स्वार्थ से ठसाठस भरी इस दुनिया में आज भी हमारे आसपास ऐसे कई लोग मौजूद हैं, जिनकी कहानियां साबित करती हैं कि अभी भी कुछ अच्छे लोग पृथ्वी नाम के इस गोले में मौजूद हैं। जो अपना सुख-दुख भूल निस्वार्थ भाव से दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने में पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं। कोई 45 एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को गोद लेकर इंसानियत की नई इबारत लिख रहा है तो कोई महज 20 साल की उम्र में 23 बच्चों का पिता बनकर उन्हें डॉक्टर-इंजीनियर बनाने में जुटा हुआ है।
तमिलनाडु के चेन्नई में रहने वाले सोलोमन राज को 45 एचआईवी पॉजिटिव बच्चे ‘अप्पा’ (पापा) कहकर बुलाते हैं। सोलोमन की कहानी कुछ ऐसी है कि शादी के आठ साल बाद उन्हें औलाद नहीं हुई। ऐसे में उनके अंदर जरूरतमंद एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को गोद लेने की इच्छा हुई। वो इसके लिए कुछ करते, इससे पहले ही खुद पिता बन गए लेकिन इसके बाद भी एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को गोद लेने का उनका सपना पीछे नहीं छूटा। जल्द ही उन्होंने अपना पहला एचआईवी पॉजिटिव बच्चा गोद लिया। सिलसिला आगे बढ़ा तो देखते ही देखते यह संख्या 45 के पार पहुंच गई। ये सभी बच्चे सोलोमन ‘शेल्टर ट्रस्ट’ में रहते हैं। इनमें से कुछ बच्चे नौंवी के छात्र हैं। कुछ ग्याहरवीं के, तो कुछ ग्रेजुएट कर रहे हैं।
20 साल के ‘वाली रहमानी’ दिल्ली स्थित ‘जामिया हमदर्द’ में लॉ के स्टूडेंट हैं। उन्होंने 23 अनाथ बच्चों अपना नाम दिया और उनके पिता बन गए। इतना ही नहीं वो वाकायदा एक पिता के तौर पर तमाम जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रहे हैं। 12वीं पास करने के बाद 2018 में ‘वाली’ ने उम्मीद नाम की एक संस्था बनाई। इसके तहत सबसे पहले 3 बच्चे को गोद लिए। फिर साल पूरा होते-होते यह संख्या 23 के पार पहुंच गई। इसमें 11 बच्चे अनाथ हैं जबकि 12 बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है। ‘वाली रहमानी’ इन सभी बच्चों के खाने-पीने और शिक्षा का पूरा ख्याल रखते हैं। साथ ही उम्मीद रखते हैं कि आगे चलकर इनमें से कोई आईएएस, कोई इंजीनियर, तो कोई डॉक्टर बनकर समाज कल्याण में काम करेगा।
कोलकाता में ऑनलाइन फूड कंपनी Zomato में काम करने वाले पथिकृत साहा ऑनलाइन खाना ऑर्डर कैंसिल होने पर, उसे अनाथ बच्चों के पास लेकर पहुंच जाते हैं ताकि उनकी भूख मिट सके। इसके अलावा ड्यूटी खत्म होने पर वो इन बच्चों को रेलवे स्टेशन पर बैठकर पढ़ाते भी हैं।
करीब चार साल पहले वो कोलकाता नगर निगम में कर्मचारी हुआ करते थे। एक दिन उन्होंने बाजार में कुछ बच्चों को खाने के लिए पैसे मांगते देखा। इस घटना ने उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल दिया और उन्होंने अपनी नगर निगम की नौकरी छोड़कर Zomato में डिलेवरी ब्यॉय की नौकरी ज्वॉइन कर ली ताकि वो ऑर्डर किए गए खाने के कैंसिल होने पर, उसे जरूरतमंद बच्चों के पास पहुंचा सकें। धीरे-धीरे उन्हें अपने इस काम में सफलता मिली। आज वह इस काम को बखूबी कर रहे हैं।
दिल्ली के रहने वाले जसविंदर सिंह 120 लड़कियों की एक पिता की तरह देखभाल करते हैं। उनके मुताबिक “यह सब उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वो बच्चों के लिए जो कुछ कर सकते हैं, कर रहे हैं। उनकी यही कोशिश है कि इन बच्चों के जीवन में बदलाव आ सके। इसके लिए वह प्रोत्साहन नाम के एनजीओ से भी जुड़े हुए हैं। वाकई जसविंदर उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जो संतान न होने की वजह से जिंदगीभर दुखी रहते हैं।
कभी-कभी हम सोचते हैं कि इतनी नफरत, इतनी बुराईयां, इतना झगड़ा, इतनी मारा-मारी के बीच भी ये दुनिया कैसे चल रही है? लेकिन आज भी कई लोगों के अंदर इंसानियत जिंदा है। यही इंसानियत इस दुनिया को चला रही है। जिसका जीता जागता उदाहरण हैं ऐसे लोग, जो एक पिता की तरह समाज में अपना काम रहे हैं और फादरहुड के बड़े उदाहरण हैं।