि उनके ज्यादातर दोस्त इन संस्थानों में प्रवेश लेने में सफल रहे। हालांकि जिंदगी के इस कड़वे अनुभव के बाद भी उन्होंने उम्मीद नहीं हारी और एक बार फिर नए हौंसले के साथ जुट गए नेट की तैयारी में। लेकिन एक बार फिर किस्मत ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया और वो नेट क्लियर करने में नाकाम रहे।
अच्छे इंस्टीट्यूट में दाखिला ना मिलने और पहले प्रयास में नेट में सफल ना होने के बाद बाकी लोगो की तरह कौशलेंद्रजी को भी खुद पर खूब गुस्सा आया होगा, घरवालों के सपने टूटने से लेकर कई तरह की तमाम कुशंकाओं ने दिमाग में घर करना शुरू कर दिया होगा लेकिन कौशलेंद्र सिर्फ प्रवेश परीक्षा में नाकाम हुए थे, जिंदगी में नहीं। लिहाजा इन परस्थितियों में लोग जितना साहस गलत कदम उठाने के लिए जुटाते हैं, सकारात्मक सोच रखने वाले कौशलेंद्रजी ने उस साहस और गुस्से को अपनी कमजोरी के खिलाफ इस्तेमाल कर खुद को और मजबूत बनाने का फैसला लिया।
शायद ये कौशलेंद्रजी की जिंदगी का सबसे मुश्किल समय था। ग्रेजुएशन और पीजी के बीच मिली छोटी-छोटी नाकामियों ने उन्हें अंदर से तोड़कर रख दिया। निराशा और अवसाद की काली रात, हर तरफ मुश्किलें और हार का भय। चुनौतियां मुंह बाए अपने विकराल रूप में खड़ी रहीं, लेकिन इन सबसे बेखबर वो अपने हुनर और अदम्य साहस के साथ जुटे रहे काली रात को भोर में बदलने के लिए। कई बार ऐसा लगा कि नहीं, शायद अब और नहीं मगर तभी उन्हीं अंधेरों के बीच से जिंदगी ने कहा कि देखो उजास हो रहा है और आखिरकार कौशलेंद्रजी की मेहनत रंग लाई। उन्होंने न सिर्फ पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस जैसी कठिन परीक्षा पास की बल्कि जीआरएफ में भी शानदार नंबर लाकर सबको चौंका दिया।
आमतौर पर कलेक्टर का नाम आते ही लोगों के मन में एक रौबदार इंसान की छवि उभरती है। जो शानदार एसी रूम में बैठकर हर काम के लिए अपने मातहतों को आदेश देता है लेकिन मध्यप्रदेश के विदिशा जिले से एक ऐसी तस्वीर निकलकर सामने आई जिसने अफसरशाही को आईना दिखाने का काम किया। हालांकि एक जिले का मुखिया हाथ में फावड़ा और तसला लेकर नाली की सफाई करते नजर आए तो यकीन करना थोड़ा मुश्किल होगा। लेकिन यकीन मानिए मुंह पर मास्क, हाथों में दस्ताने और कीचड़ से भरा तसला उठाए नजर आने वाले ये शख्स कोई और नहीं बल्कि वर्तमान में विदिशा कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह है। जिन्होंने अपनी सादगी से बड़े अफसरों को लेकर चली आ रही लोगों की धारणा को तोड़ने के साथ ही सफाई अभियान को आम आदमी के जीवन का हिस्सा बनाने के लिए अनोखी मिसाल पेश की।
जब हम अपने दम पर जमाने की सोच बदलने की कोशिश करते हैं तो हमें दूसरो पर प्रभाव छोड़ने के लिए लीक से हटकर कुछ अलग करने की जरुरत होती है। और कुछ कर्मठ आईएएस जब लीक से हटकर काम करते हैं तो सुर्खियों में आते हैं और वो खुद उदाहरण पेश कर मातहतों को काम के लिए प्रेरित करते हैं।
दरअसल कलेक्टर ने शहर में गंदगी और नालियां देखीं तो उन्हें दुख हुआ। कर्मचारियों को निर्देश देने के बाद भी हालात नहीं सुधरे तो कलेक्टर कौशलेंद्रजी ने खुद नालियां साफ करने की ठानी। वह रोज सुबह नालियां साफ करने के लिए सड़क पर निकल पड़ते हैं। उन्हें ऐसा करता देख शहरवासी के साथ-साथ दूसरे अधिकारी और सफाई कर्मचारी भी इस अभियान में जी-जान से जुट गए और उनकी यह मुहिम रंग लाने लगी। इतना ही नहीं सूबे के मुखिया कमलनाथ ने भी उनकी इस पहल की सराहना की है। जब प्रदेश का मुखिया किसी की तारीफ करे, तो यह छोटी मोटी बात नहीं जरूर उनका प्रदर्शन राज्य के अन्य अफसरों से श्रेष्ठ रहा है।
