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‘नई सोच के नायक’

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बदलाव के इस दौर में जिंदगी के मायने भी तेजी से बदलते जा रहे हैं। कोई जिंदगी में शोहरत पाना चाहता है, कोई दौलत कमाना चाहता है तो किसी को रुतबा भाता है। कमोबेश यहां हर कोई सिर्फ अपने लिए जीता है, अपनी ही जिंदगी में व्यस्त रहता है। लेकिन हमारी आपकी इसी दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो दूसरों के दर्द को अपना समझते हैं और पूरी शिद्दत के साथ उनकी समस्या को दूर करने में जुट जाते हैं। हमारी आज की कहानी भी एक ऐसी शख्सियत की है, जिनकी समाज के लिए कुछ करने की जिद्द और दूसरों के घाव पर मरहम लगाने का जज्बा उन्हें भीड़ से अलग, असल नायक का दर्जा दिलाता है।

मिलिए अपने इनोवेशन से न्यू इंडिया का सपना साकार करते IAS लोकेश जाटव से

वो लौ बार बार जलती थी और हर बार हवा का झोंका उसे बुझा देता था। बावजूद उस लौ ने जलना नहीं छोड़ा और आज ये एक बड़े बदलाव की लौ बन चुकी है। आलम यह है कि जिनके पास स्कूल की फीस और फार्म भरने तक के पैसे नहीं थे, आज उस घर के बेटे-बेटियां आईआईटी, जेईई और एआईपीएमटी जैसी प्रतियोगिताओं में कामयाबी की नई-नई कहानियां लिख रहे हैं। और ये सब मुमकिन हुआ है एक अफसर की नई सोंच, बुलंद हौसलों और मजबूत इरादों के दम पर। एक ऐसे अफसर, जिन्होंने सामाजिक बदलाव को ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है।

वैसे तो जब किसी कलेक्टर का जिक्र होता है, तो दिमाग में एक सख्त और रौबदार अफसर की छवि उभर आती है, लालबत्ती वाली गाड़ी, सरकारी तामझाम और जी हुजूरी करते मुलाजिम। लेकिन कुछ अधिकारी ऐसे भी होते हैं जिनका अलहद अंदाज जनता का दिल जीत लेता है, वो अपनी जिम्मेदारियों से ज्यादा इंसानियत को तवज्जो देते हैं। उनके लिए किसी पद के कोई मायने नहीं होते। वो काम के प्रति भी बखूबी अपना दायित्व निभाते हैं और सामाजिक कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। सिस्टम में मौजूद विसंगतियों से विचलित होने की बजाए हालात और समाज को बदलने के लिए वो जी-जान से जुट जाते हैं। ऐसी ही एक दमदार शख्सियत हैं 2004 बैच के आईएएस अफसर और इंदौर कलेक्टर लोकेश जाटव। जिन्होंने अपने वीजन और इनोवेशन से पिछड़े और गरीब परिवार के होनहार बच्चों के सपनों को तो पंख दिए ही साथ ही अपनी संवेदनशीलता और कार्यशैली से ब्यूरोक्रेसी को लेकर आम आदमी की सोच बदली और प्रशासन के प्रति जनता में विश्वास भी पैदा किया।

मजबूत इरादों वाले कलेक्टर, जिनके लिए कुछ भी नहीं है नामुमकिन

कवि रामधारी सिंह दिनकर ने सही ही कहा है कि “मनुष्य जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है”। साफ शब्दों में कहें तो अगर इंसान में संघर्ष, साहस और मेहनत करने की काबिलियत हो तो दुनिया में ऐसा कोई मुकाम नहीं है, जिसे हासिल ना किया जा सके।  सरकारी स्कूल से निकलकर सूबे के सबसे काबिल अफसरों में शुमार होने वाले आईएएस लोकेश जाटव की कहानी भी कुछ यही कहती है।

2004 की बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी लोकेश जाटव का जन्म मध्यप्रदेश के बैतूल में हुआ। उनके पिता सेवानिवृत्‍त इनकम टैक्स अधिकारी हैं। आईएएस लोकेश जाटव उन युवाओं के लिए रोल मॉडल हैं, जो हालातों से हारकर आईएएस बनने का सपना अधूरा छोड़ देते हैं। लोकेश जी बताते हैं कि दसवीं के बाद ही उनकी मंजिल तय हो चुकी थी, आईएएस नहीं तो और क्या? किसी दूसरे विकल्प के बारे में कभी सोचा ही नहीं। वही दुनिया थी, वही ख्वाब, वही फितूर और वही मंजिल।

