ये कहानी एक छोटे से गांव के बेहद गरीब परिवार में जन्मी एक ऐसी लड़की के संघर्ष और सफलता के सफर की है, जिसने नियति को बदलते हुए अपना भाग्य खुद लिखा.तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए खुद अपना भविष्य गढ़ा और हौंसलों के बूते नामुमकिन को मुमकिन करते हुए डॉक्टर बनने का सपना हकीकत में तब्दील कर दिखाया.
मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बड़वानी जिले का एक छोटा सा गांव लिंबी.जहां 21वीं सदी के भारत में भी बालिका वधु बनाने की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है.जहां लड़कियों को पढ़ने की इजाजत तक नहीं थी ऐसे में इसी गांव में जन्मी ललिता जमरे नाम की लड़की अपने भविष्य को लेकर तमाम सुनहरे ख्वाब गढ़ रही थी.भले ही उसने हकीकत में कभी स्कूल की सूरत तक नहीं देखी, लेकिन सपनों में खुद को डॉक्टर देखा करती थी.परंपराओं की बेड़ियों ने उसके पैर भी बांधे,सपनों के पंख नोंचने की कोशिश की गई लेकिन ललिता ने हार नहीं मानी.
साल 2001 में ललिता आगे की पढ़ाई के लिए भोपाल पहुंची मगर वो इस बात से अनजान थी कि नए शहर में नई चुनौतिया उसका पहले से ही इंतजार कर रही हैं.मेहनत की बदौलत उसे मेडिकल कॉलेज में दाखिला तो मिल गया लेकिन भारी भरकम फीस की समस्या अब भी बरकरार थी.लेकिन वो कहते हैं ना सच्चे इंसान की मदद भगवान भी किसी न किसी रूप में जरूर करता है.ललिता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.दलित आदिवासी जागृत संगठन की माधुरी बेन और राकेश दीवान ने ललिता के जुनून और जज्बे की कहानी सुनी तो एक ट्रस्ट के जरिए फीस के पैसों का इंतजाम करा दिया.
भैंस चराने से लेकर डॉक्टर बनने तक ललिता ने एक ऐसा मुश्किल सफर तय किया है,जो कालापानी की सजा से भी कहीं ज्यादा कठिन था.कदम-कदम पर परेशानियां,हजार दुश्वारियां,आर्थिक तंगी,सामाजिक बेडियां,बोझिल रिवाज,पारिवारिक विरोध और ना जाने कितनी चुनौतियां का सामना उसने अकेले ही किया.फिर भी लड़ती रही अपनी किस्मत से…डटी रही अपनी जिद्द पर…न कभी हौसला कम हुआ और न ही उसने उम्मीद का दामन छोड़ा…आखिर में उसने तमाम बंदिशों-तोहमतों को तोड़ते हुए वो कर दिखाया जिसके लिए पाकिस्तान की मलाला को दुनिया का सबसे महान नोबल पुरुष्कार तक मिला.हम अपनी मलाला यानि ललिता को नोबल तो नहीं दिला सकते लेकिन हम सब एक साथ उसके अटूट साहस,उसकी हिम्मत और उसकी मेहनत को सलाम जरूर कर सकते हैं.ताकि उसका ये हौंसला विपरीत हालातों में हमारा भी आत्मविश्वास बढ़ाता रहे.
भोपाल की बैरसिया तहसील के धमर्रा में पदस्थ ललिता जमरे पाटी गांव और अपने समुदाय में डॉक्टर बनने वाली पहली महिला है.अब वो जब भी गांव जाती है तो दूसरी लड़कियों को भी पढ़ाई के लिए प्रेरित करती है,उनके परिजनों से बात करती है.शुरूआत में ललिता को लोगों को शिक्षा का महत्व समझाने में दिक्कतें तो आई ं मगर ललिता के जुनून के आगे उनका ये विरोध ज्यादा दिन नहीं टिक सका और गांव में भी धीरे-धीरे बदलाव की बयार बहना शुरू हुई.अब गांव की बाकी बेटियां भी ललिता की तरह डॉक्टर बनने का सपना लिए स्कूल जाती हैं.और ललिता दीदी उनकी रोल मॉडल हैं.