कहते हैं कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता, उसके कर्म उसका कद ऊंचा करते हैं। ये बात आईएएस कौशलेंद्र सिंह पर बिल्कुल सटीक बैठती है। समानता में विश्वास रखने वाले कौशलेंद्र सिंह का मानना है कि कर्मचारियों को डांट-डपटकर सिर्फ औसत दर्जे का काम लिया जा सकता है, मगर प्रोत्साहन और स्वयं की सहभागिता से भरपूर नतीजे निकाले जा सकते हैं। वहीं जो काम समाज के लिए करना है, उसमें समाज को साथ लेकर ही अच्छे से किया जा सकता है। कौशलेंद्रजी ने कभी भी किसी को एहसास ही होने नहीं दिया की वो आईएएस हैं।
टीम को जोड़ना और सभी को साथ लेकर चलने की कला ही एक कुशल कप्तान की असली पहचान होती है। विदिशा कलेक्टर आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह के नेतृत्व की सबसे बड़ी ताकत भी यही है, वो हमेशा सबको जोड़कर और साथ लेकर चलते हैं।
‘कर्म ही पूजा है’ वाक्य को जीवंत करते हुए आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने मध्यप्रदेश में दशकों से चली आ रही उस धारणा को गलत साबित किया है कि, नौकरशाह केवल दफ्तर में आराम करने के लिए होते हैं। सच कहें तो उन्होंने खुद को सही मायने में लोकसेवक समझा है। एक बेहतर अधिकारी के साथ ही एक बेहतर इंसान को पाकर जिलेवासियों में खुशी छा गई।
आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह की डिक्शनरी में हार और नाकामयाबी के लिए जगह ही नहीं है। वो मुश्किल काम को भी बखूबी करना जानते हैं। जिसकी बानगी उस वक्त देखने को मिली जब कौशलेंद्रजी साल 2014-15 में नरसिंहपुर में जिला पंचायत सीईओ के पद पर तैनात थे। कौशलेंद्रजी ने अपने दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास के दम पर महज दो महीने के भीतर ही नरसिंहपुर के बेहद पिछड़े इलाके चावरपाठा को प्रदेश के पहला ओडीएफ ब्लॉक बनाया जबकि इंजीनियर से लेकर जिले और पंचायत के तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों ने चावरपाठा को इतने कम समय में खुले में शौच मुक्त बनाने के काम को नामुमकिन करार दिया था। बाद में नरसिंहपुर भी प्रदेश का पहला ओडीएफ जिला बना।
इतना ही नहीं कौशलेंद्रजी ने अपने कुशल नेतृत्व के दम पर बेहद कम समय में सागर की सूरत बदलकर कायाकल्प करने का भी कारनामा कर दिखाया। दिसंबर 2015 से मई 2017 तक सागर नगर निगम में कमिश्रनर रहे आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने शहर की स्वच्छता रैकिंग 336 से सुधारकर 23वें नंबर पर ला दी और सागर को वेस्ट जोन में फास्टेस्ट मूविंग सिटी का अवार्ड लाया।
जून 2017 से जून 2018 तक नीमच में कलेक्टर रहते हुए कौशलेंद्रजी ने अपने काम से सभी को प्रभावित किया। पीएम आवास योजना में तैयार किये गए मकानों को सम्पूर्ण घर में तब्दील करने के लिए उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथो एक्सीलेंसी अवार्ड से सम्मानित किया गया। पीएम आवास योजना में नीमच कलेक्टर रहते हुए उनके प्रयास को एक मॉडल के रूप में लिया गया, जिसका दिल्ली की टीम ने निरीक्षण किया और पाया कि पीएम आवास के इन मकानों में बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के साथ ही गैस कनेक्शन, वृद्धा अवस्था पेंशन जैसी तमाम सुविधाओं का लाभ दिया गया है। दरअसल कौशलेंद्रजी ने नीमच में पीएम आवास योजना को कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट के बजाए सोशल प्रोजेक्ट समझकर काम किया। 150 महिला स्वसहायता समूहों को काम में लगाया और देशभर में सबसे अच्छे पीएम आवास बनाकर जिले का मान बढ़ाया।
