यकीन मानिए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के कोलार में बने इस तीन मंजिला मकान की हर ईंट के अंदर से कुछ ऐसी ही ममस्पर्शी आवाजें आपको भी सुनाई देंगी.इस बड़ी सी इमारत के भीतर बसने वाले हर एक इंसान के दिल-दिमाग और जुबां पर आपको भी सिर्फ और सिर्फ उनकी ‘आई’ ही नजर आएगी.क्या करें…उनकी वो आई, है भी तो इतनी प्यारी.कभी वो अपने से बड़े उम्र के बच्चों की माई बन जाती है, तो किसी को उसमें सायरोबानो की परछाई नजर आती है.जरूरत पड़ने पर वो बेटी का फर्ज भी निभाती है,पिता सा प्यार लुटाती है,तो कभी पराई होते हुए भी बेटा बन “घर से मिले घाव” को अपनेपन के प्यार से सहलाती है..मैं क्या नाम दूं उन्हें, दीदी कहूं, पालनहारी कहूं,समाजसेवी कहूं या फिर कोई फरिश्ता…पता नहीं उनका इन लोगों से क्या रिश्ता है, फिर भी वो उनके रग-रग में समाई है.पूरे एक दिन उनके बीच रहकर मुझे महसूस हुआ कि वो बुढ़ापे में वीरान हो चली जिंदगी में खुशियों की बहार बनकर आई है.
शायद इस दुनिया में जिंदगी के मायने सभी के लिए अलग-अलग होते हैं.कोई जिंदगी में नाम कमाना चाहता है,कोई शोहरत पाना चाहता है,किसी को रुतबा अच्छा लगता है तो कोई दौलत जुटाने में पूरी जिंदगी बिता देता है.कमोबेश यहां हर कोई सिर्फ अपने लिए जीता है.अपनी ही जिंदगी में व्यस्त रहता है.लेकिन मेरे शहर में एक शख्सियत ऐसी है जो सिर्फ दूसरों के लिए जीती है,वो परायों को अपना बनाती है, बुढ़ापे में हर बेसहारा की लाठी बन जाती है,उसकी एक हंसी जिंदगी की आस छोड़ चुके न जाने कितने चेहरों पर फिर मुस्कान लाती है और इस शख्सियत का नाम है माधुरी मिश्रा.जो भोपाल के कोलार इलाके की सर्वधर्म कॉलोनी में अपना घर नाम से एक वृद्धाश्रम चलाती हैं.जी हां माधुरी मिश्रा, जिनके पिता कभी भोपाल शहर के एसपी थे,जिसने कभी लालबत्ती से नीचे पैर नहीं रखा था,दुनिया का हर सुख उसके कदमों पर था, मगर वो इन तमाम सुख-सुविधाओं को छोड़कर बीते 30 सालों से सिर्फ दूसरों करने के लिए जी रही हैं.
महज 17 साल की उम्र से ही माधुरी ने खुद को पूरी तरह से समाज सेवा के कार्य में समर्पित कर दिया था.12 साल तक भोपाल की झुग्गियों में रहकर गरीबों के उत्थान,विधवा पुनर्विवाह और बच्चों को पढ़ाने-लिखाने का काम किया.टीकमगढ़ के एक संपन्न राजनीतिक परिवार में माधुरी की शादी हुई.लेकिन ससुरालवालों को माधुरी का समाजसेवा का ये काम पसंद नहीं थी.वो चाहते थे कि उनकी बहू तमाम सुख-सुविधाओं से लैस लग्जरी लाइफ जिए मगर माधुरी के जिंदगी का मकसद तो कुछ और ही था.लिहाजा अपनों के विरोध के बावजूद माधुरी ने अपना पूरा जीवन इंसानियत की सेवा में झोंक दिया.
शादी के बाद माधुरी टीकमगढ़ से वापस भोपाल आईं.पति ने भी इन कठिन परिस्थतियों में साथ दिया और समाजसेवा के सफर में साथ-साथ चलने का फैसला किया.शादी के बाद माधुरी जी ने 12 साल तक भोपाल में झुग्गीवासियों के लिए काम किया.यहां तक कि वो खुद कई महीनों तक इंदिरा नगर की झुग्गी नंबर 32 में रहीं.यहीं उनकी बेटी का जन्म हुआ.
