तेज रफ्तार से भागती आज की जिंदगी में अगर कोई चीज सबसे महंगी है, तो वो है इंसानियत। जो मौजूदा वक्त में लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। इंसान का इंसान से विश्वास उठ रहा है। मगर हमारी और आपकी इसी मायाबी दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी मौजूद हैं, जो अपने इरादों और कारनामों से मानवता की बुझती उम्मीद को रोशन कर मिसाल बन जाते हैं। समाजसेवा और दूसरों की मदद ही उनकी जिंदगी का मकसद होता है। आज की कहानी भी एक ऐसी ही शख्सियत की है, जो सेवा, समर्पण और सादगी से आज के मशीनरी दौर में मानवता का मार्गदर्शन कर रही है।
इस निर्मोही दुनिया में कुछ लोग किसी फरिश्ते से कम नहीं होते। उनके हाथ हमेशा दूसरों की मदद के लिए उठते हैं। वो दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझते हैं और अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत के नाम कर देते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है आरके पालीवाल, जो मध्यप्रदेश के चीफ इनकम टैक्स कमिश्नर से प्रमोट होकर आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के डॉयरेक्टर जनरल ऑफ इनकम टैक्स बने हैं। वैसे तो जब एक बड़े सरकारी अफसर का जिक्र होता है तो दिमाग में इमेज आती है एक सख्त और रौबदार आदमी की जो काम से काम रखता हो, लेकिन जब आरके पालीवाल का नाम आता है तो सहज ही दिमाग में एक छवि उभरती है एक सादगी पसंद इंसान की जो गांधीवादी है, समाजसेवक है, चिंतक है, लेखक है, कहानीकार है और इन सबसे बढ़कर इंसानों की तकलीफ समझने वाला खुद भी एक आम इंसान। जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। उनके लिए किसी पद के कोई मायने नहीं होते। वो काम के प्रति भी बखूबी अपना दायित्व निभाते हैं और सामाजिक कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
मध्यप्रदेश में सतपुड़ा की वादियों में बसे होशंगाबाद जिले के गांव छेड़का की ख्याति अब गांधीवादी ग्रीन विलेज के रूप में होने लगी है। इस गांव को ‘ग्रीन विलेज’ की थीम पर विकसित किया गया है। इस थीम के तहत घरों की बाहरी दीवारों पर हरा रंग और फिर उन पर आकर्षक पेंटिंग बनाई गई हैं। गांव की ये छवि पर्यावरण को सहेजने का संदेश तो दे ही रही हैंं साथ ही सतपुड़ा टाइगर रिजर्व तक पहुंचने वाले देशी विदेशी सैलानियों को भी लुभा रही है। इससे यहां पर्यटन क्षेत्र से जुड़े रोजगार के नए अवसर भी खुल रहे हैं।
800 की आबादी वाले छेड़का गांव का पिछले 4 सालों में कायापलट करने का श्रेय जाता है मध्यप्रदेश में आयकर विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल आरके पालीवाल को। गांधी ग्राम सेवा केंद्र के सहयोग से पालीवाल जी ने इस गांव को पिछड़ेपन से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया, ग्रामीणों को समझाया और उनकी जिंदगी को एक नई दिशा दी। गांव के 70-75 घरों की बाहरी दीवारों पर तोतापंखी हरा रंग चढ़ाया गया। फिर पारंपरिक कला के अनुरूप इन पर खूबसूरत ‘मांडने’ और फूल-पत्तियां उकेरी गईं।आज ग्रीन विलेज के रूप पहचाना जाने वाला छेड़का गांव कभी अपने बदहाली पर आंसू बहाता था। गांव में पहुंचने तक का रास्ता नहीं था। गांव में दाखिल होने के लिए एकमात्र विकल्प था पैदल चलकर आना। लेकिन आरके पालीवाल ने गोद लेकर इस गांव की रंगत बदल डाली। आज इस गांव की रौनक और तरक्की देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक भी आने लगे हैं।
