LOADING

Type to search

Share

फिल्म इंडस्ट्री के सुपर स्टार सलमान खान की एक फिल्म का बेहद मशहूर डायलॉग है ”एक बार जो मैने कमिटमेंट कर दिया, उसके बाद तो मैं खुद की भी नहीं सुनता”। अब सलमान खान असल लाइफ में अपने कमिटमेंट पर कितने खरे उतरते हैं ये तो वहीं जाने, लेकिन मैं एक ऐसे शख्स को जरूर जानता हूं, जिन्होंने अपना वादा पूरा कर एक मासूम की मुरझाई जिंदगी में खुशियों के रंग भरे और उसे फिर से सपने देखने और आसमां में उड़ने की आजादी दी।

कलेक्टर साहब ने एक बार जो कमिटमेंट कर दिया…

वैसे तो जब एक बड़े सरकारी अफसर का जिक्र होता है तो दिमाग में एक सख्त और रौबदार आदमी की इमेज आती है,जो काम से काम रखता हो लेकिन जब बिलासपुर कलेक्टर डॉ. संजय अलंग का नाम आता है तो सहज ही दिमाग में एक छवि उभरती है एक सादगी पसंद इंसान की जो चिंतक है, लेखक है, कवि है, संवेदनशील है, समाजसेवक है और इन सबसे बढ़कर इंसानों की तकलीफ समझने वाला खुद भी एक आम इंसान। जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और अपना कमिटमेंट हर हाल में पूरा करते हैं। ऐसा ही कमिटमेंट उन्होंने तस्वीर में नजर आ रही मासूम खुशी (बदला हुआ नाम) से किया था, वो खुशी जो बिना किसी गुनाह के बीते 6 सालों से जेल की ऊंची-ऊंची दीवारों के अंदर कैद थी। लेकिन बिलासपुर कलेक्टर संजय अलंग के एक नेक कदम ने बदनसीब खुशी के नसीब में भी खुशियों के रंग भर दिए।

दरअसल खुशी जब महज पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की पीलिया से मौत हो गई और उसके पिता जेल में सजा काट रहे थे। चूंकि मां की मौत हो चुकी थी और पिता जेल में थे, ऐसे में पन्द्रह दिन की खुशी की देखरेख करने वाला घर में कोई नहीं बचा लिहाजा जेल प्रशासन की अनुमति से खुशी को भी पिता के साथ जेल में रहना पड़ा। धीरे-धीरे खुशी बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला कैदियों को दे दिया गया और उसे जेल परिसर के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया। लेकिन जेल प्रशासन ने महसूस किया कि खुशी को जेल की आवोहवा पसंद नहीं है। वो जेल की ऊंची-ऊंची दीवारों से बाहर आकर सांस लेना चाहती है। अपने जैसे बच्चों के साथ खेलना और किसी बड़े स्कूल में पढ़ना चाहती है।जेल के अंदर खुशी से बात करते हुए बिलासपुर कलेक्टर डॉ संजय अलंग

इस बीच कलेक्टर डॉ.संजय अलंग अचानक केंद्रीय जेल बिलासपुर का निरीक्षण करने पहुंचे। निरीक्षण के दौरान वो महिला सेल भी गए जहां उन्होने देखा कि महिला कैदियों के साथ सहमी सी एक मासूम बच्ची भी बैठी हुई है। उसकी उदास मगर चमकदार आंखे मानो कुछ कहने को बेताब थीं। कलेक्टर डॉ अलंग को परखने में देर नहीं लगी लिहाजा उन्होंने खुशी से बात की और पढ़ाई के बारे में सवाल जवाब किया। बातचीत के दौरान खुशी ने जेल की आवोहवा से आजाद होने और बाहर किसी अच्छी स्कूल में पढ़ने की इच्छा जताई और कहा कि वो बड़ी होकर कुछ बनना चाहती है। इतना सुनते ही कलेक्टर भावुक हो गए, उनकी आंखें भर आईं। पढ़ाई के प्रति मासूम का लगाव देखकर कलेक्टर ने उसके बेहतर कल के लिए कुछ करने की ठानी और खुशी से बड़े स्कूल में पढ़ाने का वादा किया।