“आम आदमी की सुविधाओं में इजाफा हो, उन्हें कुछ नया देखने, सीखने और करने को मिले” आईएएस लोकेश जाटव की इनोवेशन के जरिए हमेशा यही कोशिश रही है। स्मार्ट वर्क ही उनकी पहचान है। सरकारी कामकाज में तकनीक का इस्तेमाल करने में वो माहिर हैं।इसके लिए उन्हें ई गवर्नेंस अवॉर्ड भी मिल चुका है। सोसायटी में उनकी इमेज सख्त नहीं ,बल्कि सौम्य है। उनके छोटे-छोटे काम लोगों के दिलों में उतर जाते हैं। वो अधिकारियों-कर्मचारियों के टीम वर्क से ही बेहतर लक्ष्य हासिल करने में विश्वास रखते हैं।

‘IAS अफसर जिसने बदल दी, आदिवासी जिले की तस्वीर और तकदीर’

एक ऐसा जिला जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की संभावनाएं ना के बराबर थीं, मगर आज वही जिला शिक्षा के क्षेत्र में इस कदर आगे बढ़ रहा है कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बेहद गरीब परिवार के बच्चे भी देश के चुनिंदा संस्थानों में पढ़कर डॉक्टर और इंजीनियर बन रहे हैं। यकीन मानिए जिस पिछड़े जिले में 10वीं और 12वीं का सम्मानजनक परिणाम लाना भी पहाड़ पार करने सा मुश्किल काम माना जाता था, आज उसी मंडला जिले के बच्चे अपने हुनर से देशभर में जिले का नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन आदिवासी बच्चों की काबिलियत को पहचानकर उन्हें आगे बढ़ाने का ये सफर इतना आसान नहीं रहा, लेकिन 2013 से 2016 तक मंडला में बतौर कलेक्टर पदस्थ रहे आईएएस लोकेश जाटव ने अपनी दूरगामी सोच से इस मुश्किल को भी आसान कर दिया। नवरत्न उत्कृष्ट स्कूल के जरिए अध्यन और अध्यापन की गुणवत्ता सुनिश्चित की गई। नवरत्न विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों के चयन के लिए चयन परीक्षा आयोजित की गई और सबसे अधिक नंबर लाने वाले को वहां पदस्थ किया गया। विद्यालय में लाइब्रेरी से लेकर निजी स्कूलों में मिलने वाली तमाम सुविधाएं मुहैया कराई गईं। इसके अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए ज्ञानार्जन योजना के जरिए एक साफ्टवेयर तैयार कराने के साथ ही सर्व सुविधायुक्त हॉस्टल की नींव रखी, जहां कोटा के बड़े-बड़े कोचिंग संस्थानों की फैकल्टी ने आकर आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के हुनर को तराशने का काम किया।

प्रोजेक्ट 100 कलाम से लिखा नौनिहालों का मुस्तकबिल

कहते हैं जहां चाह, वहां राह। इसको सच साबित करके दिखाया है आईएएस अफसर लोकेश जाटव ने। वो देश में बनी उस धारणा को तोड़ने में सफल रहे कि सरकारी स्कूल और सरकारी योजना के तहत बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलती है। ये उनकी सोच और मेहनत का ही नतीजा है कि अब तक मंडला जैसे आदिवासी इलाके के करीब 100 छात्र-छात्राएं आईआईटी-जेईई और एआईपीएमटी जैसी कठिन परीक्षाओं को आसानी से क्रैक कर चुके हैं। दरअसल मंडला जिले में कलेक्टर रहते हुए उन्होंने ज्ञानार्जन प्रोजेक्ट के तहत IIT-JEE और AIPMT जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए 580 गरीब छात्र-छात्राओं को निशुल्क फॉर्म भरवाया था। साथ ही उन छात्र-छात्राओं को जिला प्रशासन की ओर से नि:शुल्क कोचिंग, वर्चुअल क्लासेस समेत तमाम सुविधाएं मुहैया कराई गई थीं। इतना ही नहीं खुद कलेक्टर लोकेश जाटव और आदिवासी विकास विभाग के अधिकारियों ने चंदा जुटाकर गरीब छात्र-छात्राओं की प्रतियोगी परीक्षा की फीस भरी थी। 2016 में पहली बार इस पहल के सार्थक नतीजे सामने आए जब 26 छात्र AIPMT में सलेक्ट हुए। 2017 में 63 छात्र-छात्राओं ने आईआईटी-जेईई परीक्षा को क्रैक किया है। हालांकि इस कामयाबी को लेकर लोकेश जाटवजी बेहद विनम्रता से कहते हैं कि ये उनकी व्यक्तिगत सफलता नहीं है बल्कि उनके साथी अफसरों, आदिवासी विकास विभाग के कर्मचारियों और छात्रों की साझा मेहनत से ये मुमकिन हुआ है।

