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अधिकारी के दस्तखत के लिए पिता ने खाई दर-दर की ठोकर,तो बेटी खुद बन गई कलेक्टर

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भले ही आज हम चांद पर क्यों ना पहुंच गए हों लेकिन डिजिटल इंडिया के इस हाईटेक दौर में भी सरकारी सिस्टम की हालत जस की तस है। बड़े साहब के एक दस्तखत के लिए आम आदमी को आज भी मुसद्दीलाल की तरह सरकारी दफ्तर के ना जाने कितने चक्कर काटने पड़ते हैं, कितने बेतुके सवालों से रूबरू होना पड़ता है, कितने ही लोगों की जी हुज़ूरी करनी पड़ती है, तब जाकर कहीं एक दस्तख़त मिलता है। हमारी आज की कहानी भी सिस्टम के इसी सितम से परेशान एक किसान परिवार की है, जहां भ्रष्ट सरकारी तंत्र के आगे अपने पिता को असहाय और लाचार देख एक एक मासूम बच्ची न सिर्फ इस सिस्टम को सुधारने का संकल्प लेती है बल्कि अपनी मेहनत से एक काबिल अफसर बन खुद को जनता की सेवा में समर्पित कर देती है। पिता को एक हस्ताक्षर के लिए कई दिनों की जद्दोजहद करते देख उस बच्ची ने ठान लिया कि एक दिन बड़ी होकर उसे एक काबिल कलेक्टर बनना है और सभी की मुश्किलों को दूर करना है। जो परेशानी उसके पिता ने देखी वो परेशानी किसी और पिता को ना देखनी पड़े। जी हां ये असल कहानी है आईएएस अधिकारी रोहिणी भाजीभाकरे की।

कहानी की शुरूआत होती है हाराष्ट्र के सोलापुर जिले में, जहां सालों पहले एक किसान अपने दस्तावेज पर हस्ताक्षर के लिए सरकारी दफ्तर में नीचे से लेकर ऊपर तक सैकड़ों चक्कर काटता है, दिनभर दौड़-धूप करता है। जिसे देख उसकी बेटी सवाल करती है, “पिताजी आप इतना परेशान क्यूं  हो रहे हैं? आम जनता की परेशानी खत्म हो ये सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी है? तब उसके पिता ने जवाब  दिया, जिला कलेक्टर। इस एक शब्द ने उस बच्ची के दिलो दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी। उस वक़्त रोहिणी केवल 9 साल की थीं। लेकिन अपने पिता को संघर्ष करते देख रोहिणी के बाल मन ने उसी समय यह संकल्प कर लिया कि जिनके हस्ताक्षर के लिए उनके पिता को इस तरह भटकना पड़ रहा है,बड़े होकर एक दिन वो वही अधिकारी बनेंगी।“रोहिणी कहती हैं कि जब उन्होंने पहली बार अपने पिता से कलेक्टर बनने की ख्वाहिश बताई तो उनके पिता ने सलाह देते हुए कहा कि तुम जब एक कलेक्टर बन जाओ तो यह सुनिश्चित करना कि तुम हमेशा जरुरतमंदों की मदद करो।“

इस घटना के ठीक 23 साल बाद रोहिणी ने अपने सपने को साकार कर दिखाया और तमिलनाडु  के सेलम जिले को सन 1790 और 170 पुरुष आईएएस के बाद पहली महिला कलेक्टर रोहिणी के रूप में मिली। पिता की बात को शिरोधार्य करते हुए रोहिणी ने अपने कार्य क्षेत्र में कदम रखा। अपनी प्रशासनिक क्षमताओं के साथ–साथ उन्होंने नौकरी के दौरान अपनी बोल चाल की भाषा को भी निखारा और अब तो वो मदुरई जिले में फ़र्राटे से तमिल भी बोल लेती हैं। 34 साल की रोहिणी का स्थानांतरण सेलम में सामाजिक योजनाओं के निदेशक के पद किया गया। इस पद पर नियुक्ति से पूर्व रोहिणी मदुरई में जिला ग्रामीण विकास एजेंसी में अतिरिक्त कलेक्टर और परियोजना अधिकारी के पद पर नियुक्त थीं।रोहिणी अपने काम और शालीन व्यवहार के चलते लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। रोहिणी कहती हैं कि ‘मैंने सरकारी स्कूल में अध्ययन किया है और मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई एक सरकारी कॉलेज से हुई, साथ ही मैंने सिविल सेवा परीक्षा में कोई निजी कोचिंग की सहायता भी नहीं ली। मेरे अनुभव ने मुझे यह यकीन दिलाया है कि हमारे सरकारी स्कूलों में भी बहुत अच्छे शिक्षक हैं और अगर कोई कमी है तो केवल बुनियादी सुविधाओं की।” रोहिणी की ख़ासियत है कि वो अपने सभी काम को सूझबूझ और सोच विचार के बाद ही करती हैं। 

अपनी जिम्मेदारी के बारे में रोहिणी का मानना है कि, जिले की पहली महिला कलेक्टर होने के साथ-साथ कई सारी जिम्मेदारियां अपने आप ही आ जाती है। मैं अपनी जिम्मेदरियों को महिला सशक्तिकरण के संकेत के रूप में देखती हूं। मौजूदा समय में रोहिणी सेलम के लोगों के बीच और स्कूलों में जाकर स्वच्छता के लिए जागरूक करने का अपना दायित्व निभा रही हैं। रोहिणी जैसी अधिकारी जो जनता के लिए दिन-रात समर्पित रहती हैं, जनता उनका स्थान अपने मन में स्वयं निर्धारित करती है। वहीं रोहिणी जैसी अधिकारी अपने दायित्वों को भलीभांति पूरा करते हुए समाज में मिसाल पेश कर रही हैं।

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