ये एक सिंगल मदर की कहानी है…जिसमें सपने हैं, संघर्ष है…रिश्तों की रुसवाई है, रोज-रोज के धक्के हैं…अकेलेपन की कसक है, जमाने से लड़ने का जज्बा है…सफलता से भरे खुशियों के हसीन पल हैं तो समुंदर सी दर्द की गहराई भी…दुनिया के ताने हैं तो मातृत्व की ताकत भी…ये कहानी एक ऐसी दमदार शख्सियत की है जिन्होंने अपनों से मिले अनगिनत जख्मों के बावजूद अपने हौंसले और हुनर के बूते जिंदगी की कर्मभूमि में शून्य से शिखर तक का सफर तय किया।
किसी भी मां की मेहनत और संघर्ष का कोई सानी नहीं होता लेकिन, मां जब सिंगल मदर की भूमिका में हो तो ये संघर्ष पहाड़ों को अकेले फोड़कर नया रास्ता बनाने सा मुश्किल हो जाता है। उसे अकेले ही सब कुछ करना होता है क्योंकि बेटे की देखभाल से लेकर दिनभर चलने वाली औपचारिकताओं में कोई और साथ नहीं होता। ये जिंदगी की ऐसी कड़वी हकीकत है जो इंसान को अंदर से तोड़कर रख देती है। लखनऊ में रहने वाली सदफ की जिंदगी भी इसी हकीकत के इर्द-गिर्द घूमती है।
सदफ पति की प्रताड़ना से तंग आकर कभी अपनी जिंदगी खत्म करना चाहती थीं…खुदकुशी की कोशिश की…एक मानसिक अस्पताल में भर्ती रहीं…पति के सितम सहते रहे…अकेली हो गईं…बच्चों के साथ खाली हाथ सड़क पर आ गईं…और फिर जिंदगी से भिड़ने का फैसला लिया…आज सदफ अभिनय से लेकर राजनीति के क्षेत्र में एक जाना पहचाना चेहरा हैं…फिल्म अभिनेता और निर्माता फरहान अख्तर के साथ उनकी फिल्म लउनऊ सेंट्रल में वो दमदार भूमिका निभा चुकी हैं…
दो बच्चों की मां सदफ की जिंदगी एक सिंगल मदर के पिता बनने की कहानी है। सदफ अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि शादी के बाद से ही उनकी जिंदगी में अचानक उथल पुथल मच गई। पति छोटी-छोटी बातों में मार-पीट करते और जिल्लत का ये सफर 8 सालों तक चला। एक दिन पति ने रात भर मारा तो मैंने भी इससे तंग आकर आत्महत्या करने का मन बना लिया। मैंने ग़ुस्से में नींद की गोलियां खा लीं, लेकिन ग़लती से वो गोलियां नींद की नहीं, डिप्रेशन की थीं। मैं बच तो गई लेकिन दवाओं का साइड-इफेक्ट होना शुरू हो गया। मेरी मानसिक हालत बिगड़ती गई यहां तक कि मानसिक अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ा। मेरा खुद को संभालना मुश्किल हो रहा था और ऐसे में एक दिन मेरे पति अचानक ही हम सब को अकेला छोड़ कर अपनी मां के पास चले गए।
पति का घर छोड़ने से लेकर बॉलीवुड और राजनीति तक का सदफ का ये सफर इतना आसान नहीं रहा। निराशा और अवसाद की काली रात, हर तरफ मुश्किलें और हार का भय। चुनौतियां मुंह बाए अपने विकराल रूप में खड़ी रहीं, लेकिन इन सबसे बेखबर वो अपने हुनर और अदम्य साहस के साथ जुटी रहीं, काली रात को भोर में बदलने के लिए। कई बार ऐसा लगा कि नहीं, शायद अब और नहीं मगर तभी उन्हीं अंधेरों के बीच से जिंदगी ने कहा कि देखो उजास हो रहा है।
असल जिंदगी में मिले जख्मों ने आज सदफ को दिल और दिमाग से मजबूत बना दिया है। एक टीचर, सोशल वर्कर और थियेटर आर्टिस्ट होने के साथ-साथ अब वो सियासत के मंच पर भी सक्रिय हैं। सदफ की कहानी एक नारी के अदम्य साहस और संघर्ष की कथा को खुद में समेटे हुए है। हर कदम पर मुसीबतें पहाड़ बनकर आती हैं लेकिन वो अपने बलबूते पहाड़ जैसी मुसीबतों को काटकर अपने रास्ते खुद बनाने का जीवट रखती हैं। एक महिला के संघर्ष को, उसकी दृढ़ता को, उसके साहस को और कभी ना टूटने वाले उसके मनोबल को POZITIVE INDIA का सलाम।