मुंबई के नरीमन प्वॉइंट पर एक शाम चार दोस्त मिले। वह मुलाकात उनकी जिंदगी का पहला और आखिरी अचीवमेंट प्वॉइंट बन गई। चार साल पहले उस मुलाकात में ही आज की लगभग चालीस करोड़ की मार्केट वैल्यू वाली ‘बॉम्बे शेविंग कंपनी’ की नींव पड़ी थी। आज इस कंपनी का कुल लगभग बारह हजार ग्राहकों का एक बड़ा परिवार खड़ा हो चुका है। आगे अमेजन से कंपनी को ग्लोबल लॉन्च के लिए एक इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म मिल गया। कंपनी को हाल में ही 2.5 मिलियन डॉलर यानf करीब 17 करोड़ रुपए की फंडिंग मिली है।
बातों-बातों में ‘मैन्स ग्रूमिंग प्रोडक्ट’ पर बॉम्बे शेविंग कंपनी नाम से उनके ‘पुरुष शेविंग स्टार्टअप’ का प्लान बना और काम आकार लेने लगा। फंडिंग से उन्होंने 4 करोड़ रुपये जुटाए। चार महीने के भीतर ही उनके सदस्यों की संख्या डेढ़ हजार तक पहुंच गई। कंपनी चल पड़ी। उनको रोजाना कम से कम पंद्रह-बीस ऑर्डर मिलने लगे। काम का तरीका सब्सक्रिप्शन मॉडल रहा। एक ग्राहक के लिए शेविंग किट में एक रेजर, ब्रश, ब्लेड, एक प्री-शेव स्क्रब, शेविंग क्रीम और बाद के शेव बाम 2,995 रुपये में। बीस ब्लेड के लिए 1,200 रुपये का सब्सक्रिप्शन। एक ग्राहक भी अपनी जरूरतों के मुताबिक चार उत्पादों में से किसी एक को सब्सक्राइब करने के लिए स्वतंत्र।
गौरतलब है कि हमारे देश में पुरुषों के शेविंग सेगमेंट पर जिलेट और कोलगेट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है। और भी तमाम कंपनियां इस बिजनेस में सक्रिय हैं लेकिन चार दोस्तों की मैन्स ग्रूमिंग प्रोडक्ट कंपनी ने ऐसा उछाल लिया कि मल्टीनेशनल वाले हक्के-बक्के रह गए। देखते-देखते कंपनी का सालाना टर्नओवर 40 करोड़ तक पहुंच गया।
हालांकि चारों दोस्तों शांतनु, रौनक, रोहित, दीपू के इस कंपनी को खड़ा करने से पहले अपने जीवन के व्यक्तिगत सपने अलग-अलग कुछ और थे, लेकिन कंपनी चल पड़ी तो चल पड़ी, फिर सपना भी एक हो गया कि अब तो किसी भी कीमत पर ‘बॉम्बे शेविंग कंपनी’ की कामयाबी उनके जीवन का पहला और आखिरी लक्ष्य है। महीनों की फोन कॉलिंग, बिजनेस मॉडल और मार्केट स्ट्रैटजी के बाद दिल्ली में कंपनी शुरू हो गई। तब उन्होंने अक्टूबर 2015 में बॉम्बे शेविंग कंपनी की शुरुआत की। आज इस कंपनी का कुल लगभग बारह हजार ग्राहकों का एक बड़ा परिवार खड़ा हो चुका है। आगे अमेजन से कंपनी को ग्लोबल लॉन्च के लिए एक इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म मिल गया। कंपनी को हाल में ही 2.5 मिलियन डॉलर यानी करीब 17 करोड़ रुपए की फंडिंग मिली है।
उनकी टीम ने वर्ल्ड क्लास एक्सपर्ट और मैन्युफैक्चरर्स से बात की। उन्होंने खूशबू, रॉ मैटेरियल, केमिकल इंजीनियर्स, इंडस्ट्रियल डिजाइनर और पैकेजिंग इनोवेटर्स से बातचीत की। इसके बाद वे अपना प्रोडक्ट बनाने में जुट गए। शुरुआत में रेजर डिजाइन किया गया, जो ग्राहकों के लिए फ्री ऑफ कॉस्ट था। अब सप्लाई में डाक खर्च भारी पड़ने लगा। इसके बाद अलग तरह का मजबूत बॉक्स डिजाइन हुआ। इसका ट्रेड मार्क भी करा लिया। अब तो उनकी लगभग नब्बे प्रतिशत बिक्री ऑनलाइन चल रही है। हमारे देश में इस तरह के प्रॉडक्ट के करीब दो-ढाई करोड़ उपभोक्ता हैं और इसका करीब दो हजार करोड़ का कारोबार है।