कहते हैं हर सक्सेस के पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी होती है तो कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका संघर्ष ही उनकी असली पहचान करवाता है। वो कल क्या थे, ये अब इतना अहम नहीं रह जाता लेकिन आज वो किन ऊचाईयों पर है ये सारा जमाना जानता है। हमारी आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें सपने हैं, संघर्ष है…रोज-रोज के धक्के हैं… तो जमाने से लड़ने का जज्बा है…बार-बार रिजेक्शन की कसक है, दुनिया के ताने हैं तो सफलता से भरे खुशियों के पल भी हैं …ये कहानी एक ऐसी शख्सियत की है जिसने अभिनय को जिया है और अपने हुनर के बूते जिंदगी की ‘रंगभूमि’ में शून्य से शिखर तक का सफर तय किया है।
सपनों का शहर मुंबई…. जिसे भी बचपन से जवानी तक फ़िल्मों का कीड़ा काटा उसने इस मायानगरी का रास्ता नापा। समुंदर का ये शहर हर उस इंसान को न्योता देता है, जो सिल्वर स्क्रीन पर एक बार दिखने की तमन्ना रखता है। हर रोज यहां देश के कोने-कोने से हजारों लोग अपनी किस्मत आजमाने आते हैं। कई प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काट काटकर अपने घर लौट जाते हैं तो कुछ इस दुनिया को ही अलविदा बोल जाते हैं। लेकिन संघर्ष से लड़कर जिसने भी इस मायानगरी को अपनाया है उसे आखिर में कामयाबी जरूर मिली है। जिसकी गवाही देती है बिहार के बेतिया के रहने वाले अभिनेता अमरेंद्र शर्मा की कामयाबी की कहानी।
15 अगस्त को बाटला हाउस नाम की एक बड़ी फिल्म ने रुपहले पर्दे पर दस्तक दी। इस फ़िल्म से बिहार के एक और लाल ने बड़े पर्दे पर शानदार आगाज बोला। बिहार के बेतिया के रहने वाले अमरेंद्र शर्मा ने इस फिल्म में जॉन अब्राहम के साथ पुलिस वाले की भूमिका निभाई है। इतना ही नहीं फ़िल्म के पोस्टर पर भी अमरेंद्र की धमाकेदार एंट्री हुई है।
1971, रावण, बाटला हाउस जैसी फिल्में और क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया जैसे मशहूर टीवी शो के जरिये खुद को तपाकर अपने मुकाम की ओर बढ़ते अभिनेता अमरेंद्र शर्मा, छोटे से गांव से आंखो में बड़े सपने लिए ख्वाहिशों के बोझ से दबे समुंदर के शहर में एक स्ट्रगल की तरह पहुंचते हैंं और सालों के कठिन संघर्ष के बाद सिनेमा की जादुई दुनिया में खुद को स्थापित करने में सफल होते हैं। यही वजह है आज उनकी यात्रा हर स्ट्रगलर की यात्रा बन चुकी है।
हालांकि अमरेंद्र का मानना है कि अभी तो ये छोटी सी शुरुआत है, अभी मंजिल तय करनी है। अभी बहुत मेहनत करनी है, रास्ता आसान नही है, उसे आसान बनाने में लगा हूं। उन्हें यह कामयाबी बहुत देर से मिली है लेकिन अब उनका सपना धीरे-धीरे ही सही मगर पूरा हो रहा है।
दरअसल अमरेंद्र जिन दोस्तों के पास दिल्ली पहुंचे थे, वो सब फ़ैक्ट्री में काम करते थे और उन्हें अपने काम के अलावा दिल्ली के बारे में कुछ नही पता था। खैर काफी खोज-बिन के बाद एनएसडी तो मिला पर एनके शर्मा जी और कुछ दोस्तों की सलाह पर थिएटर की शुरुआत करने वापस पटना चले गए। पटना पहुंचकर पंकज त्रिपाठी, पुंज प्रकाश और विजय जी जैसे थिएटर के लोगों से मुलाकात हुई और अमरेंद्र उन लोगों के ग्रुप से जुड़ गए। अमरेंद्र की लाइफ का पहला प्रोफेशनल प्ले “जात ना पूछो साधो की” था, जिसका निर्देशन खुद पंकज त्रिपाठी ने किया था।
अमरेंद्र की किस्मत अच्छी थी। जिस मनोज बाजपेयी को देखकर उन्हे एक्टर बनने का भूत सवार हुआ, मुंबई पहुंचते ही उन्हें उनके साथ 1971 जैसी फिल्म में काम मिल गया। 1971 में अमरेंद्र ने पाकिस्तानी सोल्जर की छोटी सी भूमिका निभाई थी। मनाली से दो महीने की शूटिंग के बाद वापस लौटते ही इरफ़ान खान जैसे दिग्गज अभिनेता के साथ आसमान में और डायरेक्टर मणिरत्नम के साथ रावण में काम करने का मौका मिल गय। इन सब फिल्मों में अमरेंद्र की भूमिका भले छोटी थी मगर इन फिल्मों में काम करके उन्हें फिल्म प्रोडक्शन की टेक्निकल बारीकियां और अनुभव सहेजने का अच्छा मौका मिल गया।
कई बड़े बैनर की फिल्मों में छोटे रोल करने के बाद भी एक वक्त ऐसा आया जब अमरेंद्र शर्मा को टेलीवीजन यानि छोटे पर्दे का सहारा लेना पड़ा। जिसे लेकर अमरेंद्र बताते हैं कि,”मुंबई जैसे महंगे शहर में गुजारा करना सबसे बड़ी समस्या है। उन्हें फिल्मों में छोटा-छोटा काम तो मिल रहा था पर गुजारे के लिए पैसा भी जरूरी था, इसलिए क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया जैसे फेमश शोज में भी उन्हें काम करना पड़ा। लेकिन पॉजिटिविटी को अपनी स्ट्रेंथ मानने वाले अमरेंद्र को अंतिम दम तक भिड़े रहने के जुनून ने आखिरकार उनके मुकाम तक पहुंचाया और बाटला हाउस जैसी बड़ी फिल्म उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई।
अमरेंद्र कहते हैं, मैं शुरू से ही पॉजिटिव रहा हूं। मुझे पता है कि अपने लिए ये रास्ता मैंने खुद चुना है, तो इस रास्ते का हर संघर्ष मेरे हिस्से ही आना है। बीच-बीच में हल्की उदासीनता के पल आते रहते हैं, पर हर बार मैं दोगुनी एनर्जी के साथ उठ खड़ा होता हूं। ये मेरी खुशकिस्मती रही है कि जब-जब मैं अंदर से थोड़ा कमजोर पड़ा हर बार मुझे कोई न कोई काम मिल जाता है और मेरी एनर्जी दोगुनी हो जाती है।
अमरेंद्र जितने कमाल के एक्टर हैं, उतने ही गजब के गायक भी। अमरेंद्र कमाल के सिंगर भी हैं। उनकी आवाज़ में एक कसक है, एक खनक है। उनके मुंह से निकले-निकले एक-एक शब्द सीधे दिल से कनेक्ट होते हैं।
कहते हैं ‘संघर्ष की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को, उनके मुक़द्दर के पन्ने कोरे नहीं होते’। खुद को मेहनत की आंच में तपाने वाले अमरेंद्र की कहानी भी कुछ यही कहती है, कभी उम्मीद मत छोड़ो, हमेशा कड़ी मेहनत करो, हमेशा तैयार रहो शायद आपको तब मौका मिल जाए जब आप इसकी सबसे कम उम्मीद कर रहे हों।
Story By: Mayank Shukla