क्रिकेट की दुनिया में वीरेंद्र सहवाग के दीवानों की संख्या लाखों में है। लेकिन क्या आपको पता है सहवाग भी असल जिंदगी में खुद किसी के सुपरफैन हैं। खास बात यह है कि सहवाग को अपना सबसे बड़ा प्रशंसक बनाने वाली कोई बड़ी शख्सियत नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के सीहोर में रहने वाली 72 साल की एक वृद्ध महिला हैं, जिन्होंने जिंदगी के उबड़ खाबड़ मैदान में संघर्ष की ऐसी नाबाद पारी खेली कि क्रिकेट के मैदान में अपने संघर्ष से कामयाबी का इतिहास रचने वाले वीरू भी उनके कायल होने से खुद को रोक नहीं पाए।
संघर्ष हर इंसान के जीवन में होता है। इसकी न कोई उम्र होती है और न ही कोई सीमा। कुछ इसके सामने टूट जाते हैं तो कुछ इसकी आंखों में आंखे डाल भिड़ जाते हैं। ऐसे लोग न सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी जीवन जीना सिखाकर दुनिया जहां के सामने एक नया उदाहरण पेश कर जाते हैं। और ऐसा ही एक उदाहरण देश के सामने आया जब क्रिकेटर वीरेंद्र सहवान ने अपने ट्विटर एकाउंट पर मध्यप्रदेश के सीहोर की रहने वाली एक बुजुर्ग महिला का वीडियो शेयर कर उन्हें ‘सुपरवुमन’ बताया।
72 साल की उम्र में भी टाइपिंग मशीन पर लक्ष्मी बाई की उंगलियां राजधानी एक्सप्रेस भी तेज दौड़ती है । जब लक्ष्मी बाई की उंगलियां टाइपिंग मशीन पर चलती हैं तो देखने वालों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता। सबके मन में एक ही सवाल होता है आखिर उम्र के इस आखिरी पड़ाव में काम के प्रति ऐसा जज्बा और परिस्थितियों से निपटने का इतना साहस आता कहां से है?
सहकारी बाजार बंद होने के बाद लक्ष्मी बाई अपने रिश्तेदारों के भरोसे सीहोर आ गईं और छोटे-मोटे काम के जरिए दो जून की रोटी के इंतजाम में जुट गई। इस दौरान तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह और एसडीएम भावना बिलम्बे की नजर उनकी टाइपिंग स्पीड पर पड़ी और वो भी हैरान रह गए। लिहाजा लक्ष्मी बाई की पुराने टाइप राइटर पर टाइपिंग की कला से प्रभावित होकर उन्होंने साल 2008 में कलेक्ट्रेट में ही बैठने की जगह मुहैया कराई। तब से लेकर आज तक लक्ष्मी बाई कलेक्ट्रेट में आवेदन, शिकायती पत्र और अन्य दस्तावेज टाइप कर अपना जीवन यापन कर रही हैं। साथ ही उम्र का हवाला देने वाली महिलाओं और समाज को नई दिशा दे रही हैं।
जिस उम्र में आकर लोगों को दूसरे के सहारे की जरूरत पड़ती है, उस आयु में भी लक्ष्मी बाई बिस्तर पकड़ने की बजाए अपने परिवार का सहारा बनी हुई हैं। वाकई अपने नाम को सार्थक करती ऐसी वीरांगना को हमारा शत-शत प्रणाम। जिनके जीवन संघर्ष की कहानी बताती है कि सवाल इस बात का नहीं होता कि आप आज क्या हैं, क्या कर रहे हैं, क्या उम्र और समय है, बस एक हौसला चाहिए। जीवन की लहरों में तरंग तभी पैदा होती है, जब आप वैसा कुछ करते हैं।