देश-प्रदेश में इन दिनों बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। इस बीच कई बार बुरी खबर सुनने को आती है कि पेपर बिगड़ जाने से कहीं किसी स्टूडेंट ने सुसाइड कर लिया तो कोई फेल होने के डर से फांसी के फंदे पर झूल गया। इन परीक्षाओं को जिंदगी से ज्यादा कीमती समझने वाले बच्चों और पैरेंट्स को समझाने के लिए शायद आज मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के मयंक तोमर की कहानी सुनाना जरूरी हो गया है ताकि ‘जिंदगी को नंबर के तराजू’ में तौलने की लोगों की सोच अब तो बदली जा सके।
मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर होशंगाबाद के गिन्नी कंपाउंड में रहने वाले डॉ मयंक के नाम आज सबसे कम उम्र में पीएचडी समेत बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल करने समेत कई रिकार्ड दर्ज है। लेकिन 10वीं कक्षा में मयंक को भी सप्लीमेंट्री के रूप में बड़ी नाकामी का सामना करना पड़ा था। उस वक्त उसे भी खुद पर खूब गुस्सा आया, माता-पिता की इज्जत डूबने का डर, बदनामी, जग हंसाई से लेकर तमाम कुशंकाओं ने दिमाग में घर करना शुरू कर दिया लेकिन मयंक सिर्फ परीक्षा में फेल हुए था जिंंदगी में हारा नहीं था। लिहाजा इन परस्थितियों में लोग जितना साहस मौत को गले लगाने के लिए जुटाते हैं, मयंक ने उस साहस और गुस्से को अपनी कमजोरी के खिलाफ इस्तेमाल करने का फैसला लिया और इस क्षण के बाद मानो उसकी जिंदगी ही बदल गई। दसवीं में असफल होने वाले इसी मयंक ने 12वीं में पूरे जिले में टॉप किया और इसके बाद शुरू हुआ छोटी सी उम्र में कई बड़ी-बड़ी डिग्रियां करने के कार्तिमान रचने का सिलसिला।
12th में अव्वल आने के बाद मयंक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बाहर जाने की बजाए होशंगाबाद में ही रहकर पढ़ाई करने का फैसला लिया और स्नातक में विश्वविद्यालय में टाप किया। मयंक होशंगाबाद संभाग से एक मात्र छात्र है जिसने सागर यूनिवर्सिटी से फॉरेंसिक साइंस में टॉप किया और बाद में नई दिल्ली स्थित मानवाधिकार संस्थान से मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए गोल्ड मैडल हासिल किया। इतना ही नहीं सबसे कम उम्र में पीएचडी कर उन्होंने सबको चौंका दिया तो वहीं मालदीप में स्थित, सार्क देशों द्वारा संचालित इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स यूनिवर्सिटी ने मयंक को डी लिट की उपाधि से विभूषित किया है,जो अपने आप में एक अनोखा रिकार्ड है।
मयंक ने मेवाड़ विश्वविद्यालय से हिस्ट्री में पीएचडी भी की तो वहीं अपराध और उसकी प्रकृति को समझने के लिए सागर यूनिवर्सिटी से क्रिमिनोलॉजी में टॉप करने के साथ ही पर्सनल मैनेजमेंट में भी टॉप किया। इसके साथ-साथ हिस्ट्री से एमए भी किया। इसके अलावा माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी से पीजीडीसीए में भी टॉप किया। अद्भुत शैक्षणिक प्रतिभा के धनी मयंक का देशभर के कई सामाजिक संगठनों और संस्थानों द्वारा सम्मान भी किया जा चुका है। मयंक का चयन इंदौर की देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर भी हुआ लेकिन मयंक का सपना आईएस बनने का है, जिसकी तैयारी वो फिलहाल दिल्ली में रहकर कर रहे हैं।
साधारण से परिवार से ताल्लुक रखने वाले मयंक ने छोटी उम्र से ही अपने सपनों को पूरा करने के लिए वक्त और हालात से संघर्ष किया। मुसीबतों के सामने कभी टूटा नहीं, हौंसला कम नहीं होने दिया और निगेटिविटी को अपनी लाइफ में एंट्री तक नहीं करने दी। समानता में विश्वास रखने वाले डॉ मयंक तोमर महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते हैं।
कहते हैं कामयाबी उम्र की मोहताज नहीं होती या फिर यूं कह लीजिए कि कुछ नया करने की ख्वाहिशें उम्र से आजाद होती हैं। इस करिश्माई दुनिया में कई ऐसी शख़्सियतें भी हैं, जो उम्र के तमाम पैमानों से ऊपर उठकर ज़िंदगी जीती हैं और कम उम्र में ही कामयाबी की बड़ी इबारत लिख जाती हैं। मयंक की कहानी भी एक ऐसे ही होनहार छात्र की है जिसने कच्ची उम्र में तमाम रुकावटों से संघर्ष कर बहुत कुछ हासिल किया और कामयाबी को मात देने के साथ ही देश के लाखों स्टूडेंट्स को आगे बढ़ने की नई दिशा दी।