कई बार आर्थिक स्थिति आड़े आई मगर माधुरी जी के इरादों के आगे उसे भी झुकना पड़ा.झुग्गी में रहने वाले गरीब बच्चों की भूख भी उनसे देखी नहीं गई.यहां तक कि उन्होंने खुद अपनी बेटियों को बकरी का दूध पिलाया ताकि झुग्गी में रह रहे गरीब बच्चों को वो फीड करा सकें.अभी तक अपनी जिंदगी में मैने ऐसा समर्पण सिर्फ किस्से या कहानियों में ही देखा या सुना था.ये पहला मौका था जब मैनें हकीकत में त्याग और समर्पण का ये भाव न सिर्फ देखा बल्कि महसूस भी किया.
माधुरी जिंदगी की तमाम चुनौतियों से लड़ती हुई 25 साल तक भोपाल के आनंद धाम में बेसहारा बुजुर्गों का सहारा बनी रहीं.फिर साल 2012 में अपना घर नाम से कोलार में एक वृद्धाश्रम की स्थापना की.जहां अपने बच्चों द्वारा सताए गए या भगाए गए पीड़ित बुजुर्गों का वो अपने से भी ज्यादा ख्याल और ध्यान रखती हैं.इन बुजुर्गों की जिंदगी की ढलती सांझ और अपनों से टूटती आस के बीच माधुरी रिश्तों के टूटे धागों को फिर प्यार और सम्मान से जोड़ने का काम कर रही हैं.
माधुरी की परछाई उनकी दोनों बेटियों में भी देखने को मिलती हैं.दोनों ही मां की तरह बुजुर्गों का खूब ख्याल रखती है.माधुरी की बड़ी बेटी पुणे में रहती है जबकि छोटी बेटी यहीं भोपाल में रहकर मां का साथ निभा रही है.कहने को तो अपना घर एक वृद्धाश्रम है मगर हकीकत में सारे संसार की खुशियां इसी घर के अंदर समाई हुई हैं.जहां अपनों से प्रताड़ित देश के अलग-अलग जाति-धर्म और प्रदेश के लोग एक साथ मिलकर खुशियां बाटते हैं.अपना घर में हर तीज-त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं.दीवाली से लेकर होली तक यहां सब एक साथ खुशियां बाटते हैं.
भले ही यहां रहने वाले लोगों की उम्र माधुरी से ज्यादा हो लेकिन यहां सबकी खुशी का ख्याल माधुरी ही रखती हैं. कई बार इन बुजुर्गों को मनाने के लिए कई उन्हें अलग-अलग किरदार भी निभाने पड़ते हैं.पुराने किस्से याद करते हुए माधुरी कहती हैं कि एक बार आश्रम में रहने वाले छोटू नाम के बुजुर्ग को वो आनंद जादूगर का शो दिखाने नहीं ले जा सकीं जिससे वो बच्चों की तरह नाराज हो गए.लिहाजा माधुरी को खुद आनंद जादूगर का गेटअप लेकर उन्हें मनाना पड़ा,मगर माधुरी कहती हैं असली सुख यही है,बुढ़ापा भी एक तरह का बचपना है और वो यहां रहने वाले हर बुजुर्ग को बच्चा समझकर उनकी जिद्द पूरी करती हैं.फिर चाहे इसके लिए उन्हें नर्स का रोल करना पड़े या फिर जादूगर बनना पड़े…वो तो बस इन मुरझाए चेहरों पर किसी तरह मुस्कान बिखेरना चाहती हैं…
माधुरी मिश्रा को उनके इस नेक काम के लिए अब तक कई अवार्ड भी मिले.मदर टेरेसा सम्मान से लेकर फिल्म स्टार आमिर खान के बहुचर्चित शो सत्यमेव जयते में भी उनका सम्मान किया गया.लेकिन ये सारे सम्मान और मेरे द्वारा लिखे गए ये शब्द भी उनकी सोच और समर्पण के आगे शायद काफी छोटे पड़ जाते हैं.वो असल मायने में हमारे समाज की नायिका हैं. जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपनी पूरी जिंदगी बेसहारा बुजुर्गों की देखरेख में कुर्बान कर दी.जिन्हें अपनों ने ठुकराया,माधुरी ने उन्हें अपनाया,नया जीवन दिया,उनकी जिंदगी में नया उजाला लेकर आईं और हम सबको एक संदेश दे गईं….काश्श्श् मेरी मुल्क की हर बहू-बेटी माधुरी मिश्रा होती…