वो लौ बार बार जलती थी और हर बार हवा का झोंका उसे बुझा देता था। बावजूद उस लौ ने जलना नहीं छोड़ा और आज ये एक बड़े बदलाव की लौ बन चुकी है। सोशियो स्टोरी आज बदलाव के असल मगर गुमनाम नायकों को उनकी सही पहचान दिलाने के साथ ही बदलाव की आवाज को बुलंद कर देश के कोने-कोने तक पहुंचा रहा है। इसके फाउंडर मनोज पचौरी समाज में सकारात्मक, नया और कुछ अलग करने वालों को एक प्लेटफार्म मुहैया करा रहे हैं, जहां से उन चेंजमेकर्स की सोच, मुहिम या विश्वास को आगे बढ़ाया जा सके। सच मानें तो मनोज ने सामाजिक बदलाव को ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है।
दरअसल देश में ऐसे कई चेहरे हैं जो बदलाव के नायक हैं, जो अपनी नई सोच और मजबूत इरादों से समाज में जमीनी स्तर पर बदलाव ला रहे हैं लेकिन उन्हें अपना काम और अपनी सोच लोगों के सामने रखने के लिए कोई प्लेटफार्म नहीं मिलता। कभी मार्गदर्शन तो कभी फंड की कमी उनके हौसले को कमजोर कर देती है। लिहाजा समाज के रियल चेंजमेकर्स की इसी समस्या का समाधान मनोज ने सोशियो स्टोरी के सहारे निकालने की एक कोशिश की है।
दुनिया में ज्यादातर लोग विपरीत परिस्थितियों के सामने टूट जाते हैं, लेकिन मनोज तो चुनौतियों से लड़ने के लिए ही पैदा हुए थे। छोटी उम्र में ही परेशानियों के पहाड़ से लड़ते-लड़ते वो समय से काफी पहले ही परिपक्व हो गए।
मनोज बताते हैं कि हमारा मकसद समाज में रचनात्मक और सकरात्मक काम कर रहे लोगों को एक मंच पर एक साथ लाना है। मनोज का मानना है कि साथ मिलकर काम करने से ही सोसायटी में व्यापत स्तर पर प्रभाव डाला जा सकता है। इवेंट्स के साथ ही सोशल मीडिया पर भी सोशियो स्टोरी की प्रभावी मौजूदगी है। कई लोगों के जुड़ने के बाद ये मंच अब एक कम्युनिटी के रूप में तब्दील होता जा रहा है, जिसके जरिए लोग एक दूसरे की मदद कर पा रहे हैं। कालेज स्टूडेंट्स से लेकर बिजनेस इंडस्ट्री के बड़े-बड़े लीडर्स भी इस प्लेटफार्म से जुड़े हुए हैं और सोशियो स्टोरी के इवेंट्स में अपनी सक्रिया भागीदारी भी निभाते हैं।
बीते वक्त को याद करते हुए मनोज बताते हैं कि ग्रेजुएशन के बाद एक ऐसा दौर भी आया जब मैं ना नौकरी करने के काबिल रहा और ना ही वापस घर जाकर खेती-मजदूरी करने के लायक। क्योंकि मनोज ने पढ़ाई तो की लेकिन उनकी पर्सनालिटी में वो बदलाव नहीं आ सका जो बड़े शहरों में अच्छी जाब के लिए जरूरी था। ऊपर से उनकी जेब भी पूरी तरह खाली हो चुकी थी और घर जाने तक का किराया उनके पास नहीं था। लिहाजा मनोज को कई दिन रेलवे स्टेशन पर ही गुजारने पड़े और भूख की आग मिटाने के लिए चाय की दुकान में काम करना पड़ा।
मनोज कहते हैं जब जिंदगी जीने का जुनून हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। ग्रेजुएशन के बाद मनोज घर वापस तो लौट आए लेकिन आगे पढ़कर कुछ बनने की उनकी चाह अभी खत्म नहीं हुई थी। मनोज एमबीए करना चाहते थे लेकिन कॉलेज की फीस कहां से आएगी,ये सवाल अब भी अनसुलझा था। मनोज ने एजुकेशन लोन की चाहत में महीनों साईकिल से बैंक के चक्कर काटे। बैंक के चक्कर काटने और बैंक मैनेजर के सामने गिड़गिड़ाने का ये दौर काफी वक्त तक चलता रहा और आखिरकार पढ़ाई के प्रति मनोज का लगन देखकर बैंक मैनेजर का दिल भी पसीज गया। किसी तरह बैंक से लोन मंजूर हुआ और मनोज अपने आरमानों के आसमां को पाने की चाहत में एक बार फिर नए सफर पर निकल पड़े।
कहते हैं प्रतिकूल परिस्थितियों से निकलकर सफलता तक जाने वाली हर यात्रा अद्भुत,अनोखी और अद्वितीय होती है। सवाल इस बात का नहीं होता कि आप आज क्या हैं, क्या कर रहे हैं, क्या उम्र और समय है। बस एक हौंसला चाहिए, जीवन की लहरों में तरंग तभी पैदा होगी जब आप वैसा कुछ करेंगे।
खुद को मेहनत की आंच में तपाने वाले मनोज जैसे लोग ना सिर्फ संघर्ष की जीती-जागती मिसाल हैं, बल्कि परिस्थितियों को मेहनत के दम पर अपने पक्ष में करने वाले बदलाव के असल नायक भी हैं। मनोज की कहानी एक बानगी है, जिद और जुनून से जिंदगी बदली जा सकती है, जिद से जहां बदला जा सकता है, सपने बुने जा सकते हैं और साकार किए जा सकते हैं।
I knew it bro can do something special. Heads of to you bro……….jahanpana tussi great hope tofa jubal karo….wali feeling as rahi hai