छेड़का गांव पर किए गए इस अभिनव प्रयोग को लेकर पालीवालजी कहते हैं कि वैसे तो इंसान का जीवन भी एक प्रयोगशाला ही है। हमने भी सुदूर आदिवासी गांव छेड़का में ग्रामीण जीवन को खुशहाल बनाने के लिए साथियों के साथ मिलकर तरह-तरह के प्रयोग किए, जिनमें जल संरक्षण और रोजगार के वैकल्पिक साधनों से लेकर रंगीला छेड़का जैसे प्रयोग शामिल हैं।
गांधी सेवा केंद्र के जरिए पालीवालजी ने सिर्फ गांव की तस्वीर भी बदली बल्कि यहां के लोगों की तकदीर भी बदली। अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाने के साथ ही आमदनी बढ़ाने के लिए ग्रामीण महिलाओं को साबुन निर्माण, सिलाई और जैविक अनाज-सब्जियां उगाने की ट्रेनिंग भी दिलवाई गई। आज इस की गाव की महलिलाएं आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल पड़ी हैं।
उत्तर प्रदेश के गांव बरला में एक किसान परिवार में जन्मे आरके पालीवाल की पढ़ाई लिखाई मुजफ्फरनगर में हुई और 1988 में नौकरी की शुरूआत हुई। उन्होंने लेक्चरर से लेकर आयकर आयुक्त तक का सफर तय किया। पारिवारिक परिवेश के कारण बचपन से ही गांधीजी से प्रभावित हुए। उनके परिवार की कई पीढ़ियों का संबंध उत्तर भारत के समाज सेवी स्वामी कल्याण देव (जो विवेकानंद के शिष्य और गांधीजी के समकक्ष-सहयोगी थे) से था। मदनमोहन मालवीय से उनकी प्रगाढ़ मित्रता थी जिन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की।
ग्राम समाज सेवा को लेकर पालीवाल सर बताते हैं कि इसकी विधिवत शुरुआत सर्वोदय कार्यकर्ता और चिंतक स्वर्गीय कांतिभाई शाह के मार्गदर्शन में गुजरात के पिछड़े जिले वलसाड के धर्मपुर तालुका के सुदूर गांव खोबा से शुरू की गई। दूसरी प्रयोगशाला बना उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की बाह तहसील का गांव राटोटी। फिर मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले की सोहागपुर तहसील के गांव छेड़का को आदर्श ग्राम बनाने का बीड़ा उठाया। इसके बाद तेलंगाना के संगारेड्डी जिले की आन्दोल तहसील के गांव गंगलुरु में मेगा मेडिकल कैम्प और वृक्षारोपण के साथ ही इस चौथे गांव में भी समग्र समाजसेवा का काम शुरू किया गया।
मेरे लिए यह चारों गांव गांधीवादी रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाने की प्रयोगशाला सरीखे रहे हैं जहां विविध काम करते हुए हमने बहुत कुछ सीखा है। इन चारों गांवों को हम समाजसेवा के चार धाम के रूप में देखते हैं। यहां सेवा कार्य करते हुए व्यक्तिगत रूप से मुझे वैसे ही संतोष की सुखद अनुभूति होती है जैसी बहुत से धार्मिक लोगों को धर्म के चार धाम की यात्रा करने पर होती है।
कुछ लोग समाज की समस्याओं से विचलित हो जाते हैं और कुछ समाज को बदलने के लिए जी-जान से लग जाते हैं। आरके पालीवाल इन्हीं लोगों में से हैं जो अपने सुखों को त्याग कर गांव,गरीब और असहाय लोगों के बेहतरी के लिए पूरी शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं और रचनात्मक कार्यों के जरिए ग्राणीणों को जीने की नई राह सिखा रहे हैं। वहीं हिंदी भाषा के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य करने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की तरफ से सृजन सम्मान और भारत सरकार द्वारा राजभाषा पुरुस्कार से नवाजा जा चुका है।
बहुत प्रेरणा दायक स्टोरी है, सबको इससे सीखने की जरूरत है