कुछ समय पहले विदिशा के ब्लड बैंक में रक्त की भारी कमी होने के चलते एक अनूठी पहल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह के निर्देश पर चलाई गई। समस्या का हल करने के लिए उन्होंने स्वयं रक्तदान तो किया ही, साथ ही एडीएम, एसडीएम, डिप्टी कलेक्टर समेत सभी प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों को ब्लड डोनेट करने के लिए प्रेरित किया।
हाथों की लकीर बदलकर अपनी मेहनत और लगन से अपनी तकदीर खुद लिखने वाले कौशलेंद्रजी की कलेक्टर बनने की कहानी तो प्रेरणादायक है ही लेकिन कलेक्टर के रूप में उनकी सेवा की कहानी और भी प्रेरणादायक और अनुकरणीय है।
बेशक ब्यूरोक्रेसी इस देश का सबसे शक्तिशाली तंत्र है, जो समाज में बदलाव का माद्दा रखती है। अफसर अपने काम से प्रेरित कर न सिर्फ खराब सिस्टम को दुरुस्त कर सकते हैं, बल्कि लोगों की जीवनशैली को भी बेहतर बना सकते हैं। आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह की कार्यशैली इस बात को और पुख्ता करती है। कलेक्टर रहते हुए उन्होंने अपनी सादगी और सहजता से आम जनता और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की खाई को खत्म कर दिया है।
अपनी सादगी-सरलता और दूरदर्शिता के लिए पहचाने जाने वाले विदिशा कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह की संवेदना और दूसरों के दर्द को दूर करने की चेष्टा, उन्हें आवाम का चहेता बनाती है। निराशा के इस दौर में मानवीय संवेदना को उम्मीदों का बल देती ऐसी ही एक तस्वीर उस वक्त देखने को मिली जब एक बुजुर्ग काशीराम जनसुनवाई के दौरान अपनी पीड़ा लेकर कलेक्टर के पास पहुंचा। वृद्ध काशीराम वैसे तो अपनी जमीन संबंधी समस्या लेकर पहुंचा था लेकिन बातचीत के दौरान कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह ने महसूस किया कि काशीराम को सुनने में समस्या हो रही है। लिहाजा कलेक्टर ने दरियादिली दिखाते हुए फौरन ही बुजुर्ग काशीराम के लिए कान की मशीन (श्रवण यंत्र) मंगाकर दी और फिर उनकी जमीन संबंधी समस्या का हल किया।
कहते हैं जब कोई जब कोई आदमी तरक्की की राह पकड़ता है, तो अपनी जमीन और जड़ को भूल जाता है लेकिन विदिशा कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह ने इससे इतर संवेदनशीलता और कर्तव्यभाव की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसे न सिर्फ लंबे समय तक याद रखा जाएगा बल्कि देश के दूसरे अफसर और बड़े व्यक्तियों को भी इससी प्रेरणा मिलेगी।
बिना किसी शान-ओ-शौकत में पले, एक मामूली परिवार से अपनी जीवन यात्रा शुरू कर आईएएस बने कौशलेंद्र विक्रम सिंह आज अगर अपने दौर के नौजवानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं, तो उनकी कामयाबी की मिसाल सिर्फ उनके जीवन का उजाला नहीं, बल्कि उनके हिस्से के जीवन का सबक पूरी युवा पीढ़ी की भी राह को रोशन कर रहा है। इसीलिए वो आज के नौजवानों को कभी हिम्मत न हारने की सीख देना भी अपनी जिम्मेदारी मान रहे हैं। पॉजिटिव इंडिया का सलाम है ऐसी शख्सियत को जिसने दृढ़ निश्चिय और मेहनत से पहले अपनी जिंदगी बदली और अब उनकी कहानी हजारों लोगों की जिंदगी बदल रही है।
Aapke struggle ko Naman karta hu sir
Aapse sikhne ko bahut mila