सपनों की कोई सीमा नहीं होती, तमाम तोहमतों के बावजूद हसरत कभी कम नहीं होती। अड़चनों की आधियां और तकलीफों के तूफान को भी हुनर और हौसलों की बयार के आगे अपना रुख बदलना पड़ता है। भारत के सबसे लोकप्रिय टीवी सीरियल ‘भाभीजी घर पर हैं’ में लड्डू के मास्टरजी का किरदार निभाने वाले विजय सिंह के जीवन संघर्ष की कहानी भी इसे शब्द दर शब्द सच साबित करती है। इस कहानी को सामने लाने का हमारा मकसद भी सिर्फ यही है कि आज देश के हताश और निराश यंगस्टर्स/स्ट्रगलर्स सीख सकें कि जिंदगी के पथरीले सफर में सपनों का पीछा कैसे किया जाता है।
तुम्हारे अंदर संस्कार नाम का चीज है कि नहीं…. ‘भाभीजी घर पर हैं’ टीवी सीरियल में मास्टरजी का ये तकिया कलाम आज सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। इस एक डायलॉग ने मास्टरजी को देशभर में मशहूर कर दिया है लेकिन शायद ही किसी को मालूम हो कि टीवी में संस्कार सिखाने वाले मास्टरजी यानि विजय सिंह की असल जिंदगी की कहानी संघर्ष के असल मायने और मुश्किल हालातों से लड़कर आगे बढ़ने का जज्बा भी सिखाती है। आखिर कैसे झारखंड के हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड के छोटे से गांव लोयसुकवार में रहने वाला लड़का जो कभी भरपेट भात के लिए तरसता था, आज मायानगरी की चकाचौंध में टीवी की दुनिया का चमकता सितारा है।
विजय का जीवन काफी संघर्ष से गुजरा। उन्हें ज्यादा चावल खाने को मिले इसके लिए उनकी मां खुद भूंखे ही सो जाती थी और मां को ज्यादा चावल मिले, विजय की इस जिद ने उन्हें केरेडारी से मुंबई पहुंचा दिया।
यादों के पन्ने को पलटते हुए विजय बताते हैं कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से कई बार उनकी मां को भूखे सोना पड़ा,इस घटना ने उनके बालघन पर गहरा प्रभाव डाला। मां को ज्यादा चावल और कुछ पैसे मिले, इसके लिए छोटी उम्र से ही नाटक खेलना शुरू कर दिया तो किस्मत केरेडारी से मुंबई लेकर चली आई। आज मुंबई में मेरा अपना घर है, जहां पत्नी और चार साल की बेटी के साथ रहता हूं, पर अब भी मेरे भीतर मेरा गांव, मेरी मां और मेरी मातृभाषा बसती है।
विजय ने युवा रंगमंच से जुड़कर 60 से अधिक नाटकों में अभिनय और निर्देशन किया। साथ ही देश के विभिन्न भागों में लगभग 30 नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया। एनएसडी से स्नातक के बाद अपने सपनों को सच करने के लिए विजय ने बॉलीवुड की दुनिया की ओर अपना पहला कदम बढ़ाया। इस दौरान उन्होंने लगे रहो मुन्ना भाई, जब वी मेट, दरवाजा बंद रखो, कल किसने देखा और फिरंगी दुल्हनिया समेत कई हिंदी फिल्मो, लापतागंज, चिड़ियाघर, साहेब बीबी और बॉस जैसे सीरियलों के अलावा मन में है विश्वास और रात होने को है जैसी विज्ञापन फिल्मों में भी काम किया है।
इस बीच एक बार फिर परेशानियों ने विजय की जिंदगी में दस्तक दी और आर्थिक समस्याओं के कारण उन्हें मुंबई से वापस अपने गांव जाना पड़ा। हालांकि फिल्म नगरिया मुंबई से दूर होकर भी विजय खुद को अभिनय से अलग नहीं कर पाए। मुंबई से वापस घर आने के बाद झारखंड कला मंदिर से जुड़े और बतौर अभिनय प्रशिक्षक यहां दो साल तक काम किया
दो सालों तक झारखंड कला मंदिर में अभिनय प्रशिक्षक का काम करने के बाद विजय ने एक बार फिर मायानगरी में कमबैक करने का फैसला लिया और ये फैसला उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पाइंट साबित हुआ। क्योंकि इन दिनों टीवी पर कॉमेडी शोज की होड़ लगी हुई थी, कोई भी एंटरटेनमेंट चैनल हो, हर कोई बस टीआरपी के पीछे भाग रहा था। लेकिन टीआरपी की इस दौड़ में सास-बहू के षड्यंत्र और साजिशों से भरे सीरियल्स और निगेटिव मीडिय ट्रेंड के बीच &TV ने हेल्दी इंटरटेनमेंट को प्रमोट करते हुए एक ऐसा शो शुरू किया जो दर्शकों को हंसाने और गुदगुदाने के साथ ही उनकी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया। सीरियल बना तो एडल्ट्स शो के तौर पर था, लेकिन इसे पसंद करने वालों में बच्चे और बूढ़े भी शामिल हो गए। वहीं सीरियल में लड्डू के मास्टर जी का रोल विजय सिंह को मिला और टीवी में मास्टरजी के संस्कारी अंदाज ने दर्शकों का दिल जीत लिया।
एक छोटे से गांव के माध्यम परिवार से ताल्लुक रखने वाले विजय सिंह आज मायानगरी मुम्बई में अपने अभिनय का लोहा मनवा रहे हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद अपने अंदर छिपी प्रतिभा के दम पर दुनिया के सामने खुद को एक बेहतरीन कलाकार साबित करने वाले विजय आज अपने क्षेत्र के कलाकारों के लिए सबसे बड़े आइकॉन हैं।
विजय सिंह आज प्रेरणा है हर कलाकार के लिए, विजय का संघर्ष भरा ये जीवन हर उस इंसान के लिए उम्मीद का दिया है, जो अपने सपनों के लिए जिंदगी की परिस्थितियों से हार नहीं मानता।