ये किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं बल्कि भावनाओं से भरे भारत में रहने वाले उस साधारण परिवार की असल मार्मिक कहानी है,जहां एक नन्हे बच्चे से अपनी मां का दर्द देखा नहीं गया, मां को रोज-रोज होने वाली तकलीफ ने उस बेटे को अंदर से तोड़कर रख दिया लेकिन वह मासूम कर भी क्या सकता था? हालांकि उस मां का बच्चा था तो छोटा लेकिन उसकी सोच वाकई बहुत बड़ी थी। उसने देशी जुगाड़ से एक ऐसा डिवाइस इजाद किया, जिसने उसकी मां की सारी बीमारी को ऐसे दूर किया जैसे वाशिंग मशीन पल भर में मैल को कपड़ों से दूर कर देती है,वो भी बिना मेहनत के।
एक छोटे से घर में बीमार मां, कभी बुखार तो कभी जोड़ो में दर्द, इन तमाम परेशानियों के बावजूद चूल्हा-चौका से लेकर पूरे परिवार के कपड़े धोने तक घर का सारा काम उसे ही करना पड़ता था। मगर घर में मौजूद 14 साल के बेटे से अपनी मां की रोज-रोज की मुसीबत देखी न गई और उसने मां के दर्द को दूर करने के लिए जुगाड़ कला का इस्तेमाल करते हुए खटारा साइकिल की मदद से एक देशी वाशिंग मशीन का अविष्कार कर डाला, जिससे मां को भी हर दिन की झंझट से मुक्ति मिल गई और कोई खास खर्चा भी नहीं करना पड़ा।
8 वीं क्लास के बच्चे ने जुगाड़ से महज 1700 रुपए में बनाई साइकिल से चलने वाली देशी वॉशिंग मशीन। खास बात ये है कि इस वॉशिंग मशीन को चलाने के लिए बिजली की कोई भी जरूरत नहीं है। आप बस साइकल पर पैडल मारते रहिए और कपड़े आसानी से धुलते जाएंगे।
छिंदवाडा के पांढुर्ना में रहने वाले मोटर मैकेनिक संजय कोले के 14 साल के बेटे का नया अविष्कार हर किसी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। दर्शन ने महज 1740 रुपए खर्च कर देशी जुगाड़ की सहायता से एक ऐसी वाशिंग मशीन बनाई है जिसे चलाने के लिए बिजली की जरुरत भी नहीं पड़ती है। बस साईकल की तरह पैडल मारिये और कपडे धूल जायेंगे।
हमारी 6 लोगों की फैमिली है। मेरे पिता मैकेनिक हैं। गाड़ियों की रिपेयरिंग करने के कारण उनके कपड़े सबसे ज्यादा गंदे होते हैं। मां ही सभी के कपड़े धोती हैं। जिसके कारण अक्सर वो बीमार पड़ जाती थीं। यहीं से मुझे इसे बनाने का आइडिया आया।
वाकई सही कहा गया है जरूरत ही अविष्कार की जननी है…