शायद इस दुनिया में जिंदगी के मायने सभी के लिए अलग-अलग होते हैं। कोई जिंदगी में शोहरत पाना चाहता है, किसी को रुतबा अच्छा लगता है तो कोई दौलत जुटाने में पूरी जिंदगी बिता देता है। कमोबेश यहां हर कोई सिर्फ अपने लिए जीता है, अपनी ही जिंदगी में व्यस्त रहता है लेकिन आज की इसी स्वार्थी दुनिया में चंद ऐसे भी लोग हैं जो दूसरों के दर्द को अपना समझते हैं, परायों को अपना बनाते हैं और बुढ़ापे में बीमार हो चले बेसहाराओं की लाठी बन जाते हैं।
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की फिल्म बागबां का एक डॉयलाग है, ” जब माता-पिता अपने बच्चों का पहला कदम रखवाने में मदद करते हैं तो क्या बच्चे अपने मां-बाप का आखिरी कदम रखने में मदद नहीं कर सकते हैं। यकीन मानिए ये महज एक फिल्मी डॉयलाग ही नहीं बल्कि अपनों के बीच पराए होते हिंदुस्तान के हर एक बुजुर्ग का दर्द है या फिर यूं कहें कि आज के स्मार्ट और डिजिटल दौर के बदलते परिवेश में घर-घर की कहानी है।
दुनिया के हर मां-बाप का सपना होता है कि उनके बच्चे बुढ़ापे में उनका सहारा बनें लेकिन औलाद उन्हीं की कद्र नहीं करती, जिसने उन्हें दुनिया में रहने के काबिल बनाया। लिहाजा बुजुर्गों के लिए जिंदगी के अंतिम पड़ाव में अपनों की उपेक्षा से बढ़कर दर्द भला और क्या हो सकता है। ऐसे में अगर कोई आदर के साथ उनकी अंगुली थाम ले तो मानो उन्हें जैसे एक नई जिंदगी सी मिल जाती है और ऐसा ही एक नेक कदम उठाया है बिलासपुर कलेक्टर डॉ संजय अलंग ने। जिनकी पहल पर अपनों के सताए और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्गों की बेहतर देखरेख के लिए बिलासपुर में पैलेटिव केयर सेंटर की स्थापना की गई है ताकि वो अपनी जिंदगी का आखिरी समय शांतिपूर्वक और कम से कम तकलीफ में बिता सकें।
दरअसल उम्र के बढ़ने के साथ पैरालिसिस, कोमा, डिमेंशिया और शरीर की निष्क्रियता जैसी बीमरियां आसानी से घर कर जाती हैं। इनका मेडिकल साइंस से इलाज चलता है, लेकिन एक समय के बाद इनका मेडिकल साइंस में भी इलाज नहीं होता। ऐसे में इनकी देख-भाल सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है। लेकिन आज की कड़वी हकीकत है कि ये मरीज वक्त के साथ परिवार के लिए भी भार लगने लगते हैं। लिहाजा ऐसे मरीजों (60 से ज्यादा) की बेहतर तरीके से देखरेख हो सके, इसके लिए पैलेटिव केयर सेंटर स्थापित किया गया है।
बुढ़ापे की बीमारियां इंसान को बहुत परेशान कर देती हैं। उनकी सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाती है और उन्हें अपने अच्छे-बुरे का अहसास ही नहीं होता। ऐसे लोग अपने घरवालों को ही भार लगने लगते हैं, जिसके चलते उनकी अच्छी तरह से देखभाल तक नहीं हो पाती।
इस पैलेटिव केयर सेंटर में बुजुर्गो की देखभाल के लिए डॉक्टर, सीनियर नर्स, ट्रेनी नर्स, योगा शिक्षक, थेरेपिस्ट और सामाजिक कार्यकर्ताओं को तैनात किया गया है। फिलहाल यहां 10 मरीज हैं। नि:शक्त जन और समाज कल्याण विभाग की मदद से यह केंद्र संकल्पित सेवा संस्थान ने शुरू किया है। इसके संचालक डॉ. संदीप तिवारी का कहना है, “ऐसे बुजुर्ग जिनका मेडिकल साइंस में इलाज नहीं है, ऐसे मरीजों को टर्मिनली इल पेशेंट कहते हैं। इस तरह के मरीजों का इलाज तो संभव नहीं है, मगर ऐसे मरीजों को नर्सिंग केयर की जरूरत होती है। ऐसे मरीजों की परिवार वाले भी ठीक तरह से देखभाल नहीं कर पाते हैं। इनके लिए ही पेलेटिव केयर सेंटर है।
“पेलेटिव केयर उन मरीजों के लिए है, जिनका चिकित्सा उपचार नहीं है। उनके लिए ऐसे आश्रम बनाए जाते हैं, जहां उनका अंतिम समय शांतिपूर्वक कम से कम दर्द और तकलीफ में व्यतीत हो। मध्य भारत में यह पहला सेंटर है।”
इस सेंटर में बुजुर्गो की नर्सिंग केयर के साथ उन्हें योगा, फिजियोथेरेपी भी कराई जा रही है। इसके साथ ही आध्यात्मिक क्षेत्र में धर्म के हिसाब से धर्म संसद बनी है, जिसमें विभिन्न धर्मो के गुरु आकर शिक्षा देते हैं। इसका मकसद यही है कि उनका आखिरी समय सुकून से गुजर सके। पेलेटिव केयर सेंटर में बुजुर्गों को उनके परिजनों की सहमति से ही भर्ती कराया जाता है और यहां उन्हें नि:शुल्क नर्सिंग और अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। इस संस्थान ने तय किया है कि मरीज की मौत के 24 घंटों तक ही परिजनों का इंतजार किया जाएगा और अगर कोई नहीं आता है तो संस्थान द्वारा अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा।
कभी-कभी हम सोचते है कि इतनी नफरत, इतनी बुराईयां, इतना झगड़ा, इतनी मारा-मारी के बीच भी ये दुनिया कैसे चल रही है? लेकिन आज भी कई लोगों के अंदर इंसानियत जिंदा है। यही इंसानियत इस दुनिया को चला रही है, जिसका जीता जागता उदाहरण हैं बिलासपुर कलेक्टर डॉ अलंग। जो इससे पहले भी बिलासपुर में एक जेल बंदी की बेटी की स्कूली शिक्षा का इंतजाम कर इंसानियत की मिसाल पेश कर चुके हैं। इंसान को इंसान से जोड़ने की ओर मिसाल बन रही उनकी इस पहल को पाजिटिव इंडिया सलाम करता है।
क्या जरूरत, क्यों जफाएं बागबां तेरी सहें।
जा तुझे गुलशन मुबारक, मुझको वीराने बहुत।।