ये हैं मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गांव पिपिथौराबाद में रहने वाले बाबूलाल दाहिया,जिन्हें मिला है देश का सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री। बाबूलाल को यह सम्मान देसी बीजों को सहेजने और नित नए प्रयोग के जरिए जैव विविधता के क्षेत्र में सराहनीय काम करने के लिए दिया जा रहा है।
परंपरागत धान की विलुप्त होती कई किस्मों को नई जिंदगी देने और खेती को लोकजीवन से जोड़ने वाले बाबूलाल वैसे तो बघेली के जाने माने कवि हैं, लेकिन उन पर देशी बीज बचाने का जुनून कुछ इस कदर सवार हुआ कि उन्होंने प्रदेश के चालीस जिलों की यात्रा कर दो सौै किस्म के देशी बीज को संग्रहित और संरक्षित करने का कारनामा कर दिखाया।
साल 2015 में केवल 400 मिलीमीटर बारिश हुई और सूखे से फसलें बर्बाद हो गईं, पर बाबूलाल के खेत में लगी लगभग 30 किस्मों पर सूखे का भी कोई असर नहीं हुआ। उनकी पैदावार हर साल की तरह ही रही। इससे आसपास के किसान उनके लोकविज्ञान से खासे प्रभावित हुए, अब 30 गांवों के किसान उनके साथ मिलकर धान और मोटे अनाज (कोदो, कुटकी, ज्वार) की खेती कर रहे हैं। बाबूलाल को यह ज्ञान कहीं बाहर से प्राप्त किया हुआ नहीं है, उनका मानना है कि यह लोकजीवन का विज्ञान है।
पद्मश्री सम्मान पाने की खुशी बाबूलाल के चेहरे पर साफ झलकती है। उनकी इस उपलब्धि पर परिवार और गांव के लोग भी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। वहीं बाबूलाल का कहना है कि किसानों की उन्नति के लिए शासन-प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए।
बाबूलाल को किसानी अपने पिता से विरासत में मिली तो वो अपनी विरासत अपने पोते को देना चाहते हैं। पोता भी दादाजी की राह पर चलने के लिए तैयार है और इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए उसने प्रशिक्षण लेना भी शुरू कर दिया है।