आईएएस लोकेश जाटवजी ने आदिवासी बाहुल्य इलाके के बच्चों के भविष्य को संवारने के मकसद से ज्ञानार्जन योजना के तहत प्रोजेक्ट-100 कलाम नाम से एक अभिनव पहल की थी। जिसके जरिए 100 गरीब छात्रों को कलाम बनाने का लक्ष्य रखा गया था। इसके पीछे लोकेश जी की सोच थी कि जब अपने हुनर के दम पर गरीबी और अभाव के दलदल से निकलकर एपीजे अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति बन सकते हैं, तो इन आदिवासी इलाके में रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मासूमों को अगर सही दिशा और सुविधा मुहैया कराई जाए तो वो भी जिंदगी में आगे बढ़ सकते हैं।


अपने इनोवेशन से एजुकेशन सिस्टम को संवारने के साथ ही मंडला में कलेक्टर रहते हुए लोकेश जाटवजी ने किसानों की बेहतरी के लिए हेरीटेज एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट शुरू किया। हेरीटेज एग्रीकल्चर के जरिए जिले की प्राचीन फसलों को संरक्षित कर उसकी मार्केटिंग का काम भी किया गया। साथ ही जिले में उत्पादित आसाम मोटी और छिंदी कपूर चावल की किस्मों को कान्हा राइस ब्रांड नाम से बाजार में उतारा गया है। इससे बिचौलिए खत्म हुए और किसानों के अच्छे दाम मिलने लगे। 

मिशन-100 कलाम की कामयाबी के बाद रखी ‘मस्ती की पाठशाला’ की नींव

मंडला और रायसेन के बाद आईएएस लोकेश जाटव को प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर की जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने इंदौर जिले को ही ‘नवाचार की प्रयोगशाला’ बना दिया और अपने एक से बढकर एक इनोवेटिव पॉलिसी के जरिए जिले की रंगत बदलने में जुट गए। मंडला में 100 कलाम प्रोजेक्ट का सकारात्मक प्रभाव देखने के बाद उन्होंने इस योजना को इंदौर में भी लागू किया ताकि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों और छोटे कर्मचारियों के प्रतिभावान बच्चे भी बड़े सपने देख सकें और साकार कर सकें। वहीं स्कूल छोड़ चुके बच्चों की सुध लेते हुए उन्हें फिर से शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए मस्ती की पाठशाला नाम से एक और नया प्रयोग किया। जिसके तहत अब बच्चों को स्कूल जाने की जररूत नहीं है बल्कि स्कूल खुद बच्चों तक पहुंच रहा है। एक चार्टड बस में स्कूल संचालित किया जा रहा है, जिसके जरिए गरीब बस्तियों में जाकर स्कूल छोड़ चुके बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। मस्ती की पाठशाला में संचालित की जाने वाली बस में शैक्षणिक संबंधी सभी जरूरी संसाधन, खेल सामग्री रखी गई हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से सामान्य योग्यता तक लाने के बाद उन छात्रों को स्कूल में दाखिला दिलाया जाएगा।

