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JNU को अब लाज नहीं, अपने गार्ड पर नाज है

mayankshukla 4 years ago
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बीते कुछ सालों से कई मामलों को लेकर सुर्खियों में रही दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) एक बार फिर चर्चा में है लेकिन किसी कथित देश-विरोधी गतिविधियों को लेकर नहीं बल्कि अपने एक सुरक्षा गार्ड के हौंसलों और काबिलियत की वजह से। जिसने देश-दुनिया खासतौर पर यंगस्टर्स के सामने EXAMPLE सेट किया है कि जिंदगी के पथरीले सफर में सपनों का पीछा कैसे किया जाता है।

मजदूरी की, फिर सुरक्षा गार्ड की नौकरी अब JNU में रशियन लैंग्वेज के स्टूडेंट

देश के सबसे प्रतिष्‍ठित संस्‍थान में शुमार जवाहर लाल यूनिवर्सिटी (JNU) से पढ़ाई करना देश के ज्‍यादातर स्‍टूडेंट्स का ख्‍वाब होता है। लेकिन यहां दाखिला इतना आसान नहीं होता और हर साल हजारों युवाओं का सपना टूट जाता है। लेकिन जेएनयू के ही एक सिक्योरिटी गार्ड ने अपनी मेहनत और लगन से विश्वविद्यालय की एंट्रेंस एग्जाम पास कर मिसाल कायम की है। 

रात में गार्ड की नौकरी और दिन में पढ़ाई करने वाले रामजल मीणा उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो परेशानियों और घर के हालातों के आगे बेबस होकर पढ़ाई छोड़ देते हैं।

अगर जज्बा हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं, JNU में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले रामजल मीणा ने इसे सच साबित कर दिखाया है। रामजल मीणा ने JNU की प्रवेश परीक्षा पास कर बीए रशियन भाषा में एडमिशन लिया है। अब राजमल का एक ही सपना बचा है, वो सपना है  सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर IAS बनने का। तीन बच्चों के पिता रामजाल मीणा की कहानी सभी को प्रेरणा देने वाली है।राजस्‍थान के भजेरा गांव से ताल्‍लुक रखने वाले राजमल एक मजदूर के बेटे हैं। घर की खराब आर्थिक स्थिति और पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण जैसे-तैसे उन्होंने गांव के स्कूल में पढ़ाई की और फिर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में व्यस्त हो गए, पर कॉलेज न जा पाने का मलाल था। इस बीच साल 2003 में 18 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। उस समय उन्होंने बीएससी में दाखिला लिया था लेकिन विवाह के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पढ़ाई छोड़ने के दो कारण थे। एक मां-बाप बूढ़े हो गए थे और अब वो कमाकर खिला नहीं सकते थे  दूसरा,पत्नी की जिम्मेदारी भी सिर पर थी। 

बीता समय याद कर रामजल का गला भर जाता है और आवाज़ भारी होने लगती है। हो भी क्यों ना, रामजल पढ़ाई पूरी कर यूपीएससी की परीक्षा पास कर अफसर बनना चाहते थे मगर हालात ने उन्हें बहुत छोटी उम्र में ही काम ढूंढने के लिए मजबूर कर दिया था। लगातार 2 साल तक इधर-उधर मजदूरी करने के बाद साल 2005 में रामजल सिर्फ तीन हज़ार की तनख्वाह पर सिक्योरिटी गार्ड के रूप में भर्ती हो गए और अपने परिवार का पेट पालने लगे। लेकिन रामजल को पढ़ने और सीखने की कसक अभी भी थी। वह कम पैसे में पुरानी किताबें खरीदते और पढ़ाई करते। इस दौरान उन्होंने डिस्टेंस लर्निंग से पॉलिटिकल साइंस, इतिहास और हिन्दी में राजस्थान यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन भी किया। इस बीच सिक्योरिटी कंपनी ने प्रशिक्षण के लिए उन्हें गुरुग्राम भेजा। सबसे पहले दिल्ली मेट्रो में सिक्योरिटी गार्ड रहे और साल 2014 में जेएनयू आए।जेएनयू में पिछले पांच साल से गार्ड की नौकरी कर रहे रामजल मीणा बताते हैं कि जेएनयू के गेट पर खड़े होकर वो अक्सर स्टूडेंट्स को पढ़ते देखा करते। उन्हें देखकर उनके मन में भी जेएनयू के गेट से हटकर वहां के क्लासरूम में पहुंचने की चाहत जागी। हॉस्टल में रहने वाले छात्रों से बातचीत के दौरान उन्हें प्रवेश परीक्षा के बारे में जानकारी मिली। छात्रों ने ही प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म भरने में उनकी मदद की। परीक्षा पास करने के लिए उन्होंने लगन से तैयारी की। अपने फोन में कई एजुकेशन ऐप इंस्‍टॉल किए और इसके जरिए करेंट अफेयरर्स की पढ़ाई की। हॉस्टल के छात्रों ने भी पीडीएफ नोट्स में मदद की ताकि मैं मोबाइल में हीं तैयारी कर सकूं।

ड्यूटी के दौरान पढ़ाई पर पड़ती थी डांट

जेएनयू में अपनी तैयारी के बारे में रामजल बताते हैं कि , ‘ड्यूटी में और घर में जब भी टाइम मिला मैंने पढ़ाई की। कभी-कभी ड्यूटी के बीच पढ़ने पर डांट भी पड़ी मगर साथ भी मिला। सीनियर्स, प्रफेसर्स और स्टूडेंट्स सबने हौसला बनाए रखा। मैं जेएनयू में था, पढ़ने का जज्बा हर वक्त मिलता रहा। जेएनयू की सबसे ख़ास बात ये है कि यहां के लोग ऊंच-नीच में विश्वास नहीं करते।जेएनयू के बारे में कई लोगों की ग़लत धारणाएं हैं।यहां छात्र सिर्फ़ विद्रोह नहीं करते बल्कि इस विश्वविद्यालय ने देश को कई स्कॉलर्स दिए हैं और मैं भी पढ़ाई करके कुछ बनना चाहता हूं।

बीए-रशियन लैंग्वेज के चुनाव पर रामजल कहते हैं, रशिया के बारे में अखबार में पढ़ता था, चाहे उनकी मिसाइल की बात हो या फिर संस्कृति की। सुना था वहां का साहित्य भी बहुत अच्छा है। इसलिए इसी विषय को चुना। रामजल आगे कहते हैं, इसे पूरा करने के बाद मैं और पढ़कर सिविल सर्विसेज का एग्जाम देना चाहता हूं ताकि जिंदगी में कुछ और अच्छा कर सकूं। 

रामजल जैसे लोग ना सिर्फ संघर्ष की जीती-जागती मिसाल हैं, बल्कि परिस्थितियों को मेहनत के दम पर अपने पक्ष में करने वाले असली नायक भी हैं। रामजल की कहानी एक बानगी है, जिद और जुनून से जिंदगी बदली जा सकती है। जिद से जहां बदला जा सकता है। जिद से सपने बुने जा सकते हैं और उसे साकार किए जा सकते हैं।

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