अगर आप गाड़ी चलाते हैं तो हॉर्न बजाने से नहीं चूकते होंगे। जाहिर सी बात है कि कभी न कभी तो हॉर्न बजाने की जरूरत पड़ ही जाती है। लेकिन मैं आज आपको एक ऐसे शख्स से मिलाने जा रहा हूं, जिन्होंने बिना हॉर्न बजाए 18 साल बिता दिए। जी हां !आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन इन महाशय ने अपने 18 साल के ड्राइविंग करियर में कभी हॉर्न का इस्तेमाल ही नहीं किया।इस अद्भुत कारनामे के लिए उन्हें मानुष सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।
दुनिया में सिर्फ जनसंख्या ही नहीं बढ़ रही है। बढ़ती आबादी के साथ-साथ सड़कों पर गाड़ियों की संख्या भी बढ़ रही है, जो वायु और ध्वनि प्रदूषण के जरिए हमारी इस दुनिया के प्राकृतिक हुलिए से छेड़छाड़ कर संतुलन बिगाड़ने का काम कर रही है। कई रिसर्च में भी ये बात सामने निकलकर आई है कि गाड़ियों के हॉर्न से आने वाली आवाजें लोगों में बहरेपन और स्वभाव में चिड़चिड़ेपन की समस्याएं पैदा करती हैं।
आप मत घबराइए क्योंकि कोलकाता में रहने वाले 51 साल के ड्राइवर दीपक दास ने इस समस्या का इलाज ढूंढ लिया है और एक मुहिम भी छेड़ रखी है। उन्होंने कभी हॉर्न न बजाने का संकल्प ले रखा है और पिछले 18 सालों से बिना हॉर्न बजाए ही गाड़ी चला रहे हैं। जिसके लिए उन्हें मानुष सम्मान से नवाजा गया है। उनकी आदतों को पहले मानुष मेला के आयोजनकर्ताओं द्वारा प्रमाणित किया गया और देखा गया कि क्या वाकई में वो कभी हॉर्न का इस्तेमाल नहीं करते। इसके बाद उन्हें यह सम्मान दिया गया। दीपक ने अब तक जिन-जिन लोगों के लिए गाड़ी चलाई थी, उनसे भी इसके बारे में राय ली गई। पता चला कि दीपक गाड़ी चलाते वक्त हॉर्न ही नहीं बजाते।
51 साल के दास को ऐसा करने की तब सूजी जब वह मशहूर बांग्ला कवि जीवनानंद दास द्वारा रचित प्रकृति में शांति का जश्न मनाने की कविता पढ़ रहे थे। दास का कहना है कि बिना हॉर्न बजाए आप असल में ध्यान केंद्रित कर सुरक्षित तरीके से गाड़ी चला सकते हैं।
दीपक दास की जिंदगी में एक अहम मोड़ 18 साल पहले उस वक्त आया जब वह मशहूर बांग्ला कवि जीवनानंद दास द्वारा रचित प्रकृति में शांति का जश्न मनाने की कविता पढ़ रहे थे। उन्होंने कहा, मैं दक्षिण कोलकाता के बहुत ही शांत इलाके में हरियाली और पक्षी की आवाजों से घिरा हुआ था तभी अचानक वहां स्कूल बसों के हार्नों की आवाजें मेरे कानों में आने लगीं।इसने मेरे दिवास्वपन को तोड़ दिया। तब मुझे अहसास हुआ कि मुझे कुछ करना चाहिए। उसके बाद उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा।
अब दीपक का सपना हिंदुस्तान को हॉर्न के शोर से मुक्त करना है। उन्हें उम्मीद है कि अच्छी प्रशासनिक इच्छाशक्ति के जरिए ऐसा किया जा सकता है। वाकई दीपक दास की सोच सराहनीय है और इसी सोच के लिए उन्हें कई बड़ी संस्थाओं की तरफ से सम्मानित भी किया जा चुका है।