तेज रफ्तार से भागती आज की हाईटेक दुनिया में अगर कोई सबसे महंगी चीज है, तो वो है इंसानियत। जो मौजूदा वक्त में लगभग विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। इंसान का इंसान से विश्वास उठ रहा है। मगर हमारी और आपकी इसी मोह मायाबी दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी मौजूद हैं, जो अपने इरादों और कारनामों से बुझती उम्मीद को रोशन कर इंसानियत को अमर कर जाते हैं। दूसरों की मदद ही उनकी जिंदगी का मकसद होता है। मेरी आज की कहानी एक ऐसी ही नायिका की कहानी है जो दशकों से अंधेरी दुनिया को सुनहरी किरण दे रही है और हजारों सूनी आंखों का सपना साकार कर रही है।
कुछ लोग इस धरती पर किसी फरिश्ते से कम नहीं होते। उनके हाथ हमेशा दूसरों की मदद के लिए उठते हैं। वो दूसरों के दर्द का अपना दर्द समझते हैं और अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत के नाम कर देते हैं। बेंगलुरू में रहने वाली पुष्पा प्रिया भी इन्हीं में से एक हैं। उन्होंने बीते 10 सालों में 657 परीक्षाएं लिखी हैं लेकिन ये परीक्षाएं उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि दिव्यांगों के लिए लिखी हैं। पुष्पा मानवता की जीती जागती मिसाल हैं जो नेत्रहीनों के लिए रोशनी की लौ बन चुकी हैं।
परीक्षा चाहे बैंक की हो, यूनिवर्सिटी एग्जाम हो या फिर कोई करियर टेस्ट, पुष्पा हमेशा दिव्यांगों की मदद करने और उनका हाथ, आंख या कान बनने को तैयार रहती हैं।
इस नेक काम की शुरूआत 2007 में उस समय हुई जब प्रिया ने पहली बार डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लड़के का पेपर लिखा। उसके बाद से दिव्यांगों के लिए परीक्षाएं लिखने का ये सिलसिला अब तक जारी है। पुष्पा बताती हैं, मेरे लिखने पर ही बच्चों का पूरा रिजल्ट निर्भर करता है,इसलिए मुझे एग्जाम हाल में सतर्क रहना पड़ता है।
पुष्पा ने बचपन में ही बुरे वक्त से लड़ना सीख लिया था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें पढ़ाई के लिए भी काफी परेशान होना पड़ा। मगर ये वही वक्त था जिसने पुष्पा को जिंदगी के मायने सिखाए और वो एक अच्छी इंसान बन सकीं। पुष्पा बताती हैं कि एक बार फीस न जमा होने के चलते उन्हें एग्जाम हॉल से बाहर कर दिया गया था। उस वक्त कुछ अच्छे लोगों की मदद से उनकी आगे की पढ़ाई पूरी हो पाई। अब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं इसलिए अब मदद करने की बारी मेरी है।
बेंगलुरू के BTM Layout में रहने वाली प्रिया एक MNC में काम करती हैं। लेकिन पूरे शहर में उनकी पहचान एक ऐसी शख्सियत के रूप में है जो दिव्यांगों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। पुष्पा कहती हैं कि दिव्यांगों की परीक्षाएं लिखना अब उनका पैशन बन चुका है।
वाकई आज के व्यस्त जमाने में लोग जहां अपनों के लिए समय नहीं निकाल पाते, ऐसे में अपने घर और ऑफिस का सारा कामकाज छोड़ दिव्यांगों की मदद का जो बीड़ा पुष्पा प्रिया ने उठाया है, वो काबिले तारीफ है। पुष्पा की वजह से आज कई दिव्यांग MNC, तो कई सरकारी विभाग में नौकरी कर रहे हैं। प्रिया आज हजारों नेत्रहीनों के लिए उम्मीद एक किरण हैं,जो लगातार दिव्यांगों के उदास मन में भविष्य को लेकर नई उमंग जगा रही हैं। POZITIVE INDIA दूसरों के लिए जीने वाली देश की ऐसी असल नायिकाओं को सलाम करता है।
बहुत अच्छी कहानी,हमें प्रेरणा लेनी चाहिए