कलेक्टर संजय अलंग ने अपने वादे अनुसार जेल के अधिकारियों से बात करके शहर के किसी अच्छे स्कूल में ख़ुशी का दाखिला करवाने का फैसला लिया और कई स्कूल संचालकों से बात की। कलेक्टर ने पहल की तो शहर के एक बड़े स्कूल ने भी मदद का हाथ आगे बढ़ाया और आखिरकार खुशी का जैन इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन करवाया गया। साथ ही स्कूल के हॉस्टल में उसके रहने की व्यवस्था की गई जहां उसे सभी तरह की सुविधाएं दी जाएंगी। इतना ही नहीं खुशी के लिए खुशी के लिये विशेष तौर केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है। 

ये खबर सुनने के बाद केंद्रीय जेल में सजा काट रहे खुशी के पिता की आंखें भी नम हो गईं लेकिन दिल में दिलासा भी थी कि बड़े स्कूल में दाखिला मिलने के बाद खुशी का जीवन संवर जाएगा। खुशी के लिए अपने पिता से दूर जाना आसान नहीं था और ना ही उसके पिता के लिए अपनी बेटी से बिछड़ना आसान था।लेकिन वह जानते हैं कि यह सब उनकी बेटी की भलाई के लिए है।खुशी को स्कूल लेकर जाते कलेक्टर संजय अलंग

इतना ही नहीं पहले दिन कलेक्टर खुद अपनी गाड़ी से खुशी को स्कूल छोड़ने पहुंचे। खुशी भी उनकी उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गई। स्कूल पहुंचने पर सबने बहुत प्यार से ख़ुशी का वेलकम किया। स्कूल संचालकों ने कलेक्टर को भरोसा दिलाया स्कूल और हॉस्टल, दोनों ही जगह खुशी का पूरा ध्यान दिया जाएगा। 

जेल में कलेक्टर से मुलाकात के बाद खुशी की जीवन ही बदल गया। भविष्य में खुशी इस लम्हे को शायद ही कभी भूलेगी क्योंकि अब जेल की उंची दीवारे उसके सपनों को रोक नहीं सकेंगी।

वहीं बड़े स्कूल में पढ़ने के अपने सपने को पूरा होता देख ख़ुशी की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था क्योंकि जेल की अंधेरी दुनिया में रहने के बावजूद वो हमेशा एक ऐसी बाहरी दुनिया का ख्वाब देखती थी जहां वो पढ़ लिख कर कामयाबी की बुलंदियां छू सके। लेकिन परिस्थितियों ने उसकी मुस्कान छीन ली थी, उसने सोचा भी नहीं था कि उसके सपनों को उड़ान मिल जाएगी। लेकिन बिलासपुर कलेक्टर संजय अलंग ने उसके उन सपनों को वो पंख दे दिया, जिसके सहारे वो अब आकाश को छू सकेगी।

एक बेहतर कल के लिए आज उठाने होंगें बेहतर कदम 

खुशी की जिंदगी संवारने के साथ ही बिलासपुर कलेक्टर डॉ संजय अलंग ने समाज के लोगों से भी खुशी जैसे और भी बच्चों के लिए आगे आने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि माता या पिता की सजा के साथ बच्चों को मजबूरी में जेल में रहना पड़ता है। सामाजिक संस्थाएं और जागरुक नागरिक अगर ऐसे बच्चों की मदद के लिये आगे आएं तो इन बच्चों का भविष्य भी संवारा जा सकता है। इस दौरान उन्होंने बताया कि केंद्रीय जेल के लगभग 27 बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार अलग-अलग शिक्षा अभियानों के तहत दाखिला दिलवाया गया है। 11 बच्चे अभियान शाला में, तो 12 बच्चों को मातृ छाया और 4 बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाया गया है ताकि इन बच्चों के आने वाले कल पर इनके अतीत का अंधेरा न हो।

