गुरू-शिष्य परंपरा की दुहाई देने वाले इस देश में शिक्षा की दुर्दशा और दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। बढ़ते पेशेवर रवैये के कारण शिक्षकों का गिरता सम्मान आज की आधुनिक शिक्षा प्रणाली का एक कड़वा सच है। लेकिन इस देश में अब भी कुछ ऐसे शिक्षक हैं, फर्ज के प्रति जिनके समर्पण को देखकर दुनिया उन्हें दिल से सलाम करती है। हमारी आज की कहानी भी शिक्षा की एक ऐसी ही देवी की है जो बीते 17 सालों से नामुमकिन परिस्थियों में भी शिक्षा की अलख जगाकर नौनिहालों के भविष्य को रोशन कर रही हैं।
नाव पर बैठी ये महिला तिरूवनंतपुरम की रहने वाली उषा कुमारी हैं जो बीते 17-18 सालों से केरल के दूरदराज गांव कोट्टूर में अगस्त्य ईगा विद्यालय चला रही हैं। उषा कुमारी हर सुबह 7:30 बजे स्कूटी से तिरूवनंतपुरम स्थित अपने घर से निकलती हैं। इसके बाद वो खुद नाव चलाकर एक दुर्गम पहाड़ी इलाके के किनारे पहुंचती हैं, इनका रास्ता यहां खत्म नहीं होता। उन्हें यहां से एक और लंबा रास्ता तय करना होता है। जिसमें दो मील की चढ़ाई भी शामिल है। उषा छड़ी के सहारे इस पहाड़ी इलाके को पार करती हैं, इस वक्त उनके साथ कुछ बच्चे भी होते हैं जिन्हें वो पढ़ाती हैं।
सरकार ने पिछड़े जनजातीय इलाकों में स्कूलों की शुरूआत 1999 में की थी। तब से ही इस स्कूल में वो इकलौती टीचर हैं। उषा ने अपनी मेहनत से इस स्कूल को चलाया है। इसके साथ-साथ उन्होंने गांव वालों को भी शिक्षा के प्रति जागरूक किया है।