युवाओं के मार्गदर्शन के लिए अनूठी पहल

युवाओं को अपना करियर बनाने के लिए किसी करियर काउंसलर के चक्कर काटने की जरूरत न पड़े और अपनी योग्यता और एजुकेशन के हिसाब से वो अपना करियर चुन सकें, इस मुश्किल काम में उनकी मदद के लिए इंदौर कलेक्टर लोकेश जाटव की पहल पर युवा शास्त्र नाम से एक मोबाइल एप भी बनाया गया है। इस मोबाइल एप से विद्यार्थियों और युवाओं को हायर एजुकेशन और करियर के बारे में बेहतर मार्गदर्शन मिल सकेगा। सिविल सेवा परीक्षा, पत्रकारिता, बैंकिंग और अन्य क्षेत्रों में इस एप के जरिए मेंटर उपलब्ध रहेंगे, जिनसे विद्यार्थी सतत संपर्क कर मार्गदर्शन प्राप्त कर सकेंगे। कलेक्टर और कमिश्नर खुद इस एप के जरिए छात्रों के सवालों का जवाब देने के साथ ही उन्हें गाइड भी करेंगे।

नए भारत के निर्माण में अगर किसी चीज की सबसे बड़ी जरूरत है तो वह नवाचार या इनोवेशन। इसीलिए कहा भी जाता है कि अगर कोई IAS इनोवेशन नहीं करता, कुछ नया नहीं करता, लीक पर चल रहे सिस्टम को बदलने की कोशिश नहीं करता तो उसमें और किसी क्लर्क में कोई फर्क नहीं है। मगर लोकेश जाटवजी देश के उन चुनिंदा आईएएस अफसरों में से हैं, जो अपने इनोवेशन के लिए ही जाने जाते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए नवाचार करने वाले कलेक्टर लोकेश जाटव ने स्वच्छता के मामले में देशभर में नंबर वन रहने वाले इंदौर को स्वास्थ्य सेवाओं में भी बेहतर बनाने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने गरीब मरीजों को अच्छा इलाज मुहैया कराने के मकसद से ‘आह्वान’ नाम की योजना शुरू की है। इस योजना के तहत जिले के निजी अस्पतालों में महीने में एक बार एक मरीज का मुफ्त या अधिकतम एक लाख रुपए तक का इलाज किया जाएगा। योजना से अभी तक 170 अस्पताल जुड़ चुके हैं। पायलेट प्रोजेक्ट के तहत इस योजना को फिलहाल इंदौर जिले में लागू किया गया है। अगर यह मॉडल सफल होता है तो पूरे प्रदेश में इसे लागू किया जाएगा। इस इनोवेटिव पहल को लेकर कलेक्टर लोकेश जाटव कहते हैं कि वैसे तो जरूरतमंदों की सहायता के लिए प्रदेश सरकार ने कई योजनाएं चला रखी हैं लेकिन उनका फायदा लेने के लिए मरीजों को कई दस्तावेजों की खानापूर्ति के साथ ही शासन की मंजूरी मिलने तक का इंतजार करना पड़ता है। इसी को ध्यान में रखते हुए इस योजना का खाका तैयार किया गया है।कहते हैं जब कोई जब कोई आदमी तरक्की की राह पकड़ता है, तो अपनी जमीन और जड़ को भूल जाता है लेकिन इंदौर कलेक्टर लोकेश जाटव ने इससे इतर संवेदनशीलता और कर्तव्यभाव की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसे न सिर्फ लंबे समय तक याद रखा जाएगा बल्कि देश के दूसरे अफसर और बड़े व्यक्तियों को भी इससी प्रेरणा मिलेगी। उनके व्यक्तित्व ने साबित किया है कि कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता उसके कर्म उसका कद ऊंचा करते हैं। वाकई जिस दिन देश के सभी अधिकारी उनके जैसे हो जाएंगे,उस दिन देश की तस्वीर ही कुछ और होगी। पाजिटिव इंडिया उनके जज्बे और मंसूबे को तहेदिल से सलाम करता है।

हर रोज आपके आसपास और सोशल मीडिया पर नकारात्मक खबरें और उत्तेजना फैलाने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच Pozitive India की कोशिश रहेगी कि आप तक समाज के  ऐसे हीअसल नायकों की Positive, Inspiring और दिलचस्प कहानियां पहुंचाई जा सकें, जो बेफिजूल के शोर-शराबे के बीच आपको थोड़ा सुकून और जिंदगी में आगे बढ़ने का जज्बा दे सकें।

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