जिंदगी की वो शाम जो ढलती जा रही है,वो पड़ाव जब आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगता है,जब कांपते होंठ से ठीक तरह से शब्द भी नहीं निकल पाते,जब हाथ पैर खुद का सहारा ...
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