 डॉ. अलंग लोगों को संदेश देते हुए कहते हैं, “इस तरह के सकारात्मक बदलाव आम नागरिकों के साथ से ही संभव हो सकते हैं। अगर और भी लोग इन बच्चों के बैकग्राउंड को न देखते हुए, इनकी ज़िंदगी संवारने के लिए आगे आए, तो यक़ीनन हम इन बच्चों को एक बेहतर कल दे सकते हैं।”


बिलासपुर कलेक्टर डॉ संजय अलंग की इस पहल की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर सराहना की। उन्होंने इसे मानवीय कदम बताते हुए जेल और स्थानीय प्रशासन को बधाई दी है।मुख्यमंत्री ने अपने ट्वीट में लिखा कि हम सभी जनता के सेवक हैं ऐसे कदमों से जनता का सरकार और प्रशासन पर विश्वास बढ़ेगा।

पहले भी कर चुके हैं कई सामाजिक पहल

यह पहली बार नहीं है जब डॉ. अलंग इस तरह के नेक काम के लिए आगे आए हैं। समाज के हित में उन्होंने पहले भी कई नेक पहल की हैं।इससे पहले उन्होंने बुक बैंक के लिए पहल करते हुए लोगों से किताबें दान करने की अपील की थी। दरअसल साहित्य, अध्ययन और लेखन में रुचि रखने वाले कलेक्टर डॉ. संजय अलंग का मानना है कि एक जागरूक समाज में किताबों का बड़ा महत्व है। ये जीवन को दिशा देती हैं। किताबें हर किसी को पढ़नी चाहिए। लिहाजा उन्होंने उन्होंने बिलासपुर में किताबों का संग्रह कर उन्हें अध्ययन में रुचि रखने वालों के लिए आसानी से मुहैया कराने का निर्णय लिया। ताकि  खेल, साहित्य, कला,संस्कृति, इतिहास और अन्य विधाओं की किताबों को आमजन भी पढ़कर इनका लाभ ले सकें।

कलेक्टर डॉ. अलंग एक बेहतर प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ एक उम्दा लेखक और कवि भी हैं। उनकी लिखी हुई कई किताबें और कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें ‘छत्तीसगढ़: इतिहास और संस्कृति’, ‘छत्तीसगढ़ के हस्तशिल्प’, ‘शव’ और ‘पगडंडी छिप गयी थी’ शामिल हैं। उन्हें अपनी किताबों और कविताओं के लिए, ‘राष्ट्रकवि दिनकर सम्मान,’ ‘भारत गौरव सम्मान और’ ‘सेवा शिखर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।

कहते हैं जब कोई जब कोई आदमी तरक्की की राह पकड़ता है, तो अपनी जमीन और जड़ को भूल जाता है लेकिन बिलासपुर कलेक्टर डॉ संजय अलंग ने इससे इतर संवेदनशीलता और दरियादिली की ऐसी मिसाल पेश की है जिसे न सिर्फ लंबे समय तक याद रखा जाएगा बल्कि देश के दूसरे अफसर और बड़े व्यक्तियों को भी इससी प्रेरणा मिलेगी। वहीं उनके व्यक्तित्व ने साबित किया है कि कोई इंसान बड़ा या छोटा नहीं होता उसके कर्म उसका कद ऊंचा करते हैं। वाकई जिस दिन देश के सभी अधिकारी डॉ अलंग जैसे हो जाएंगे,उस दिन देश की तस्वीर ही कुछ और होगी। पाजिटिव इंडिया डॉ अलंग के जज्बे और मंसूबे को तहेदिल से सलाम करता है।

Plz Support Pozitive India

Tags:

Leave a Reply

%d bloggers like this: