ये कहानी एक ऐसे किरदार की है जो दिल में कुछ कवितायें, बैग में एक डायरी और खाली जेब लिए दुनिया को बदलने निकल पड़ा है। रमता जोगी बहता पानी की तरह जहां दिल करता है उस शहर की ओर निकल पड़ता है। वहां की समस्या से रूबरू होकर नुक्कड़ नाटक लिखता है और फिर उसका मंचन करता है।
9th क्लास से थिएटर करने वाले विपुल सिंह ने खुद भी कभी ये नहीं सोचा था कि थिएटर के प्रति उनका जूनून और मोहब्बत उन्हें एक दिन उनकी मंजिल का रास्ता बताएगी। आसमान में उड़ने वाले किसी आज़ाद पंछी की तरह ही विपुल के ख्याल भी बिलकुल आज़ाद हैं।जब दिल किया तब उठ खड़े हुए, बिना सोचे-समझे कोई रास्ता चुना और उस ओर चल पड़े, बगैर इस बात की चिंता किये कि जेब में एक पैसा नहीं है, रात कहां रुकना है,आगे कुछ खाने को मिलेगा या नहीं।
सुकून की तलाश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधूरा छोड़ निकल पड़े घर से
जब पापा टीचर, मम्मी राइटर और भाई नेवी में हो, तो घरवालों की उम्मीदें आपसे बढ़ जाती हैं। पर जब आप अपने ही सपने में जीने लगें, तो किसी का विरोध भी आपको रोक नहीं पाता। ऐसा ही कुछ विपुल के साथ भी हुआ, पर बाद में घरवालों का भी साथ मिलने लगा और आज विपुल सपने देखने की बजाए उनके साथ जीने लगे हैं।
ज्यादातर लोगों के लिए यह नाम बिलकुल नया हो सकता है लेकिन इस नाम को जानता है बनारस के मडुआडीह की झोपड़ी में रहने वाला एक सब्जी वाला, जो हर शाम दारु पीने के बाद अपनी बीवी को मारता था, इस नाम को जानती है राजस्थान के जयपुर में रहने वाली वो औरत जो कुछ ही दिनों बाद अपनी नाबालिक बेटी की शादी करने वाली थी, पर इस शख्स से मिलने के बाद बनारस के सब्जी वाले ने दारु पीना बंद कर दिया तो जयपुर वाली औरत ने अपनी नाबालिक बेटी की शादी रुकवा दी।
विपुल समाज में जागरुकता लाने के मकसद से दो बार लंबी पदयात्रा भी कर चुके है। साल 2016 में उन्होंने भोपाल से जम्मू तक की पैदल यात्रा भी की। 27सौ किलोमीटर की इस यात्रा को उन्होने 95 दिन में पूरा किया। इस दौरान उन्होने महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर नुक्कड़ नाटक का मंचन किया। इस दौरान उनके नाटकों में माहवारी, घरेलू हिंसा और लिंगभेद, बालविवाह, दहेज प्रथा जैसे कई मुद्दे शामिल थे। वहीं 2017 में वुमन ट्रैफिकिंग रोकने का मैसेज देने के लिए कोलकाता से दिल्ली तक पदयात्रा की थी।
सफर के दौरान अपने कुछ यादगार पलों को याद करते हुए विपुल बताते हैं कि वो रात को नाटक के माध्यम से अवेयरनेस के लिए उत्तर प्रदेश के कठेराव गांव जा रहे थे जहां पानी की भीषण समस्या है। रास्ते में उसी गांव के कुछ चोरों ने पकड़ लिया और मोबाइल, पर्स छीनने लगे। पर जब बैग लेने लगे तो मैंने कहा कि मेरी डायरी मुझे दे दो या उसमें से नंबर नोट करने दो। मोबाइल की रोशनी में जब विपुल कागज़ पर नंबर नोट कर रहे थे, तो उनमें से एक ने पूछा क्या करते हो, तो विपुल ने बताया कि मैं घूम-घूम कर लोगों की समस्याओं को सामने लाता हूं, अभी कठेराव जा रहा हूं। तब उन्होंने कहा कि वो तो हमारा ही गांव है, जिसके बाद उन्होंने वहां की पानी की समस्या के बारे में बताया और खुद गाड़ी से गांव तक छोड़ा, खाना खिलवाया और नुक्कड़ में सहायता की। इतना ही नहीं जल संरक्षण और अवेयरनेस पर लिखे मेरे नाटक को तीन दिनों में उन्होंने चालीस बार कराया, फिर छोड़ा।
good story & nice work.inpresent society need this type of positive media